नक्सलवाद के कारण और निवारण : नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है। जहाँ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक सुप्रसिद्ध नेता चारु मजूमदार और कानू सान्याल द्वारा वर्ष 1967 में सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की गई थी। मजूमदार का मानना था कि भारतीय मजदूरों और किसानों की इस बुरी दुर्दशा की जिम्मेदार सरकारी नीतियां है और उनका मानना था कि न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को सिर्फ सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है। जिसके पश्चात वर्ष 1967 में नक्सलवादियों द्वारा कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की एक अखिल भारतीय समन्वय समिति बनाई गई। अतः कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ नक्सलवाद कहलाता है। नक्सलवाद उग्रपंथी आंदोलन का एक रूप है।
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नक्सलवाद के तीन चरण –
- प्रथम चरण – वर्ष 1967 से 1980 तक नक्सलवाद गतिविधियों का प्रथम चरण था जो मार्क्सवादी-लेनिनवादी-माओवाद पर आधारित था। प्रथम चरण वैचारिक तथा आदर्शवादी आंदोलन का चरण रहा जिसमें नक्सलवादियों को जमीनी अनुभव तथा अनुमान का अभाव देखने को मिला जिसके अंतर्गत नक्सलवादियों को राष्ट्रीय पहचान मिली।
- द्वितीय चरण – वर्ष 1980 से 2004 तक नक्सलवाद का दूसरा चरण था जो जमीनी अनुभव, जरूरतों आवश्यकता के अनुसार चलने वाला क्षेत्रीय नक्सली गतिविधियों का दौर था तथा इस दूसरे चरण में नक्सलवादियों का व्यावहारिक विकास हुआ।
- तृतीय चरण – वर्ष 2004 से वर्तमान तक तृतीय चरण है जिसमें नक्सलियों का राष्ट्रीय स्वरुप उभरा जिसकी वजह से विदेशी संपर्क भी बढ़े और नक्सलवाद राष्ट्र की सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती बनकर सामने आया।
नक्सलवाद के कारण
नक्सलियों का यह संघर्ष उन आदिवासियों एवं गरीबों के लिए था। जिनकी समस्याओं को सरकार ने अनदेखा किया है। इसके माध्यम से नक्सली ज़मीन अधिकारों एवं संसाधनों के वितरण के लिए स्थानीय सरोकारों का प्रतिनिधित्व करके संघर्ष करते हैं। स्थानीय लोगों में प्रशासन की पहुंच न हो पाने के कारण ये लोगों पर अत्याचार करते हैं।
माओवाद से प्रभावित अधिकांश क्षेत्रों में आदिवासी लोगों की अधिकता है, (चीनी राजनेता माओ जेदांग के उपदेशों को ग्रहण करने वाले लोगों को माओवादी कहा जाता है) अतः इन क्षेत्रों में जीवनयापन करने के लिए भी सुविधाएँ जैसे – पीने के लिए पानी, सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ, रोजगार आदि उपलब्ध नहीं है और इन क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी इन्हीं कारणों ने नक्सलवाद को जन्म दिया।
नक्सली सरकार द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हुए आदिवासी क्षेत्रों के विकास में अवरोध लगाने का प्रयास करते हैं और उन्हें सरकार के खिलाफ करने का भी प्रयास करते हैं। इसके अलावा ये लोगों से वसूली करते हैं और समांतर अदालतों का आयोजन भी करते हैं अतः ये सभी आर्थिक कारण भी नक्सलवाद के उदय का कारण है। लोगों में फैली अशिक्षा और सरकार द्वारा विकास कार्यों की उपेक्षा भी नक्सलवाद को बढ़ावा देते हैं।
सरकारों के जनहित में होने वाले कार्यों और योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता की कमी, घूसखोरी और उपेक्षा के कारण नक्सली योजनाओं से वंचित रह गए लोगों को भड़काने में सफल हो जाते हैं जोकि नक्सलवाद को और बढ़ावा देता है।
शासन के योजना कार्यों से वंचित रह जाने के कारण भी नक्सलियों का एक नया व विशाल रूप देखने को मिला है। आजादी के बाद भी उनकी स्थिति में कोई परिवर्तन न होने की वजह से भी नक्सलियों को बढ़ावा मिला है। अतः आम जनता को समझ आ रहा है कि केंद्र सरकार सामाजिक बुराइयों, भ्रष्टाचार एवं नक्सली समस्याओं को दूर करने के उपाय निर्धारित नहीं कर रही है और इन्हीं कारणों ने नक्सलियों को मानसिक स्वतंत्रता प्रदान करके नक्सलवाद को बढ़ावा दिया है।
नक्सलवाद के निवारण के उपाय
नक्सलवाद की समस्या को इस से प्रभावित लोगों को मुख्यधारा से जोड़कर ही किया जा सकता है। नक्सलवाद की समस्या मुख्यतः आदिवासी या अशिक्षित क्षेत्रों में ही देखी जाती है। अशिक्षा, बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी आदि से प्रभावित इलाकों में ही नक्सलवाद फलता फूलता है। अतः नक्सलवाद से प्रभावित लोगों को शिक्षा और अच्छा रोजगार देकर भुखमरी, गरीबी को दूर कर मुख्यधारा से जोड़कर नक्सलवाद की समस्या को समाप्त किया जा सकता है।
नक्सलवाद को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाये गाये महत्वपूर्ण कदम
नक्सलवाद से निपटने के लिए समय-समय पर सरकारों द्वारा विभिन्न कार्य किये गए हैं, वर्ष 2006 में गृह मंत्रालय द्वारा नक्सलवाद से निपटने के लिए अलग प्रभाग बनाया गया है। वर्ष 2013 में ‘रोशनी’ नामक कार्यक्रम के द्वारा नक्सलवाद से प्रभावित जिलों के युवाओं को रोज़गार के लिये प्रशिक्षित करना। वर्ष 2017 में ‘समाधान’ नामक आठ सूत्रीय कार्ययोजना बनाना। नक्सलवाद से प्रभावित स्थानों को वर्ष 2022 तक 48,877 किमी सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। नक्सल प्रभावित 30 ज़िलों में जवाहर नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय स्थापित किये गए हैं।