द्वितीय विश्व युद्ध के कारण एवं परिणाम : द्वितीय विश्व युद्ध एक विश्व-स्तरीय युद्ध था जो 1 सितंबर, 1939 से 2 सितंबर, 1945 तक चलने वाला इतिहास का सबसे घातक युद्ध था। द्वितीय विश्व युद्ध 6 वर्षों तक लड़ा गया जिसमें लगभग 70 देशों की थल, जल और वायु सेनाओं के लगभग 10 करोड़ सैनिकों ने भाग लिया था। द्वितीय विश्व युद्ध में दो विरोधी गुट धुरी शक्तियां और मित्र राष्ट्र विभाजित हो गए थे जिसमें धुरी शक्तियों में जर्मनी, इटली व जापान और मित्र राष्ट्र में फ़्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन भी शामिल था।
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द्वितीय विश्व युद्ध के कारण (Causes of Second World War in hindi) –
द्वितीय विश्व युद्ध होने के बहुत से प्रमुख कारण थे जिसमें प्रथम विश्व युद्ध के बाद होने वाली वर्साय संधि की कठोर शर्तें, आर्थिक मंदी, तुष्टिकरण की नीति, जर्मनी और जापान में सैन्यवाद का उदय, राष्ट्र संघ की विफलता आदि प्रमुख कारण सम्मिलित थे। द्वितीय विश्व युद्ध होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित है –
वर्साय की संधि
प्रथम विश्व युद्ध के बाद विजयी मित्र राष्ट्र ने जर्मनी के भविष्य का फैसला करते हुए उसे वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। वर्साय की संधि के तहत जर्मनी को युद्ध का दोषी मानकर उस पर आर्थिक दंड लगाया गया। विजयी राष्ट्र द्वारा जर्मनी के प्रमुख खनिज और औपनिवेशिक क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया गया था। इसके अलावा उनके द्वारा जर्मनी को सीमित सेना रखने के लिए प्रतिबद्ध किया गया इसका परिणाम यह हुआ की जर्मनी पर इस अपमानजनक संधि के कारण यहाँ राष्ट्रवाद की भावना का उदय हुआ जो द्वितीय विश्व युद्ध होने का एक प्रमुख कारण था।
संयुक्त राष्ट्र संघ की विफलता
वर्ष 1919 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से विश्व शांति को बनाए रखना था। राष्ट्र संघ ऐसा संगठन था जो सभी देशों को अपना सदस्य बनाना चाहता था ताकि देशों के मध्य होने वाले विवादों को विचार विमर्श के माध्यम से सुलझाया जा सके। परन्तु राष्ट्र संघ का यह प्रयास सफल नहीं हो पाया क्योंकि इसमें सभी देश शामिल नहीं हो पाये थे। इसके अलावा संघ के पास इटली के इथोपिया और जापान के मंचूरिया क्षेत्र पर आक्रमणों को रोकने के लिए अपनी कोई सेना नहीं थी जिससे वे इन आक्रमणों को रोक या इनका सामना कर सके।
फासीवाद का उदय
इटली में वर्ष 1920 के दशक में राष्ट्रवाद, सैन्यवाद और अधिनायकवाद की स्थिति को फासीवाद के नाम से जाना जाता है। प्रथम विश्व युद्ध में विजयी राष्ट्रों का यह उद्देश्य ‘दुनिया को लोकतंत्र के लिए सुरक्षित करना’ था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी ने अन्य देशों की तरह लोकतांत्रिक संविधान को अपनाया। वर्ष 1922 में इटली में इंटरवार अवधि के समय बेनिटो मुसोलिनी द्वारा पहली फासीवाद तानाशाही सरकार की स्थापना की गई।
नाज़ीवाद का उदय
एडोल्फ हिटलर जो जर्मन नेशनल सोशलिस्ट (नाज़ीवाद) के नेता थे उन्होंने फासीवाद की नस्लवादी विचारधारा का समर्थन करते हुए उसका प्रसार किया। हिटलर द्वारा यह वादा किया गया की वे जर्मनी की वर्साय संधि को पलट देंगे, जर्मनी की संवृद्धि धन व सुख-शांति को और जर्मनी के नागरिकों के लिए रहने के स्थान (लेबेन्स्रॉम-Lebensraum) को सुरक्षित करेंगे। वर्ष 1933 में हिटलर जर्मन चांसलर बन गया जिसने आगे चलकर खुद को एक तानाशाह के रूप में स्थापित किया। इन सब का परिणाम यह हुआ की नाज़ी शासन ने वर्ष 1941 में स्लाव, यहूदियों और हिटलर की विचारधारा के विरोधियों ने इनके खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया जो आगे चलकर द्वितीय विश्व युद्ध का एक बहुत बड़ा कारण बना।
तुष्टिकरण की नीति
