राजस्थान की लोक देवियाँ pdf : राजस्थान की लोक देवियाँ एवं राजस्थान की कुलदेवियां, इनसे जुड़े प्रश्न अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं इसलिए राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां और उनसे जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य यहाँ दिए गए हैं। राजस्थान की लोक देवियाँ ( rajasthan ki lok deviya ) की पीडीऍफ़ भी आप डाउनलोड कर सकते हैं।
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राजस्थान की लोक देवियाँ
शीतला माता (चाकसू)
- शीतला माता का मंदिर चाकसू (जयपुर) में है।
- शीतला माता एकमात्र ऐसी देवी है जिसकी खण्डित रूप में पूजा की जाती है।
- इस देवी का वाहन ‘गधा’ तथा पुजारी ‘कुम्हार’ होता है।
- शीतला माता को ‘महामाई’, ‘सेढल माता’, ‘चेचक की देवी’, ‘बच्चों की संरक्षिका’ आदि नामों से भी जाता है।
- शीतला माता का मंदिर सवाई माधोसिंह ने चाकसू (जयपुर) में शील की डूंगरी पर बनवाया था।
- प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतलाष्टमी) को चाकसू (जयपुर) में शीतला माता का लगता हैं।
शाकम्भरी माता (सांभर)
- शाकम्भरी माता का मंदिर सम्पूर्ण भारत में सबसे प्राचीन शक्तिपीठ कहलाता है। इनका मंदिर सांभर (जयपुर) में स्थित है।
- शाकम्भरी माता सांभर के चौहानों की कुलदेवी हैं।
- शाकम्भरी माता का मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को सांभर (जयपुर) में लगता है।
- फल – सब्जियां (शाक) उत्पन्न करने के कारण इस देवी का नाम शाकम्भरी माता पड़ा।
शिलादेवी (जयपुर)
- शिलादेवी की प्रतिमा अष्टभुजी है। इनका मंदिर आमेर (जयपुर) में स्थित है।
- भगवती महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति के ऊपरी हिस्से पर पंच देवों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं।
- 16वीं सदी में आमेर राज्य के शासक मानसिंह – प्रथम ने पूर्वी बंगाल के राजा केदार राय को पराजित करके पूर्वी बंगाल की विजय के पश्चात् शिलादेवी को आमेर के राजभवन में स्थापित किया था।
- शिलादेवी को अन्नपूर्णा माता भी कहा जाता है।
- इनके मंदिर में जल और मदिरा दोनों का चरणामृत भक्तों की इच्छानुसार दिया जाता है।
नकटी माता (जयपुर)
- नकटी माता का मंदिर भवानीपुरा, जयपुर में स्थित है।
- नकटी माता का मंदिर एक गुर्जर प्रतिहार कालीन मंदिर है।
छींक माता (जयपुर)
- माता का मंदिर जयपुर में स्थित गोपालजी के मंदिर के रास्ते में पड़ता है।
- छींक माता की पूजा माघ सुदी सप्तमी को होती है।
जमुवाय माता (जमवा रामगढ़)
- जमुवाय माता के मंदिर का निर्माण कछवाहा वंश के संस्थापक दुल्हेराय द्वारा जमवा रामगढ़ जयपुर में करवाया गया था। यह माता आमेर के कछवाहा शासकों की कुलदेवी है।
आवड माता (जैसलमेर)
- आवड़ माता जैसलमेर के भाटी शासकों की कुलदेवी है।
- सुगनचिड़ी को आवड़ माता के रूप में माना जाता है।
- आवड़ माता को लोग आईनाथ, जोगमाया के रूप में पूजनीय मानी जाती है।
- लोक मान्यता है कि – ‘मामड़जी’ चारण के घर हिंगलाज देवी के अंशावतार सात ‘कन्याओं’ या देवियों ने जन्म लिया था जिनमें से मुख्यतः आवड़, बरबरी नाम से जानी गयी।
