उत्तराखंड स्थापना दिवस : उत्तराखंड स्थापना दिवस 9 नवंबर को होता है क्योंकि उत्तराखंड की स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई थी। 9 नवंबर 2000 को 27वें राज्य के रूप में उत्तराखंड अस्तित्व में आया था। उत्तराखंड राज्य गठन कई वर्ष पूरे हो गए, जो प्रदेश जनता द्वारा सुदीर्घ आन्दोलन और दर्जनों प्राण न्यौछावर कर प्राप्त किया गया हो, उसके स्थापना दिवस पर वैसा ही उत्साह दिखाई देना चाहिये था, जैसा दीवाली या ईद जैसे त्यौहारों पर होता है लेकिन आम जनता द्वारा इस महत्वपूर्ण दिन की पूरी तरह उपेक्षा करना ही साबित कर देता है कि उसे इस राज्य से अब कोई आशा नहीं रह गई है। राज्य आंदोलनकारियों की भावना के अनुरूप न तो अपनी बोली-भाषा गढ़वाली, कुमाऊंनी को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिल सका और न ही उत्तराखंड में पलायन रुका।
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उत्तराखंड राज्य के स्थापना का इतिहास
उत्तराखंड को राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम 5-6 मई 1938 को श्रीनगर में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाई गई थी। और 1938 में पृथक राज्य के लिए श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में ‘गढ़देश सेवा संघ’ का एक संगठन बनाया। इसी परिपेक्ष में कुमाऊँ के हल्द्वानी में भी उत्तराखंड को अलग राज्य की मांग उठाने लगी। इस तरह धीरे-धीरे अलग राज्य के लिए आन्दोलन बढता गया, 1957 में टिहरी नरेश मानवेंद्र शाह ने पृथक राज्य आन्दोलन को अपने स्तर से शुरू किया। 24 – 25 जून 1967 में रामनगर में पृथक राज्य के लिए पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया। 1976 में उत्तराखंड युवा परिषद का गठन किया और 1978 में सदस्यों ने संसद का भी घेराव करने की कोशिश भी की। 1984 में ऑल इण्डिया स्टूडेंट फेडरेशन ने राज्य की मांग को लेकर गढ़वाल में 900 कि.मी. की साईकिल यात्रा के माध्यम से लोगों में जागरूकता फेलाई। वहीं इन्द्रमणि बडोनी जी ने 1988 में तवाघाट से देहरादून तक की उन्होंने 105 दिनों की पैदल जन संपर्क यात्रा की। 1990 में जसवंत सिंह बिष्ट ने उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा में पृथक राज्य का पहला प्रस्ताव रखा। जुलाई 1992 में उत्तराखंड क्रांतिदल ने पृथक राज्य के सम्बन्ध में एक दस्तावेज जरी किया तथा गैरसैंण को प्रस्तावित राजधानी घोषित किया, इस दस्तावेज को उत्तराखंड क्रांतिदल का पहला ब्लू-प्रिंट माना गया। और कौशिक समिति ने मई 1994 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उत्तराखंड को पृथक राज्य और उसकी राजधानी गैरसैंण में बनाने की सिफारिश की गई। और मुलायम सिंह यादव सरकार ने कौशिक समिति की सिफारिश को 21 जुलाई 1994 को स्वीकार किया और 8 पहाड़ी जिलों को मिला कर पृथक राज्य बनाने का प्रस्ताव विधानसभा में सर्वसहमति से पास कर केन्द्र सरकार को भेज दिया।
लेकिन उस समय पृथक राज्य की मांग चरम पर थी, और जन आन्दोलन को दबाने के लिए उस समय की सरकार ने कई आंदोलनकारियों को निर्ममता से पीटना और शुरू किया जिसका परिमाण 1 सितम्बर 1994 खटीमा गोली कांड , 2 सितम्बर 1994 को मसूरी गोलीकाण्ड अंत: इन दो घटनाओं ने देश के सम्मुख उत्तराखंड को पृथक राज्य के दर्जे में आग में घी डालने का काम किया। इन घटनाओं के विरोध में उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक काफी जनसभाएं आयोजित हुई। इन शहीदों के लहू से ही आज उत्तराखंड को एक पृथक् राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।
उत्तराखंड की स्थिति
- उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है, की सभी सरकारें अपने रोटियां सकने के लिए आम जनमानस को चुनावी मुद्दों में ही भटका रही है।
- जिन मुद्दों के लिए राज्य का निर्माण हुआ था, उन मुद्दों को तो उत्तराखंड राज्य के लिए शहीद लोगों के साथ ही खत्म कर दिया गया।
- ना तो राज्य में पलायन रुका है, और ना ही राज्य में रोजगार के अवसर बढें है।
- उत्तराखंड को एक पहाड़ी राज्य का दर्जा है, लेकिन आज पहाड़ में गिनती के कुछ परिवार बचे हुए है।
- इतने वर्षों में सरकारों का चरित्र भी कुछ खास नही रहा, एक और को पहाड़ से पलायन रोकने के बात करते है, लेकिन दूसरी और पहाड़ों और नदियों को ही बेच कर पहाड़ी लोगों का पलायन किया जा रहा है।
उत्तराखंड का भविष्य
- अगर यही हालत रहे तो आने वाले कुछ वर्षों में उत्तराखंड 4-5 जिलों (नैनीताल, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून आदि) में सिमट कर रह जायेगा।
- उत्तराखंड का भविष्य तो काफ़ी उज्ज्वल है, अगर राज्य का नेतृत्व सही हाथों में हो और आम जनों का जन सहयोग हो तो।
- उत्तराखंड पर्यटन के क्षेत्र में देश ही नहीं अपितु विश्व के लिए भी आकर्षण का केंद्र है अगर सही तरह से इसे विकसित किया जायें।
- आज उत्तराखंड आयुर्वेद का बहुत बड़ा केंद्र बन सकता है, हिमालय में इस देवभूमि को हर तरह से समृद्ध किया हुआ है।
उत्तराखंड इस बार का राज्य स्थापना दिवस देवभूमि उत्तराखंड के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अच्छा हो की लोग इस पर्व में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें और यह आकलन अवश्य करें की हमने क्या खोया और क्या पाया। क्या वाकई राज्य बनाकर हमने कुछ हासिल किया या इतने बलिदान व्यर्थ गए !
Note – आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं।
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Very very very nice thought of yours honorable writer
You made this topic interesting
Thanking you ☺ ☺ ☺
I am from Uttrakhand chamoli i loved the paragraph it was amazing