हुमायूँ की असफलता के कारण

हुमायूँ की असफलता के कारण

हुमायूँ की असफलता के कारण : हुमायूँ एक मुगल शासक था जो बाबर के तीन पुत्रों (कामरान, अस्करी और हिन्दाल) में ज्येष्ठ पुत्र था। हुमायूँ का जन्म मार्च, 1508 में काबुल में हुआ था जो 30 दिसंबर, 1530 को 23 वर्ष की आयु में मुगल साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा। हुमायूँ मुगल शासकों में पहला ऐसा शासक था जिसने अपने साम्राज्य को अपने सभी भाइयों में विभाजित कर दिया था जिसमें उसने अपने पिता के आदेश के अनुसार कामरान को काबुल व कंधार, अस्करी को संभल तथा हिन्दाल को अलवर के क्षेत्रों की जागीर दे दी। हुमायूँ के द्वारा साम्राज्य का विभाजन ही उसकी असफलता का सबसे बड़ा कारण रहा था। हुमायूँ के बारे में अधिक जानकरी के लिए पढ़ें – हुमायूँ (1530-1556 ई०)

”हुमायूँ जीवन भर ठोकरें खाता रहा और अंत में ठोकर खाकर ही मर गया।” 

हुमायूँ के विषय में यह कथन कहा गया है क्योंकि हुमायूँ का सम्पूर्ण जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। वास्तव में हुमायूँ को यह सभी कठिनाइयां अपने पिता से ही विरासत के रूप में मिली थी और इन कठिनायों को उनके भाइयों और संबंधी मिर्जाओं ने और अधिक बढ़ा दिया था। इसके अलावा हुमायूँ की असफलता के कई कारण रहे जो निम्नलिखित है –

हुमायूँ की असफलता के कारण

एकता व पारिवारिक सहयोग का अभाव

बाबर की मृत्यु के बाद मुगल शासन की गद्दी के लिए कई संघर्ष शुरू हो गए थे। गद्दी के लिए इन संघर्षों का प्रमुख कारण उत्तराधिकारी के नियमों का अभाव था। उस समय उत्तराधिकारी के नियमों का स्पष्ट विवरण नहीं था जिससे कई समस्याएं उत्पन्न होने लगी और हुमायूँ के सिंहासन पर बैठने के बाद उनके भाइयों में गद्दी हड़पने के लिए कई षड्यंत्र किए गए थे और वे किसी भी समय एक दूसरे से लड़ने के लिए तत्पर रहते थे। अतः गद्दी के लिए जीवन भर एक-दूसरे से लड़ने और भाइयों में एकता की बहुत अधिक कमी होने के कारण हुमायूँ अपने साम्राज्य में असफल हो गया।

हुमायूँ की व्यक्तिगत दुर्लभताएँ

हुमायूँ में सैन्य संगठन की योग्यताकूटनीतिक दक्षता एवं राजनीतिक पटुता, इन सभी गुणों का अभाव था। अपने जीवन में हुमायूँ एक शक्तिशाली शासक बनने में व्यक्तिगत दुर्लभताओं के कारण असफल रहा क्योंकि उसमें चारित्रिक बल एवं संकल्प शक्ति का अभाव था। इतिहासकारों ने हुमायूँ के विषय में यह कहा है कि ”हुमायूँ स्वयं अपना ही शत्रु था।” हुमायूँ हरम में जाकर लीन हो जाता व अफीमचियों के साथ समय व्यतीत करता इस प्रकार उसने अपने अमूल्य समय को नष्ट कर दिया और यही वजह उसकी असफलता का कारण रही।

साम्राज्य का विभाजन

हुमायूँ की असफलता का सबसे बड़ा कारण उसके द्वारा अपने साम्राज्य का विभाजन किया जाना था। हुमायूँ ने अपने भाइयों के बीच साम्राज्य का विभाजन करके सबसे बड़ी गलती कर दी थी क्योंकि इस कार्य से भाइयों में एकता ख़त्म हो गई और उन्होंने साम्राज्य को एक न समझ कर अलग-अलग समझा इसका परिणाम यह रहा की हुमायूँ के भाइयों ने उसके कार्यों में उसका साथ देने के बदले उसके रास्ते में कई बाधाएं उत्पन्न कर दी और वह असफल हो गया।

कुशल राज्य प्रणाली का अभाव

हुमायूँ ने अपनी शासन प्रणाली पर विशेष ध्यान नहीं दिया था। राजकोष पहले से ही खाली होने के बावजूद भी हुमायूँ ने चुनार से लौटने के पश्चात आगरा एवं दिल्ली में रंगरेलियां मनाना आरंभ कर दिया। उसने राज्य की परवाह किए बिना ही इतना धन व्यय कर दिया कि उसका बुरा असर संपूर्ण साम्राज्य पर पड़ा। चारों ओर से शत्रुओं से घिरे रहने के बावजूद भी वह अपने राज्य के प्रति सचेत नहीं हुआ और आराम की जिंदगी जीने में ही समय व्यर्थ करता रहा।

कालिंजर पर आक्रमण की असफलता

हुमायूँ ने अपने राज्यरोहण के कुछ माह बाद ही कालिंजर पर आक्रमण कर दिया जो उसकी सबसे बड़ी गलती रही थी। आक्रमण के दौरान उसने कालिंजर के किले में कई महीनों तक घेरा डाल दिया था और अंत में हुमायूँ को कालिंजर के शासक के साथ समझौता करना पड़ा। समझौते की वजह से उसे जन-धन दोनों की हानि हुई जिसके कारण उसका साम्राज्य बहुत कमजोर पड़ गया जो उसकी असफलता का कारण था।

अफगानों से संबंधित समस्या

बाबर द्वारा अफगानों का दमन कर दिया गया था परन्तु फिर भी अफगानों का प्रभाव कम नहीं हुआ था और वे हुमायूँ के शासन पर उसके शत्रु बन गए। इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी अफगान शक्ति संगठन करके भारत में पुनः अफगान राज्य की स्थापना करना चाहता था। हुमायूँ की असफलता तब आरम्भ हुई जब शेर खां ने हुमायूँ को चौसा तथा कन्नौज के युद्ध में पराजित करके उसे भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था।

पढ़ें दिल्ली सल्तनत – लोदी वंश (1451 -1526 ई.)