- इन सात देवियों का मंदिर ‘तेमडेराय’ जैसलमेर से 25 किलोमीटर दूर भू-गोपा के पास पहाड़ी वाली गुफा में स्थित है।
- आवड माता ने अपनी सात बहनों के साथ ‘लूणकरण’ भाटी के समय मारवाड़ में प्रवेश लिया।
- तीन आचमन से समुद्र सुखाकर ‘तामड़ा’ पर्वत पर गयी वहाँ पर नर भक्षी राक्षस को पहाड़ से गिराकर मार दिया था।तभी से वह पहाड़ ‘तेमड़ी’ कहलाने लगी।
- चारण देवियाँ नौ लाख तार की ऊनी साड़ी पहनती थी।
- चारण देवियों की स्तुति पाठ को ‘चरजा’ कहा जाता है।
- चरजा दो प्रकार किया जाता है –
(1) सिगाऊ :- शांति के समय देवी की प्रशंसा में पढ़ी जाती थी।
(2) घाड़ाऊ :- विपत्ति के समय भक्त द्वारा, देवी सहायक होती है। - इन सात देवियों की सम्मिलित प्रतिमा को ‘ठाला’ (फूल) कहा जाता है।
- आवड़ माता के भक्त बुरी आत्माओं, भूत – प्रेत आदि से बचाव के लिए अपने गले में ‘ठाला’ पहनते हैं।
नागणेची माता (जोधपुर)
- 13वी शताब्दी में राठौड़ वंश के राव धूहड़ जी द्वारा बाड़मेर जिले के नागोणा नामक स्थान पर तहसील पंचपद्रा में नागणेचिया माता का मंदिर बनवाया था।
- नागोणा का मंदिर नागणेचिया नाम से विख्यात हुआ।
- राव धूहड जी की शूरवीरता, दृढ़ता, कर्मठता तथा चतुराई की प्रशंसा से प्रभावित होकर राठौड़ों की कुलदेवी श्री चक्रेश्वरी माताजी की प्रतिमा को कन्नौज के सारस्वत ब्राह्मण ल्होड़ा लूम्ब ऋर्षि बाड़मेर लेकर आये थे।
- धूहड़ जी सुरक्षा की दृष्टि से उस मूर्ति को नागोणा गांव स्थित पहाड़ी की ओट में मंदिर बनवाकर स्थापित कर लिया और कहा जाता है कि यह मूल प्रतिमा आज दूदू जोधपुर में नागणेचिया माता के मंदिर में स्थापित है।
- कहा जाता है कि धूहड़ जी को सपने में माता ने दर्शन देकर नीम के वृक्ष के नीचे प्रकट होने का आदेश दिया था, अगले ही दिन धूहड जी ने उसी वृक्ष के नीचे मूर्ति को पाया जो आधी भूमि के अंदर दबी हुई अवस्था में थी। वर्तमान में उसी अवस्था में मंदिर में स्थापित है।
आई माता बिलाड़ा (जोधपुर)
- आई माता बीकाजी की पुत्री थी।
- आई माता ने ‘नीम’ के वृक्ष के नीचे अपना पंथ चलाया था।
- आईजी की पूजा स्थल ‘बड़ेर’ कहलाता है जिसमें मूर्ति नहीं होती है।
- सीरवी लोग आई माता के मंदिर को ‘दरगाह’ कहते है।
- आईजी के मंदिर में प्रत्येक महीने की शुक्ल द्वितीया को पूजा – अर्चना होती है।
- आई माता देवी माँ की अवतार मानी गई है। जो मुल्तान व सिन्ध की ओर से गोडवाड़ होती हुई जोधपुर के बिलाड़ा में आकर ठहरी थी।
- बिलाडा में ही चैत्र शुक्ल द्वितीया की संवत् 1561 को आई माता की मृत्यु हो गई।
- सीरवी राजपूतों को आईमाता ने अपने क्षेत्र में संरक्षण प्रदान किया था इसलिये ‘सीरवी’ कृषक राजपूत इनको सर्वाधिक पूजते हैं।
- आई माता के बिलाडा के मंदिर के दीपक की ज्योति से केसर टपकती रहती है। जिसका उपयोग इलाज करने में किया जाता है।
सचिया माता (औसियाँ)
- सचिया माता का प्रसिद्ध मंदिर जोधपुर जिले के औसियाँ नगर में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है।
- सचिया माता ओसवालों की कुलदेवी हैं।
- सचिया माता के मंदिर का निर्माण परमार राजकुमार उपलदेव ने करवाया था।
- माता की वर्तमान प्रतिभा कसौरि पत्थर की है। वास्तव में यह प्रतिमा महिषासुर मर्दिनी देवी की है।