हिटलर द्वारा वर्साय की संधि का खुले तौर पर उल्लंघन करने के साथ उसने गुप्त रूप से हथियारों का निर्माण करना शुरू कर दिया। फ़्रांस व ब्रिटेन को हिटलर की इन गतिविधियों के बारे में पता था जिसका प्रमुख उदाहरण म्यूनिख समझौता (सितंबर 1938) था। फ़्रांस और ब्रिटेन को लगा कि एक मजबूत जर्मनी ही रूस के साम्यवाद के प्रसार को रोक सकता है यही कारण था की उन्होंने हिटलर की गतिविधियों को अनदेखा कर दिया था। हिटलर के चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण न करने के वादा तोड़ने पर भी फ़्रांस और ब्रिटेन ने कोई सैन्य कार्यवाही नहीं की।
द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम (Results of World War II in hindi) –
नई महाशक्तियों का उद्भव
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात देशों और महाद्वीपों की स्थिति में बदलाव आए। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर महाशक्तियों के रूप में उभर कर आए। इस दौरान ब्रिटेन व फ्रांस ने महाशक्तियों के रूप में अपनी स्थिति को खो दिया था।
वि-उपनिवेशीकरण की शुरुआत
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात ब्रिटेन और फ्रांस दोनों देशों का अपने उपनिवेशों पर से नियंत्रण हटने लगा और वे दोनों विभिन्न समस्याओं से धीरे -धीरे अपना अस्तित्व खोने लगे।
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना
द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख परिणामों में से एक संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना थी। संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य विश्व में विभिन्न देशों के मध्य शांति स्थापित करना था जिसकी स्थापना वीआरएसएच 1919 में की गई थी।
शीत युद्ध की शुरुआत
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में शांति बनाए रखने के लिए जर्मनी के पॉट्सडैम (Potsdam) में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। जर्मनी और उसकी राजधानी को चार भागों में विभाजित कर दिया गया और इन भागों को ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ़्रांस और सोवियत संघ द्वारा नियंत्रित किया जाना था। सोवियत संघ और तीन पश्चिमी देशों के मध्य असहमति ने जर्मनी को दो भागों में (पूर्वी जर्मनी व एक कम्युनिस्ट सरकार, पश्चिमी जर्मनी व एक लोकतांत्रिक राज्य) में विभाजित कर दिया गया जिसने शीत युद्ध की नींव रखी।
नई विश्व आर्थिक व्यवस्था
द्वितीय विश्व युद्ध और विश्वव्यापी संकट को झेल रहे देशों की सहायता के लिए एक सम्मलेन का आयोजन किया गया जिसका नाम ब्रेटन वुड्स सम्मेलन था जिसे आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन (Nations Monetary and Financial Conference) के रूप में जाना जाता है। इस सम्मेलन में 1 से 22 जुलाई, 1944 तक लगभग 44 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद युद्ध से प्रभावित अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण एवं विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक IBRD – पुनर्निर्माण और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक जिसे वर्तमान में विश्व बैंक के नाम से जाना जाता है जिसके द्वारा अमेरिकी डॉलर को विश्व व्यापार के लिए आरक्षित मुद्रा के रूप में स्थापित किया गया।
भारत और द्वितीय विश्व युद्ध –
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात ब्रिटिश साम्राज्य को भारी नुकसान हुआ जिसकी भरपाई के लिए उसने अपने उपनिवेशों की ओर ध्यान देना शुरू किया जिससे वे विश्व शक्ति का दर्जा वापस पा सकता था। इस दौरान भारतीयों ने अंग्रेजों के खिलाफ संगठित होकर आंदोलन शुरू कर दिया। जब ब्रिटेन में वर्ष 1945 में लेबर पार्टी सत्ता में आई तो इसका समर्थन उदारवादी सिद्धांत और नस्लीय समानता को था तथा प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली जो लेबर पार्टी के सदस्य थे उनके सत्ता में आते ही भारत को स्वतंत्रता देने की प्रक्रिया आरम्भ हुई।
पढ़ें – प्रथम विश्व युद्ध के कारण एवं परिणाम – First World War।
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