हिमालय दिवस 9 सितम्बर :- हिमालय दिवस कब मनाया जाता है, हिमालय दिवस क्या है और हिमालय दिवस क्यों मनाया जाता है?, हिमालय दिवस हिंदी Himalaya Day in hindi। उत्तराखंड और हिमाचल सरकार हर 9 सितम्बर को हिमालय दिवस के रूप में मानती है।
Table of Contents
हिमालय दिवस – 9 सितम्बर
हिमालय का लगभग पच्चीस सौ किलोमीटर लम्बे और तीन सौ किलोमीटर चौड़ाई वाले क्षेत्र के स्वास्थ्य की चिन्ता में पिछले कुछ वर्षों से देश भर और खासकर उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में 9 सितम्बर को ‘हिमालय दिवस’ मनाया जा रहा है। उत्तराखण्ड सहित अन्य हिमालयी राज्यों की सरकारें भले ही पूरे साल जल-जंगल-ज़मीन को नुकसान पहुँचाकर और भू-वन-रेता-बजरी माफ़िया को संरक्षण देकर पारिस्थितिकी और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले काम करती रहें, लेकिन 9 सितम्बर को हिमालय दिवस मनाना नहीं भूलती हैं।
हिमालय दिवस की शुरुआत
हिमालय दिवस की शुरुआत 2010 में एक पहल के रूप में शुरू हुआ, इसकी शुरुआत नामांकित पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं के एक समूह ने शुरू किया जिसमें सुंदर लाल बहुगुणा, अनिल जोशी और राधा बेहान आदि थे, हिमालय दिवस के द्वारा हिमालय के लिए सतत विकास और पारिस्थितिक स्थिरता और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाये रखने के लिए किया गया था।
हिमालय दिवस की शुरुआत आधिकारिक तौर पर 9 सितंबर, 2014 उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत ने की थी।
हिमालय दिवस का उद्देश्य
हिमालय दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है की, एक ऐसा दिन हो जो हिमालय पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण का संदेश फैलाने के लिए पूरे राज्य में मनाया जाए।
हिमालय दिवस मनाने का कारण / जरुरत क्यों पड़ी हिमालय दिवस मनाने की ?
हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक जलश्रोत सूख रहे हैं, मौसम चक्र में निरंतर बदलाव हो रहा है, तमाम वनस्पतियां विलुप्त होने की कगार पर हैं, परिस्थितिकी में तेजी से परिवर्तन हो रहा है, भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं में भी इजाफा हो रहा है। यह सब इसका संकेत है कि हिमालय संकट में है। आज हालत यह है कि उत्तराखंड से लेकर अरुणाचल तक तकरीबन एक हजार से अधिक बांध हिमालय क्षेत्रों में बन रहे हैं। पर्यटन और उद्योग के नाम पर अनियोजित विकास हो रहा है। बड़े बांध तो चुनौती बने ही हैं, हिमालय की जैव विविधता पर भी खतरे का संकट मंडरा रहा है। इन बदलावों से सिर्फ प्रकृति ही नहीं, समाज भी प्रभावित हो रहा है।
नि:संदेह हिमालय खतरे में है। हिमालय को बचाया जाना भी जरूरी है। लेकिन अहम सवाल यह है कि यह बचेगा कैसे? कौन बचाएगा इसे ? इसकी के लिए 2010 में हिमालय बचाने के लिए कुछ पर्यावरणविदों ने एक पहल के तौर पर इसकी शुरुआत की।
हिमालय दिवस का प्रभाव
देखा जाये तो हिमालय दिवस के कई सरकारों ने कई सार्थक प्रयासों से लोगों को हिमालय के महत्व और उसको बचाने के लिए आम जनमानस को इस मुहिम को जोड़ा गया।
- इस हिमालय दिवस के अवसर पर कई मंत्रीमंडल और छात्रों को शपथ भी दिलाई गई जिसमें हिमालय को किसी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाने की बात कही गई।
- केन्द्र सरकार द्वारा हिमालय सम्बंधी अध्ययन के लिए उत्तराखण्ड में अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की है, जिससे कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की वजह से भारी नुकसान झेल रहे हिमालय को लेकर दीर्घकालिक तैयारी के तौर पर सरकार ने इस विश्वविद्यालय को शुरू करने की योजना बना ली है।
