अर्थव्यवस्था का परिचय, अर्थव्यवस्था परिभाषा, अर्थव्यवस्था का अर्थ क्या है, अर्थव्यवस्था के प्रकार, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं। economics in hindi for upsc & pcs notes.
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अर्थव्यवस्था (Economy)
अर्थशास्त्र (Economics)
अर्थशास्त्र (Economics) दो शाब्दों से मिलकर बना है अर्थ + शास्त्र, अर्थ का मतलब है धन से संबंधित एवं शास्त्र का अर्थ है अध्ययन अतः धन से संबंधित अध्ययन को अर्थशास्त्र कहते हैं। अर्थशास्त्र का पिता एडम स्मिथ को माना जाता है, इनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम The Wealth of Nations था।
अर्थशास्त्र एक विषय है जिसमें हम आर्थिक सिद्धान्तों को पढ़ते हैं और आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करते हैं साथ ही दुर्लभ संसाधनों से मूल्यवान वस्तुओं के उत्पादन तथा उसके वितरण का अध्ययन करते हैं ताकि समाजिक आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।
अर्थव्यवस्था- अर्थव्यवस्था, अर्थशास्त्र का व्यवहारिक रूप है अर्थशास्त्र के अध्ययन को जब व्यवहारिक रूप से उपयोग में लाया जाता है तब उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं। अर्थव्यवस्था एक क्षेत्र है जहां आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों का निष्पादन किया जाता है। जब हम किसी देश को उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के संदर्भ में परिभाषित करते हैं, तो उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं।
अर्थव्यवस्था के प्रकार (Type of economy)
1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy)
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन के साधनों पर बाजार(निजी) का नियंत्रण होता है। मूल्य का निर्धारण, बाजार के आधार पर मांग व पूर्ति पर निर्भर करता है इसे बाजार मूल्य प्रणाली भी कहा जाता है।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का प्रभुत्व होता है। सरकारी हस्तक्षेप सीमित एवं प्रतिस्पर्धा की नीति को अमल में लाया जाता है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विशेषज्ञीकरण दिखता है। सरकार नियामक के रूप में केवल नियम बना सकती है।
इस अर्थव्यवस्था में सुचारू नेतृत्व तो होता है परन्तु पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के केन्द्र में सदैव उत्पादन होता है, जिससे मंदी एवं आर्थिक विषमता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अधिकतर विकसित देश इसे अपनाते हैं।
2. समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialist Economy)
समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक संसाधनों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण होता है। यहां पर मूल्य के निर्धारण में सरकार का हस्तक्षेप होता है तथा सरकार ही मांग व पूर्ति को नियंत्रित करती है इस तरह की प्रणाली को प्रशासनिक मूल्य प्रणाली भी कहा जाता है।
समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व होता है तथा नगण्य प्रतिस्पर्धा की नीति को अपनाया जाता है। समाजवाद में एकाधिकार दर्शन होते हैं। सरकार ही तीनों भूमिका नियामक, उत्पादनकर्ता एवं आपूर्तिकर्ता के रूप में होती है।
समाजवादी अर्थव्यवस्था के केन्द्र में उत्पादन के स्थान पर वितरण के रखा जाता है जिससे मुद्रास्फीति एवं राजकोषीय घाटा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी अर्थव्यवस्था में नेतृत्व का अभाव होता है।
3. मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)
मिश्रित अर्थव्यवस्था पूंजीवादी एवं समाजवादी का मिश्रण होती है। यहां कुछ आर्थिक क्रियाओं पर बाजार एवं कुछ पर सरकार का नियंत्रण होता है। मूल्य निर्धारण बाजार एवं सरकार दोनो द्वारा ही किया जाता है। सरकार नियामक के रूप में कार्य करती है। वर्तमान समय में भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था लागू है। ये अर्थव्यवस्था कम विकसित और विकासशील देशों में अधिक प्रचलित है।
4. बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy)
बन्द अर्थव्यवस्था, जिसमें आयात (Import) एवं निर्यात (Export) नहीं होता है बन्द अर्थव्यवस्था कहलाती है। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है, जब कोई देश अपने में ही इतना सक्षम हो कि उसे न कोई निर्यात करना पड़े और न ही आयात करना पड़े।
इस तरह की बन्द अर्थव्यवस्था को वास्तविक रूप में लागू कर पाना किसी भी देश के लिए व्यवहारिक नहीं है परन्तु फिर भी कुछ ऐसे देश है जहां आयात एवं निर्यात नगण्य के बराबर है यहां लगभग बंद अर्थव्यवस्था पायी जाती है। जैसे – नॉर्वे, ब्राजील।
5. खुली अर्थव्यवस्था (Open Economy)
खुली अर्थव्यवस्था में समुचित रूप से आयात एवं निर्यात होता है 1990 के बाद समाजवादी अर्थव्यवस्था का पतन हुआ और खुली अर्थव्यवस्था ही एक मात्र विकल्प बचा। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि खुली अर्थव्यवस्था एक बेहतर विकल्प है जिसमें एक ओर उपभोक्ता को बेहतर विकल्प मिलते हैं और दूसरी ओर पिछड़े देशों को तकनीकी ज्ञान प्राप्त होता है। लेकिन खुली अर्थव्यवस्था भी खतरों से मुक्त नहीं क्योंकि इससे कमजोर देशों के बाजार पर विकसित देशों का कब्जा हो जाने का भय बना रहता है जिससे धन का निर्गमन होने लगता है।
आर्थिक वस्तु एवं सेवा- जब सामान्य वस्तु एवं सेवा में उत्पादन की प्रक्रिया जुड़ जाए साथ ही उनमें बाजार मूल्य भी जुड़ जाये तो वह आर्थिक वस्तु बन जाती है। जिस भी वस्तु अथवा सेवा की उपयोगिता(मांग) जितनी ज्यादा होगी उसका बाजार मूल्य उतना ही अधिक होगा।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र (Sectors of Economy)
1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)
प्राथमिक क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जहां प्राकृतिक संसाधनों को कच्चे माल के तौर पर प्राप्त किया जाता है। प्राथमिक क्षेत्र में नैसर्गिक उत्पादन होता है तथा ऐसी वस्तुओं को प्राथमिक वस्तुएँ कहते हैं। उदाहरण के लिए कृषि उत्पाद, वानिकी, मत्स्य उद्योग आदि।
2. द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)
जहां प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को कच्चे माल की तरह उपयोग कर द्वितीयक वस्तु या पक्का माल तैयार किया जाता है, वह द्वितीयक क्षेत्र कहलाता है। उदाहरण के लिए उद्योग, रेडीमेड कपड़ा, निर्माण, बिजली उत्पादन आदि।
3. तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Section)
इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है। यहां वस्तुएँ नहीं बल्कि सेवा का उत्पादन होता है। इसे ‘बंद कमरे की गतिविधियां’ के नाम से भी जाना जाता है, जैसे – संचार क्षेत्र, परिवहन, बीमा, बैंकिंग, शिक्षा आदि।
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