प्राकृतिक आपदा के कारण एवं प्रभाव

प्राकृतिक आपदा के कारण एवं प्रभाव

प्राकृतिक आपदा क्या होती है ?

पर्यावरणीय असंतुलन और पृथ्वी की आंतरिक हलचल जब भयानक रूप ले लेती है तो उसे प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। बाढ़, भूकंप, तूफ़ान, सुनामी, ज्वालामुखी, हिमस्खलन, भू-स्खलन आदि घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। जिनके प्रभाव से जन-धन दोनों की बहुत हानि होती है। प्राकृतिक आपदाएं परिवर्तनशील होती हैं और इनका दुष्प्रभाव मानव समाज व सभी जीव-जंतुओं पर पड़ता है।

वातावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन आदि प्राकृतिक आपदाओं का परिणाम होती हैं। प्राकृतिक आपदा वह प्राकृतिक स्थिति है जो मानवीय, भौतिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक क्रियाकलापों को व्यापक रूप से प्रभावित करती है। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय-आपदा शमन रणनीति के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं के स्तर में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। हर वर्ष 13 अक्टूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस’ (International Day for Disaster Reduction) मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य आपदा के प्रभावों को कम करना व विश्व समुदाय द्वारा आपदा के विषय में किए गए प्रयासों का आकलन करना है।

भारत एवं आस-पास की कुछ बड़ी प्राकृतिक आपदाएं –

  • उड़ीसा में वर्ष 1999 में आया महाचक्रवात जिसके प्रभाव से 10 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी।
  • गुजरात में 26 जनवरी, वर्ष 2001 में आया भीषण भूकंप जिसके प्रभाव से 20 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई और अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, गांधीनगर, कच्छ, जामनगर जैसे जिले पूरी तरह बर्बाद हो गए थे।
  • हिन्द महासागर में वर्ष 2004 में आई विनाशकारी सुनामी जिसमें 2 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई व अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, इंडोनेशिया, दक्षिण भारत बुरी तरह प्रभावित हुए।
  • उत्तराखण्ड (केदारनाथ) में 16 जून, वर्ष 2013 में बादल फटने से 10 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।
  • जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2014 में आई भीषण बाढ़ जिसमें 500 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।

प्राकृतिक आपदा के कारण एवं प्रभाव (Causes and effects of natural disaster in hindi) –

वर्तमान में ग्रीन हाउस प्रभाव से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा बढ़ रही है, जिससे अधिक वर्षा होने की संभावनाएं होती है। अधिक वर्षा के कारण बाढ़, बादल फटना आदि प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बना रहता है। इसके अलावा अधिक तापमान की वजह से कई क्षेत्रों में सूखा पड़ने जैसी प्राकृतिक आपदाओं आने की संभावनाएं बनी रहती हैं।

समुद्री स्तरों के बढ़ने और तापमान में वृद्धि की स्थिति ने विश्व स्तर पर उष्णकटिबंधीय तूफानों की तीव्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वर्तमान में समुद्र के वैश्विक स्तर में प्रति वर्ष लगभग 3.4 मिलीमीटर की वृद्धि हो रही है। आपदाएं भू-जलवायु स्थितियों और स्थलाकृतियों की विशेषताओं से निर्धारित होती हैं और उन्हीं के फलस्वरूप विभिन्न तीव्रता वाली प्राकृतिक आपदाएं घटित होती हैं।

प्राकृतिक आपदा के दो कारण होते हैं –

पहला – प्राकृतिक कारण जिसमें वायुमंडलीय परिवर्तन, भूगर्भीय हलचल, ज्वालामुखी उद्गार, जलवायु परिवर्तन, उल्कापात इन सभी के प्रभावों से प्राकृतिक आपदाओं की संभावनाएं बनी रहती हैं।

दूसरा – मानव जनित कारण जिसमें आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण, शहरीकरण आदि कारक सम्मिलित होते हैं। इन सभी का विस्तारपूर्वक विवरण निम्नलिखित है –

  • प्राकृतिक कारण

वायुमंडलीय परिवर्तन –

वायुमंडल में होने वाला परिवर्तन वायुमंडलीय परिवर्तन कहलाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रदूषणों के प्रभावों से वायुमंडल में कई तरह के परिवर्तन और आपदाएं आ रही हैं। वायुमंडल में हो रहे परिवर्तन से ग्रीन-हाउस प्रभाव प्रभावित होता है। जिससे भूमंडलीय ताप में वृद्धि के कारण समुद्री जल स्तर में वृद्धि होती है जो सुनामी, बाढ़, बादल फटना, सूखा पड़ना आदि प्राकृतिक आपदाओं को जन्म देती हैं।

