मृदा संरक्षण क्यों आवश्यक है कोई चार कारण लिखिए

मृदा संरक्षण क्यों आवश्यक है कोई चार कारण लिखिए

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मृदा संरक्षण (Soil Conservation) क्या है

मृदा अपरदन की मात्रा को कम करने के लिए किए जाने वाले प्रभावशाली कार्य मृदा संरक्षण कहलाता है। इस क्रिया के अंतर्गत विविध प्रकार से मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के प्रयास किए जाते हैं एवं मृदा को एक स्थान पर स्थिर करने की कोशिश की जाती है। मृदा संरक्षण का मुख्य उद्देश्य मिट्टी के उत्पादन की क्षमता में वृद्धि करना एवं मिट्टी के कटाव को रोकना होता है। मृदा एक बहुत ही महत्वपूर्ण संसाधन है जो विभिन्न प्रकार से जीव-जंतुओं का पालन-पोषण करती है। बीते वर्षों में मृदा अपरदन की प्रक्रिया ने प्रकृति को कई प्रकार से नुकसान पहुंचाया है जिसके परिणाम स्वरूप विश्व भर में बाढ़ आने की समस्या में वृद्धि हुई है।

भारत में पायी जाने वाली मृदा के प्रकार

  • काली मिट्टी
  • लाल मिट्टी
  • जलोढ़ मिट्टी
  • पर्वतीय मिट्टी
  • लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी
  • लैटेराइट मिट्टी
  • पीट एवं दलदली मिट्टी

मृदा संरक्षण की आवश्यकता

पृथ्वी पर जीवन के लिए मिट्टी बहुत ही उपयोगी होती है। मिट्टी का निर्माण खनिज पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ एवं वायु के माध्यम से होता है जिसमें पेड़-पौधों का विकास होता है। जिस प्रकार पृथ्वी पर जीवन के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मिट्टी की भी आवश्यकता होती है। मिट्टी में सैकड़ों जीव-जंतु पनपते हैं जो पृथ्वी के वातावरण को शुद्ध रखने के लिए उत्तरदायी होते हैं। इतना ही नहीं मृदा को विभिन्न प्रकार के जीवित कारकों का स्रोत भी माना जाता है।

मृदा संरक्षण के चार महत्वपूर्ण कारण

वृक्षारोपण

वृक्षारोपण मूल रूप से मिट्टी को संरक्षित करने एवं पेड़-पौधों की संख्या को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग स्थानों पर किया जाता है। वृक्षारोपण करने से भू-निर्माण एवं भूमि में सुधार आता है। मृदा संरक्षण के लिए वृक्षारोपण को अत्यंत आवश्यक माना जाता है। वृक्षारोपण करने से पेड़ की जड़ें मिट्टी को स्थिर बनाए रखती हैं जिससे मिट्टी के अपरदन में कमी आती है। पेड़-पौधों के नष्ट हो जाने से पानी के तेज बहाव के कारण मिट्टी शीघ्रता से कटने लगती है और नदियों में जहां पहुंचती है। इस प्रक्रिया से नदियों का जलस्तर सामान्य से अधिक बढ़ जाता है जिसके कारण बाढ़ जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है।

जल निकास का उचित प्रबंध

भूमि की सतह से अतिरिक्त जल को कृत्रिम रूप से बाहर निकालने की क्रिया को जल निकास कहते हैं। वर्षा ऋतु के दौरान कई स्थानों में काफी लंबे समय तक पानी इकट्ठा हो जाता है जिसके कारण मृदा की उर्वरता एवं गुणवत्ता में कमी आती है। खेतों में अत्यधिक पानी जमा होने से पेड़-पौधों की वृद्धि एवं विकास बुरी तरह प्रभावित होता है जिसके कारण किसानों को एक बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। भूमि में जलभराव के कारण मृदा की भौतिक दशा खराब हो जाती है जिसके कारण मिट्टी को संरक्षित करना और भी कठिन हो जाता है। समय पर जल निकास होने से मिट्टी में अधिक नमी आ जाती है एवं उसमें फफूंदी उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण मृदा को संरक्षित करना और भी जरूरी हो जाता है।

वृक्षों के कटाव पर नियंत्रण

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के कारण मृदा अपरदन एवं पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए वृक्षों का बचाव करना बेहद जरूरी होता है। मृदा संरक्षण से धरती का पर्यावरण भी संरक्षित होता है। पेड़-पौधे भूमि के कटाव को रोकने में अहम भूमिका निभाते हैं जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहता है। इसलिए पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने के लिए मृदा संरक्षण बेहद जरूरी है।

फसल का उत्पादन

मृदा संरक्षण से फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे किसानों की आय दोगुनी हो जाती है। मिट्टी को संरक्षित कर मृदा पीएच का मान बनाए रखने से फसल के उत्पादन को बढ़ावा मिलता है जिससे किसानों को बहुत फायदा मिलता है। मृदा पीएच मिट्टी के अंदरूनी सतह में विभिन्न प्रकार के रासायनिक एवं जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं को नियमित एवं नियंत्रित करता है जिससे खेत की फसल बेहतर होती है।

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