भगत सिंह कोश्यारी का जीवन परिचय: भगत सिंह कोश्यारी का जीवन सादगी भरा ही रहा, उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ को अपनी कर्मभूमि मानकर भगत सिंह कोश्यारी जिन्हें प्यार से ‘भगत दा’ भी कहा जाता है ने अपने राजनितिक सफर की शुरुआत की। 75 वर्षीय भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखंड में भाजपा की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। उनकी सादगी और अपनेपन का हर कोई कायल है।
भगत सिंह कोश्यारी का जन्म 17 जून 1942 को उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले के एक गॉंव में हुआ था। उनके पिता का नाम गोपाल सिंह कोश्यारी और मां का नाम मोतिमा देवी था, पिता किसान और मां घरेलू महिला थीं। भगत सिंह कोश्यारी 11 भाई-बहनों में नौवीं संतान हैं, उनसे पहले 8 बहनों का जन्म हो चुका था। परिवार की आजीविका का मुख्या साधन खेती ही था। इस कारण भगतदा का प्रारंभिक जीवन काफी गरीबी और सादगी भरा ही रहा।
भगत सिंह कोश्यारी का नाम नामकरण के समय हयात रखा गया था लेकिन एक चचेरे भाई का नाम भी हयात होने की वजह से बालक का नाम भगत सिंह रखा गया। भगत दा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय महरगाड़ से प्राप्त की। भगत दा को जूनियर हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के लिए घर से 8 किमी दूर शामा जाना पड़ता था।
भगत दा ने हाईस्कूल की शिक्षा कपकोट से और इंटर की शिक्षा पिथौरागढ़ से हासिल की। पैसों की भरी तंगी के बीच भगत दा ने ग्रेजुएशन (बीए) और पोस्ट ग्रेजुएशन (अंग्रेजी में एमए) की पढ़ाई अल्मोड़ा महाविद्यालय से प्राप्त की है।
अल्मोड़ा महाविद्यालय से अंग्रेजी में एमए की पढ़ाई करने के बाद भगत सिंह कोश्यारी वर्ष 1964 में एटा (उत्तर प्रदेश) के राजा रामपुर इंटर कॉलेज में बतौर प्रवक्ता कार्यरत रहे। वर्ष 1966 में भगत सिंह कोश्यारी आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के संपर्क में आए। इसके बाद भगत दा का संपूर्ण जीवन आरएसएस और भाजपा पार्टी को समर्पित रहा है।
नाम | भगत सिंह कोश्यारी |
उपनाम | भगत दा |
जन्म | 17 जून 1942 |
जन्म-स्थान | अल्मोड़ा, उत्तराखंड |
पिता | गोपाल सिंह कोश्यारी |
माता | मोतिमा देवी |
आरएसएस के समर्थक और प्रचारक रहे भगत सिंह कोश्यारी कुछ समय तक एटा में अध्यापन कार्य करने के बाद पिथौरागढ़ लौट आए और इसी धरती को अपनी कर्मभूमि बनाया। उन्होंने वर्ष 1977 में पिथौरागढ़ में सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय की स्थापना की। साथ ही उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर में लंबे समय तक अध्यापन का कार्य भी किया।
वर्ष 1975 में भगत सिंह कोश्यारी ने ‘पर्वत पीयूष’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का संपादन और प्रकाशन का कार्य किया और इसके माध्यम से जनसमस्याओं से सीधे जुड़े रहे। अपने लेखों से जन समस्याओं को बेबाकी, निर्भीकता और निष्पक्षता के साथ उठाते रहे। वर्तमान में भी पर्वत पीयूष पत्रिका का प्रकाशन बदस्तूर जारी है। कोश्यारी के सबसे छोटे भाई वरिष्ठ पत्रकार नंदन सिंह कोश्यारी इस पत्र का संपादन करते हैं।
भगत सिंह कोश्यारी ने ‘उत्तरांचल प्रदेश क्यों’ पुस्तिका के माध्यम से नए हिमालयी राज्य अर्थात ‘उत्तराखंड’ की स्थापना की मुहिम भी छेड़ी और इसमें सफल रहे।
देश में घोषित आपातकाल के दौरान भगत सिंह कोश्यारी ‘भगत दा’ 3 जुलाई 1975 से 23 मार्च 1977 तक करीब दो साल अल्मोड़ा और फतेहगढ़ की जेल में बंद रहे।
छात्र राजनीति से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले भगत सिंह कोश्यारी ने वर्ष 1989 में अल्मोड़ा संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा, इस चुनाव में उनकी पराजय हुई लेकिन इसके बावजूद भी कोश्यारी ने जनता से अपना जुड़ाव नहीं छोड़ा। उनकी इन्हीं बातों ने उन्हें इतना बड़ा जनप्रतिनिधि बनाया।
वह यूपी में विधान परिषद के सदस्य रहे। साथ ही भगत सिंह कोश्यारी ने उत्तराखंड की अंतरिम सरकार में ऊर्जा, सिंचाई, संसदीय कार्य मंत्री का दायित्व संभाला। भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखंड में अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य भी मिला। वह 29 अक्टूबर 2001 से 2 मार्च 2002 तक उत्तराखंड के द्वितीय अंतरिम मुख्यमंत्री रहे। साथ ही भगत दा देश के दोनों सर्वोच्च सदन राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य भी रहे।
भारत सरकार द्वारा भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाने की घोषणा वर्तमान राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद द्वारा 1 सितम्बर 2019 को की गयी है। भाजपा सरकार द्वारा 75 वर्षीय भगत दा को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाकर उनकी मेहनत, लगन, समर्पण और संघर्ष का प्रतिफल दिया गया है।
भगतदा को उनकी सरलता और सादगी के कारण सादगी की प्रतिमूर्ति माना जाता है।
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