इंटरनेट प्रोटोकॉल्स - SMTP, FTP, HTTP और TCP क्या होते हैं

इंटरनेट प्रोटोकॉल्स – SMTP, FTP, HTTP और TCP क्या होते हैं ?

इंटरनेट प्रोटोकॉल्स – SMTP, FTP, HTTP और TCP क्या होते हैं ? : इंटरनेट प्रोटोकॉल क्या है (What is internet protocol in hindi), इंटरनेट प्रोटोकॉल्स क्या होते हैं, SMTP, FTP, HTTP, IP और TCP क्या होते हैं आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

इंटरनेट प्रोटोकॉल क्या है ? (What is internet protocol in hindi)

प्रोटोकॉल एक प्रकार का Set-of-Rules होता है जो यह निर्धारित करता है की कंप्यूटर नेटवर्क पर डाटा कैसे ट्रांसमिट और रिसीव होगा।  प्रोटोकॉल के बिना इंटरनेट पर एक दूसरे से संवाद और डाटा को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर तक ट्रांसफर करना संभव नहीं होता है।

इंटरनेट में हमारे द्वारा भेजी गई कोई भी फाइल या मेल इंटरनेट प्रोटोकॉल के माध्यम से ही कार्य करते है। जिस प्रकार हम किसी कार्य को करने से पहले किसी नियम का पालन करते हैं ठीक उसी प्रकार प्रोटोकॉल डाटा कम्युनिकेशन करने के लिए नियमों या दिशानिर्देशों का एक समूह है जिसमें इंटरनेट नेटवर्क पर डाटा के सिस्टमैटिक और सेफ ट्रांसफर के लिए कुछ प्रोटोकॉल्स बनाये गए हैं जिन्हें नेटवर्क प्रोटोकॉल कहा जाता है।

प्रोटोकॉल कई प्रकार के होते हैं जिनके कार्य भी अलग-अलग होते हैं इसमें से कुछ प्रोटोकॉल कम्युनिकेशन स्टैंडर्ड को और कुछ ट्रांसमिशन प्रोसेस पर पूरी जानकारी प्राप्त करने में सहायक होते है –

प्रोटोकॉल के प्रकार (Types of Protocol in hindi)

एसएमटीपी SMTP/POP3 प्रोटोकॉल

SMTP का पूरा नाम Simple Mail Transfer Protocol’ और POP3 का पूरा नाम ‘Post Office Protocol Version 3’ है। SMTP और POP3 प्रोटोकॉल्स एक ही प्रकार के कार्य को करने के लिए उपयोग किये जाते हैं। SMTP प्रोटोकॉल का उपयोग सभी मेल्स को सेंड (Send) करने के लिए किया जाता है और POP3 का उपयोग सभी मेल्स को रिसीव (Receive) करने के लिए किया जाता है। SMTP कम्युनिकेशन को सही कंप्यूटर और ईमेल इनबॉक्स में भेजने के लिए मेल ट्रांसफर एजेंट (MTA) के साथ मिलकर कार्य करता है। SMTP यह निर्धारित करता है की हमारे द्वारा भेजे गए ईमेल को एमटीए से दूसरे कम्प्यूटरों तक कैसे भेजा जायगा। एसएमटीपी एक एप्लीकेशन लेयर प्रोटोकॉल है जो इंटरनेट पर ईमेल के प्रसारण और वितरण का कार्य करने में सक्षम है।

FTP प्रोटोकॉल

FTP का पूरा नाम ‘File Transfer Protocol’ है यह स्टैण्डर्ड इंटरनेट प्रोटोकॉल है इनका उपयोग इंटरनेट कंप्यूटर के बीच फाइल्स को ट्रांसमिट करने के लिए किया जाता है। एफटीपी को सबसे पहले अभय भूषण जो एमआईटी के विद्यार्थी थे उनके द्वारा वर्ष 1971 में डेवेलोप किया गया था। इंटरनेट में जितने भी वेबपेज होते हैं वे सभी एफटीपी सर्वर पर अपलोड होते हैं एफटीपी डाटा ट्रांसफर को इनेबल करने पर TCP/IP प्रोटोकॉल का उपयोग करता है। हमारे द्वारा जितनी भी फाइल डाउनलोड या अपलोड की जाती है वे एफटीपी के माध्यम से की जाती हैं। नेटवर्क पर जितनी भी फाइलों को ट्रांसफर और कॉपी किया जाता है वे सभी कार्य एफटीपी द्वारा संभव होता है। एफटीपी का उपयोग बड़े-बड़े फाइलों को भी सर्वर पर अपलोड, डाउनलोड, रीनेम, कॉपी, मूव और डिलीट करने के लिए किया जाता है।

HTTP या HTTPs प्रोटोकॉल

HTTP का पूरा नाम ‘Hyper text Transfer Protocol’ है जो www’ यानि वर्ल्ड वाइड वेब में वेब पेजेज को ट्रांसफर करने के लिए बनाये गए नियमों का एक बहुत प्रसिद्ध समूह है। एचटीटीपी हमारे द्वारा की गयी request पर वेब ब्राउज़र में वेबपेज को लाने का कार्य करता है इसके बिना वेब और क्लाइंट सर्वर प्रोटोकॉल पर किसी भी तरह एक्सचेंज नहीं किया जा सकता है। हम ब्राउज़र पर किसी वेबसाइट को HTTP प्रोटोकॉल की मदद से ही एक्सेस करते हैं। एचटीटीपी एक रिक्वेस्ट रेस्पोंस प्रोटोकॉल है जो की क्लाइंट और सर्वर के बीच कम्युनिकेशन का माध्यम बनता है जब किसी वेबसाइट के एड्रेस के पहले http लिखा जाता है तो वेब ब्राउज़र और सर्वर के बीच किसी भी प्रकार का डेटा जैसे – टेक्स्ट, वीडियो फाइल, ऑडियो, इमेज फाइल आदि ये सभी ट्रांसफर होने पर इन्हे कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है जो HTTP Protocol द्वारा निर्धारित होते हैं। HTTP में ही जब ssl की सिक्योर लेयर ऐड हो जाती है तो इसे HTTPs “Hyper Text Transfer Protocol Secure” कहा जाता है। HTTPS सामान्य HTTP अनुरोधों (requests) और प्रतिक्रियाओं (responses) को एन्क्रिप्ट करने के लिए TLS (SSL) का उपयोग करता है।

