कृषक आंदोलन क्या है - प्रकार, कारण एवं परिणाम

कृषक आंदोलन क्या है – प्रकार, कारण एवं परिणाम

कृषक आंदोलन क्या है, किसान आंदोलन क्या है, कृषक आंदोलन के प्रकार, भारत में कृषक आंदोलन के मुख्य कारण क्या है, भारत में कृषक आंदोलन के परिणाम, स्वतंत्र भारत का पहला कृषक आंदोलन किसे माना जाता है आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

कृषक आंदोलन क्या है

कृषि नीतियों में सुधार करने की भावना से किए गए आंदोलन को कृषक आंदोलन (Peasant movement) कहते हैं। विश्व भर में अलग-अलग समय पर किसानों एवं कृषि श्रमिकों द्वारा कृषि नीतियों में परिवर्तन के लिए आंदोलन किए जाते रहे हैं। भारत में भी कृषि आंदोलन कई दशकों से चला आ रहा है। कृषक आंदोलन किसानों द्वारा किए गए संघर्षों को दर्शाता है जिसके अंतर्गत किसान समय-समय पर अपनी मांगों को लेकर प्रत्यक्ष रूप से लड़ते रहे हैं। सन 1900 के पूर्व में पड़ने वाले अकाल के फलस्वरुप भारतीय किसानों एवं कृषि-श्रमिकों ने कृषि आंदोलन की शुरूआत की थी। समय-समय पर किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण अक्सर किसानों द्वारा कृषक आंदोलन किए जाते रहे हैं। दरअसल अंग्रेजी शासन में और आजादी के बाद बनी सरकारों की कृषि के प्रति उदासीनता के कारण किसानों की आमदनी कम होने के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति दिन-प्रतिदिन कमजोर होती रही है जिसके कारण किसानों में आत्महत्या की घटनाओं में बढ़ोत्तरी आयी है।

कृषक आंदोलन के प्रकार / प्रमुख कृषि आन्दोलन

कृषक आंदोलन के प्रकार या समय-समय पर हुए कुछ प्रमुख कृषि या कृषक आन्दोलन निम्नलिखित हैं –

  • नील विद्रोह (1859-62)

नील विद्रोह बंगाल के किसानों द्वारा सन 1859 में किया गया था। यूरोपीय बागान मालिकों द्वारा किसानों को नील की खेती करने के लिए बाध्य किया जाता था एवं उन्हें खाद्य फसलों को उगाने से रोका जाता था। किसान नील की खेती से असंतुष्ट थे, नील की खेती से बहुत कम मुनाफा होता था जो किसानों की दृष्टि से लाभदायक नहीं था। ऐसी स्थिति में किसानों ने बंगाल में नील की खेती को रोकने के लिए नील विद्रोह शुरू किया था। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – नील आंदोलन

  • पबना आंदोलन या पाबना विद्रोह (1870-80)

सन 1870 में किसानों ने पूर्वी बंगाल के जमींदारों के विरुद्ध आंदोलन जारी किया था जिसे पबना आंदोलन या पाबना विद्रोह के नाम से जाना जाता है। पूर्वी बंगाल के बड़े जमींदार गरीब किसानों से लगान एवं भूमि कर को जबरदस्ती वसूलते थे, जिसके विरोध में किसानों ने यह आंदोलन शुरू किया। इसके अलावा सन 1859 में अधिनियम X के तहत किसानों को अपनी ही भूमि पर अधिभोग के अधिकार से भी रोका जाने लगा। इसके बाद मई 1873 में पूर्वी बंगाल के पबना जिले में कृषि लीग का गठन किया गया। सन 1885 में सरकार ने बंगाल काश्तकारी अधिनियम (Bengal Tenancy Act) के तहत अधिभोग अधिकारों में वृद्धि की तब इस आंदोलन को रोका गया।

  • दक्कन विद्रोह (1875)

