मौसम और जलवायु में अंतर (मौसम और जलवायु में क्या अंतर है)

मौसम और जलवायु में अंतर (मौसम और जलवायु में क्या अंतर है)

मौसम और जलवायु में अंतर (मौसम और जलवायु में क्या अंतर है) : मौसम किसे कहते हैं, मौसम के प्रकार, मौसम की विशेषताएँ, जलवायु किसे कहते हैं, जलवायु के प्रकार, जलवायु परिवर्तन क्या है, जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारक, मौसम और जलवायु में अंतर आदि मह्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं। Difference between Weather and Climate in hindi.

मौसम किसे कहते हैं

किसी विशेष स्थान के वायुमंडलीय अवस्था में परिवर्तन को मौसम कहा जाता है। यह मुख्य रूप से किसी स्थान, किसी समय एवं वायुमंडल की स्थिति को दर्शाता है। मौसम वास्तव में हवा के तापमान, दबाव, बहने की गति, बादल एवं दिशा पर निर्भर करता है। इसके अलावा मौसम में बादल, वर्षा, कोहरा, हिमपात, आर्द्रता, वायु प्रवाह, आदि की क्रियाएँ भी शामिल होती हैं। मौसम दिन-प्रतिदिन बदलता रहता है अर्थात यह किसी भी समय एक समान नहीं रहता। इसी कारण धरती के विभिन्न क्षेत्रों के मौसम में अंतर होता है।

मौसम के प्रकार

मौसम विभाग के अनुसार मौसम के कई प्रकार होते हैं जैसे:-

  • वसंत ऋतु
  • ग्रीष्म ऋतु
  • वर्षा ऋतु
  • शरद ऋतु
  • हेमंत ऋतु
  • शिशिर ऋतु

वसंत ऋतु

वसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है क्योंकि इस ऋतु में धरती की उर्वरा शक्ति अन्य ऋतुओं की तुलना में अधिक बढ़ जाती है। इस ऋतु में धरती का तापमान सामान्य रहता है। भारत में वसंत ऋतु प्रति वर्ष मार्च से लेकर जून माह तक रहती है। वसंत ऋतु विश्व के विभिन्न देशों में अलग-अलग समय पर हो सकती है। वसंत ऋतु में मुख्य रूप से पेड़-पौधे हरे-भरे रहते हैं एवं इसी मौसम में बर्फानी क्षेत्रों में बर्फ भी पिघलती है।

ग्रीष्म ऋतु

ग्रीष्म ऋतु वसंत ऋतु के बाद आती है, यह गर्मी का मौसम होता है। इस मौसम में सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ता है जिसके कारण पूरे देश के तापमान में तेजी से वृद्धि होती है। भारत में ग्रीष्म ऋतु मुख्य रूप से प्रति वर्ष मई से जून माह तक रहती है। ग्रीष्म ऋतु के दौरान तेज हवाएं चलती है एवं कभी-कभी तेज हवाओं के साथ मूसलाधार वर्षा भी होती है। इस मौसम में कभी-कभी वर्षा होने के साथ-साथ ओलावृष्टि भी हो सकती है।

वर्षा ऋतु

वर्षा ऋतु ग्रीष्म ऋतु के बाद आती है जिसमें कृषि क्षेत्र में अधिकांश औसत वार्षिक वर्षा होती है। भारत में प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु जुलाई से अगस्त माह तक रहती है। इस दौरान प्रभावित क्षेत्रों में मूसलाधार वर्षा होती है। वर्षा ऋतु के आगमन के बाद किसानों में खुशी की लहर उमड़ने लगती है क्योंकि वर्षा के कारण उनकी फसलों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिलता है जिससे फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है। वर्षा ऋतु कड़कड़ाती गर्मी से राहत देने के साथ-साथ खेती को भी बेहतर करती है।

शरद ऋतु

शरद ऋतु का आगमन वर्षा ऋतु के बाद होता है जिसमें देश के अधिकांश क्षेत्रों में हल्की-हल्की सर्दियों की शुरुआत होती है। भारत में प्रतिवर्ष शरद ऋतु सितंबर से अक्टूबर माह तक रहती है। इस प्रकार के मौसम में दिन के समय में सामान्य तापमान होता है परंतु रात्रि में ठंडक महसूस होती है। शरद ऋतु में कई प्रकार के फूल खिलते हैं जिससे पृथ्वी की सुंदरता और अधिक बढ़ जाती है। शरद ऋतु को पतझड़ के मौसम के नाम से भी जाना जाता है।

