भारत का स्वाधीनता आन्दोलन देश के आर्थिक विकास का भी संघर्ष था ? इस कथन की व्याख्या करें।

भारत का स्वाधीनता आन्दोलन देश के आर्थिक विकास का भी संघर्ष था ? इस कथन की व्याख्या करें। [UKPSC वन क्षेत्राधिकारी मुख्य परीक्षा 2015]
“The Freedom Movement of India was also a struggle for economic development of the country.” Explain this statement? [UKPSC Forest Officer Main Examination 2015]

भारत लगभग 200 वर्ष तक ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के अधीन रहा। औपनिवेशिक सत्ता की स्थापना के समय भारत एक संपन्न राष्ट्र था एवं भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार किसी भी अन्य देश से कहीं अधिक था। परन्तु ब्रिटिश द्वारा भारत को औपनिवेश बनाने के साथ ही भारत की यह स्थिति बदलते देर नहीं लगी। बंगाल में सत्ता स्थापित करने के बाद ही ब्रिटिश सरकार की दिलचस्पी तैयार सामान को आयात करने में कम तथा ब्रिटेन हेतु कच्चा माल निर्यात करने में अधिक थी। साथ ही ब्रिटिश सरकार की दिलचस्पी ब्रिटेन में तैयार माल के लिए भारत को एक बाजार के रूप में परिवर्तित करने की थी।

ब्रिटिश सरकार ने भारत के आर्थिक विकास को पूरी तरह से अपने हितों के अनुसार बदल दिया था। जिससे भारतीय किसान, व्यापारी एवं उद्यमियों का बुरी तरह शोषण किया गया जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। 18वीं सदी के अंत में नील की खेती के लिए किसानों पर थोपी गयी “ददनी एवं तिनकठिया” प्रणाली, अफीम, जूट की जबरन खेती आदि इसका प्रमुख उदाहरण हैं। भूमिहीन किसानों तथा बेरोजगार काश्तकारों ने उद्योग की तरफ कदम बढ़ाये तो वहां भी ब्रिटिश दमनकारी नीतियों का ही राज पाया।

सबसे पहले दादा बाई नौरोजी द्वारा अपने धन निकासी के सिद्धान्त द्वारा ब्रिटिश सरकारी की नीति का खुलासा किया गया। इससे औपनिवेशिक शासन का चरित्र उद्घाटन हुआ तथा वैश्विक स्तर पर ब्रिटिश सरकार की कलई खुल गयी, जिससे उसके इस दावे कि की वो भारत को एक विकसित तथा सभ्य देश बनाने में सहायता कर रहा है कि पुरी तरह हवा निकल गयी। पहली बार राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित आँकड़े प्रस्तुत हुए जो विद्वानों के मध्य विवाद का मुद्दा बने।

इन सब परिस्थितियों में स्वाधीनता आन्दोलन ने देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जहां एक तरफ गांधी जी द्वारा 1917 में चंपारन में नील की जबरन खेती से सम्बन्धित “तिनकठिया” प्रथा के विरूद्ध आंदोलन कर न केवल इस प्रथा को बंद करवाया बल्कि ब्रिटिश सरकार को “चंपारण कृषि अधिनियम-1917” बनाने के लिए विवश भी किया, वहीं मजदूरों ने भी संगठित होकर ट्रेड यूनियन आंदोलन प्रारम्भ किया तथा वर्ष 1920 में “ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस” की स्थापना की।

1905 में हुए स्वदेशी आंदोलन और 1920 के असहयोग आंदोलन द्वारा अंग्रेजी वस्त्रों की होली जलाना तथा विदेशी सामान के प्रयोग से परहेज करना भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की तरफ कुछ पहले एवं महत्वपूर्ण कदम थे। इसी क्रम में वर्ष 1930 में गांधी जी द्वारा दांडी मार्च में नमक बनाकर, नमक पर एकाधिकार के ब्रिटिश कानून को तोड़ना एक और अहम उपलब्धि थी।

19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में मशीन आधारित उद्योगों का विकास भारत में होने लगा था। जिसने भारत में उद्योगपति वर्ग को जन्म दिया। उद्योगपतियों के ये वर्ग ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय एवं ब्रिटिश उद्योगपतियों के बीच भेदभाव की नीति के विरूद्ध थे जिस कारण इन्होनें भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का खुल कर सहयोग किया। स्वतंत्रता पूर्व अधिकांश उद्योगपति जैसे जमुना लाल बजाज एवं लाल शंकर लाल आदि ने कांग्रेस का खुल कर समर्थन किया, जिस कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। वहीं अन्य उद्योगपति जैसे घनश्याम लाल एवं बालचंद हीरानंद ने कांग्रेस की सदस्यता तो नहीं ली परन्तु बाहर से आर्थिक रूप से सहयोग करते रहें।

अतः यह कहना तनिक भी अतिशयोक्ति न होगी की स्वाधीनता आंदोलन देश के आर्थिक विकास का भी संघर्ष था और भारत स्वतंत्रता के पथ के साथ ही साथ आर्थिक स्वतंत्रता के पथ पर भी अग्रसर था।

 

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