पाबूजी – राजस्थान के लोकदेवता : राजस्थान के लोकदेवता पाबूजी ( Pabuji ) को ऊँटो का देवता, धड़-फाड़ देवता, लक्ष्मण का अवतार, प्लेग के देवता आदि नामों से भी जाना जाता है। पाबूजी राजस्थान के एक लोक देवता हैं जिनकी पूजा राजस्थान और उसके आसपास के क्षेत्रों में की जाती है।
- पाबूजी राठौड़ वंश के थे और पाबूजी का जन्म कोलूमण्ड फलौदी ( जोधपुर ) वि. स. 1296 (1239 ई.) में हुआ था।
- पाबूजी के पिता का नाम धाँधल जी राठौड़ और माता का नाम कमलादे था।
- पाबूजी को ‘लक्ष्मण का अवतार, प्लेग के देवता, धड़-फाड़ देवता’ व ‘ऊँटो का देवता’ के नाम से भी जाना और पूजा जाता है।
- पाबूजी के सम्बन्ध में जानकारी पुराने साहित्य से मिलती है जिसमें ‘मेघ चारण’ जिसमें पाबूजी से सम्बंधित छंद, ‘रामनाथ’ में सोरठे, ‘बांकीदास’ में गीत आदि प्रमुख हैं।
- मारवाड़ की ऊँटो की पालक दो जातियाँ रेबारी व देवासी पाबूजी की अपना आराध्य देव मानती हैं।
- सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को ही दिया जाता है और ऐसी मान्यता है कि पाबूजी से विनती करने पर या मनौती मांगने पर ऊँट की बीमारी ठीक हो जाती हैं।
- पाबूजी की शादी सुप्यारदे नामक युवती से हुई थी लेकिन शादी सम्पन्न होने से पहले ही पाबूजी वीरगति को प्राप्त हो गये।
- पाबूजी का विवाह सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सुप्यारी के साथ तय हुआ था विवाह के समय उनके बहनोई जिंदराव खींची नें गाँव के एक आदमी देवल चारणी की गायों को बंधक बना लिया था। पाबूजी गायों की रक्षा के लिये अपने फेरों को छोड़कर (साढ़े तीन फेरों में ही) युद्ध के लिए गये लेकिन जींदराव खींची से युद्ध में वि.स. 1333 ई. में वीरगति को प्राप्त हुए। इसी कारण पाबूजी के अनुयायी विवाह के अवसर पर साढ़े तीन फेरे लेते हैं।
- पाबूजी की फड़ो का निर्माण भीलवाड़ा व शाहपुरा के चितेरों द्वारा किया जाता है। इनकी फड़ का वाचन 30 फीट चौड़े व 4 फीट लम्बे कपड़े पर लिखी इनकी जीवन गाथाओं द्वारा किया जाता है। पाबूजी की फड़ नायक जाति के भोपे द्वारा रावणहत्था नामक वाद्य यंत्र के साथ वाची जाती है।
- पाबूजी की स्मृति में ‘थाली नृत्य’ किया जाता है ।
- थोरी जाति के लोग पाबूजी की यशगाथा ‘सारंगी’ के साथ गाते है। जिसे ‘पाबू धणी री वाचना’ कहते हैं।
- नायक व रेबारी जाति द्वारा माठ वाद्य यंत्र के साथ पाबूजी के पावडे वाचे जाते हैं।
- पाबूजी का प्रतीक चिह्न ‘भाला लिये हुये अश्वारोही’ है।
- पाबूजी का वाहन ‘केसर कालमी घोड़ी’ है। जिसे देवल चारणी ने पाबूजी को दिया था और भविष्य में सहायता करने का वचन लिया था।
- राठौड़ जाति के लोग पाबूजी को अपना इष्ट देव मानते हैं। परन्तु पाबूजी के मुख्यअनुयायी थोरी जाति के लोग ही माने जाते हैं।
- पाबूजी अछूतों के उद्धारक भी माने जाते हैं क्योंकि इन्होंने म्लेच्छ (दूसरे देश से आये हुये लोग ) कहे जाने वाली थोरी जाति के सात भाईयों को आश्रय दिया था।
- पाबूजी का प्रमुख मंदिर कोलूमण्ड गाँव, फलौदी (जोधपुर) में है। यहीं पर प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला लगता है। इस मंदिर का निर्माण वि.स. 1415 (1358 ई.) में किया गया था।
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