TCP प्रोटोकॉल

TCP प्रोटोकॉल का पूरा नाम ‘Transmission Control Protocol’ है जो एक फंडामेंटल प्रोटोकॉल है। TCP का कार्य इंटरनेट पर डाटा ट्रांसफर करना होता है। टीसीपी डेटा को छोटे-छोटे पैकेट्स में विभाजित करके नेटवर्क के जरिये डेस्टिनेशन तक सेंड करता है। टीसीपी एक रेलियाबल प्रोटोकॉल है जो डाटा ट्रांसफर करते समय अनेक मैकेनिज्म का प्रयोग करता है। टीसीपी प्रोटोकॉल में डाटा डिलीवरी की पूरी संभावना होती है जो किसी भी तरह डेटा डिलीवरी को पूरा करने में सहायक होता है।

IP प्रोटोकॉल

IP का पूरा नाम Internet Protocol’ है यह टीसीपी के साथ मिलकर कार्य करता है। आईपी का उपयोग एक एड्रेसिंग के लिए किया जाता है तथा आईपी के माध्यम से फाइनल डेस्टिनेशन तक डेटा को पहुंचाया जाता है। हम जिस भी डिवाइस जैसे- कंप्यूटर, मोबाइल फोन, लैपटॉप आदि से इंटरनेट पर अपना कार्य करते है उन सभी डिवाइसों का अपना-अपना इंटरनेट एड्रेस है जिसे आईपी एड्रेस (IP address) भी कहते हैं। आईपी एड्रेस इंटरनेट कनेक्टेड हर एक डिवाइस के लिए एक आइडेंटिफिकेशन नंबर की तरह कार्य करता है और इन्ही के माध्यम से इंटरनेट पर डिवाइस एक दूसरे से डेटा का आदान-प्रदान कर पाते हैं। उदाहरण के लिए – यदि आप किसी को कुछ भी मैसेज सेंड करते हैं तो डिवाइस का हजारो लोगों में से सही व्यक्ति तक उस मैसेज को पहुंचाने का कार्य आईपी प्रोटोकॉल द्वारा किया जाता है।

IP Address के दो संस्करण हैं –

  • IPv4 Address संस्करण 4
  • IPv6 Address संस्करण 6
IPv4 क्या है ?

IPv4 (Internet Protocol Version 4) इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्ष 1970 में विकसित किया गया था जो इंटरनेट प्रोटोकॉल का चौथा संस्करण है। वर्तमान में इस प्रोटोकॉल का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। IPv4 32-बिट फॉर्मेट में आईपी एड्रेस को विभाजित करता है जो कुछ 123.123.123.123 इस प्रकार का दिखाई देता है जिसमे प्रत्येक तीन संख्या समूह में 0-255 के बीच से संख्या दी जा सकती है। IPv4 में कुल 4, 29, 49, 67, 296 IP एड्रेस बनाए जा सकते है जो इंसानों की कुल संख्या के लगभग आधे के बराबर होंगे। छोटी डिवाइसों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होने के कारण IPv4 में उपलब्ध IP एड्रेस भविष्य के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि एक व्यक्ति औसत दो या दो से अधिक डिवाइसों का प्रयोग कर रहा है। इतने सारे डिवाइस को IP एड्रेस असाइन करने की क्षमता नहीं रखता है जिसके लिए एक नए प्रोटोकॉल IPv6 विकसित किया गया है।

IPv6 क्या है ?

IPv6 (Internet Protocol Version 6) को IETF (The Internet Engineering Task Force) द्वारा वर्ष 1998 में विकसित किया गया था, जो IPv4 का एक अपग्रेट वर्जन में था। 90 के दशक में इंटरनेट का वाणिज्यीकरण होने से इंटरनेट और इंटरनेट डिवाइसों के उपयोग में बहुत तेजी से वृद्धि हुई जिसके कारण एक व्यापक सिस्टम की जरूरत हुई और इसी जरूरत को पूरा करने के लिए IPv6 को विकसित किया गया। IPv6 128-बिट फॉर्मेट में IP एड्रेस का आवंटन करता है और इसके सैद्धांतिक रूप में 2128 IP एड्रेस बनाए जा सकते हैं जो लगभग 3.4×1038 के बराबर संख्या है ये संख्याएँ IPv4 आईपी एड्रेस की तुलना में बहुत अधिक है। IPv6 में आईपी एड्रेस को 8 ग्रुप्स में बनाया जाता है जो हेक्साडेसीमल विधि में चार के ग्रुपों में प्रदर्शित किये जा सकते है इसमें प्रत्येक ग्रुप को कॉलन (:) द्वारा अलग किया जाता है। IPv6 के माध्यम से बड़े और जटिल आईपी एड्रेस का निर्माण करना संभव होता है इसीलिए इसे IPNG (Internet Protocol Next Generation) यानि इसे भविष्य का इंटरनेट प्रोटोकॉल माना जाता है।

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