रामदेवजी राजस्थान के लोक देवता : राजस्थान के लोक देवता रामदेवजी ( Ramdevji ) को बाबा रामदेव, रामसा पीर, रामदेव पीर आदि उपनामों सी भी जाना जाता है। रामदेवजी को राजस्थान व गुजरात सहित कई अन्य क्षेत्रों में भी पूजा जाता है। (rajasthan ke lok devta notes)
- रामदेव जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया वि. स. 1462 ( 1405 ई. ) को उडूकासमेर गाँव बाड़मेर में हुआ था।
- रामदेव जी तंवर वंश राजपूत थे और इनके पिता अजमालजी तथा माता मैणादे थी। रामदेव जी की पत्नी का नाम निहालदे था।
- रामदेव जी के गुरु बालीनाथ थे। कामडिया पंथ की स्थापना रामदेव जी द्वारा की गई थी ।
- रामदेव जी को लोग अर्जुन का वंशज व कृष्ण का अवतार मानते हैं।
- रामसा पीर, रुणीचा रा धणी, रुणेचा रघणी, बाबा रामदेव, साम्प्रदायिक सद्भाव का लोक देवता, अर्जुन का वंसज जैसे नामों से प्रसिद्ध रामदेवजी की प्रसिद्धि राजस्थान के साथ-साथ गुजरात, मध्य प्रदेश व पंजाब राज्यों में भी है।
- रामदेव जी को ‘मल्लीनाथ जी’ के समकालीन माना जाता है। मल्लीनाथ जी ने रामदेव जी को पोकरण का इलाका दिया था। उसके बाद रामदेव जी ने पोकरण को अपनी भतीजी के विवाह में दहेज में दे दिया था। जहाँ पर पोकरण से 8 मील उत्तर में रामदेवरा नामक गाँव बसा। रामदेव जी ने यहाँ पर भैरव नामक राक्षस का वध किया था।
- वि.स. 1515 (1458 ई.) में रामदेवरा में रामदेव जी ने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को जीवित समाधि ली थी, इसी स्थान को रुणीचा कहा जाता है।
- रामदेवजी के मेघवाल भक्त रिखिया कहलाते हैं तथा रामदेव जी के तिर्थयात्रियों को ‘जातरु’ कहा जाता है।
- गाँवों में खेजड़ी के वृक्ष के निचे किसी चबूतरे पर रामदेवजी के ‘पगलिये’ बना दिये जाते हैं और खेजड़ी के वृक्ष पर श्वेत रंग की ध्वजा फहरा दी जाती है। इन्हीं स्थानों को रामदेव जी के थान कहा जाता है।
- रामदेव जी के प्रतीक चिह्नो को ‘पगल्या’ कहा जाता है ।
- रामदेव जी का वार्षिक मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी को लगता है।
- रामदेव जी का सबसे विशाल मेला भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक रुणेचा (जैसलमेर) में लगता है। रुणीचा मंदिर के पूजारी तंवर जाति के राजपूत होते हैं।
- भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को ‘बाबो री सीज’ कहा जाता है।
- रामदेव जी ने पोकरण में बावड़ी व रामदेसर तालाब का निर्माण करवाया था तथा पोकरण में भी रामदेव जी का एक मंदिर है।
- रामदेव जी के मंदिर रुणेचा, रामदेवरा (जैसलमेर), खुण्डियावास, परबतसर (नागौर) में स्थित हैं।
- रामदेव जी की याद में भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक रात्रि जागरण किया जाता है इस रात्रि जागरण को ‘जम्म्प’ कहा जाता है ।
- रामदेवजी के मंदिर को ‘देवरे’ कहा जाता है इन देवेरो पर रामदेवजी की ध्वजा फहराई जाती है इस ध्वजा को ‘नेजा’ कहा जाता है। रामदेवजी की ध्वजा का रंग सफेद या पाँच रंग का होता है जिस पर रामदेवजी के चरण लाल रंग के बने होते हैं।
- रुणीचा मे राम सरोवर का निर्माण रामदेव जी ने करवाया था ।
- रामदेव जी मूर्ति पूजा, गंगा-स्नान, तीर्थयात्रा आदि में विश्वास नहीं करते थे।
- रामदेव जी गुरु ज्ञान में विश्वास करते थे एवं उनका मानना था कि – यह संसार अथाह समुद्र के समान है जिसे गुरु के मार्ग – दर्शन से ही पार किया जा सकता है।
- रामदेवजी का वाहन लीला घोड़ा या लीलो घोड़ा है।
- रामदेवजी की फड़ का वाचन कामड़ जाति के भोपा द्वारा ‘रावणहत्था’ के साथ किया जाता है।
- रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोक देवता हैं जो कवि और लेखक थे जिनके द्वारा लिखा गया ग्रन्थ ‘चौबीस वाणियाँ’ है।
- रामदेव जी को हिन्दु व मुस्लिम दोनो जातियाँ समान रूप से पूजते है मुसलमान रामदेव जी को ‘रामसापीर’ तथा हिन्दु ‘कृष्ण (विष्णु) का अवतार’ मानते हैं।
- रामदेवजी ऊँच-नीच के भेद को नहीं मानते थे उनकी नजर में हर मनुष्य में भगवान का वास होता है और हर मनुष्य समान है। रामदेव जी ने हरिजनो को गले के हार के मोती, हीरे तथा मूंगे कहा है।
- रामदेव जी की धर्म बहन ‘डालीबाई’ व सगी बहन ‘सुगना बाई’ थी । डालीबाई मेघवाल जाति की थी और ये बाद रामदेव जी शिष्या भी बनी।
- रामदेव जी के भक्तों द्वारा गाये जाने वाले भजनों को ‘ब्यावले’ कहा जाता है।
- रामदेव जी के द्वारा दिखाए गये चमत्कारो को ‘पर्चा’ कहा जाता है। मक्का से आए हुए पाँच पीरों द्वारा जब रामदेव जी के चमत्कारों को येखा तो कहा – ‘मैं तो केवल पीर हाँ और थे पीरा का पीर’। रामदेव जी द्वारा इन पाँच पीरो को पर्चा (चमत्कार) को पंचपीपली नामक स्थान पर दिया था यह स्थान रामदेवरा से 12 कि.मी. दूर सिथत है।
- पंचपीपली में एक बावड़ी स्थित है जिसे ‘पर्चा बावड़ी’ कहा जाता है।
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