हेमंत ऋतु

हेमंत ऋतु का आगमन शरद ऋतु के बाद होता है। इस मौसम में पृथ्वी से सूर्य की दूरी अधिक हो जाने के कारण पृथ्वी का वातावरण शीतल हो जाता है। भारत में प्रतिवर्ष हेमंत ऋतु नवंबर से दिसंबर माह तक रहती है। इस प्रकार के मौसम में पृथ्वी का तापमान कुछ महीनों के लिए कम हो जाता है जिससे सर्दियों में धीरे-धीरे वृद्धि होने लगती है। हेमंत ऋतु अपने सुहावने एवं मध्यम ठंडे मौसम के लिए जानी जाती है। यह पर्यटकों का पसंदीदा मौसम होता है जिसके कारण वह विश्व भर के कई क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं।

शिशिर ऋतु

शिशिर ऋतु का आगमन मुख्य रूप से हेमंत ऋतु के बाद होता है। इस मौसम की शुरुआत प्रतिवर्ष दिसंबर से होती है जो मार्च के माह तक रहती है। शिशिर ऋतु में सर्दियां अपने चरम पर होती हैं जिसके कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड पड़ती है। इस ऋतु में दिन का समय थोड़ा गर्म एवं रात का समय अत्यंत ठंडा होता है। शिशिर ऋतु भारत की छह महत्वपूर्ण ऋतु में से एक होती है जिसे अंतिम ऋतु भी कहा जा सकता है क्योंकि यह वर्ष की अंतिम ऋतु होती है। शिशिर ऋतु को शीत ऋतु के नाम से भी जाना जाता है।

मौसम की विशेषताएँ

धरती के वातावरण के अनुसार मौसम में निरंतर बदलाव की स्थिति उत्पन्न होते रहती है। धरती के वातावरण में गर्मी, सर्दी, हवा, वर्षा, धूप, कोहरा आदि जैसे मौसम देखे जा सकते हैं। विश्व भर में मौसम विज्ञान विभाग मौसमों में होने वाले परिवर्तन की जानकारी लोगों तक पहुंचाते रहते हैं। मौसम वास्तव में वातावरण की दशा को व्यक्त करता है जिससे विश्व भर के सभी लोग प्रभावित होते हैं। मौसम का सबसे अधिक प्रभाव कृषक वर्गों पर पड़ता है। विश्व भर के कई बड़े क्षेत्रों में किसान मौसम पर ही निर्भर रहते हैं। माना जाता है कि खेती करने के लिए मॉनसून की बारिश होना बेहद जरूरी होता है। इसके लिए किसान समय-समय पर मौसम वैज्ञानिकों से मौसम की जानकारी लेते रहते हैं।

जलवायु किसे कहते हैं

जब किसी देश या राज्य के बड़े क्षेत्र का औसत मौसम लंबे समय तक एक समान बना रहता है तो उस क्षेत्र को जलवायु कहा जाता है। जलवायु कई वर्षों तक एक समान या एक जैसा बना रहता है जिसको बदलने में काफी समय लगता है। विश्व भर में एक ओर जहां मौसम निरंतर बदलता रहता है तो दूसरी ओर जलवायु स्थिर रहता है।

जलवायु के प्रकार

मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार जलवायु के 6 प्रकार होते हैं:-

  • उष्णकटिबंधीय जलवायु (tropical climate)
  • मरुस्थलीय जलवायु (desert climate)
  • समशीतोष्ण जलवायु (temperate climate)
  • महाद्वीपीय जलवायु (Continental climate)
  • ध्रुवीय जलवायु (polar climate)
  • पर्वतीय जलवायु (mountain climate)

उष्णकटिबंधीय जलवायु (tropical climate)

इस प्रकार के क्षेत्रों में तापमान अधिक रहता है। यह अयनवृत्तों (कर्क और मकर रेखाओं) के मध्य स्थित क्षेत्र होते हैं जहां की जलवायु सामान्यतः उष्ण होती है। इसके अलावा इन क्षेत्रों में सर्वाधिक वर्षा ग्रीष्म काल के दौरान ही होती है।

