खिलाफत आंदोलन, खिलाफत आंदोलन के मुख्य नेता और आंदोलन के परिणाम

खिलाफत आंदोलन, खिलाफत आंदोलन के मुख्य नेता और आंदोलन के परिणाम

खिलाफत आंदोलन, खिलाफत आंदोलन के मुख्य नेता और आंदोलन के परिणाम : खिलाफत आंदोलन, खिलाफत आंदोलन के मुख्य नेता, आंदोलन की समय सारणी और आंदोलन के परिणाम क्या रहे इसकी सम्पूर्ण जानकारी यहाँ दी गयी है।

खिलाफत आंदोलन की पृष्ठभूमि ?

खिलाफत आंदोलन की शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात हुई। प्रथम विश्व युद्ध(1914-1918) में तुर्की ने मित्र राष्ट्रों के विरूद्ध जर्मनी और ऑस्ट्रिया का साथ दिया था, जिसमें मित्र राष्ट्रों की जीत हुई और तुर्की को हार का सामना करना पड़ा। युद्ध के उपरान्त ब्रिटेन ने तुर्की के प्रति कठोर नीति अपनाते हुए कई निर्णय लिए, जिसमें खलीफा का पद समाप्त करना एवं तुर्की का विभाजन भी शामिल था। ख़लीफ़ा अरबी भाषा में ऐसे शासक को कहा जाता है जो किसी इस्लामी राज्य या अन्य शरिया (इस्लामी क़ानून) से चलने वाली राजकीय व्यवस्था का शासक हो।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हिन्दुस्तान के मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ये वादा किया था कि वो तुर्की के प्रति उदारतापूर्वक व्यवहार करेंगे परन्तु युद्ध उपरान्त अंग्रेज अपने इस वादे को भूल गए और खलीफा जिसे सारे विश्व के मुसलमान अपना धार्मिक गुरू मानते थे, का पद ही समाप्त कर दिया।

खिलाफत आंदोलन

ये आंदोलन सन् 1919 से 1924 तक चला था। इस आंदोलन का सीधे तौर पर भारत से कोई सम्बन्ध नहीं था। खिलाफत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की खलीफा के पद को पुनः स्थापित करना तथा वहाँ के धार्मिक क्षेत्रों से प्रतिबंधों को हटाना था।

सन् 1919 में अली बंधुओं द्वारा अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन किया गया। जिसने इस आंदोलन की शुरुआत की। ब्रिटिश सरकार पर इस आंदोलन का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और वर्ष 1920 में सेव्रेस की संधि से तुर्की का विभाजन कर दिया गया।

खिलाफत आंदोलन के मुख्य नेता

खिलाफत आंदोलन की शुरुआत अली बन्धुओं (शोकत अली, मुहम्मद अली) द्वारा की गयी। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने “अल हिलाल” और मोहम्मद अली ने “कामरेड” समाचार पत्रों से खिलाफत आंदोलन का खूब प्रचार प्रसार किया।

आगे चल कर महात्मा गाँधी जी भी इस आंदोलन से जुड़ गए और इस आंदोलन की लोकप्रियता और भी बड़ गयी। अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का पहला सम्मेलन दिल्ली में 24 नवंबर 1919 को हुआ इसकी अध्यक्षता महात्मा गाँधी द्वारा की गई।

महात्मा गाँधी के इस आंदोलन से जुड़ते ही कांग्रेस के बड़े नेता भी इस आंदोलन से जुड़ गये। गाँधी जी का इस आंदोलन से जुड़ने का मुख्य कारण यह था कि वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मुस्लिम सहयोग को बढ़ाना चाहते थे। अगस्त 1920 में गाँधी जी ने इसे असहयोग आंदोलन से जोड़ दिया। इसी कारण इन दोनो आंदोलन को जुड़वा आंदोलन भी कहा जाता है।

