विजय लक्ष्मी पंडित का जीवन परिचय : विजय लक्ष्मी पंडित ( अंग्रेजी : Vijaya Lakshmi Pandit ) भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी की बहन थी। भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में विजय लक्ष्मी ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी। विजय लक्ष्मी पंडित एक प्रसिद्ध राजनयिक एवं राजनीतिज्ञ थी। विजय लक्ष्मी रूस एवं अमेरिका में भारतीय राजदूत के पद पर रही और वे संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की अध्यक्ष बनी थी। विजय लक्ष्मी ने न केवल राष्ट्रीय स्तर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर में भी अपनी महत्वपूर्ण निभाई और अपनी प्रतिभा से गौरव प्राप्त किया था। Vijaya Lakshmi Pandit essay in hindi, Vijaya Lakshmi Pandit biography in hindi.
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विजय लक्ष्मी जी का जन्म –
श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित जी का जन्म 18 अगस्त, 1900 में इलाहाबाद के आनंद भवन में हुआ था। उनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू व माता का नाम स्वरूप रानी देवी था। विजय लक्ष्मी के पिता मोतीलाल नेहरू एक धनी बैरिस्टर थे और वे कश्मीरी पंडितों के समुदायों से संबंधित थे। विजय लक्ष्मी जी के भाई का नाम जवाहर लाल नेहरू था जो एक महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत देश के प्रथम ”प्रधानमंत्री” थे। विजय लक्ष्मी पर उनके माता-पिता और भाई के राजनीतिक विचारों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा था क्योंकि उनका परिवार राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था।
विजय लक्ष्मी का आरंभिक जीवन एवं शिक्षा –
विजय लक्ष्मी जी का आरम्भिक जीवन एक राजकुमारी जैसा था। मुख्य रूप से उन्होंने अपनी शिक्षा घर से ही प्राप्त की थी। विजय लक्ष्मी शिक्षा के साथ-साथ राजनीतिक साहित्य, घुड़सवारी आदि में रूचि लिया करती थी। उनका विवाह वर्ष 1921 में काठियावाड़ के सुप्रसिद्ध वकील एवं इतिहासकार रणजीत सीताराम पंडित से हुआ था। विजय लक्ष्मी पंडित विवाह के बाद ‘स्वरूप कुमारी नेहरू’ से ‘श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित’ कहलाई।
विजय लक्ष्मी जी का राजनीतिक जीवन एवं स्वतंत्रता आंदोलनों में योगदान –
विजय लक्ष्मी पंडित जी का राजनीतिक जीवन अत्यधिक प्रभावशाली रहा उन्होंने देश के कई आंदोलनों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विजय लक्ष्मी गाँधी जी के राजनीतिक विचारों से बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने राजनीति में आने का निर्णय लिया। विजय लक्ष्मी जी ने आजादी के आंदोलनों में भाग लेना शुरू किया और वे हर आंदोलन में आगे रहती थी। विजय लक्ष्मी पंडित को आंदोलनों के चलते कई बार जेल भी हुई और जेल से रिहा होने के बाद वे फिर आंदोलनों में संलग्न हो जाती थी। उन्होंने कई समाज सुधारक कार्यों में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी।
विजय लक्ष्मी के पति रणजीत सीताराम पंडित को एक स्वतंत्रता आंदोलन के तहत जेल हो गई थी और इस घटना से वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के कुछ दिन पहले उनकी मृत्यु जेल में ही हो गई थी। इसके बाद तीन लड़कियों के पालन-पोषण का भार विजय लक्ष्मी पर आ गया था, राजकुमारी जैसा जीवन व्यतीत करने वाली विजय लक्ष्मी को पति के निधन के पश्चात कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। कई कठिनाइयों के चलते उन्होंने देश की स्थिति पर ध्यान दिया और रूढ़िवादी व नारीवादी जैसी समस्याओं और क्रूर क़ानूनी समस्याओं को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार का विरोध किया।
विजय लक्ष्मी पंडित ने महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन के दौरान सक्रिय रूप से राजनीति में प्रवेश किया था। स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने के पश्चात वे कैबिनेट मंत्री बनने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं। वर्ष 1937 में विजय लक्ष्मी संयुक्त प्रांत की प्रांतीय विधान सभा के लिए निर्वाचित हुई और विजय लक्ष्मी भारतीय स्थानीय स्वशासन और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री के पद पर नियुक्त हुई थी। विजय लक्ष्मी पंडित विश्व की पहली महिला थी जो वर्ष 1953 में संयुक्त राज्य महासभा की अध्यक्ष बनी थी।
विजय लक्ष्मी ने इंदिरा गाँधी के आपातकालीन घोषणा करने पर उनका विरोध किया उन्होंने इंदिरा गाँधी के विरुद्ध प्रचार करने के लिए वर्ष 1977 में सेवानिवृत्त होकर जनता पार्टी का 1977 के चुनाव जीतने में सहयोग किया। वर्ष 1979 में विजय लक्ष्मी जी को संयुक्त मानवाधिकार आयोग में भारतीय प्रतिनिधि नियुक्त किया गया था। संयुक्त मानवाधिकार में सेवानिवृत्त होने के पश्चात वे सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्त हुई थी।
विजय लक्ष्मी पंडित द्वारा लिखे गए प्रमुख लेख –
- द इवॉल्यूशन ऑफ़ इंडिया, वर्ष 1958
- The Scope of Happiness: A Personal Memoir, वर्ष 1979
“द स्कोप ऑफ हैप्पीनेस” विजय लक्ष्मी की आत्मकथा है जो उनके द्वारा स्वयं लिखी गए थी। विजय लक्ष्मी ने अपनी आत्मकथा में अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन से जुड़े अनेक किस्सों को साँझा किया है। इनकी आत्मकथा को विश्व की प्रसिद्ध व उत्कृष्ट आत्मकथाओं में गिना जा सकता है।
विजय लक्ष्मी ने अपनी आत्मकथा में कई प्रसिद्द व्यक्तियों जैसे- अपने भाई जवाहर लाल नेहरू, भतीजी इंदिरा गाँधी, महात्मा गाँधी आदि के राजनीतिक और निजी जीवन को साँझा किया है। विजय लक्ष्मी ने इनके महान व्यक्तियों के जीवन से जुड़े कई संस्मरण को विशिष्ट शैली में प्रस्तुत किया और आत्मकथा को इतिहास का धरोहर बना दिया है।
विजय लक्ष्मी पंडित की मृत्यु –
विजय लक्ष्मी जी का निधन 1 दिसंबर, 1990 में उत्तरी प्रांत में हो गया था। विजय लक्ष्मी जी अपने जीवन के आखरी दिनों में उनकी 2 पुत्रियों और मित्रों के साथ शांत जीवन व्यतीत कर रही थी। परन्तु उन्होंने सार्वजनिक जीवन पूरी तरह नहीं छोड़ा था वे उन दिनों कई महत्वपूर्ण समारोह का हिस्सा भी रही थी।
पढ़ें – नानाजी देशमुख।