मरुस्थलीय जलवायु (desert climate)

मरुस्थलीय जलवायु को रेगिस्तानी जलवायु के नाम से भी जाना जाता है जो पृथ्वी के उन भागों पर होती है जहां वर्षा की मात्रा वाष्पीकरण से निम्न होती है। मरुस्थलीय जलवायु क्षेत्र वास्तव में बहुधा रेतीले क्षेत्र या कठोर चट्टानी सतह वाले क्षेत्रों को कहा जाता है जहां अल्पवृष्टि शीघ्र ही वाष्पीकृत हो जाती है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार मरुस्थलीय जलवायु का विस्तार पूरी धरती के लगभग 14.2 प्रतिशत भू-भाग पर होता है। क्षेत्र विस्तार की दृष्टि से मरुस्थलीय जलवायु ध्रुवी जलवायु के बाद दूसरी सबसे बड़ी जलवायु मानी जाती है।

समशीतोष्ण जलवायु (temperate climate)

समशीतोष्ण जलवायु एक मध्यम मासिक औसत तापमान वाला जलवायु होता है। इन क्षेत्रों में गर्मियों के महीने में 10℃ से अधिक का तापमान होता है एवं सर्दियों के महीने में यह तापमान -3℃ तक गिर जाता है। यह मुख्य रूप से उत्तर या दक्षिण के बीच के क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

महाद्वीपीय जलवायु (Continental climate)

महाद्वीपीय जलवायु वह होते हैं जिसमें पूरे वर्ष तापमान में निरंतर बदलाव होता रहता है। आमतौर पर इन क्षेत्रों के आसपास जलराशि के बड़े भंडारों में कमी होती है जिसके कारण वहां के तापमान में निरंतर बदलाव की स्थिति उत्पन्न होते रहती है। इस प्रकार के क्षेत्रों में शीत ऋतु में तापमान बेहद कम होता है जिसके कारण वहां अत्यधिक बर्फ जम जाती है।

ध्रुवीय जलवायु (polar climate)

ध्रुवीय जलवायु मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में प्रभाव डालते हैं जहां शीत जलवायु पाई जाती है। इस प्रकार के क्षेत्र साल के सभी दिनों में बर्फ से ढके हुए रहते हैं जिसके कारण यहां अधिक सर्दी रहती है। ध्रुवीय क्षेत्रों में 6 महीने से अधिक दिनों तक सूर्योदय नहीं होता एवं शेष 6 महीनों में सूर्यास्त भी नहीं होता। सर्दियों के दिनों में ध्रुवीय क्षेत्रों का तापमान -37 ℃ तक गिर जाता है।

पर्वतीय जलवायु (mountain climate)

पर्वतीय जलवायु को उच्च भूमि जलवायु के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्य रूप से उच्च ऊंचाई की जलवायु होती है जो आसपास के तराई इलाकों से अलग होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में ऊंचाई के साथ-साथ वायु दाब, तापमान एवं आर्द्रता में भी कमी हो जाती है। इसके अलावा इन क्षेत्रों में तापमान एवं विकिरण की गहनता में भी वृद्धि देखी जा सकती है।

जलवायु की विशेषताएँ

जलवायु की विशेषताएँ कुछ इस प्रकार हैं:-

  • जलवायु किसी विस्तृत देश या प्रदेश के वायुमंडल की दशाओं का प्रतिनिधित्व कर सकती है।
  • जलवायु किसी क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम की दशाओं का परिचालक होता है।
  • जलवायु के अंतर्गत एक निश्चित अवधि के दौरान उत्पन्न वायुमंडलीय परिवर्तन को शामिल किया जा सकता है।
  • जलवायु के माध्यम से धरती एवं वायुमंडल के दीर्घकालीन ऊर्जा एवं विभिन्न पदार्थों के विनियम की प्रक्रिया की जानकारी मिलती है।