राणी दादी सती माता (झुंझनू)
- रानी सती का असली नाम नारायणी बाई था।
- राणी सती के पति का नाम तनधनदास था। जिनको हिसार नवाब के सैनिकों द्वारा धोखे से आक्रमण करके मार दिया। तब नारायणी बाई उग्र चंडिका बनी।
- नारायणी देवी सन् 1652 में अपने पति तनधनदास जी के साथ ही सती हो गई थी।
- रानी सती के परिवार में 13 स्त्रियां सती हुईं। जिनकी पूजा भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को की जाती है।
- दादीजी के नाम से प्रसिद्ध रानी सती का प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की कृष्ण अमावस्या को मेला लगने की परम्परा है।
- राणी दादी सती का विशाल संगमरमरी मंदिर झुंझुनू में स्थित है।
सकराय माता (झुंझुनू)
- सकराय माता खण्डेलवालों की कुलदेवी के रूप में विख्यात है।
- सकराय माता को शाकम्भरी माता भी कहते है।
- चैत्र व आश्विन माह में नवरात्रि पूजा के समय मेले जैसा माहौल होता है।
- सकराय माता का आस्था तथा भक्ति केन्द्र शेखावाटी अंचल में उदयपुरवाटी (झुंझुनूं) के समीप सुरम्य घाटियों में स्थित है जो सीकर जिले में आता है।
- अकाल – पीड़ितों को बचाने के लिए इन्होंने फल, सब्जियाँ, कंदमूल उत्पन्न किए जिसके कारण यह शाकम्भरी कहलाई।
- शाकम्भरी का एक अन्य मंदिर सांभर में है तथा दूसरा मंदिर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में है।
चामुंडा माता (जोधपुर)
- मेहरानगढ़ दुर्ग जोधपुर में चामुंडा माता का मंदिर स्थित है।
- चामुंडा माता के मंदिर में माँ दुर्गा का सातवां अवतार कालिका है।
- 30 सितम्बर 2008 को चामुंडा माता के मंदिर में भगदड़ मचने के कारण 250 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
- राज्य सरकार द्वारा इस हादसे की जांच करने के लिए जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया था।
जीण माता (सीकर)
- सीकर के दक्षिण में रेवासा गांव के समीप की पहाड़ियों में जीण माता का मंदिर स्थित है।
- जीण माता चौहानों की कुलदेवी मानी जाती है।
- जीण माता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र व आश्विन माह के नवरात्रों में भरता है।
- जीण माता की अष्टभुजी मूर्ति एक अवसर पर अढ़ाई प्याले मदिरा का पान करती थी।
- जीण माता के मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान – प्रथम के शासनकाल में करवाया गया था हर्ष पर्वत पर स्थित शिलालेख के अनुसार।
तनोट राय माता (तनौट जैसलमेर)
- तनौट माता का मंदिर तनौट जैसलमेर में स्थित है।
- तनोट माता ‘सैनिकों की माता’ के रूप में विख्यात है।
- वर्तमान में तनोट माता का मंदिर ‘सीमा सुरक्षा बल’ के अन्तर्गत है।
- भारत-पाक की सीमा पर स्थित मंदिर के क्षेत्र में सन् 1965 के युद्ध में पाक द्वारा गिराये गये बम ‘निष्क्रिय’ हो गये थे इसलिए यह स्थान सुरक्षित सैनिकों की शक्ति साधना स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
आशापुरा माता (जैसलमेर)
- आशापुरा देवी ‘कच्छ – भुज’ से ‘लूण भाणजी’ बिस्सा के साथ लगभग संवत 1200 को पोखरण आयी थीं।
- पोकरण जैसलमेर के पास की बिस्सा जाति आशापुरा माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं।
