भारतीय पेटेन्ट व्यवस्था (Indian Patent System)

भारतीय पेटेन्ट व्यवस्था (Indian Patent System)

संदर्भ

  • वर्तमान सरकार द्वारा पिछले वर्ष ही भारत के नवीन बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (IPR Policy)  की घोषणा की गई।
  • सरकार के द्वारा इस नीति को लाने का मुख्य उद्देश्य देश में उद्यमिता विकास (Entrepreneurship) एवं ‘‘मेकिंग इंडिया’’ को बढ़ावा देना है, जो  WTO के ट्रिप्स समझौते (TRIPS agreement) का अनुपालन करता है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के अंतर्गत शामिल मुख्य क्षेत्रें (यथा-ट्रेडमार्क, कॉपीराइट, ज्योग्राफिकल इण्डीकेशन तथा पेटेन्ट etc.) में भारत का पेटेन्ट कानून विशेष चर्चा में है।

मुख्य मुद्दा क्या है?

  • भारत के द्वारा 2005 में भारतीय पेटेन्ट अधिनियम-1970 में उल्लेखनीय परिवर्तन किए, जिसने देश में औषधियों के दाम को वहनीय स्थिति में बनाए रखने में सहायता प्रदान की।
  • परन्तु उसी समय से देश की पेटेन्ट व्यवस्था को विश्व की फार्मास्यूटिकल उद्योग एवं विकसित देशों ( US एवं EU) के द्वारा आलोचना भी किए जाते रहे हैं।
  • मूलतः इन विरोधों के लिए भारत के पेटेन्ट कानून का सख्त होना बताया जा रहा है। जिसका मुख्य उद्देश्य तकनीकि विकास में व्यापक तौर पर नवाचारी उपायों को प्रेरित करना है।
  • हालाँकि भारतीय कानून WTO की व्यवस्था का पूर्णतयाः अनुपालन करते हैं, जिसके परिप्रेक्ष्य में विकसित देशों के कानून निम्न स्तरीय है।
  • इसलिए, भारत द्वारा अन्य विकसित देशों की तुलना में कहीं अधिक पेटेन्ट एप्लीकेशनों को अस्वीकृत किया जा चुका है।

मुख्य तथ्य

  • हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में यह कहा गया है कि भारतीय पेटेन्ट ऑफिस (IPO) के द्वारा 2009 से 2016 के मध्य लगभग 1723 फार्मास्यूटिकल आवेदनों को अस्वीकृत किया गया है, जो एक चर्चा का विषय है।
  • तथापि, फार्मास्यूटिकल आवेदनों के रद्द किए जाने वाले कुल मामलों में से लगभग 65% के लिए भारतीय पेटेन्ट कानून की धारा-3(D) को जिम्मेदार बताया गया है।
  • भारतीय पेटेन्ट कानून की धारा-3(D) तब मुख्य रूप से प्रकाश में आई, जब कैंसर के लिए उपयोगी औषधि, ग्लीबेक (Gleevec) के लिए पेटेन्ट प्राप्त करने हेतु उसकी निर्माता कंपनी द्वारा दिए गए आवेदन को रद्द कर दिया गया।
  • ज्ञातव्य है कि, धारा-3(D) की संवैधानिकता को नोवार्टिस द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई, जिसके पश्चात् वादी कंपनी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में भी अपील की गई। परन्तु दोनों न्यायालयों द्वारा विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए धारा-3(D) की संवैधानिकता बरकरार रखी गई।

धारा-3(D) क्या है?

  • भारतीय पेटेन्ट अधिनियम की धारा-3(D) के अंतर्गत, पहले से प्रयोग में लाए जा रहे औषधीय पदार्थों व रासायनिक फार्मूलों (Pharmaceutical Substances and Chemical Composition) के लिए पेटेन्ट को स्वीकृति नहीं प्रदान करने का प्रावधान है।
  • इस प्रकार भारतीय पेटेन्ट ऑफिस (IPO) के द्वारा रद्द किए गए पेटेन्ट आवेदनों में से अधिकतर के लिए यह आधार रखा गया कि वे केवल प्रयोग में लाए जा रहे फार्मूलों के परिवर्तित रूप (Variants) होने के साथ-साथ उनके चिकित्सकीय महत्ता (therapeutic Value)  में कोई वृद्धि नहीं पाए गए।
  • विशेषज्ञों के द्वारा इस धारा से होने वाले एक प्रत्यक्ष लाभ के रूप में यह कहा जा रहा है कि धारा-3(d) से I पेटेन्ट ऑफिस में ही आवेदनों पर प्रश्न कर लंबी व पेचीदी न्यायलयी प्रक्रिया से बचा जा सकेगा तथा एक पारदर्शी पेटेन्ट व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • दूसरी ओर इससे यह भी चिन्ता जताई जा रही है कि धारा-3(d) फार्मास्यूटिकल कंपनियों के हितों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं, जिससे देश में उनके द्वारा अनुसंधान एवं विकास (R&D) के लिए किया जाने वाला निवेश प्रभावित हो सकता है।

निष्कर्ष

ज्ञातव्य है कि भारत में सरकार के द्वारा किए जाने व्यय की कमी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य की आवश्यकताओं जैसे चुनौतियों का एक साथ समाधान करना आवश्यक है। इसके लिए भारतीय पेटेन्ट व्यवस्था में अच्छे व सार्वजनिक हितों के लिए लाभकारी पेटेन्ट एवं केवल वाणिज्यिक हितों से फाइल किए जाने वाले कॉरपोरेट पेटेन्ट के मध्य संतुलन स्थापित करने का कार्य एक उल्लेखनीय पहल है।

Source : – The Hindu – How India rejects bad patents

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