दक्कन विद्रोह सन 1875 के मई एवं जून के माह में कृषि संकट को खत्म करने के उद्देश्य से आरंभ किया गया था। दक्कन विद्रोह मुख्य रूप से मराठा, मारवाड़ी एवं गुजराती साहूकारों के खिलाफ किया गया था। दक्कन विद्रोह रैयतों का साहूकारों के खिलाफ एक सामाजिक बहिष्कार था। दरअसल 1867 में भू-राजस्व को 50% तक बढ़ाया गया था जिससे किसानों में विद्रोह का माहौल बन गया था। दक्कन विद्रोह के परिणाम स्वरूप सन 1879 में दक्कन कृषक राहत अधिनियम (Deccan Agriculturists Relief Act) लागू किया गया। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – दक्कन विद्रोह और दक्कन दंगा कमीशन कब नियुक्त किया गया

  • चम्पारण सत्याग्रह (1917)

चंपारण सत्याग्रह सन 1917 में बिहार के चंपारण जिले में महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू किया गया था। यूरोपीय बागान मालिकों द्वारा किसानों पर उत्पीड़न किया जाता था एवं उन्हें भूमि के कम से कम 3/20वें हिस्से में नील की खेती करने के लिए मजबूर किया जाता था। सन 1917 में महात्मा गांधी ने एक समिति की नियुक्ति की जिसके परिणाम स्वरूप चंपारण कृषि अधिनियम(Champaran Agrarian Act) को सन 1918 में लागू किया गया। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – चम्पारण आंदोलन

  • खेड़ा सत्याग्रह (1918)

खेड़ा सत्याग्रह को सन 1918 में मौजूदा अंग्रेज सरकार के विरुद्ध शुरू किया गया था। वर्ष 1918 में गुजरात के खेड़ा जिला में किसानों की फसलें बर्बाद हो गई जिसके कारण किसानों ने सरकार से भू-राजस्व माफ करने का आग्रह किया। परंतु अंग्रेज सरकार ने भू-राजस्व माफ करने से साफ इनकार कर दिया जिसके कारण महात्मा गांधी एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किसानों का समर्थन किया एवं राजस्व का भुगतान करने से रोक दिया। अंततः जून 1918 में सरकार ने किसानों की मांगों को अनुमति प्रदान की एवं भू-राजस्व माफ कर दिया।

  • मोपला विद्रोह (1921)

मोपला विद्रोह या मालाबार विद्रोह सन 1921 में मुस्लिम काश्तकारों द्वारा मालाबार क्षेत्र में शुरू किया गया था। मुस्लिम काश्तकारों की शिकायत थी कि उनसे उच्च किराया, नवीनीकरण शुल्क एवं अन्य दमनकारी करों की वसूली की जाती है। इसके अलावा मुस्लिम काश्तकार अधिकांश हिंदू जमींदार के बीच खुद को असुरक्षित महसूस करते थे। वर्ष 1921 में मोपला आंदोलन का विलय खिलाफत आंदोलन (Khilafat Agitation) में हो गया था। मोपला विद्रोह या मालाबार विद्रोह को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं कई इतिहासकार इस विद्रोह को मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओं के प्रति सांप्रदायिक विद्रोह मानते हैं, तो कई इसे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन मानते हैं और वहीं कुछ इतिहासकार इसे हिंदू जमींदारों की ज्यादतियों के खिलाफ एक किसान आंदोलन मानते हैं। कई इतिहासकार मोपला विद्रोह या मालाबार विद्रोह को एक भीषण हिंदू नरसंहार मानते हैं, जिसमें तकरीबन 10 हज़ार लोगों की जान गई थी।

  • बारदोली सत्याग्रह (1928)

बारदोली सत्याग्रह जून 1928 में गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में किया गया था। अंग्रेज सरकार ने कृषि श्रमिकों के लगान को 22% तक बढ़ा दिया था जिसके कारण बारदोली सत्याग्रह को शुरू किया गया था। बारदोली सत्याग्रह में ही वल्लभ भाई पटेल को एक महिला द्वारा ‘सरदार’ की उपाधि दी गई थी जिसके बाद उन्हें सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से जाना जाने लगा।

