आर्थिक मंदी क्या है – आर्थिक मंदी क्या है, भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी के कारण एवं निवारण, भारत में आर्थिक मंदी कब-कब आई, आर्थिक मंदी के परिणाम आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।
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आर्थिक मंदी क्या है
जब किसी देश की अर्थव्यवस्था अन्य देशों की तुलना में कमजोर पड़ जाती है तो उस स्थिति को आर्थिक मंदी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि देश की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट आने के कारण वह देश आर्थिक मंदी की श्रेणी में चला जाता है। यदि कोई देश आर्थिक मंदी की समस्या से जूझ रहा है तो उस देश की अर्थव्यवस्था भी सुस्त पड़ जाती है जिसके कारण उस देश का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है। आर्थिक मंदी के कारण देश के नागरिकों की आय पर भी बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। आर्थिक मंदी को खराब स्थिति के रूप में भी जाना जा सकता है क्योंकि इसके कारण देश के नागरिक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हो जाते हैं। इसके अलावा आर्थिक मंदी का दुष्प्रभाव उत्पादन कंपनियों पर भी देखा जा सकता है क्योंकि इस दौरान माल की बिक्री कम होने के कारण उत्पादन कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। आर्थिक मंदी के कारण देश में बेरोजगारी का स्तर और अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है।
आर्थिक मंदी का प्रभाव देश के साथ-साथ पूरे विश्व पर भी पड़ता है क्योंकि इसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेवाओं एवं वस्तुओं के उत्पादन में निरंतर गिरावट आती है जिससे घरेलू उत्पाद का स्तर बेहद कम हो जाता है। आर्थिक मंदी का दुष्प्रभाव विश्व के कई देशों में देखा जा सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी के कारण एवं निवारण
भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी के कई कारण हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:-
- वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के अंतर्गत आर्थिक मंदी का प्रमुख कारण धन के प्रवाह में रुकावट होना है। धन का प्रवाह रुक जाने से देश को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचता है। जब एक व्यक्ति बाजार से कम उत्पादों की खरीदारी करता है तो इसके कारण धन के प्रवाह में कमी हो जाती है जिसका सीधा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि हो जाने के कारण देश में महंगाई का स्तर और अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण देश के नागरिक अपनी आवश्यकता के अनुसार उत्पादों की खरीदारी करने में असमर्थ हो जाते हैं और इसी कारण देश में आर्थिक मंदी के दौर की शुरुआत होती है।
- आर्थिक मंदी के दौरान नौकरीपेशा लोगों की आय में गिरावट आती है जिसके कारण उनका निवेश भी कम हो जाता है और देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
- डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमतों में लगातार आने वाली गिरावट भी इसका एक मुख्य कारण माना जाता है। आर्थिक मंदी के दौरान देश में महंगाई के स्तर में भी वृद्धि होती है जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था खराब होती है।
- आयात की तुलना में निर्यात में कमी होने के कारण देश के राजकोष को भारी नुकसान उठाना पड़ता है जिसके कारण विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होती है।
- वर्तमान समय में जारी चीन एवं अमेरिका के मध्य होने वाले ट्रेंड वॉर (प्रवृत्ति युद्ध) के कारण विश्व के लगभग सभी देशों में आर्थिक मंदी में वृद्धि हुई है जिसके कारण भारत पर भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी के निवारण
भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी के निवारण कुछ इस प्रकार हैं:-
- भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी की स्थिति से छुटकारा पाने के लिए आयकर में कटौती को एक उपाय के रूप में देखा जा सकता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि आयकर में कटौती करने से मौजूदा स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
