अंधविश्वास क्या है ? (What is Superstition in hindi), भारत में अंधविश्वास के प्रचलन के कारण, अंधविश्वास और विश्वास में अंतर, भारत में प्रचलित कुछ अंधविश्वास आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।
अंधविश्वास क्या है ? (What is Superstition in hindi)
अंधविश्वास से तात्पर्य एक तर्कहीन विश्वास से है जिसका आधार अलौकिक प्रभावों की काल्पनिक व्याख्या है, बिल्ली को देखकर रास्ता बदल देना अंधविश्वास का एक प्रमुख उदाहरण है। अतः यह कहा जा सकता है कि ”किसी भी कार्य के परिणामों से अपरिचित होते हुए भी उस पर आँख मूंदकर विश्वास करना या जो तर्क के बिना मान लिया गया विश्वास हो ‘अंधविश्वास’ कहलाता है।” अंधविश्वास ज्यादातर कमजोर व्यक्तित्व, कमजोर मनोविज्ञान एवं कमजोर मानसिकता वाले लोगों में देखने को मिलता है इसके अलावा यह अशिक्षित एवं निम्न आय वर्ग वाले लोगों में भी देखने को मिलता है।
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भारत में अंधविश्वास के प्रचलन के कारण
भारत का अंधविश्वास में अविश्वसनीय (जो विश्वास के योग्य न हो) विश्वास होने के कारण उसे अंधविश्वास का गढ़ कहा जाता है। भारत में अंधविश्वास पूर्व से चली आ रही एक व्यापक सामाजिक समस्या है जो प्रत्येक समाज में अलग-अलग रूपों में पाईं जाती है इसके अलावा अंधविश्वास को अलग-अलग समाजों के अतिरिक्त अलग-अलग धर्मों एवं जातियों में भी भिन्न-भिन्न प्रकार से देखा जा सकता है।
भारत में अंधविश्वास का प्रमुख कारण व्यक्ति का डर और स्वार्थ है जिसकी वजह से वह अन्धविश्वास की ओर जाने से खुद को रोक नहीं पाता है। डर से अंधविश्वास का तात्पर्य – जब कोई व्यक्ति कुछ कार्य करने जाए तो उसे किसी के द्वारा यह कह दिया जाए की आज इस कार्य को करने से कुछ बुरा हो जाएगा तो व्यक्ति डर से चाहते हुए भी उस कार्य को नहीं कर पाता है। इसी प्रकार स्वार्थ भी है यदि कोई कह दे की ये करने से आपके घर में धन की वर्षा होगी। तो व्यक्ति ऐसे अंधविश्वासी कार्य को करने लगता है जिससे उसे सुख की प्राप्ति हो।
भारत में अंधविश्वास की कुछ ऐसी प्रथाएं प्रचलित थी जो एक सभ्य समाज के अस्तित्व को ख़त्म कर देने वाली थी जैसे – मानव बलि, सती प्रथा आदि किन्तु विकास और इन विचारों को समाप्त करने के प्रयासों ने पहले की अपेक्षा वर्तमान में अन्धविश्वास की स्थिति को काफी कम कर दिया है।
अंधविश्वास केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों जैसे – चीन आदि में भी प्रचलित है परन्तु विश्व विकास का स्तर जैसे-जैसे बड़ा है वैसे-वैसे लोगों में अंधविश्वास के विचारों में भी कमी आने लगी। अंधविश्वास एक ऐसा विश्वास है जिसका कोई उचित कारण एवं परिणाम नहीं होता है।
भारत में कई लोगों की असफलता का कारण अंधविश्वास ही है जिसमें वे यह मान लेते है कि अंधविश्वास की मान्यताओं को न मानने की वजह से वे सफल नहीं हो पा रहे है।
भारतीय समाज में फैले हुए अंधविश्वास पर उसे दूर करने के भाव से यह कहा गया है कि –
विश्वास करें अंधविश्वास नहीं,
भक्त बनो अंध भक्त नहीं।
अंधविश्वास और विश्वास में अंतर –
अंधविश्वास – बिना बुद्धि के प्रयोग या किसी कार्यों को करने से पहले यदि उसके परिणामों में तर्क का अभाव पाया जाता हो तो वह अंधविश्वास कहलाता है। अंधविश्वास करने वाले व्यक्तियों को आलसी कहा जाता है क्योंकि वह बिना परिश्रम के ही अच्छे परिणामों को पाने पर भरोसा रखते है।
विश्वास – किसी कार्य को करने से पहले उसका तर्कपूर्ण अन्वेषण करने के पश्चात उनके परिणामों को मानना ही विश्वास है। विश्वास करने वाले व्यक्तियों को परिश्रमी कहा जाता है क्योंकि वे अच्छे परिणामों को पाने के लिए परिश्रम पर भरोसा रखते है।
भारत में प्रचलित कुछ अंधविश्वास
भारत में प्रचलित कुछ अंधविश्वास निम्नलिखित हैं –
- बिल्ली का रास्ता काट जाना
- आंख का फड़कना
- घर से बाहर किसी काम से जाते समय किसी व्यक्ति द्वारा छींक देना
- 13 तारीख को पड़ने वाला शुक्रवार या 13 नवंबर को अशुभ मानना
- हथेली पर खुजली होना
- परीक्षा देने जाने से पहले सफेद वस्तु जैसे दही आदि का सेवन करना
- सीधे हाथ पर नीलकंठ नामक चिड़िया का दिखाई देना
- सीढ़ी के नीचे से निकलना
- घोड़े की नाल का मिलना
- घर के अंदर छतरी खोलना
- काली बिल्ली में भूत-प्रेत का वास होना
- लकड़ी पर दो बार खटखटाना
- कंधे के पीछे नमक फेंकना
- मुँह देखने वाले शीशे का टूटना
- श्राद्ध के दिनों में नया काम शुरू न करना या नए कपड़े न सिलवाना आदि।
ये सभी अंधविश्वास है जो भारत में अभी भी देखे जा सकते है जिनसे व्यक्ति चाहते हुए भी अपना पीछा नहीं छुड़ा पाता है। भारत में व्याप्त ये सभी अंधविश्वास वर्तमान में भी भारत के पिछड़े होने का एक प्रमुख कारण है क्योंकि भारत के लोग परिश्रमी कम और अंधविश्वासी अधिक माने जाते है।