भूगर्भीय हलचल –

भूमि के अंदर होने वाली हलचलें भूगर्भीय हलचल कहलाती हैं। पृथ्वी अपनी घूर्णन गति के कारण समय-समय पर बदलाव करती रहती है और यही बदलाव कई आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन आदि का कारण बनते हैं। वास्तव में पृथ्वी अपनी स्थिति में परिवर्तित होती है और इन परिवर्तनों को हम आपदाएं कहते हैं। भूगर्भीय हलचल छोटे एवं बड़े पैमाने दोनों में हो सकती है इस बात का अनुमान उसके परिणामों पर निर्भर करता है। जानें भूकंप क्या है ? भूकंप के कारण

ज्वालामुखी उद्गार –

ज्वालामुखी एक महत्वपूर्ण क्रिया कहलाती है जिससे धरातल में विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। ज्वालामुखी उद्गार से इससे प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में भूस्खलन, भूकंप, सुनामी, राख का गुबार जैसी प्राकृतिक आपदाएं आने की संभावनाएं होती हैं।

जलवायु परिवर्तन –

जलवायु में दशकों या दीर्घकालीन समय में होने वाले परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहते है। जलवायु में होने वाले परिवर्तन विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदा को जन्म देती है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा पड़ना, बादल फटना जैसी कई प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न होती हैं।

उल्कापात –

आकाश में एक ओर से दूसरी ओर तेजी से जाते हुए या पृथ्वी पर गिरते हुए पिंड जिन्हें उल्का, टूटता हुआ तारा या लूका भी कहा जाता है उल्कापात कहलाता है। उल्कापात अपने आसपास के क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित करता है तथा इसके प्रभाव से प्राकृतिक आपदा आने का भी खतरा बना रहता है। उल्कापात भूकंप, भूस्खलन आदि आपदाओं को उत्पन्न कर सकता है।

  • मानव जनित कारण

आधुनिकीकरण –

आधुनिकीकरण सामाजिक परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं तर्क पर आधारित होती है इसका उद्देश्य केवल सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन करना है। परन्तु आधुनिकीकरण से मानव ने अपनी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति का इस प्रकार दोहन किया है कि यह संपूर्ण मानव जाति, अन्य जीवों व प्रकृति के लिए बहुत ही नुकसानदायक सिद्ध हुआ है। आधुनिकीकरण ने न केवल विभिन्न प्रदूषणों को उत्पन्न किया बल्कि वर्तमान में प्राकृतिक आपदाओं का कारण भी आधुनिकीकरण ही है। आधुनिकीकरण कई आपदाओं जैसे – बाढ़, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन आदि को उत्पन्न करने का कारण है।

औद्योगीकरण –

औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके उत्पादन के साधनों में वृद्धि करना है। औद्योगीकरण ने न केवल जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि प्रदूषणों को उत्पन्न किया है बल्कि यह कई प्राकृतिक आपदाओं का कारण भी है। बड़े-बड़े उद्योगों के निर्माण में उनसे निकलने वाला धुआँ तथा तरल रासायनिक पदार्थों का समुद्र में मिलना ये सभी प्रक्रियाएं बड़े पैमाने में प्रकृति को प्रभावित करती हैं। इनके प्रभाव से ग्लोबल वॉर्मिंग, समुद्र स्तर के बढ़ने से सुनामी, बादल फटना आदि आपदाओं का खतरा बना रहता है।

शहरीकरण –

शहरी क्षेत्रों के विस्तार व जनसंख्या का ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर स्थानांतरण शहरीकरण कहलाता है जो पूरी दुनिया में होने वाला एक वैश्विक परिवर्तन है। शहरीकरण के बढ़ने का प्रमुख कारण बेरोजगारी है। रोजगारी की तलाश में व्यक्ति शहरों की ओर जाने के लिए विवश हो जाते हैं। विभिन्न सुख-सुविधाओं में वृद्धि के साथ-साथ शहरीकरण ने कई समस्याओं जैसे – निर्धनता, आर्थिक समस्या, आवास की कमी, गंदी बस्तियों का निर्माण एवं पर्यावरणीय समस्या आदि को भी जन्म दिया है और इन समस्याओं का विकराल रूप प्राकृतिक आपदाओं का कारण बनता है। क्योंकि बारिश आने पर पानी की निकासी न होने से बाढ़, गंदगी के कारण बीमारियॉं आदि का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

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