- प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी तथा माघ शुक्ल दशमी को दो बार मेला लगता है।
- बिस्सा जाति के लोग विवाह के बाद ‘जात’ लगाने आशापुरा माता के मंदिर जाते हैं।
नारायणी माता (अलवर)
- नारायणी माता का मंदिर अलवर जिले की राजगढ तहसील में बरबा डूंगरी की तलहटी में स्थित है।
- नारायणी देवी को नाई जाति के लोग अपनी कुलदेवी मानते है।
- मीणा जाति के लोग की नारायणी देवी को अपनी आराध्य देवी मानते हैं।
- नारायणी माता का मंदिर 11वी. शताब्दी में प्रतिहार शैली में निर्मित हुआ है।
जिलाणी माता (अलवर)
- जिलाणी माता का मेला भी वर्ष में दो बार लगता है।
- लोक देवी जिलाणी माता का प्रसिद्ध मंदिर अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे की प्राचीन बावड़ी के समीप स्थित है।
लटियाला माता (लोद्रवा)
- लटियाला माता का मंदिर फलोदी (जोधपुर) में स्थित है।
- इनके मंदिर के आगे खेजड़ा (शमीवृक्ष) स्थित है इसलिये लटियाला माता को खेजडबेरी राय भवानी भी कहते है।
- यह देवी कल्लो की कुलदेवी हैं।
- इनका एक भव्य मंदिर नया शहर बीकानेर में स्थित है।
हिंगलाज माता (जैसलमेर)
- हिंगलाज माता देवी चारणों की कुलदेवी हैं।
- हींग के पहाड़ों के बीच इनका मंदिर होने के कारण इनका नाम हिंगलाज पड़ा।
- हिंगलाज माता को जोधपुर के नारलाई और जैसलमेर के लोद्रवा में पूजा जाता है।
हर्ष माता (दौसा)
- हर्ष माता के मंदिर का निर्माण निकुंभ राजा चन्द्र ने 8वीं सदी में करवाया था।
- हर्ष माता का मंदिर आभानेरी (दौसा) में स्थित है।
- यह एक प्रतिहार कालीन मंदिर है।
सुगाली माता आऊवा (पाली)
- सुगाली माता का मंदिर पाली जिले के आऊवा गाँव में स्थित है।
- कुशाल सिंह चंपावत की कुलदेवी मानी जाती हैं।
- सुगाली माता की मूर्ति को 1857 की क्रान्ति के समय अंग्रेजों द्वारा अजमेर लाकर रखा गया था जिसे वर्तमान में पाली संग्रहालय को सौंप दिया गया।
- सुगाली माता की 54 भुजा तथा 10 सिर हैं।
सुन्धा माता (जालोर)
- यह मंदिर एक तांत्रिक शक्तिपीठ है।
- सुन्धा माता का मंदिर दांतलावास गाँव, भीनमाल जालोर में स्थित है।
- सुन्धा माता के मंदिर में केवल सिर की पूजा की जाती है।
- सुन्धा माता के मंदिर में वर्ष 2007 में राजस्थान का पहला निजी क्षेत्र का रोपवे प्रारम्भ किया गया था।
करणी माता (बीकानेर)
- बीकानेर से 35 कि.मी. दूर देशनोक नामक स्थान पर करणी माता का मंदिर स्थित है।
- करणी माता दुनिया में ‘चूहों की देवी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- मारवाड़ व बीकानेर के राठौड़ शासक करणी माता को अपनी इष्ट मानते हैं।
- करणी माता चारण जाति की कुलदेवी है।
- करणी माता के मंदिर में स्थित सफेद चूहों को ‘काबा’ कहा जाता है।
- चारण जाति के लोग इन चूहों को अपना आराध्य मानते हैं।
- देशनोक बीकानेर में नवरात्रि के दिनों में करणी माता का मेला लगता है।
- जोधपुर के किले मेहरानगढ़ की नींव राव जोधाजी के राजा बनने के बाद करणी माता जी द्वारा डाली गई थी।
- करणी माता के आशीर्वाद से ही राव बीका ने बीकानेर राज्य की स्थापना की थी।
कैलादेवी (करौली)
- कैलादेवी का मंदिर करौली में स्थित है।
