बिजोलिया किसान आंदोलन

बिजोलिया किसान आंदोलन (Bijolia Peasant Movement in Hindi) : बिजोलिया किसान आंदोलन राजस्थान से शुरू होकर पुरे देश में फैलने वाला एक संगठित किसान आंदोलन था। बिजोलिया किसान आंदोलन इतिहास का सबसे लंबा चला अहिंसक किसान आंदोलन था जोकि करीब 44 वर्षो तक चला।

बिजोलिया किसान आंदोलन Diagram

बिजोलिया किसान आंदोलन

भारत के इतिहास का सबसे लंबा अहिंसक किसान आदोलन के रूप में प्रख्यात बिजोलिया किसान आंदोलन मेवाड़ क्षेत्र के बिजोलिया (प्राचीन नाम विजयावल्ली) में हुआ था। बिजोलिया ठिकाना उपरमाल की जागीर के अन्तर्गत आता था। उपरमाल की इस जागीर को राणा सांगा द्वारा अशोक परमार नाम के व्यक्ति को खाण्वा के युद्ध में साथ देने के लिए उपहार उपहार स्वरूप दिया गया था।

मूल रूप से यहां पर सर्वाधिक किसान धाकड़ जाति के थे। ठिकानेदार द्वारा किसानों पर विभिन्न प्रकार के 84 दमनकारी (लाग, बाग, बेगार, लाटा, कूंता, चवरी, तलवार बंधाई) कर लगे हुये थे। 1894 ई0 में राव कृष्ण सिंह नया ठिकानेदार बना। इन करो से प्रताणित किसानों को नए ठिकानेदार से करों में राहत करने की उम्मीद थी परन्तु 1897 ई0 तक करों में कोई भी कमी नहीं की गयी। अतः इसी वर्ष 1897 ई0 से ही इस आंदोलन की नींव पड़ी।

बिजोलिया किसान आंदोलन के चरण

इस आंदोलन को तीन चरणों में नेतृत्व के आधार पर बाँट कर समझा जा सकता है –

1. प्रथम चरण (1897-1916) – नेतृत्व- साधु सीतारम दास

वर्ष 1897 में इसी जागीर के एक गांव गिरधरपुर में एक पंचायत बुलाकर साधु सीतारामदास की अध्यक्षता में यह निर्णय लिया गया कि वर्तमान ठिकानेदार रावकृष्ण सिंह की मेवाड़ के महाराणा से शिकायत की जायेगी। इस कार्य हेतु ठाकरी पटेल एवं नानजी पटेल को नियुक्त किया गया। इस शिकायत पर मेवाड़ महाराणा ने अपने जांच अधिकारी हामिदहुसैन को नियुक्त किया परन्तु जांच उपरान्त कोई भी कार्यवाही नहीं हुई।

जांच उपरान्त कोई भी कार्यवाही नहीं होने से बिजोलिया ठिकाने के ठिकानेदार रावकृष्ण सिंह के हौसले और बुलंद हो गये एवं उसने प्रतिशोधवश शिकायत करने वाले ठाकरी पटेल एवं नानजी पटेल को मेवाड़ से निष्काशित करा दिया। साथ ही वर्ष 1903 ई0 में चंवरी नामक एक नया कर लागू कर दिया जिसके अन्तर्गत लड़की की शादी हेतु 5 रू0 का नकद कर का प्रावधान था।

वर्ष 1906 ई0 में रावकृष्ण सिंह के निःसंतान निधन हो जाने के बाद, रावपृथ्वी सिंह इसका उत्तराधिकारी बना। ठिकानेदार बनते ही उसने तलवार बंधाई कर (उत्तराधिकार कर) लागू कर दिया। जिसका किसानों द्वारा पुरजोर विरोध किया गया।

2. द्वितीय चरण (1916-1923) – नेतृत्व- विजय सिंह पथिक

वर्ष 1916 ई0 में साधुसीताराम दास के आग्रह पर विजय सिंह पथिक इस आंदोलन से जुडें और इस आंदोलन का नेतृत्व संभाला। इनका मूल नाम भूपसिंह था एवं यह बुलंदशहर (उ0प्र0) के निवासी थे। 1917 ई0 में इनके द्वारा सावन-अमावस्या के दिन उपरामल पंचबोर्ड (13 सदस्य) का गठन किया गया। इस पंचबोर्ड के सरपंच के पद पर मन्ना पेटल को नियुक्त किया गया।

