क्या होता है तीन तलाक

क्या होता है तीन तलाक ?

तीन तलाक 

तीन तलाक के तहत मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को बोलकर या लिखकर तलाक दे सकता है और पत्नी का वहां होना जरुरी भी नहीं होता है, यहां तक कि पुरुष को तलाक के लिए कोई वजह भी देनी नहीं पड़ती। आजकल के इस सामाजिक मीडिया (Social Media) के जमाने में तो तीन तलाक facebook और  WhatsApp पर भी दिया जाता है। बहुत सारे मुस्लिम बहुमत होने वाले देशों में तीन तलाक का रिवाज खंडित किया है, और उन्होंने तलाक के कायदे वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से बदल दिए हैं। यहां तक कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी तीन तलाक की प्रथा खत्म कर दी गई है। भारत को भी समय के हिसाब से बदलना पड़ेगा, 21वी सदी में हम लोग महिलाओं को पीछे नहीं छोड़ सकते।

चर्चा में क्यों ?

उत्तराखंड के काशीपुर की सायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर ट्रिपल तलाक (Triple Talaaq) और निकाह हलाला 1 के प्रचलन के संवैधानिकता को चुनौती दी थी। उन्होनें याचिका में मुस्लिम समाज में प्रचलित बहुविवाह प्रथा को भी गलत बता उसे खत्म करने की मांग की थी। सायरा ने तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया था। 2001 में सायरा की शादी हुई। शादी के 15 साल बाद उनके पति ने 2015 में तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोलकर रिश्ता खत्म कर दिया। इसके बाद शायरा ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपनी याचिका में उन्‍होंने तलाक-ए बिदत, बहुविवाह और निकाह हलाला को गैरकानूनी घोषित करने की मांग की।

पहले तो सुप्रीमकोर्ट में तलाक से सम्बन्ध में दो प्रमुख प्रश्रों पर ध्यान केंद्रित किया-

  1. क्या तीन तलाक इस्लाम का मौलिक हिस्सा है अर्थात क्या इसके बिना इस्लाम का स्वरूप बिगड़ जाएगा और
  2. क्या पुरुषों को प्राप्त तीन तलाक का अधिकार मुस्लिम महिलाओं के समानता और सम्मान के अधिकार के विरुद्ध है?

इन प्रश्नों के आधार पर सुप्रीमकोर्ट ने ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ और ‘सरकार’ के पक्षों को सुना

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का दृश्य

मुस्लिम महिलाओं की दलीलों का केन्द्र सरकार ने भी समर्थन किया परन्तु मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे धार्मिक मसला बताते हुए इस पर सुनवाई न करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने 11 मई से 18 मई, 2017 तक सुनवाई पूरी होने तक ‘तीन तलाक’ के पक्ष और विपक्ष में 6 दिनों तक सभी पक्षों की दलीलें सुनीं।

‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ व ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ जैसे संगठनों ने इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जोड़ते हुए कहा ‘‘मुस्लिमों की हालत एक चिडिय़ा जैसी है जिसे ‘गोल्डन ईगल’ यानी बहुसंख्यक दबोचना चाहते हैं। आशा है चिडिय़ा को घोंसले तक पहुंचाने के लिए अदालत न्याय करेगी।’’

केंद्र सरकार का जवाब

इसके जवाब में केंद्र सरकार ने कहा था कि ‘‘यहां तो टकराव मुसलमान महिलाओं तथा पुरुषों के बीच ही है।’’

‘कोर्ट के मददगार’  के रूप में वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने बताया कि ‘‘तलाक-ए-बिद्दत’ की व्यवस्था मूल इस्लाम में नहीं है तथा सऊदी अरब, ईरान, ईराक, लीबिया, मिस्र, सूडान, बंगलादेश और पाकिस्तान सहित 21 मुस्लिम देश इसे रद्द कर चुके हैं। एक साथ तीन तलाक कहना खुदा की नजर में गुनाह है, लेकिन पर्सनल लॉ में जायज है।’’

तीन तलाक सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

इस मुद्दे को सुलझाने के लिए न्यायपालिका को बीच में आना पड़ा। उच्चतम न्यायालय ने इस मसले पर संज्ञान 16 अक्टूबर 2015 में लिया और बहुविवाह जैसी प्रथाओं पर विचार करने की जरूरत को समझा। तीन तलाक के मुद्दे पर फैसला सुनाते वक्त तीन तलाक सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के तीन जजों ने इसे असंवैधानिक बताया है। जस्टिस यू.यू. ललित, जस्टिस फली नरीमन, जस्टिस जोसेफ कुरियन ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताते हुए कहा-इससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है। इसी बीच जस्टिस जेएस खेहर ने तीन तलाक धार्मिक प्रक्रिया और भावनाओं से जुड़ा मामला बताया और कहा कि इसलिए इसे एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता।

