ये कहा जाता है कि दुनिया में रोहिंग्या मुसलमान ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय है जिस पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म हो रहा है। आख़िर रोहिंग्या कौन हैं ? इनसे म्यांमार को क्या दिक्क़त है ? ये भागकर बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया आदि देशों में क्यों जा रहे हैं ? इन्हें अब तक नागरिकता क्यों नहीं मिली ? हम यहाँ पर इन्ही सब विषयों में चर्चा करेंगे।
चर्चा में
रोहिंग्या समुदाय 12वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया, लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया है। 2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच व्यापक हिंसा भड़क गई। तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है। रोहिंग्या और म्यांमार के सुरक्षा बल एक-दूसरे पर अत्याचार करने का आरोप लगा रहे हैं। ताजा मामला 25 अगस्त को हुआ, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों ने पुलिस वालों पर हमला कर दिया। इस लड़ाई में कई पुलिस वाले घायल हुए, इस हिंसा से म्यांमार के हालात और भी खराब हो गए। अगस्त महीने शुरू हुई हिंसा के बाद से अब तक करीब चार लाख (4,00,000) रोहिंग्या शरणार्थी सीमा पार करके बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया आदि देशों में शरण ले चुके हैं।
रोहिंग्या कौन हैं?
रोहिंग्या मुसलमान 15वीं सदी से म्यांमार में बसे हुए हैं और इन्हें बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। ब्रिटिश काल के समय में साल 1948 तक भारत और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में म्यांमार चले गए थे। म्यांमार में रहे रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या करीब 10 लाख है। हालांकि 1948 में स्वतंत्र होने के बाद म्यांमार ने इनकी नागरिकता रद्द कर दी और म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्ध होने की वजह से उन्हें अपनाया नहीं गया। बता दें कि 1948 में आजादी के बाद कुछ लोगों को म्यांमार में नागरिकता दी गई थी, लेकिन 1962 में सैन्य विद्रोह के बाद प्रवासियों की मुश्किल बढ़ गई। उसके बाद साल 1982 में कानून में बदलाव किया गया, जिसके बाद म्यांमार ने 1986 में एक कानून बना दिया, जिसके अनुसार 1823 से पहले जो वहां रह रहे थे, उन्हीं को म्यांमार का मूल निवासी माना गया। रखाइन के मूल निवासियों, आदिवासियों को भी म्यांमार का नागरिक माना गया, रोहिंग्या भी इस तरह से वहां के मूल निवासी हैं। लेकिन रोहिंग्याओं को नागरिकता नहीं दी गई। रोहिंग्याओं से सभी अधिकार छीन लिए जाने के बाद म्यांमार में उनके साथ अत्याचार होने के ज्यादा मामले सामने आने लगे और उन पर कई पाबंधियां लगा दी गई। बढ़ते अत्याचार के बाद रोहिंग्या मुसलमानों ने बांग्लादेश और भारत की ओर पलायन करना शुरू कर दिया और कुछ लोगों ने अपने अधिकार पाने के लिए कई आतंकवादी गतिविधियों का सहारा भी लिया।
रोहिंग्या का पलायन?
1948 में म्यांमार की आजादी मिलने के बाद भी रोहिंग्या अपने देश में आबाद रहे। उनके पलायन की शुरुआत 1970 के दशक में हुई। रखाइन में रोहिंग्या के खिलाफ कार्रवाई हुई, जिसके बाद बीते 40 साल से ज्यादा वक़्त में 10 लाख रोहिंग्या पलायन कर गए। तब रोहिंग्या पड़ोसी बांग्लादेश, मलेशिया और थाईलैंड की तरफ भागे। 2012 से अब तक 1.68 लाख रोहिंग्या म्यांमार से भाग निकले हैं (ताज़ा पलायन छोड़कर)। 2012 – 2015 के बीच 1.2 लाख रोहिंग्या जान हथेली पर रखकर नावों से बंगाल की खाड़ी और अंडमान द्वीपसमूह पार कर मलेशिया पहुंचे। सिर्फ इस साल के 25 अगस्त से अब तक म्यांमार से 4.10 लाख रोहिंग्या पलायन को मजबूर हुए हैं। भगाने के दौरान नाफ नदी में 46 लोगों की मौत हो गई। अब तक पलायन के दौरान 1000 से भी ज्यादा जानें जा चुकी हैं।
भारत में कितने हैं रोहिंग्या?
भारत में 40 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान हैं। जिनमें 14 हज़ार रोहिंग्या UNHCR (United Nations High Commissioner for Refugees) के कार्ड धारक हैं। जो जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मौजूद हैं। चूंकि भारत ने शरणार्थियों को लेकर हुई संयुक्त राष्ट्र की 1951 शरणार्थी संधि और 1967 में लाए गए प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं इसलिए देश में कोई शरणार्थी कानून नहीं हैं। भारत सरकार ने उन्हें वापस भेजने की बात कही है। रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने के केंद्र सरकार के हालिया कदम का विरोध करते हुए दो रोहिंग्याओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने 40 हज़ार से अधिक रोहिंग्याओं को वापस भेजने का प्रस्ताव किया था। न्यायालय अब इस मामले में सुनवाई करेगा। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस संबंध में नोटिस जारी कर सरकार से जवाब माँगा है।