राजपूतों के पतन के कारण

राजपूतों के पतन के कारण

राजपूतों के पतन के कारण ( rajputo ke patan ke karan ) : राजस्थान के विभिन्न राजपूत राजाओं एवं तुर्कों के मध्य बहुत लंबे समय तक दिल्ली सल्तनत के लिए शत्रुतापूर्ण संबंध रहे। राजपूत विश्व के महान योद्धाओं में से एक थे जो अत्यंत वीर, शौर्य, स्वाभिमानी थे। राजपूतों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप एवं पृथ्वीराज चौहान सबसे प्रभावशाली व शक्तिशाली राजपूत थे। परन्तु फिर भी राजपूतों का कई कारणों से पतन हो गया। राजपूतों के पतन का कोई एक विशेष कारण नहीं था बल्कि कई कारण थे जो उनको पतन ओर ले गया।

राजपूतों के पतन के कारण

राजपूतों के पतन के कारण निम्नलिखित हैं –

एकता का अभाव –

राजपूतों में एकता का अभाव था जो उनके पतन का प्रमुख कारण था। तुर्क आक्रांताओं और दिल्ली के मुस्लिम सुल्तानों के विरुद्ध लड़ाई में असफल होने का प्रमुख कारण उनमें एकता की कमी थी यदि इस समय राजपूत ने अन्य दुर्ग में घिरे राजपूतों की सहायता ली होती और एकसाथ मिलकर मुस्लिम सेना का सामना किया होता तो वे अवश्य ही मुस्लिम सेना को मात दे देते। इसके अलावा राजपूतों के छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित थे जो एक दूसरे से परस्पर संघर्ष किया करते थे और अपने पड़ोसियों पर आक्रमण करके उन्हें पराजित करने के लिए तत्पर रहते थे। शासकों को देखते हुए आम जनता भी अपने देश की रक्षा के लिए उदासीन रहती थी और यही वजह उनके पतन का कारण बनी।

दुर्बल सैनिक –

सैनिकों की दुर्बलता भी राजपूतों के पतन का कारण थी अतः सेना एवं सैनिक संगठन उनके लिए आवश्यक थी। अच्छे घोड़ों में कमी होना तथा पैदल सिपाहियों व हाथियों की संख्या अधिक होने की वजह से वे मुस्लिम सैनिकों की नई-नई पद्धतियों और अधिक मात्रा में अच्छे घोड़ों का सामना नहीं कर पाए। राजपूतों के घोड़े कभी -कभी बिगड़ कर अपनी ही सेना पर हावी हो जाते थे। इसके अलावा राजपूतों के पास लड़ने के लिए तलवार, भाला, बर्छी आदि हथियार थे बल्कि मुस्लिमों के सैनिक तीर चलाने में इतने निपुण थे कि वे राजपूतों पर प्रभावशाली आक्रमण कर सकते थे। राजपूत धर्म-युद्ध की प्रणाली को अपनाते थे जिसमें भागते हुए शत्रु का पीछा न करना, शरण में आए लोगों को अभयदान करना, घायल शत्रु पर आक्रमण न करना आदि। इन कारणों की वजह से वे युद्ध हार गए और उनका पतन हो गया।

मुहम्मद गौरी का वध न करना –

पृथ्वीराज चौहान द्वारा तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गौरी के पराजित होने के बावजूद भी उनका वध नहीं किया और उन्होंने मुहम्मद गौरी को छोड़ दिया। पृथ्वीराज की यही गलती उनकी पराजय का कारण बनी क्योंकि मोहम्मद गौरी ने पुनः अपनी शक्ति को संगठित किया और अगले युद्ध में वह इतना शक्तिशाली होकर उभरा कि उसने पृथ्वीराज को हरा दिया इस दौरान राजपूतों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा जिससे वे इतने कमजोर पड़ गए कि उनका पतन होना निश्चित हो गया।

राजपूतों का दुर्भाग्य –

जिस समय पंजाब के हिन्दू शासक आनंद पाल और महमूद गजनवी का युद्ध चल रहा था उस समय राजपूतों को सफलता मिलने की संभावनाएं थी परन्तु दुर्भाग्यवश उनका हाथी बारूद की आग में भड़क गया जिससे उनकी सेना में हलचल मच जाने की वजह से सेना वापस लौट गई। इसके पश्चात महमूद गजनवी ने सेना का पीछा करते हुए बिना प्रयास के ही जीत हासिल कर ली। इसके अलावा युद्ध में अन्य ऐसी  बहुत सी घटनाएं हुई जिसकी वजह से राजपूत असफल हुए और उनका पतन हो गया।

देशद्रोहियों की भूमिका –

राजपूतों की पतन में देशद्रोहियों की भूमिका भी एक प्रमुख कारण रही। इसका प्रमुख उदाहरण यह है कि जब रणथंभौर अभियान के दौरान हम्मीर के सेनानायक व मंत्री रणमल और रतिपाल ने अपने स्वार्थ के लिए अपने ही राजा और राज्य के साथ विश्वासघात किया एवं सुल्तान का साथ दिया। एक देशद्रोही ने तो  खाद्यान्न भंडार में हड्डियां फेंककर खाद्य-पदार्थों को अपवित्र करके लोगों में अकाल की स्थिति पैदा कर दी थी। इसके अलावा चित्तौड़ अभियान के समय देवपाल ने विश्वासघात तथा जालौर अभियान में दहिया राजपूत सरदार बीका ने सुल्तान की सेना का साथ देकर अपने स्वामी के साथ विश्वासघात किया। इन देशद्रोहियों की वजह से संपूर्ण राजपूतों को आघात पहुंचा और उनका पतन हो गया।

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