- कंस द्वारा देवकी की कन्या का वध करने पर यही कन्या कैलादेवी के रूप में त्रिकूट पर्वत की घाटी में विराजित हैं।
- कैलादेवी करौली यदुवंशी राजवंश की कुलदेवी है।
- प्रतिवर्ष करौली में चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी को त्रिकूट पर्वत की चोटी पर लक्खी मेला भरता है।
- कैलादेवी के सामने ही बोहरा की छतरी स्थित है।
- नवरात्र में कैलादेवी का लक्खी मेला लगता है।जिसमें मुख्य भक्तों द्वारा लांगुरिया गीत गाया जाता है।
स्वांगिया माता (जैसलमेर)
- स्वांगिया माता को आवड माता का ही एक रूप माना जाता है।
- स्वांगिया माता की जैसलमेर के भाटी शासकों की कुलदेवी है।
- स्वांगिया माता का मंदिर पोकरण के रास्ते पर भादरिया राय (धोलिया गाँव) नामक स्थान पर है।
दधिमती माता (नागौर)
- दधिमती माता का मंदिर गोठ मांगलोद (नागौर) में स्थित है।
- दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी मानी जाती है।
- दोनो नवरात्रों में दधिमती माता का मेला भरता है।
- पुराणों में इसे ‘कुशाक्षेत्र’ कहा गया है।
- पुराणों के अनुसार ‘त्रेता युग’ में विकटासुर के वध के लिए भगवती दधिमती ने अवतार लिया था।
- दधिमती माता का यह अवतार त्रेतायुग के यज्ञ कुण्ड में आविर्भूत हुआ।
- उदयपुर के महाराणा स्वरूप सिंह को पुत्र की प्राप्ति दधिमती मां के आशीर्वाद से हुई थी।
कालिका माता (चित्तौड़गढ़)
- पद्मिनी महल के सामने ऊँचे चबूतरे पर 8 वीं शताब्दी का बना मंदिर है जो चित्तौड़गढ़ के दुर्ग पर स्थित है।
- इसका निर्माण मान मौर्य द्वारा करवाया हुआ माना जाता है।
- 12वीं शताब्दी से पूर्व यह मंदिर एक ‘सूर्य मंदिर’ था।
- 12वीं शताब्दी में इस सूर्य मंदिर में कालिका माता की मूर्ति स्थापित की गई।
- प्रतिवर्ष नवरात्रि में विशाल मेला लगता है।
- कालिका माता गुहिल वंश (गुहिलोत) की कुलदेवी मानी जाती है।
बड़ली माता (चित्तौड़गढ़)
- बड़ली माता का मंदिर छीपों के आकोला (चितौड़गढ़) में बेड़च नदी के किनारे पर स्थित है।
- ‘बड़ली’ (वट वृक्ष) को ठोकने पर सिर दर्द, ‘ताण’ चक्कर आना ठीक हो जाता है।
- आराम होने पर मंदिर में त्रिशूल चढ़ाया जाता है।
- बड़ली माता के मंदिर में बीमार बच्चों को दो तिबारी से निकालने पर उनकी बीमारी ठीक हो जाती है।
- ऐसी भी मान्यता है कि माता की तांती बांधने से बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है।
कुशाला माता (भीलवाड़ा)
- माता का मंदिर बदनौर भीलवाडा में स्थित है।
- कुशाला माता चामुण्डा देवी का अवतार समझा जाता है।
- कुशाला माता के मंदिर के पास बैराठ माता का मंदिर स्थित है जिसे जाढ़ बैराठ भी कहा जाता है।
- महाराणा कुम्भा ने बदनौर पर पुनः अधिकार करने के बाद मंदिर का निर्माण करवाया।
- कुशाला माता तथा बैराठ माता दोनों बहिनें थीं।
- भाद्रपद कृष्ण ग्यारह से भाद्रपद अमावस्या तक प्रतिवर्ष कुशाला माता का मेला लगता है।
भदाणा माता (कोटा)
- भदाणा माता का मंदिर कोटा से 5 किलोमीटर दूर भदाणा नामक स्थान पर स्थित है।
- यहाँ मूठ (मारण की तांत्रिक प्रयोग) की झपट में आए व्यक्ति को मौत के मुँह से बचाया जाता है।
- भोपा व्यक्ति को चूसकर मूंग, उड़द निकाल देता है।
आसावरी माता (आवरी माता)
