नानाजी देशमुख का जीवन परिचय : नानाजी देशमुख ( अंग्रेजी : Nanaji Deshmukh ) भारत देश के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक है। नानाजी देशमुख का पूरा नाम ‘चण्डिकादास अमृतदास देशमुख’ था। उन्होंने अपने जीवन में एक महान समाज सुधारक के रूप में कार्य किया और समाज में फैली कुप्रथाओं का अंत किया। नानाजी देशमुख ग्रामीण क्षेत्रों से प्रभावित थे और उन्होंने ग्रामीणों को सुख सुविधाएं प्राप्त कराने के भरसक प्रयास किए। उनके यही प्रयासों ने ग्रामीणों के जीवन को एक नई दिशा प्रदान की। Nanaji Deshmukh essay in hindi, Nanaji Deshmukh biography in hindi.
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नानाजी देशमुख का आरंभिक जीवन
नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के छोटे से गांव में हुआ था। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण नानाजी का जीवन शुरू से ही संघर्षों एवं कठिनाइयों से भरा रहा। नानाजी जब बहुत छोटी उम्र के थे तब उनके माता-पिता का देहांत हो गया था और उनका पालन-पोषण उनके मामाजी की देखरेख में हुआ था। नानाजी ने अपने मामा पर बोझ न बनकर खुद ही पैसे कामना और मेहनत करना शुरू किया।
नानाजी देशमुख की शिक्षा
शिक्षा में बहुत अधिक रूचि होने के कारण नानाजी देशमुख ने अपनी शिक्षा जारी रखी और खुद पैसे कमाकर शिक्षा पूरी की। नानाजी ने अपनी 10वीं की पढ़ाई राजस्थान से की थी, उन्हें पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति भी मिलती थी। इसी दौरान उनकी मुलाकात डॉ हेडगेवार से हुइ। हेडगेवार स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे।
डॉ हेडगेवार ने नानाजी को संघ में शामिल होने के लिए कहा और शाखा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने नानाजी को सलाह दी की वे बिरला कॉलेज में दाखिला लें उस समय नानाजी के पास पैसों की कमी होने के कारण उनकी सहायता करने हेडगेवार जी ने पैसों का प्रस्ताव रखा लेकिन स्वाभिमानी नानाजी ने इंकार कर दिया और खुद मेहनत कर पैसे इकट्ठा किए।
उसके पश्चात वर्ष 1937 में नानाजी ने बिरला कॉलेज में दाखिला लिया। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवा संघ में प्रवेश किया और इसके कार्यों में सक्रीय भूमिका निभाई। नानाजी ने संघ की शिक्षा प्राप्त करने के लिए 1 वर्ष पढ़ाई की। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक के लिए मुख्य कार्यकर्ताओं के रूप में कार्य किया।
नानाजी देशमुख का राजनीतिक जीवन
नानाजी देशमुख ‘लोकमान्य तिलक’ की राष्ट्रीय विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए और वे उन्हें अपना गुरु मानते थे। वर्ष 1940 में हेडगेवार जी की मृत्यु के बाद नानाजी उत्तर-प्रदेश वापस लौट गए।
उत्तर-प्रदेश आकर उन्होंने संघ की विचारधारा को लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया। बहुत कठिनाईयों के बाद नानाजी को एक बाबा के आश्रम में शरण मिली पर उसके बदले में उन्हें वहां काम करना पड़ता था। कड़ी मेहनत के पश्चात उत्तर प्रदेश में 250 संघ शाखा बन गयी और नानाजी ने संघ के कार्यों में संलग्न हुए।
इस दौरान उनकी मुलाकात महान नेता दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी से हुई। दीनदयाल एवं वाजपेयी जी ने संघ द्वारा देश के लोगों को जागरूक करने और उन तक सही खबर पहुंचाने के लिए एक समाचार पत्रिका का प्रकाशन किया। उनकी समाचार पत्रिका बहुत कम समय में लोकप्रिय हो गई।
वर्ष 1948 के दौरान जब गाँधी जी की हत्या नाथूराम गोडसे द्वारा की गयी थी तब सरकार द्वारा संघ के सभी कार्यों को प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि नाथूराम गोडसे संघ के ही कार्यकर्ता हैं। संघ पर विरोध चलते देख नानाजी ने अपनी सूझ-बूझ से इस समस्या का हल निकाला और समाचार के प्रकाशन कार्य फिर से शुरू किया।
वर्ष 1950 में आते-आते आरएसएस से प्रतिबंध हट गया जिसके पश्चात संघ ने कांग्रेस के विपक्ष पर अपनी खुद की पार्टी खड़ी की और वर्ष 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और उनके सहयोगियों ने भारतीय जन संघ की स्थापना की थी जिसका नाम बाद में भारतीय जनता पार्टी रखा गया। उत्तर प्रदेश में भारतीय जन संघ के प्रचारक के रूप में नानाजी को चुना गया। नानाजी वहां पर महासचिव के पद में कार्यरत थे।
नानाजी ने उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रचार को दूर-दूर तक पहुंचाने का प्रयास किया। उन्होंने लोगों को पार्टी में जुड़ने के लिए प्रेरित किया और उनका यह प्रचार-प्रसार सफल हुआ संघ ने एक नया रूप धारण कर लिया था और राज्य में हर जिले में संघ की इकाई खुल गई थी।
उत्तर प्रदेश में संघ की लोकप्रियता के श्रेय नानाजी, दीनदयाल, और अटल बिहारी जी को जाता हैं। नानाजी बहुत सरल और शांत व्यक्तित्व वाले नेता थे। नानाजी ने विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए भूदान आंदोलन में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी।
इंदिरा गांधी के समय आपातकाल के दौरान नानाजी देशमुख ने परिस्थिति को सुलझाने के बहुत प्रयास किए और देश में शांति स्थापित की।
वर्ष 1977 में नानाजी ने उत्तर प्रदेश के लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा जहाँ उन्हें भारी जीत मिली थी। वर्ष 1980 में नानाजी ने राजनीति से त्याग लेकर सामाजिक कार्यों में कार्य करने का फैसला किया। उनके इस निर्णय से उनके समर्थकों ने निराशा जताई परन्तु उन्होंने उनके निर्णय का सम्मान और उनका समर्थन किया।
नानाजी देशमुख द्वारा स्थापना एवं प्रकाशन
- प्रथम ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना।
- मंथन नामक पत्रिका का प्रकाशन।
- 1950 में सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय की स्थापना।
नानाजी ने देश में शिक्षा को बढ़ावा दिया और वे शिक्षा को अनिवार्य समझते थे। देश में सभी को शिक्षा मिल सके उसके लिए नानाजी ने कई प्रयास किए। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को पहुंचने का भी प्रयास किया। नानाजी ग्रामीण विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे थे।
नानाजी देशमुख की उपलब्धियां
- वर्ष 1999 में नानाजी को ”पद्म विभूषण” से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 2019 में नानाजी को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च पुरस्कार ”भारत रत्न” द्वारा सम्मानित किया गया।
नानाजी देशमुख की मृत्यु
नानाजी देशमुख काफी लम्बे समय से बीमार थे परन्तु उन्होंने इलाज के लिए इंकार कर दिया। नानाजी ने मृत्यु से पहले ही अपनी देह मेडिकल शोध को दान करने की वसीयत कर दी थी। उनकी मृत्यु 95 वर्ष की उम्र में 27 फरवरी, 2010 में चित्रकूट नामक स्थान में हो गई। वह एक स्वाभिमानी एवं महान व्यक्ति थे जिन्हें हमारा देश हमेशा याद रखेगा।
पढें – जय प्रकाश नारायण।