भारत में कृषक आंदोलन के मुख्य कारण क्या हैं

भारत में कृषक आंदोलन के मुख्य कारण है किसानों पर होने वाले अत्याचार, अवैध करारोपण, अवैतनिक श्रम, उच्च लगान, मनमानी बेदखली एवं भू-राजस्व। भारत में कृषक की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन खराब हो रही है जिसके कारण कृषि श्रमिक कर्ज में डूबते जा रहे हैं। इसी कारण भारत में कृषक आंदोलन तेजी से बढ़ रहा है एवं किसानों की आत्महत्या की घटनाएं भी तेज हो रही हैं। इसके अलावा आजादी के बाद से अब तक भारतीय सरकार की नीतियां साहूकारों के पक्ष में किसानों का शोषण करती हैं जिसके कारण किसानों में कर्ज एवं गरीबी में वृद्धि हुई है।

भारत में कृषक आंदोलन के परिणाम

  • कृषि आंदोलन के कारण किसानों के बीच एकता एवं गैर भेदभाव की भावना खत्म हुई जिसके फलस्वरूप सभी वर्गों को एकजुट करने में सहायता मिली। कृषक आंदोलन करने से किसान अपनी मांगों को लेकर सीधे तौर पर सरकार के समक्ष अपनी मांग रख सके जिससे कृषि श्रमिकों को समय-समय पर लाभ मिलता रहा।
  • कृषक आंदोलन से भारतीय किसानों में कृषि के प्रति जागरूकता पैदा हुई जिससे किसानों को कृषि कानूनों के अधिकारों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई।
  • कृषक आंदोलन से किसानों को अपने ऊपर होने वाले शोषण एवं उत्पीड़न के खिलाफ संगठित होने की शक्ति मिली।
  • कृषक आंदोलन से किसानों की मांगों को सुनने के लिए देश में विभिन्न स्थानों में किसान सभा का गठन हुआ जिससे किसानों को एकजुट होने में सहायता मिली।
  • स्वतंत्रता के बाद भारत में कृषक सुधारों के लिए एक अधिनियम तैयार किया गया जिससे किसानों को सरकार की नीतियों का लाभ मिल सके।

स्वतंत्र भारत का पहला कृषक आंदोलन किसे माना जाता है

भारत की स्वतंत्रता से पहले कई कृषक आंदोलन हुए हैं जिसमें से कुछ इतिहासकार नील आंदोलन तो कुछ पाबना आंदोलन को पहला कृषक आंदोलन मानते हैं। स्वतंत्र भारत में भी किसानों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आया है जिस कारण समय-समय पर किसानों द्वारा कई आंदोलन किये गए हैं। स्वतंत्र भारत का पहला कृषक आंदोलन किस आंदोलन को कहा जाये यह कहना मुश्किल है क्योंकि समय-समय पर भारत के कई इलाकों में सैकड़ों कृषि आंदोलन हुए हैं जिनमें ज्यादातर आंदोलन मौसम की मार के कारण ख़राब हुई फसलों के हर्जाने को प्राप्त करने के लिए हुए हैं।

1997 में मध्य प्रदेश में फसल के नुकसान के कारण किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। जिसके मुआवजे के लिए किसानों द्वारा तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ कृषि आंदोलन किया गया। 12 जनवरी 1998 को, मध्य प्रदेश पुलिस ने मुलताई में विरोध कर रहे किसानों पर गोली चलाई जिसमें 19 किसानों की जान चली गई और 150 से अधिक घायल हुए। ऐसी कई घटनाएं समय-समय पर देश के कई राज्यों और हिस्सों में होती रही हैं।

सितंबर 2020 में हुए कृषि आंदोलन को स्वतंत्र भारत का पहला तो नहीं लेकिन एक बड़ा कृषक आंदोलन जरूर माना जा सकता है। यह आंदोलन भारत सरकार के तीन कृषि विधेयकों के विरुद्ध में शुरू किया गया था। इस कृषि विधेयक में किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम एवं किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम शामिल किये गए थे। जिसे कई जानकार किसानों के हित में तो कई विरोध में मान रहे थे। इस कृषि आंदोलन की वजह से पंजाब के किसान दिल्ली की सड़कों को घेर कर बैठे थे जिसके कारण हजारों करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हो रहा था। साथ ही दिन प्रति दिन अराजकता भी फेल रही थी। इसलिए 1 दिसंबर 2021 को, कानूनों को औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया गया।