1918 ई0 में विजय सिंह बम्बई में गाँधी जी से मिले तथा इस आंदोलन से अवगत कराया। गाँधी जी इनसे बहुत प्रभावित हुए एवं इन्हे राष्ट्रीय पथिक की उपाधी दी। गाँधी जी ने अपने महासचिव महादेव देशाई को इस आंदोलन की जांच हेतु भेजा।

यहीं 1919 ई0 में विजय सिंह द्वारा वर्धा महाराष्ट्र से राजस्थान केसरी नामक एक पत्र निकाला गया, साथ ही इसी वर्ष यही पर राजस्थान सेवक संघ की स्थापना भी इनके द्वारा की गयी। आगे चल कर कानपुर से छपने वाले समाचार पत्र के माध्यम से बिजोलिया किसान आंदोलन को पुरे भारत वर्ष में फैला दिया गया।

गांधी जी द्वारा इस आंदोलन में रूचि लेने के कारण ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1918-19 में एक और जांच आयोग का गठन बिन्दुलाला भट्टाचार्य की अध्यक्षता में किया। इसी आयोग द्वारा जांच के उपरान्त करों में कुछ कमी की गयी।

10 सितम्बर 1923 में विजय सिंह पथिक को बेंगू नामक एक अन्य किसान आंदोलन से जुडने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया।

3. तृतीय चरण (1927-1941) – नेतृत्व- माणिक्य लाल वर्मा

1927 ई0 से माणिक्य लाल वर्मा ने बिजोलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व संभाला। इसमें हरिभाऊ उपाध्याय एवं जमनालाल बजाज ने इनका साथ दिया। 1941 ई0 में माणिक्य लाल वर्मा एवं मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी0 विजय राघवाचार्य के मध्य एक समझौता हुआ जिसके अन्तर्गत किसानों की सभी मांगे मान ली गयी तथा 44 वर्ष से चल रहे इस आंदोलन का अंत हुआ।

बिजोलिया आंदोलन अपने अहिंसक स्वरूप के कारण अन्य किसान आंदोलनों से अलग था। माणिक्य लाल वर्मा का “पंछिड़ा” गीत जिसने किसानों में जोश भर दिया इसके कुछ प्रमुख बिन्दु रहें। इस आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया, जिनमें से अंजना देवी चौधरी, नारायण देवी वर्मा व रमा देवी प्रमुख थीं। अंततः किसानों की जीत के साथ 44 वर्षो तक चले भारत के इस किसान आंदोलन का अंत हुआ।

 

बिजोलिया किसान आंदोलन से अक्सर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर –

प्रश्न:- बिजोलिया किसान आंदोलन कब हुआ था ?

उत्तर:- बिजोलिया किसान आंदोलन 1897 ई० में मेवाड़ क्षेत्र के बिजोलिया में शुरू हुआ था। बिजोलिया किसान आंदोलन 44 वर्षों तक चला था जिसके तीन चरण थे प्रथम चरण (1897-1916) तक, द्वितीय चरण (1916-1923) तक, तृतीय एवं अंतिम चरण (1927-1941) तक।

प्रश्न:- बिजोलिया किसान आंदोलन के नेतृत्वकर्ता कौन थे / बिजोलिया किसान आंदोलन के जनक कौन थे

उत्तर:- बिजोलिया किसान आंदोलन के नेतृत्वकर्ता या बिजोलिया किसान आंदोलन के जनक साधु सीतारम दास थे। इन्होने बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रथम चरण (1897-1916) का नेतृत्व किया। इनके बाद द्वितीय चरण (1916-1923) का नेतृत्व विजय सिंह पथिक द्वारा किया गया। इनके बाद इस आंदोलन के तृतीय एवं अंतिम चरण (1927-1941) का नेतृत्व माणिक्य लाल वर्मा द्वारा किया गया।

प्रश्न:- बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रमुख कारण क्या थे ?

उत्तर:- बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रमुख कारण किसानों पर लगाए गए विभिन्न प्रकार के 84 दमनकारी कर जैसे – लाग, बाग, बेगार, लाटा, कूंता, चवरी, तलवार बंधाई आदि थे। जिनके बोझ तले दबे किसानों की हालत दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही थी।

प्रश्न:- बिजोलिया किसान आंदोलन का परिणाम क्या निकला ?

उत्तर:- बिजोलिया किसान आंदोलन के परिणाम स्वरूप 1941 ई0 को किसानों की सभी मांगों को मान लिया गया और 44 वर्ष तक चला अहिंसक बिजोलिया किसान आंदोलन समझौते के साथ समाप्त हो गया।

 

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