- आसावरी माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ में है।
- आसावरी माता को आवरी माता भी कहते है।
- यहाँ स्थित पीठ शारीरिक व्याधियों के निवारण के लिए विख्यात है।
- जन आस्था के प्रमुख केन्द्र के रूप में विख्यात प्राचीन मंदिर के पास एक तालाब स्थित है यह भदेसर पंचायत समिति के क्षेत्र में स्थित है।
त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर (बांसवाड़ा)
- त्रिपुरा सुन्दरी माता का मंदिर तलवाड़ा बांसवाड़ा में स्थित है।
- इस माता को ‘तरताई माता’ भी कहते है।
- त्रिपुरा माता के मंदिर में ‘अष्टादश’ भुजा की प्रतिमा स्थित है जिसके हाथों में ‘अठारह’ प्रकार के आयुध (शास्त्र) पकड़े हुए हैं।
- पांचाल जाति त्रिपुरा सुन्दरी माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजती है।
- ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर सम्राट कनिष्क के समय निर्मित हुआ।
अम्बिका माता (उदयपुर)
- अम्बिका माता का मंदिर जगत (उदयपुर) में स्थित है जोकि शक्तिपीठ कहलाता है।
तुलजा भवानी (चित्तौड़गढ़)
- तुलजा माता का प्राचीन मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित है।
- तुलजा भवानी छत्रपति शिवाजी की आराध्य देवी के रूप में मानी जाती हैं।
महामाई माता ‘मावली’ या महामाया माता (उदयपुर)
- महामाया को ‘शिशुरक्षक’ लोकदेवी के रूप में पूजा जाता है।
- महामाई माता का अन्य नाम मावली भी है।
- गर्भवती स्त्रियां अपने प्रसव को निर्विघ्न पूरा करने के लिए तथा बच्चे को स्वस्थ तथा प्रसन्न रखने के लिए ‘महामाई’ की पूजा करती हैं।
पथवारी माता
- पथवारी देवी गांव के बाहर स्थापित की जाती है।
- राजस्थान में तीर्थ यात्रा की सफलता की कामना हेतु पथवारी देवी की लोकदेवी के रूप में पूजा की जाती है।
घेवर माता (राजसमंद)
- वर्तमान में घेवर माता का मंदिर राजसमंद की पाल पर स्थित है।
- घेवर माता मालवा क्षेत्र की रहने वाली थी।
- घेवर माता का मंदिर एक ‘सती’ मंदिर है।
- माना जाता है कि राजसमंद के निर्माण में पहला पत्थर घेवर माता के हाथों से ही रखवाया गया था।
ज्वाला माता (जयपुर)
- ज्वाला माता का मंदिर जोबनेर (जयपुर) में स्थित है।
- यहाँ पर प्रत्येक वर्ष नवरात्र में मेला आयोजित होता है।
- किवदंती के अनुसार जब शिवजी ने सती को कंधे पर उठाकर ताण्डव नृत्य किया तो विष्णु ने अपने चक्र से सती के टुकड़े-टुकड़े कर दिये थे जिसमें से सती का घुटना जोबनेर जयपुर में गिरा था इसलिये इस शक्तिपीठ का महत्व अधिक है।
आमजा माता (उदयपुर)
- इस माता का मंदिर ‘केलवाड़ा’ (उदयपुर) के पास ‘रीछड़ा’ में स्थित है।
- यहाँ पर प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को भीलों का भव्य मेला लगता है।
- भीलों की देवी का मध्य मंदिर केलवाड़ा के पास ‘रीछड़ा’ नामक स्थान पर स्थित है।
- आमजा माता की पूजा ‘भील’ तथा ‘ब्राह्मण’ द्वारा की जाती है।
चामुण्डा देवी (अजमेर)
- महामाया चामुण्डा देवी चौहानों की कुलदेवी मानी जाती है।
- चन्दबरदाई चारण भाट कवि की इष्ट देवी के रूप में चामुण्डा देवी विख्यात है।
- अजमेर में स्थित चामुण्डा माता के मंदिर का निर्माण ‘पृथ्वीराज चौहान’ द्वारा करवाया गया।