- विशेषज्ञों की मानें तो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक वित्तपोषण करने से आर्थिक मंदी की स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों की आधारभूत संरचना करने एवं रोजगार के अवसर को बढ़ाने से आर्थिक मंदी के प्रभाव कम करने में आसानी हो सकती है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में सभी सरकारी योजनाओं को लागू करने से भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका होती है।
- भारत में आयकरदाताओं की संख्या में वृद्धि होने से आर्थिक मंदी के प्रभाव को कम करने में आसानी हो सकती है। यदि भारत के नागरिक समय-समय पर आयकर जमा करें तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु देश के विभिन्न क्षेत्रों में कई सुधारात्मक कार्य करने की आवश्यकता है जिससे आर्थिक मंदी के दौर से बचा जा सकता है।
- भारत की अर्थव्यवस्था में निवेशकों की संख्या में वृद्धि होने के कारण देश में रोजगार के अवसरों को बढ़ावा मिलेगा जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है।
भारत में आर्थिक मंदी कब-कब आई
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार भारत में सन 1958, 1966, 1973 एवं 1980 में आर्थिक मंदी आई थी। सन 1957-58 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में सर्वप्रथम आर्थिक मंदी की शुरुआत हुई थी, इस दौरान भारत की जीडीपी (GDP- Gross domestic product) वृद्धि दर ऋणात्मक हो गई थी। यह मंदी आयात बिलों में भारी वृद्धि हो जाने के कारण हुई थी।
भारत में दूसरी बार सन 1965- 1966 में आर्थिक मंदी ने दस्तक दी थी। यह मंदी भयंकर सूखा पड़ जाने के कारण हुई थी। इस दौरान भी भारत की जीडीपी ऋणात्मक रही।
भारतीय अर्थव्यवस्था में तीसरी बार सन 1973 में आर्थिक मंदी की शुरुआत हुई थी। इस दौरान भारत में तेल संकट अपनी चरम सीमा पर था क्योंकि विश्व भर में कच्चे तेल को निर्यात करने वाले अरब देशों ने सभी देशों को तेल निर्यात करने पर रोक लगा दी थी जिसके कारण भारत को भी अन्य देशों की तरह आर्थिक मंदी के दौर से गुजरना पड़ा था। इस वर्ष भारत की जीडीपी -0.3 प्रतिशत थी जिसके कारण तेल की कीमतों को लगभग 400 प्रतिशत तक बढ़ाया गया था।
भारत में चौथी बार आर्थिक मंदी की शुरुआत सन 1980 में ईरानी क्रांति के कारण हुई। ईरान में क्रांति के कारण दुनिया भर के कई देशों में तेल उत्पादन में भारी कमी आई थी जिसके कारण तेल आयात की कीमतों में दोबारा वृद्धि हुई। इसी कारण भारत में भी तेल आयात की कीमतों में लगभग 200 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई थी। वर्ष 1980 के अंत तक भारत के जीडीपी वृद्धि दर -5.2 फीसदी रही।
इसके अलावा वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के कारण भी भारत में की अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा था।
आर्थिक मंदी के परिणाम
आर्थिक मंदी के कारण देश की अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार के बदलाव देखे जा सकते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:-
- आर्थिक मंदी के कारण देश के नागरिकों की आय पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसके कारण उनका राष्ट्रीय बाजार में निवेश कम हो जाता है। इसी कारण देश की अर्थव्यवस्था पर भी बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। आर्थिक मंदी की वजह से व्यक्तियों के पास उत्पादों की खरीदारी करने हेतु पर्याप्त धनराशि नहीं रहती जिसके कारण वह न तो खर्च कर पाता है और ना ही पैसों की बचत कर पाता है।
- जब किसी देश में आर्थिक मंदी की स्थिति होती है तो वहां पर बेरोजगारी की समस्या में तेजी से वृद्धि होती है। रोजगार में कमी के कारण आयकर विभाग को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
- आर्थिक मंदी के कारण औद्योगिक उत्पादन में तेजी से कमी होती है जिसके कारण देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों को भी नुकसान पहुंचता है। इसके कारण देश की आर्थिक विकास की गति भी धीमी पड़ जाती है जिससे देश की अर्थव्यवस्था खराब होती है।
- आर्थिक मंदी के दौरान देश में बचत एवं निवेश में भारी गिरावट होती है जिसका सीधा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक रूप से पड़ता है। इसके अलावा आर्थिक मंदी के कारण कर्ज की मांगों में भी कमी देखी जा सकती है।