जय प्रकाश नारायण

जय प्रकाश नारायण जीवन परिचय : जय प्रकाश नारायण ( अंग्रेजी में : Jayaprakash Narayan ) जी एक महान नेता, स्वतंत्रता सेनानी एवं समाज सुधारक थे। ”लोकनायक” कहे जाने वाले जय प्रकाश नारायण जी का सम्पूर्ण जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से गुजरा था। भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1998 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न’ से सम्मानित किया था। इसके अलावा वर्ष 1965 में उन्हें समाज सेवा के लिए ‘मैग्सस पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। Jai Prakash Narayan Biography in hindi, Jayaprakash Narayan essay in hindi.

जय प्रकाश नारायण का आरंभिक जीवन एवं शिक्षा

जय प्रकाश नारायण जी का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 में बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम देवकी बाबू और माता का नाम फूल रानी देवी था। जय प्रकाश नारायण अपने माता-पिता की चौथी संतान थे।

नौ वर्ष की उम्र में जय प्रकाश नारायण प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त के लिए अपना घर छोड़कर चले गए, और उन्होंने पटना के कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया। स्कूल में उन्होंने सरस्वती, प्रभा, और प्रताप जैसी पत्रिकाएं पड़ी, इसके अलावा उन्हें स्कूल में भारत-भारती, मैथिलीशरण गुप्त, भारतेन्दु हरिश्चंद्र और ‘भगवत गीता’ जैसी कविताएं पढ़ने का भी मौका मिला।

18 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह वर्ष 1920 में प्रभावती देवी से हो गया था। अपनी पढ़ाई में व्यस्त होने के कारण जय प्रकाश प्रभावती को अपने साथ न रख पाए और प्रभावती गाँधी आश्रम में कस्तूरबा गाँधी के साथ रही।

जय प्रकाश नारायण मौलाना अबुल के भाषणों से अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने जलियांवाला हत्या कांड के विरोध में पटना कॉलेज छोड़कर ‘बिहार विद्यापीठ’ में दाखिला लिया जहाँ उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा पूरी की।

बिहार विद्यापीठ से शिक्षा पूरी होने के पश्चात वे वर्ष 1922 में आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए और उन्होंने वहां बर्कले विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए उन्होंने अमेरिका में रेस्टोरेंट, खेतों कंपनियों आदि में काम करना शुरू किया। उन्होंने श्रमिक वर्ग की कठिनाइयों को जाना और वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए।

जय प्रकाश नारायण ने समाजशास्त्र विषय से ऍम.ए. की डिग्री हासिल की और पी.एच.डी. करने का विचार किया परन्तु उनकी माता जी का स्वास्थ्य खराब होने के कारण वे पी.एच.डी. नहीं कर पाए और उन्हें भारत वापस आना पड़ा।

जय प्रकाश नारायण का भारत वापसी व राजनीतिक जीवन

वर्ष 1929 में जय प्रकाश नारायण भारत लौटे तब उनका परिचय जवाहर लाल नेहरु और गाँधी जी से हुआ था। देश में चल रही ब्रिटिश शासन अपराधों और कुशासन को देख वे भी भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।

जय प्रकाश नारायण ने वर्ष 1932 में जब महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू समेत अन्य भारतीयों को जेल जाते देखा तब उन्होंने भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में आंदोलनों का नेतृत्व किया और देश को न्याय व आजादी के लिए लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। अंततः उन्हें भी सितंबर, 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया।

वर्ष 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया और सरकार को किराया व राजस्व रोकने के लिए अभियान चलाया था। उन्होंने टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करके कंपनी से यह उम्मीद की, कि ब्रिटिश सरकार को इस्पात न पहुंचाया जाए इस दौरान उनको गिरफ्तार कर लिया गया और 9 महीने के लिए जेल भेज दिया गया।

जयप्रकाश नारायण आजादी के बाद

जय प्रकाश नारायण ने वर्ष 1948 में कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया और गांधीवादी दल के साथ मिलकर ”समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी” की स्थापना की थी।

वर्ष 1960 में पुनः सक्रिय होने के बाद जय प्रकाश नारायण जी ने वर्ष 1974 में किसान बिहार आंदोलन के दौरान तत्कालीन राज्य सरकार से इस्तीफा मांग लिया।

जयप्रकाश नारायण इंदिरा गाँधी की शासन नीतियों के विरोधी थे उन्होंने वर्ष 1975 में जब इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल की घोषणा की गई तो उन्होंने इसका विरोध किया जिसके अंतर्गत जय प्रकाश नारायण सहित 600 से अधिक विरोधियों को बंदी बनाया गया था और प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

उसके पश्चात देश में हो रहे भ्रष्टाचार के विरोध में जय प्रकाश नारायण जी ने और उनके समर्थकों ने सरकार के खिलाफ एक आंदोलन चलाया और उन्होंने उस आंदोलन को हिंसा से दूर ले जाकर अहिंसक बनाया। इस आंदोलन को दूसरी शताब्दी का आंदोलन कहा गया था। उसके बाद वर्ष 1977 में जय प्रकाश और उनके प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर विरोध पक्ष पर इंदिरा गाँधी को हरा दिया था।

जय प्रकाश नारायण पर यह आरोप भी लगाया गया है की उन्होंने वर्ष 1974 के आंदोलन के माध्यम से आरएसएस और जनसंघ को मुख्यधारा की राजनीति में वैधता दिलवाई थी और आज अगर देश में हिन्दूवाद का खतरा है तो उसका कारण 1974 का आंदोलन और 1977 की सरकार में उनके नेताओं की भागीदारी है।

जय प्रकाश नारायण पीयूसीएल जैसे मानवाधिकार संगठन के संस्थापक थे। उन्होंने नगा विद्रोहियों को मुख्यधारा में लाने और कश्मीर की समस्याओं को सुलझाने का हमेशा से ही प्रयत्न किया था। जय प्रकाश नारायण स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व, और मानव अधिकारों के लिए जीवन पर्यन्त लड़ते रहे।

जय प्रकाश नारायण का निधन

जय प्रकाश की धर्मपत्नी का स्वर्गवास 13 अगस्त, 1973 में हो जाने के कारण उनको बहुत गहरा सदमा पहुंचा लेकिन इसके बाद भी वे देश की सेवा में संलग्न रहे। जय प्रकाश नारायण दिल की बीमारी और मधुमेह की बीमारी से ग्रसित हो गए और 8 अक्टूबर, 1970 पटना, बिहार में उनका निधन हो गया। उनकी समाज सेवा और समाज सुधार कार्यों ने भारत की राजनीति और देशवासियों को बहुत प्रभावित और प्रेरित किया। वह एक महान समाज सुधारक के रूप में भारत देश को हमेशा याद रहेंगे।

 पढ़ें – गोपाल कृष्ण गोखले

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