सन्यासी विद्रोह (बंगाल)

सन्यासी विद्रोह (बंगाल)

सन्यासी विद्रोह (बंगाल) : सन्यासी विद्रोह बंगाल में हुआ था, बंगाल में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध सन्यासियों, किसानों और फकीरों द्वारा किया गया यह एक शक्तिशाली विद्रोह था। सन्यासी विद्रोह का मुख्य कारण बंगाल का 1770 ई० में पड़ा भयानक अकाल, सन्यासियों पर लगा प्रतिबंध तथा अंग्रेज़ी सरकार का भारतीयों के प्रति उदासीन रवैया था।

सन्यासी विद्रोह

  • सन्यासी विद्रोह, आन्दोलन 1770 में प्रारम्भ हुआ किन्तु 19वीं शताब्दी के दूसरे दशक 1820 तक चलता रहा।
  • बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा 1882 में उनके द्वारा रचित उपन्यास “आनन्दमठ” में सन्यासी विद्रोह का उल्लेख किया गया है।
  • सन्यासी विद्रोह का प्रमुख कारण हिन्दु, नागा और गिरी के सशस्त्र सन्यासियों का तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध लगाना था।
  • इस सन्यासी आंदोलन में किसानों, शिल्पकारों ने भी बढ़-चढ़कर सन्यासियों का साथ दिया।
  • इन सन्यासियों में अधिकतर आदि शंकराचार्य के अनुयायी थे।
  • ये सन्यासी कभी मराठों, राजपूतों, बंगाल और अवध के नवाबों की सेनाओं में सैनिक थे।
  • बंगाल में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के चलते वहां के जमींदार, कृषक, शिल्पकार सभी में रोष व्याप्त था, क्यूंकि अंग्रेजों की नीतियों के कारण सभी की स्थिति दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही थी।
  • उन्होंने बलपूर्वक धन वसूला तथा अंग्रेजी फैक्ट्रियों, कोठियों पर लूटपाट भी की थी।
  • सन्यासी विद्रोह को ख़त्म के लिए बंगाल के गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने कई कठोर कदम उठाये थे।
  • अंग्रेजों द्वारा 1820 ई० तक सन्यासी विद्रोह का दमन कर दिया गया।
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