राजस्थान के लोक देवता

राजस्थान के लोक देवता

राजस्थान के लोक देवता – राजस्थान के लोक देवता / राजस्थान के प्रमुख लोक देवता कई हैं जिनको राजस्थान के कई क्षेत्रों में अलग-अलग जाति, मत और सम्प्रदायों द्वारा पूजा जाता है। राजस्थान के इन लोक देवताओं से जुड़े विभिन्न प्रश्न राज्यस्तरीय परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इन्हीं प्रश्नों को ध्यान में रख कर राजस्थान के प्रमुख लोक देवताओं से जुडी परीक्षापयोगी जानकारी यहाँ दी गयी है।

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता

गोगाजी ( Gogaji )

  • गोगाजी का जन्म ग्यारहवीं शताब्दी में चुरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ था।
  • गोगाजी के पिता का नाम पैवटसिंह और माता का नाम बाछलदे था।
  • गोगाजी का जन्म एक चौहान वंश में हुआ था और गोगाजी के पिता ददरेवा के शासक थे।
  • गोगाजी की पत्नी का नाम मेनल था जिनका नाम कहीं कहीं केमलदे भी मिलता है।
  • गोगाजी के जन्म की जानकारी ‘गोगाजी पीर रा छंद’, ‘गोगापेडी’ व ‘गोगागी चहुँचाण री निसाणी’ नामक ग्रन्थों में मिलती है।
  • गोगाजी को सांपों के देवता, गोगापीर, जाहरवीर, नागराज आपि उपनामों से भी जाना जाता है।
    गोगाजी के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – गोगाजी – राजस्थान के लोकदेवता

पाबूजी ( Pabuji )

  • पाबूजी राठौड़ वंश के थे और पाबूजी का जन्म कोलूमण्ड फलौदी ( जोधपुर ) वि. स. 1296 (1239 ई.) में हुआ था।
  • पाबूजी के पिता का नाम धाँधल जी राठौड़ और माता का नाम कमलादे था।
  • पाबूजी को ‘लक्ष्मण का अवतार, प्लेग के देवता, धड़-फाड़ देवता’ व ‘ऊँटो का देवता’ के नाम से भी जाना और पूजा जाता है।
  • पाबूजी के सम्बन्ध में जानकारी पुराने साहित्य से मिलती है जिसमें ‘मेघ चारण’ जिसमें पाबूजी से सम्बंधित छंद, ‘रामनाथ’ में सोरठे, ‘बांकीदास’ में गीत आदि प्रमुख हैं।
  • मारवाड़ की ऊँटो की पालक दो जातियाँ रेबारी व देवासी पाबूजी की अपना आराध्य देव मानती हैं।
    पाबूजी के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – पाबूजी – राजस्थान के लोकदेवता

हडबूजी ( Hadbuji )

  • हडबूजी का जन्म भडेल ( नागौर ) में हुआ था और हडबूजी के पिता का नाम महाराज साँखला था।
  • हडबूजी को ‘शकुनशास्त्र के ज्ञाता, चमत्कारी महापुरुष, भविष्यदृष्टा, वचन सिद्ध पुरुष’ आदि उपनामों से भी जाना जाता है।
  • हड़बूजी अपने पिता की मृत्यु के वि.स. 1462 में भूंडेल गाँव छोड़कर फलौदी (जोधपुर) के एक गाँव ‘हरममजाल’ में आ गये।
  • हडबूजी हरममजाल में आने के बाद ‘रामदेवजी’ से मिले और ‘रामदेवजी’ के गुरु ‘बाली नाथ’ जी के शिष्य बन गये।
  • हडबूजी की सवारी सियार या गीदड है।
  • हडबूजी मारवाड शासक ‘राव जोधा’ के समकालीन थे।
  • हड़बूजी को ‘भविष्यदृष्टा’ भी कहते है क्योंकि हड़बूजी में भविष्य देखने की दिव्य शक्ति थी। ‘सांखला हडबू का हाल’ ग्रन्थ से हड़बूजी के जीवन पर प्रकाश डालता है इसी ग्रन्थ से पता चलता है कि हड़बू जी योगी व योद्धा दोनों ही थे।
    हडबूजी के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – हडबूजी – राजस्थान के लोकदेवता

रामदेवजी ( Ramdevji )

  • रामदेव जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया वि. स. 1462 ( 1405 ई. ) को उडूकासमेर गाँव बाड़मेर में हुआ था।
  • रामदेव जी तंवर वंश राजपूत थे और इनके पिता अजमालजी तथा माता मैणादे थी। रामदेव जी की पत्नी का नाम निहालदे था।
  • रामदेव जी के गुरु बालीनाथ थे। कामडिया पंथ की स्थापना रामदेव जी द्वारा की गई थी ।
  • रामदेव जी को लोग अर्जुन का वंशज व कृष्ण का अवतार मानते हैं।
  • रामसा पीर, रुणीचा रा धणी, रुणेचा रघणी, बाबा रामदेव, साम्प्रदायिक सद्भाव का लोक देवता, अर्जुन का वंसज जैसे नामों से प्रसिद्ध रामदेवजी की प्रसिद्धि राजस्थान के साथ-साथ गुजरात, मध्य प्रदेश व पंजाब राज्यों में भी है।
    रामदेवजी के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें रामदेवजी – राजस्थान के लोक देवता

