गुप्त साम्राज्य की नींव रखने वाला शासक श्री गुप्त था। श्री गुप्त ने ही 275 ई. में गुप्त वंश की स्थापना की थी। मौर्य काल के बाद गुप्त काल को भी भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग माना गया है।
गुप्त वंश की जानकारी वायुपुराण से प्राप्त होती है। गुप्तकाल की राजकीय भाषा संस्कृत थी। ये भी माना जाता है कि दशमलव प्रणाली की शुरुआत भी गुप्तकाल में ही हुई थी। और मंदिरों का निर्माण कार्य भी गुप्तकाल में ही शुरू हुआ था।
यह भी माना जाता है कि बाल विवाह की प्रथा सम्भवतः गुप्त काल से ही प्रारम्भ हुई थी। गुप्त कालीन स्वर्ण मुद्रा को दीनार कहा जाता था। गुप्त काल के सर्वाधिक सिक्के सोने के बनाये जाते थे। पंचतंत्र की रचना भी गुप्तकाल में ही हुई थी।
गुप्त साम्राज्य में ब्राह्मणों को कर रहित कृषि भूमि दी जाती थी। जबकि अन्य लोगों को उनकी उपज का छठा भाग भूमि राजस्व के रूप में राजा को देना होता था। गुप्त राजवंश अपने साम्राज्यवाद के कारण प्रसिद्ध था।
महान खगोल विज्ञानी और गणितज्ञ आर्यभट्ट और वराहमिहिर का सम्बन्ध गुप्त काल से ही था। वराहमिहिर ने ही खगोल विज्ञान के भारतीय महाग्रंथ ‘पञ्चसिद्धान्तिका‘ की रचना की थी। आयुर्विज्ञान सम्बन्धी रचना करने वाले रचनाकार सुश्रुत का सम्बन्ध भी गुप्त काल से ही था।
गुप्तवंश का उदय
श्रीगुप्त
श्रीगुप्त गुप्तवंश का प्रथम शासक और गुप्त वंश की स्थापना करने वाला शासक था। पूना से प्राप्त ताम्रपत्र में श्रीगुप्त को ‘आदिराज‘ नाम से सम्बोधित किया गया है।
घटोत्कच गुप्त
श्रीगुप्त के बाद उसका पुत्र घटोत्कच गुप्त सिंहासन पर आसीन हुआ। कुछ अभिलेखों में घटोत्कच को गुप्त वंश का प्रथम राजा बताया गया है।
चन्द्रगुप्त प्रथम
चन्द्रगुप्त घटोत्कच गुप्त का पुत्र था, जिसने घटोत्कच गुप्त के बाद सत्ता की बागडोर संभाली। चन्द्रगुप्त को महाराजाधिराज चन्द्रगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, महाराजाधिराज एक उपाधि थी, जो चन्द्रगुप्त प्रथम को दी गयी थी। संभवतः यह उपाधि उसके महान कार्यों के कारण ही उसे दी गयी होगी।
गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम को ही माना जाता है। गुप्त संवत शुरू करने का श्रेय चन्द्रगुप्त प्रथम को ही दिया जाता है। गुप्त काल में सर्वप्रथम सिक्कों का चलन भी चन्द्रगुप्त प्रथम ने ही किया था।
समुद्रगुप्त
चन्द्रगुप्त के पश्चात 350 ई. के आस-पास उसका पुत्र समुद्रगुप्त सिंहासन पर बैठा। समुद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था जोकि पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में स्थित पूर्वी मालवा तक तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विंध्य पर्वत तक फैला हुआ था। इलाहबाद शिलालेख के अनुसार समुद्रगुप्त एक महान कवि और संगीतकार था। समुद्र्गुप्त को उसकी राज्य प्रसार नीतियों के कारण ‘भारत का नेपोलियन‘ भी कहा गया है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय
गुप्त राजवंश का अगला शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय था, जो समुद्रगुप्त का पुत्र था, जिसे विक्रमादित्य और देवगुप्त के नाम से भी जाना गया। विक्रमादित्य इसकी उपाधि थी। इसे ‘शक-विजेता‘ के नाम से भी पुकारा जाता है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने लगभग 40 वर्षों तक राज किया। विक्रमादित्य के शासन काल को भारतीय कला व साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जाता है, साथ ही यह भारत के इतिहास का भी स्वर्णिम युग था।