बाण माता (उदयपुर)
- इनका मंदिर कुम्भलगढ़ किले के पास केलवाड़ा (उदयपुर) नामक स्थान पर गढ़ी में स्थित है।
- बाण माता मेवाड़ के शासकों की कुलदेवी मानी जाती है।
सिकराय माता
- झुंझुनू जिले में स्थित उदयपुरवाटी के आसपास पूजा जाता है।
- खण्डेलवाल इन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।
नागणेची देवी
- नागणेची देवी को जोधपुर के राठौड़ों द्वारा कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
- जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर आदि स्थानों पर पूजा जाता है।
आशापुरी या महोदरी माता
- जालौर के मोदरां में पूजा जाता है।
- आशापुरी या महोदरी माता सोनगरा चौहानों की कुलदेवी हैं।
आवरी माता
- आवरी माता को चित्तोड़गढ़ के निकुम्भ में पूजा जाता है।
- मान्यतानुसार यहाँ लकवे (फालिज) का इलाज होता है।
तनोटिया देवी
- तनोटिया देवी को जैसलमेर के तनोट में पूजा जाता है।
- राजस्थान में सेना द्वारा भी इन्हें पूजा जाता है।
ज्वाला माता
- ज्वाला माता खंगारोतों द्वारा अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
- इन्हें जोबनेर स्थान पर पूजा जाता है।
घेवर माता
- घेवर माता का मंदिर राजसमंद की पाल पर स्थित है।
बाणमाता
- बाणमाता को उदयपुर के सिसोदियाओं द्वारा अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
पीपाड़ माता
- जोधपुर के ओसियाँ में पूजा जाता है।
त्रिपुर सुंदरी देवी
- त्रिपुर सुंदरी देवी को बांसवाडा के तलवाड़ा में पूजा जाता है।
अम्बा माता
- उदयपुर एवं अम्बानगर (आबूरोड़) में पूजा जाता है।
आसपुरी माता
- डूंगरपुर के आसपुर में पूजा जाता है।
छिंछ माता
- छिंछ माता को बांसवाड़ा में पूजा जाता है।
सुंदा देवी
- भीनमाल स्थित सुंदा पर्वत पर पूजा जाता है।
बिरवड़ा माता
- बिरवड़ा माता को उदयपुर और चित्तोड़गढ़ दुर्ग में पूजा जाता है।
चारभुजा देवी
- हल्दीघाटी स्थित खमनौर में पूजा जाता है।
भदाणा माता
- भदाणा माता को कोटा के भदाणा में पूजा जाता है।
इंदर माता
- इंदर माता को बूंदी के इंद्रगढ़ में पूजा जाता है।
जोगणिया माता
- जोगणिया माता को भीलवाड़ा में पूजा जाता है।
भांवल माता
- भांवल गांव (मेड़ता, नागौर)
चौथ माता
- सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा में पूजा जाता है।
जानने योग्य तथ्य
- चिरजा – रात्रि जागरणों में महिलाओं द्वारा देवी की आराधना में गाए जाने वाले मंत्र, गीतों एवं पदों को चिरजा कहते हैं। इन रात्रि जागरणों को रतजगों के नाम से भी जाना जाता है।
- नावां – श्रद्धालु, भोपे, भक्त, पुजारी आदि द्वारा अपने इष्ट लोक देवी देवताओं के गले में बांधी जाने वाली प्रतिकृति (replica) को नावां के नाम से जाना जाता है। यह सोने चांदी, पीतल, तांबे आदि का बना होता है।
- पर्चा देना – किसी अलौकिक शक्ति द्वारा किसी काम को करवा लेना या करना ही पर्चा देना कहलाता है। इसका अर्थ होता है शक्ति का परिचय होना या अलौकिक शक्ति द्वारा अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना।
राजस्थान की लोक देवियाँ pdf – Download PDF
पढ़ें – राजस्थान के लोक देवता।
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