जलवायु परिवर्तन क्या है

जलवायु परिवर्तन धरती के तापमान एवं विभिन्न प्रकार के मौसम के परिवर्तन को प्रदर्शित करता है। यह परिवर्तन प्राकृतिक या मानवीय होते हैं जिसका जनजीवन पर प्रभाव पड़ता है। बीते कुछ दशकों से मानव गतिविधियों के कारण लगातार जलवायु में परिवर्तन की स्थिति देखी गई है। दरअसल कोयला, इंधन एवं गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों के लगातार दहन के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है जिससे जलवायु परिवर्तन की क्रिया में वृद्धि हुई है। वास्तव में ग्रीनहाउस गैस सूर्य की ऊष्मा को सोखता है जिसके कारण पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि होती है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण हिम गलन में भी तेजी होती है जिसके कारण समुद्र का जल स्तर दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक बड़ा खतरा हो सकता है जिसके कारण विश्व के विभिन्न स्थानों में बाढ़ संकट का खतरा बढ़ता है।

जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारक

वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण से वैज्ञानिक परिवर्तन के दो ही प्रमुख कारक होते हैं:-

  • प्राकृतिक गतिविधियां
  • मानवीय गतिविधियां

प्राकृतिक गतिविधियां

प्राकृतिक गतिविधियां जैसे भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, समुद्री तूफान, बाढ़, पृथ्वी का झुकाव, सूखा आदि कारणों से जलवायु में निरंतर परिवर्तन होते रहता है। दरअसल ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बड़ी मात्रा में विभिन्न प्रकार की हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है जो वायुमंडल की ऊपरी सतह पर जाकर फैल जाते हैं और पृथ्वी तक आने वाले सूर्य के प्रकाश की मात्रा को सोख लेते हैं। इस क्रिया से पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे कम होता जाता है और जलवायु परिवर्तन होता है। इसके अलावा पृथ्वी के झुकाव में बदलाव होने के कारण ऋतुओं में निरंतर बदलाव होते रहता है जिससे अत्यधिक गर्मी एवं अत्यधिक सर्दी की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। इस क्रिया से जलवायु नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।

मानवीय गतिविधियां

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन में मानवीय गतिविधियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। बीते कुछ दशकों में जीवाश्म ईंधन का अधिक प्रयोग करने के कारण धरती के तापमान में निरंतर वृद्धि देखी गई है। इसी कारण पृथ्वी के वायुमंडल में मानव जनित ग्रीन हाउस गैसों की उपस्थिति में भी काफी हद तक वृद्धि हुई है। इसके अलावा तेजी से पेड़ काटने, जीवाश्म ईंधन को जलाने, शहरीकरण करने, सीमेंट निर्माण करने, जंगलों को जलाने आदि कार्यों से भी जलवायु में तेजी से परिवर्तन होता है।

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के कारण धरती पर बाढ़, सूखा, आंधी तूफान आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो सकती है। जलवायु परिवर्तन फसल के उत्पादन को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है जिसके कारण खाद्यान्न उत्पादन में भारी कमी आ सकती है और वैश्विक स्तर पर कुपोषण एवं भुखमरी जैसी समस्या को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण हिम गलन में भी तेजी से वृद्धि होती है जिससे समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होने के साथ-साथ बाढ़ एवं मिट्टी के कटाव की घटनाओं में भी वृद्धि होती है। कई विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण मानव स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के कई अन्य दुष्प्रभाव हो सकते हैं जैसे:-

  • जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादन में कमी हो सकती है।
  • इसके कारण समय से पहले या समय के बाद वर्षा या सूखा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • यह धरती के ओज़ोन सतह को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

मौसम और जलवायु में अंतर

मौसम और जलवायु में निम्नलिखित अंतर होते हैं:-

  • मौसम का क्षेत्र छोटा होता है जिसके कारण विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह का मौसम देखा जा सकता है जबकि जलवायु का क्षेत्र मौसम की तुलना में विस्तृत होता या बड़ा होता है।
  • मौसम को वायुमंडल में होने वाला अल्पकालिक परिवर्तन भी कहा जाता है क्योंकि यह शीघ्रता से बदलता रहता है परंतु जलवायु वास्तव में वायुमंडल की दीर्घकालिक घटनाओं का लगभग 30 से 35 वर्षों के मौसमी घटनाओं का औसत होता है।
  • मौसम अस्थाई होती है जिसमें निरंतर परिवर्तन होते रहता है जबकि जलवायु किसी बड़े क्षेत्र में स्थाई रूप से होती है जिसमें कई वर्षों के पश्चात परिवर्तन आता है।

प्रातिक्रिया दे

Your email address will not be published.