तेजाजी ( Tejaji )

  • तेजाजी का जन्म नागौर जिले के गाँव खड़नाल में 1073 ई. में माघ शुक्ल चतुर्दशी को हुआ था।
  • तेजाजी के पिताजी ताहड़जी व माताजी का नाम रामकुंवरी था।
  • तेजाजी का पिवाह पेमलदे के साथ हुआ था जो कि पनेर नामक गाँव की रहने वाली थी। पनेर नामक गाँव परबतसर के पूर्वी भाग में स्थित है।
  • तेजाजी जब अपनी पत्नी को लाने ससुराल पनेर (नागौर) गये हुए थे तब वहाँ पर एक गुजरी लाछा गुजरी ने अपनी गायों को मेरो से छुड़वाने के लिए तेजाजी से प्रार्थना की। तब तेजाजी ने मेरों से युद्ध किया और लाछा गुजरी की गायों की रक्षा की थी इसलिये तेजाजी को गायों का मुक्तिदाता कहा जाता है।
  • साँपों के देवता, धौलिया वीर, गायों के मुक्तिदाता, काला व बाला के देवता, कृषि कार्यों के उपकारक आदि उपनामों से तेजाजी को जाना जाता है।
    तेजाजी के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें तेजाजी – राजस्थान के लोक देवता

देवनारायण जी ( Devnarayan ji )

  • देवनारायण जी का जन्म 1243 ई. में माघ शुक्ल षष्ठी को गोठा दंडावण आसींद (भीलवाडा) में हुआ था और देवनारायण जी के बचपन का नाम उदयसिंह था।
  • देवनारायण जी के पिता ‘सवाईभोज’ भिनाय (अजमेर) के शासक थे और माता का नाम ‘सेदू’ तथा पत्नी का नाम ‘पीपलदे’ था।
  • देवनारायण जी बगड़ावत नागवंश के गुर्जर थे और ये गुर्जर जाति के लोकदेवता हैं। लोग इन्हें भगवान विष्णु का अवतार मानाते हैं।
  • देवनारायण जी को तंत्र मंत्र और आर्युवेद का भी ज्ञान था।
  • देवनारायण जी के दादा बाघजी के 24 पुत्र थे जो ‘बगड़ावत’ नाम से प्रसिद्ध हुये थे, भिनाय के शासक दुर्जनासाल से युद्ध करते हुये देवनारायण जी के पिता साहित 23 भाईयों की मृत्यु हुई थी।
    देवनारायण जी के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें देवनारायण जी – राजस्थान के लोक देवता

कल्ला जी राठौड़ ( Kallaji Rathore )

  • कल्ला जी का जन्म 1544 ई. (वि.स. 1601) में आश्विन शुक्ल अष्टमी को सामियाना, मेड़ता (नागौर) में हुआ था।
  • राठौड़ जी के दादा दूदाजी व पिता अचलसिंह मेड़ता के शासक थे।
  • कल्ला जी का उनके पिता की मृत्यु के बाद लालन-पालन इनके ताऊ जी उम्मेद सिंह ने किया था। कल्ला जी पत्नी का नाम कृष्णाजी था।
  • मीराबाई कल्ला जी बुआ लगती थी।
  • कल्ला जी को चार हाथों वाले देवता, कल्ला, कल्याण, कमधज आपि उपनामों से जाना जाता है।
  • कल्ला जी औषधि विज्ञान के कुशल चिकित्सक थे।
  • नागणेची कल्ला जी इनकी कुलदेवी थी। इन्हीं की अराधना करते हुए कल्ला जी योग का अभ्यास करते थे।
  • भैरव जी के साक्षात दर्शन होने के बाद ही कल्ला जी ने योगी भैरवनाथ जी को अपना गुरू मान लिया था।
    कल्ला जी राठौड़ जी के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें कल्ला जी राठौड़ – राजस्थान के लोक देवता

मल्लीनाथ जी ( Rawal Mallinatha)