- पेड़ बचाने से लेकर ग्लेशियरों के पिघलने और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पर कई संगठनों ने आवाज़ उठाई। एक वृहद हिमालयी नीति बनाने की मांग भी हिमालय दिवस के मौके पर की गई।
हिमालय पर सरकार का रुख़
भारत सरकार या फिर राज्य सरकार एक ओर तो हिमालय बचाने और पलायन रोकने की बात करती है, वहीं दूसरी और राज्य में प्रस्तावित 556 बांधों के चलते लाखों लोगों को विस्थापित करने की योजना बना रही है। लाखों एकड़ कृषि भूमि जलमग्न हो जाएगी तथा प्राकृतिक जड़ी-बूटियां खनिज संपदा, वन संपदा नष्ट हो जाएंगे। जबकि बिजली उत्पादन से होने वाले लाभ से कहीं अधिक वन संपदा, कृषि भूमि, जड़ी-बूटियां अन्य खनिज पदार्थों के हमेशा के लिए लुप्त हो जाने का खतरा है। इसका जरा भी संज्ञान नहीं लिया गया है। सरकारों के यह दोहरा रुख हास्यास्पद है। एक तरफ तो वह हिमालय बचाने की बात करती हैं वही दूसरी और हिमालय को नष्ट करने का काम भी यही कर रही है।
इसे भी पढ़ें — उत्तराखंड राज्य स्थापना का इतिहास।
यहाँ उत्तराखण्ड का उदाहरण देकर पूरे हिमालय पर बातचीत की जा सकती है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखण्ड हिमालय से लेकर देश के पूर्वोत्तरी हिमालय के साथ जिस तरह की बदसलूकी की जा रही है, वह एक जैसी ही है। जितनी निर्लज्जता और निर्ममता के साथ उत्तराखण्ड हिमालय में जल-विद्युत् प्रोजेक्ट्स और बाँध बनाए जा रहे हैं या सड़कें खोदी जा रही हैं, उतनी ही निर्लज्जता और निर्ममता से ये काम जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, सिक्किम, अरुणाचल और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में हो रहे हैं। देश की तथाकथित मुख्यभूमि (मेनलैंड) की पानी और बिजली की निरन्तर बढ़ रही भूख को हिमालय स्वयं लहूलुहान होने के बावजूद शान्त नहीं कर पा रहा है।
वर्तमान में प्रस्तावित पंचेश्वर बांध परियोजना को ही ले जहाँ सरकार हिमालय के लिए इतनी चिंतित हैं, कि हिमालय बचाओ अभियान के लिए लोगों में जागरूकता फेलानें के लिए लाखों रूपये पानी की तरह बहा रही है, लेकिन दूसरी और कई पर्यावरणविदों और आम जनमानस की बातों को अनसुना कर के पंचेश्वर बांध को हरी झंडी दे रही है। सरकार का यह दोहरा मापदंड सभी के लिए चिंताजनक है।
निष्कर्ष
जब दुनिया के कुछ देशों में पर्वतों, नदियों और वनों के संरक्षण के नैसर्गिक अधिकार हो सकते हैं तो हिमालय पर्वत को ये अधिकार क्यों नहीं मिल सकते? उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाहर सबसे अधिक हिम का संरक्षण करने वाले हिमालय के साथ ऐसा व्यवहार क्यों? क्या हम नहीं चाहते कि इसके हजारों हिमनद और सैकड़ों नदियाँ करोड़ों लोगों के जीवन को सुनिश्चित करें?
आज स्थिति यह हो गई है कि हिमालय को लेकर हिमालयी देशों से अधिक अन्तरराष्ट्रीय संगठन चिन्तित हो गए हैं। भारत सरकार और देश के भीतर हिमालयी राज्यों की सरकारें हिमालय के सरोकारों और खासकर पारिस्थितिकी-पर्यावरण से जुड़ी चिन्ताओं को लेकर संजीदा नहीं हैं। जो व्यक्ति या संगठन इन चिन्ताओं की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, उन्हें गम्भीरता से नहीं लिया जाता और उनके ज्ञापनों का उत्तर तक नहीं दिया जाता है।
क्लिक करें Uttarakhand GK Notes पढ़ने के लिए |
Nice sarcasm
Thank you so much for such an amazing article on Himalayan Diwas.
It was so well-written.
This really helped me a lot in our YouTube video on Himalayan Diwas.
I would love if you check it once.
The name of the channel is “Aule Baule”. :)