चन्द्रगुप्त द्वितीय का विशाल साम्राज्य उत्तर में हिमालय के तलहटी इलाकों से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के तटों तक तथा पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला हुआ था। चन्द्रगुप्त द्वितीय की प्रथम राजधानी पाटलिपुत्र थी और द्वितीय राजधानी उज्जयिनी (उज्जैन) थी।
प्रसिद्ध कवि कालिदास चन्द्रगुप्त द्वितीय का दरबारी था, जिसे दरबार में सम्मिलित नौरत्नों में प्रधान माना जाता था। जिनमें प्रसिद्ध चिकित्सक धन्वंतरि भी शामिल थे, जिन्हें आयुर्वेद के वैद्य ‘चिकित्सा का भगवान‘ मानते हैं। अन्य सात रत्न अमर सिंह, शंकु, क्षपणक (ज्योतिष), बेताल भट, वराहमिहिर, घटकर्पर और वररुचि थे।
चीनी यात्री फह्यान या फाहियान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में ही भारत आया था। रजत (चाँदी) के सिक्के शुरू करने वाला प्रथम शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय था, जिन्हें रूपक या रप्यक कहा जाता था।
महरोली स्थित राजचन्द्र के लोहस्तम्भ को चन्द्रगुप्त द्वितीय ने बनवाया था।
कुमारगुप्त प्रथम
चन्द्रगुप्त द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र कुमारगुप्त प्रथम सिंहासन पर आसीन हुआ। कुमारगुप्त प्रथम ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था और महेन्द्रादित्य की उपाधि धारण की थी। कुमारगुप्त प्रथम के ही शासन काल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। कुमारगुप्त प्रथम ने अपने पिता चन्द्रगुप्त द्वितीय की ही भाँति राज्य को सुव्यवस्था और सुशासन से चलाया था और अपने पिता के दिये साम्राज्य को ज्यों का त्यों ही बनाये रखा था।
स्कंदगुप्त
कुमारगुप्त की मृत्यु के पश्चात उसका उत्तराधिकारी पुत्र स्कंदगुप्त राजसिहांसन पर विराजमान हुआ। उसे काफी लोक हितकारी सम्राट माना गया है। उसे क्रमादित्य और विक्रमादित्य आदि उपाधियाँ प्राप्त की थी। स्कंदगुप्त ने हूणों के आक्रमण से भी देश को बचाया था।
स्कंदगुप्त के पश्चात कोई भी गुप्तवंश का राजा अपना प्रभुत्व इतना न बढ़ा सका जिसकी जानकारी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो। जिस कारण स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारियों की स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है।
गुप्त वंश का अंतिम शासक विष्णुगुप्त था।
गुप्त वंश के पतन का कारण
गुप्तवंश के पतन का कारण पारिवारिक कलह और बार-बार होने वाले विदेशी आक्रमण माने जाते हैं। जिनमें हूणों द्वारा आक्रमण को मुख्य कारण माना जाता है।
क्लिक करें HISTORY Notes पढ़ने के लिए Buy Now मात्र ₹399 में हमारे द्वारा निर्मित महत्वपुर्ण History Notes PDF |
nice sir ji
NICE ARTICLE
nice sir ji
Super sir ji thanks you
Very nice sir ji
Nice information sir ji
Excellent , very usefull thanks alot
Good
Very nice information history
Very important jankari…..so very nice and greatest thank you
Its a very use ful collection
So nice sir
Thanks 4 study fry
Super sir ji
अच्छी जानकारी …..
Nice sir
Very Good
Nice sir
Nice information for history thank you sir
…nice information
Sir abhilekho ke bare me bhi info add kar dijiye
Bhut briya Sir ji
Super sir ji thanks you
Nice all subject ki jankari dene ke liye
Nice article