खिलाफत आंदोलन समय सारणी

दिनांक घटना
1919 अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन किया गया ।
17 अक्टूबर 1919 अखिल भारतीय खिलाफत दिवस मनाया गया ।
24 नवंबर 1919 महात्मा गाँधी ने दिल्ली में खिलाफत कमेटी के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता की । 
फरवरी 1920  खिलाफत समिति का एक दल तत्कालीन वायसराय लार्ड चेमस्फोर्ड से मिलने गया । 
मई 1920 सेब्रिज़ की संधि से तुर्की का विभाजन कर दिया गया ।
जून 1920 खिलाफत समिति का इलाहबाद अधिवेशन । यही पर सरकारी स्कूल और न्यायालय का बहिष्कार शुरू किया गया । इसी अधिवेशन के बाद से इस आंदोलन का नेतृत्व पूर्णत्या माहात्मा गाँधी द्वारा किया गया । 
1 अगस्त 1920 बाल गंगाधर तिलक जी की मृत्यु ।
31 अगस्त 1920 गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन की शुरूआत ।
वर्ष 1924 मुस्तफा कमाल पाशा की सरकार ने तुर्की में खलीफा के पद को पूरी तरह समाप्त कर दिया । 

आंदोलन के परिणाम

वर्ष 1921 में अली बन्धुओं (शोकत अली, मुहम्मद अली) द्वारा दिए गए एक भाषण जिसमें उन्होंने मुसलमानों को इस्लाम का हवाला देते हुए सेना छोड़ने के लिए कहा था, जिसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। इसी के बाद से ये आंदोलन की गति धीमी हो गयी और वर्ष 1922 आते-आते ये आंदोलन काफी मंद हो चुका था।

वर्ष 1924 में मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की में एक जनतांत्रिक सरकार का गठन हुआ तथा खलीफा के पद को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया, और इसी के साथ खिलाफत आंदोलन भी समाप्त हो गया।

भले ही ये आंदोलन पूरी तरह से सफल न रहा हो फिर भी इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं जोकि निम्नवत हैं-

  1. 31 अगस्त 1920 को महात्मा गाँधी ने मुस्लिम नेताओं को असहयोग आंदोलन से जोड़ दिया
  2. हिन्दु – मुस्लिम एकता को बल मिला

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8 Comments

  1. खिलाफत का सब से काला अध्याय था मालाबार में हिंदुओ की मुसलमानों द्वारा क्रूर सामुहिक कतलें जिसमें बूढ़ों और बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया। हिंदू स्त्रियों पर क्रूर सामुहिक बलातकार मां के सामने बेटी पर और बेटियों के सामने मां पर बलात्कार किए गए। कई औरतों के परिवार जनों की औरत के सामने कतलें कर के रोती हुई बेबस औरतों पे सामुहिक बलातकार किए गए। उस समय के वाइसरॉय को अभागी हिंदू औरतों ने पत्र लिखा था। की हम रोएं तो किस पर? हमारे शरीर पर रोएं या हमारे कतल किए गए परिवार जनों पर? मंदिर तोड़े गए। हिंदुओ की धन संपत्ति सरे आम लूटी गई। और फिर भी दुष्ट गांधी ने मुसलमानों का ही पक्ष लिया! और दंगो के लिए हिंदुओ को ही दोषी ठहराया! इस बात को वामपंथी इतिहासकारों ने कांग्रेस शासन के पांच पांच मुसलमान शिक्षा मंत्रियों की मदद से इतिहास से गायब कर दिया! काश इस लेख में इस बात का उल्लेख होता।!

  2. खिलाफत आंदोलन को असहयोग आंदोलन से मिला ना ही सबसे बड़ी मूर्खता थी गांधी ने हिंदुओं का विश्वास जीतकर उनके साथ विश्वासघात और नरसंहार करवाया 1921 में आंदोलन की आड़ में 1947 में बंटवारे के आड में नरसंहार सिखों का नरसंहार उसके बाद कश्मीरी पंडितों का नरसंहार

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