निर्धनता से क्या तात्पर्य है, निर्धनता के प्रकार

निर्धनता से क्या तात्पर्य है, निर्धनता के प्रकार

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निर्धनता (Poverty) की परिभाषा

निर्धनता वह स्थिति या स्तर है जहां पर व्यक्ति की आय इतनी कम हो जाती है कि वह व्यक्ति अपनी आधारभूत जरूरतों को भी पूरा करने में सक्षम नहीं होता है। वर्तमान समय में निर्धनता के आकलन के लिए उपभोग और व्यय विधि दोनों का प्रयोग सरकारों द्वारा किया जाता है। भारत में निर्धनता एक बड़ी समस्या है।

निर्धनता के प्रकार (Types of Poverty)

निर्धनता को मुख्यतः दो प्रकार से वर्गीकृत कर समझा जा सकता है-

  1. निरपेक्ष निर्धनता (Absolute Poverty)
  2. सापेक्ष निर्धनता (Relative Poverty)

1. निरपेक्ष निर्धनता (Absolute Poverty)

निरपेक्ष निर्धनता वह स्तर है जहां व्यक्ति अपनी आधारभूत जरूरतें (रोटी, कपड़ा और मकान) पूरा करने में सक्षम न हो। इसके अंतर्गत एक निश्चित मापदंड तय किया जाता है और इस पूर्व निर्धारित मापदंड़ से नीचे के स्तर के लोगों को गरीब माना जाता है। एक तरह से यहां निर्धनता रेखा को तय करा जाता है। निरपेक्ष निर्धनता के मापन की विधि को हैड काउंट विधि भी कहा जाता है। भारत में निर्धनता रेखा तय करने की 2 विधियां है –

  1. कैलोरी अन्तर्ग्रहण
  2. न्यूनतम उपभोग व्यय
i. कैलोरी अन्तर्ग्रहण

भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण पोषण के आधार पर किया गया और पोषण का आधार कैलोरी को बनाया गया। एक व्यक्ति को प्रतिदिन कितने कैलोरी भोजन उपलब्ध होना चाहिए। इसे तय करके निर्धनता रेखा निर्धारित की गयी। इस कार्य के लिए वर्ष 1989 में लकड़ावाला समिति का गठन किया गया।

लकड़ावाला समिति – कैलोरी अन्तर्ग्रहण विधि को सबसे पहले लकड़ावाला समिति ने तय किया था।

गांव में – 2400 कैलोरी/दिन तथा शहर में – 2100 कैलोरी/दिन से कम यदि किसी को प्राप्त होता है तो वह गरीब माना जाता था।

इस कैलोरी के आधार पर पैसों का आकलन किया जाता था। चूंकि अलग-अलग राज्य में कीमतें अलग-अलग होती थी अतः प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश के लिए अलग अलग 32 (उस समय 25 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश) निर्धनता रेखा निर्धारित की गयी। 1993 में अपनी पहली रिपोर्ट दी जिसमें भारत में कुल 36% लोग निर्धनता रेखा के नीचे पाये गये।

वर्ष 1997 में 9 वीं पंचवर्षीय योजना में लकड़ावाला समिति की सिफारिशों को अपनाया गया तथा इस पंचवर्षीय योजना के अंत में(2002-2003) पुनः इस समिति के आधार पर निर्धनता का आकलन किया गया जिसके आधार पर भारत में निर्धनता का आकड़ा घट कर 26% पाया गया जोकि वास्तविकता से परे था। इसके बाद इस समिति के निर्धनता आकलन की विधि की आलोचना शुरू हो गयी।

ii. न्यूनतम उपभोग व्यय

एक व्यक्ति के प्रतिदिन न्यूनतम व्यय की जरूरत के आधार पर निर्धनता रेखा का निर्धारण किया जाता है। लकड़ावाला समिति के कैलोरी अंतर्ग्रहण विधि की आलोचनाओं के बाद निर्धनता रेखा के निर्धारण के लिए सुरेश तेंदुलकर समिति का गठन वर्ष 2003 में किया गया।

सुरेश तेंदुलकर समिति- वर्ष 2003 के बाद नये सिरे से निर्धनता मापने का मापदंड लेकर आये जिसका नाम न्यूनतम उपभोग व्यय था। इसमें न्यूनतम उपभोग की टोकरी की संकल्पना को आधार दिया गया।

न्यूनतम उपभोग की टोकरी- इसमें अनाज, दालें, सब्जियां, दूध, तेल, चीनी आदि वो खाद्य वस्तुएं शामिल थी जो जरूरतमंद कैलोरी प्रदान करती हैं । इसमें 6 बुनियादी आवश्यकताओं को रखा गया। वर्ष 2011-2012 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

ग्रामीण क्षेत्र में – 27 रू0/दिन, शहरी क्षेत्र में – 33 रू-/दिन से कम व्यय करने वाले व्यक्ति को गरीब कहा गया।

सुरेश तेंदुलकर के अनुसार वर्ष 2004-2005 में निर्धनता 37.2% थी जो वर्ष 2011-2012 में घटकर 21.9% रह गई। सुरेश तेंदुलकर के अनुसार सबसे ज्यादा गरीबों की संख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 5.5 करोड़, बिहार में 4.5 करोड़ तथा मध्य प्रदेश में 3 करोड़ थे। लेकिन निर्धनता का सबसे ज्यादा प्रतिशत वाला राज्य झारखण्ड था जहां 47.9% जनसंख्या गरीब थी।

रंगराजन समिति – वर्ष 2012 में योजना आयोग द्वारा न्यूनतम उपभोग व्यय विधी की सिफारिशों को जांचने के लिए बनाया गया था। इस समिति ने तेंदुलकर समिति के तरीके को सही बताते हुए उसमें कुछ सुधार किए-

गांव में – 32 रू0/दिन एवं शहर में – 47 रू0/दिन को निर्धनता रेखा का आधार माना गया।

2. सापेक्ष निर्धनता (Relative Poverty)

सापेक्ष निर्धनता का आकलन एक राष्ट्र का अन्य राष्ट्रों के साथ आकलन करने से है। संयुक्त राष्ट्र(UN) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति प्रति दिन $1.90 से कम पर अपना जीवन यापन कर रहा है तो वह गरीबी रेखा से नीचे माना जाएगा। इसी आधार पर संयुक्त राष्ट्र प्रति वर्ष राष्ट्रों की निर्धनता सूची प्रकाशित करता है।

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