गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन परिचय

गोपाल कृष्ण गोखले

गोपाल कृष्ण गोखले पर निबंध (gopal krishna gokhale essay in hindi) : गोपाल कृष्ण गोखले एक महान स्वतंत्रता सेनानी और एक सच्चे देशप्रेमी थे। गोपाल कृष्ण गोखले राष्ट्रपिता गांधीजी के राजनीतिक गुरु थे। गोखले स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी विचारक, और समाज सुधारक थे।

गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन परिचय ( gopal krishna gokhale ka jivan parichay )

गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म –

1857 ई. में ‘स्वतंत्रता संग्राम’ के नौ वर्ष बाद गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के कोटलुक नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम कृष्णराव श्रीधर गोखले था जो एक स्वाभिमानी ब्राह्मण थे और उनकी माता का नाम वलुबाई गोखले था। वर्ष 1880 में गोखले ने सावित्रीबाई से शादी की जो एक क्रोधित महिला थी और बचपन से ही बीमार थी इसके बाद वर्ष 1887 में गोखले ने दूसरा विवाह किया जिनसे उनको दो लड़कियां थी। बाद में गोखले ‘सुकरात’ कहे जाने वाले गोविन्द रानाडे के शिष्य बन गए।

गोपाल कृष्ण गोखले की शिक्षा –

पिता की असामयिक मृत्यु होने के कारण गोपाल कृष्ण गोखले समय से पहले ही कर्मठ हो गए। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोथापुर में स्थित राजाराम हाईस्कूल से की, वर्ष 1884 में वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बम्बई चले गए उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह कुछ समय के लिए ‘न्यू इंग्लिश हाई स्कूल’ में अध्यापक रहे और बाद में उन्होंने पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में इतिहास और राजनीतिक अर्थव्यवस्था पढ़ाना शुरू किया। गोखले एक ईमानदार व्यक्ति थे और अत्यंत संयमित जीवन व्यतीत करते हुए उन्होंने साधनों के अनुरूप खुद को ढाला और शिक्षा को  प्रथम प्राथमिकता दी।

गोपाल कृष्ण गोखले का राजनीतिक जीवन –

वर्ष 1885 में बाल गंगाधर तिलक से मिलने के बाद गोखले के जीवन को एक नयी दिशा मिली। तिलक के भाषणों से गोखले अत्यधिक प्रभावित हुए थे। तत्पश्चात न्यायमूर्ति गोविन्द रानाडे के संपर्क में आने के बाद गोखले सामाजिक कार्यों में रूचि लेने लगे और उनसे प्रेरित होकर गोखले वर्ष 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने इसमें सक्रीय रूप से जुड़ने के बाद वह कुछ वर्षों तक संयुक्त सचिव रहे थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी व्यक्ति थे। गोखले का राजनीति में प्रवेश वर्ष 1888 में इलाहाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में हुआ। वर्ष 1895 में गोखले पुणे में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ”रिसेप्शन कमेटी” के सचिव बने। उन्होंने वर्ष 1901 में भारत के गवर्नर जनरल की इंपीरियल काउंसिल में भी कार्य शुरू किया और भारतीयों को सरकारी नौकरी, नमक कर और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा देने के मुद्दे को काउंसिल में उठाया।

गोखले का यह मानना था की व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनना है तो उसमें शिक्षा और जिम्मेदारियों का ज्ञान होना आवश्यक है। गोखले ने ”सुधारक” नामक समाचार पत्र को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई का माध्यम बनाया। उदारवादी होने के साथ-साथ गोखले सच्चे देशप्रेमी भी थे उनका यह भी मानना  था की अंग्रेजों के शासन में भारत कोई प्रगति नहीं कर सकता।

कुछ समय बाद गोखले अंग्रेजी साम्राज्य के भारी समर्थक बन गए और उन्होंने लार्ड हार्डिंग से यह कहा की यदि अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए तो वह उन्हें तार द्वारा आमंत्रित करेंगे, उन्हें गरम दल के लोगों ने दुर्बल हृदय का उदारवादी एवं छिपा हुआ राजद्रोही कहा। गोखले न केवल गाँधी जी बल्कि मुहम्मद अली जिन्ना के भी राजनीतिक गुरु थे। गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन चलाया जहाँ वर्ष 1912 में गोखले भी गए वह रंगभेद के ख़िलाफ थे और उन्होंने इसकी भारी निंदा की थी।

गोपाल कृष्ण गोखले जी के चार सिद्धांत –

  1. सत्य के लिए लड़ो।
  2. अपनी भूल की सहज स्वीकृति।
  3. लक्ष्य के प्रति निष्ठा।
  4. नैतिक आदर्शों के प्रति आदरभाव।

गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा ”भारत सेवक समाज” की स्थापना-

गोपाल कृष्ण गोखले एक समाज सुधारक भी थे उन्होंने समाज में फैली कुप्रथाओं का विरोध किया। उनकी रूचि शिक्षा के तरफ अधिक थी इसलिए उन्होंने शिक्षा पर अधिक जोर दिया और वर्ष 1905 में ‘भारत सेवक समाज’ की स्थापना की। भारत सेवक समाज की स्थापना गोखले द्वारा किया गया महत्वपूर्ण कार्य है। उन्होंने इसके माध्यम से नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित करने का प्रयास किया।

गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा भारत सेवक समाज की स्थापना पर ली गयी 7 शपथ-

  1. वह अपनी देश की सेवा करेंगे और जरूरत पड़ने पर प्राण भी न्योछावर कर देंगे।
  2. प्रत्येक भारतवासी को अपना भाई मानेंगे और देश में भाईचारा की भावना को बढ़ाएंगे।
  3. इसके के बाद वे कभी भी देश सेवा में व्यक्तिगत लाभ को नहीं देखेंगे।
  4. जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव को कम करेंगे।
  5. किसी से झगड़ा नहीं करेंगे और एक सामान्य जीवन बिताएंगे।
  6. देश का संरक्षण करेंगे तथा देश के उद्देश्यों को पूरा करने में अपना योगदान देंगे।
  7. सोसाइटी उसके परिवार के लिए जितनी धनराशि देगी वह उससे संतुष्ट रहेगा और अधिक कमाने की ओर ध्यान नहीं देगा।

गोपाल कृष्ण गोखले की मृत्यु –

जन नेता कहे जाने वाले गोपाल कृष्ण गोखले का निधन 19 फरवरी, 1915 को महाराष्ट्र में मधुमेह एवं दमा जैसी बीमारी के कारण हो गया था। वह अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी राजनीतिक आंदोलनों और समाज सुधार कार्यक्रमों में सक्रिय रहे और स्वयं के द्वारा स्थापित ‘भारत सेवक समाज’ में भी कार्यरत थे। बाल गंगाधर तिलक ने गोखले को भारत का हीरा, महाराष्ट्र का लाल, कार्यकर्ताओं का राजा कहकर उनकी सराहना की।

गोपाल कृष्ण गोखले के लिए महात्मा गांधी द्वारा कहे गए शब्द –

महात्मा गांधी ने गोपाल कृष्ण गोखले के लिए यह शब्द कहे थे –

”मुझे भारत में एक पूर्ण सत्यवादी आदर्श पुरुष की तलाश थी और वह आदर्श पुरुष मुझे गोखले के रूप में मिला। उनके हृदय में भारत के प्रति सच्चा प्रेम और वास्तविक श्रद्धा थी। वे देश की सेवा के लिए अपने सारे सुखो और स्वार्थ से परे रहें।”

Image credit : Wikipedia

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