जस्टिस खेहर ने इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण पक्ष संसद और केंद्र सरकार को बताया, और कहा की उन्हें ही इसपर क़ानून बनाना चाहिए, कानून बनाकर स्पष्ट दिशा निर्देश तय करने चाहिए। चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने इसके लिए केंद्र सरकार को छह महीने का समय दिया। और छह महीने तक के लिए कोर्ट अनुच्छेद 142 के अंतर्गत विशेष शक्तियों का प्रयोग से तीन तलाक पर तत्काल रोक लगाती है। इस अवधि में देश में कहीं भी तीन तलाक मान्य नहीं होगा।

आगे का रास्ता

अब सरकार जल्द से जल्द इस संबंध में कानून बनाएगी वहीं इस फैसले को देश में समान आचार संहिता लागू करने के केन्द्र सरकार के प्रयासों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। भविष्य में घटनाक्रम जो भी स्वरूप धारण करें, अभी तो मुसलमान बहनों को एक ‘अनुचित परम्परा’ से मुक्ति का जश्र मनाने का अवसर सुप्रीम कोर्ट ने उपलब्ध करा दिया है।

 

1. हलाला :- औरत की दूसरी शादी को ‘निकाह हलाला’ कहते हैं। शरिया के मुताबिक अगर एक पुरुष ने औरत को तलाक दे दिया है तो वो उसी औरत से दोबारा तब तक शादी नहीं कर सकता जब तक वह औरत किसी दूसरे पुरुष से शादी कर तलाक न ले ले। लेकिन यह जानना जरूरी है कि यह इत्तिफ़ाक (coincidence)से हो तो जायज़ है जान बूझ कर या योजना बना कर किसी और पुरुष से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले पति से निकाह जायज़ हो सके यह साजिश (Conspiracy)नाजायज़  (unallowable)है और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसी साजिश करना गलत बताया है।

*जानिए हलाला का नया रूप है ‘हुल्ला’

ऐसा बहुत कम बार होता है जब पहला पति फिर से अपनी बीवी से शादी करना चाहे ये किसी बड़े इत्तेफाक के चलते होता है। पर अक्सर होता ये है कि तीन तलाक की आसानी के चलते अक्सर बिना सोचे-समझे पुरुष तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोल देते हैं। बाद में जब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है तो वे अपना संबंध फिर से उसी औरत से जोडऩा चाहते हैं। ऐसे में ये परिस्थिति अक्सर देखने को मिल जाती है पर फिर से संबंध जोडऩे से पहले निकाह हलाला जरूरी होता है। लेकिन इस्लाम के हिसाब से जानबूझ कर या योजना बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शौहर से निकाह जायज हो सके यह साजिश नाजायज है। पर इसका इंतजाम भी है क्योंकि इसका एक पहलू ये भी है कि अगर मौलवी हलाला मान ले तो समझे हलाला हो गया। इसलिए मौलवी को मिलाकर किसी ऐसे इंसान को तय कर लिया जाता है जो निकाह के साथ ही औरत को तलाक दे देगा। इस प्रक्रिया को ही हुल्ला कहते हैं। यानी हलाला होने की पूरी प्रक्रिया ‘हुल्ला’ कहलाती है।

क्या है खुला

अगर सिर्फ पत्नी तलाक चाहे तो उसे शौहर से तलाक मांगना होगा। अगर शौहर तलाक नहीं चाहता होगा तो वो अपनी बीवी को समझाने की कोशिश करेगा और अगर वह  फिर भी न माने तब उसका पति उसे एक तलाक दे देगा। लेकिन अगर पत्नी के तलाक मांगने के बावजूद उसका पति उसे तलाक नहीं देता तो बीवी के लिए इस्लाम में यह आसानी रखी गई है कि वो शहर के काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शौहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे। इस्लाम ने काज़ी को यह हक़ दे रखा है कि वो उनका रिश्ता ख़त्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनकी तलाक हो जाएगी, कानून में इसे खुला कहा जाता है। 

असल में यही तलाक का सही तरीका है लेकिन अफ़सोस की बात है कि हमारे यहां इस तरीके की खिलाफ लोग चले जाते हैं और बिना सोचे समझे तीन बार तलाक -तलाक -तलाक बोल कर लोग तलाक दे देते हैं। इस्लाम के खिलाफ जा कर बिना सोचे-समझे वे खुद भी परेशानी उठाते हैं और इस्लाम की भी बदनामी करते हैं।

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