  • मल्लीनाथ जी का जन्म तिलवाड़ा (बाड़मेर) में 1538 ई. (1415 वि.स.) में हुआ था। मल्लीनाथ जी के पिता का नाम सलखाजी तथा माता का नाम जाणीदे था। मल्लीनाथ जी का विवाह रूपादे के साथ हुआ था। मल्लीनाथ जी की पत्नी उगमसी भाटी की शिष्या और ईश्वर भक्त महिला थी। अपनी पत्नी की प्रेरणा से मल्लीनाथ जी भी उगमसी भाटी के शिष्य बन गये थे।
  • मल्लीनाथ जी का मंदिर लूनी नदी के किनारे पर तिलवाड़ा बाड़मेर में स्थित है यहाँ पर एक विशाल पशु मेले का आयोजन प्रति वर्ष चैत्र कृष्ण ग्यारस से चैत्र शुक्ल ग्यारस तक एक महीने तक होता है।
  • कुंडा पंथ की स्थापना मल्लीनाथ जी द्वारा की गई थी जिसमें मारवाड के सभी संतों को आमंत्रित किया गया था।
  • महेवा के शासक कान्हड़दे मल्लीनाथ जी के चाचा थे। मल्लीनाथ जी अपने पिता की मृत्यु के बाद अपने चाचा के साथ ही रहने लगे और शासन प्रबंध का कार्य करने लगे और चाचा की मृत्यु के बाद महेवा के राजा बन गये।
  • अपने बाहुबल से अपने राज्य की विस्तार किया और अपने भतीजे चूंडाजी को मंडोर व नागौर विजय कराने में सहायता की थी।
  • मालाणी (बाड़मेर) का नाम मल्लीनाथ जी के नाम पर रखा गया था।

मांगलिया मेहा जी

  • मांगलिया मेहाजी का जन्म 15 वीं शताब्दी में ओसिया के पास बापणी गाँव (जोधपुर) में हुआ था और मेहा जी के पिता का नाम साँखला था।
  • मांगलिया मेहा जी मारवाड़ के राव चूण्डा (1383-1423) के समकालीन थे।
  • मांगलिया मेहा जी को मांगलिया जाति के लोगों द्वारा पूजा जाता है।
  • मेहा जी के घोड़े का नाम ‘किरड काबरा’ था।
  • ऐसा मत है कि मेहा जी की पूजा करने वाले भोपों की वंश वृद्धि नहीं होती है।
  • मेहा जी जैसलमेर नरेश राव राणगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
  • मांगलिया जी का मंदिर बापणी गाँव (जोधपुर) में स्थित है।
  • भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मेहा जी की अष्टमी कहते हैं।

आलमजी

  • आलमजी बाडमेर क्षेत्र के लोगों के लोकदेवता हैं इसलिए आलम जी का थान बाडमेर में स्थित है। इनके थान को ‘आलमजी का घोरा’ कहा जाता है। आलम जी का थान एक टीले पर बना हुआ है इस टीले का नाम ‘ढांगी टीला / धोरा’ है।
  • आलमजी का घोरा, होरीमत्रा (बाड़मेर) को घोड़े का तीर्थस्थल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि – यहाँ के घोड़े पालने वाले लोग अपनी घोड़ियों से यहीं जाकर बच्चे पैदा करवाते हैं ताकि अच्छी नस्ल के घोड़े पैदा हो सकें।

भौमिया जी

  • भौमिया जी को भूमि का देवता या भूमि पुत्र के रूप में पूजा जाता है।
  • भूमि से संबंधित कार्य या कुँआ खोदने से पहले भौमिया जी को याद किया जाता है।
  • भौमिया जी के मंदिर जयपुर व दौसा में स्थित है। जयपुर में स्थित मंदिर नाहरसिंह जी भौमिया के नाम से प्रसिद्ध है।
  • भौमिया जी की मूर्ति अश्व पर सवार योद्धा के रूप में है इनके हाथ में माला होती है और इनकी मूर्ति के दोनों तरफ सूर्य-चन्द्रमा बने होते हैं।

भूमिया बाबा

  • भूमिया जी का मंदिर गौतमेश्वर महादेव मंदिर (सिरोही) का चोटीला (गाँव चॉकीला) में है। यह मंदिर सुकड़ी नदी के दायें किनारे पर स्थित है।
    सुकड़ी नदी को पतित गंगा भी कहा जाता है। इस नदी में मीणा जनजाति के लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करते हैं।
  • गौतमेश्वर मे प्रतिवर्ष 13 अप्रैल से 15 मई तक मेला लगता है।
  • भूमिया बाबा का एक अन्य मंदिर अरनोद (प्रतापगढ़) में भी स्थित है।
  • भूमिया बाबा मीणा जाति के ‘इष्ट देव’ माने जाते हैं। मीणा जाति भूमिया जी की झूठी कसम नहीं खाती है।
  • दक्षिणी राजस्थान के जालौर, बाड़मेर, व सिरोही की मीणा आदिवासी जातियों के प्रमुख लोकदेवता भूमिया जी माने जाते हैं।

बिग्गाजी

  • बिग्गा जी का जन्म रीडी गाँव (बीकानेर) में हुआ था। और इनका मंदिर भी रीडी गांव (बीकानेर) में ही अवस्थित है।
  • बिग्गाजी जाटों के जाखड गोत्र के कुल देवता हैं।

डूंगजी जवाहर जी

  • डूंगजी जवाहर जी, डूंगरसिंह के भतीजे थे। इनका पूरा नाम डूंगरसिंह व जवाहरसिंह शेरावत था।
  • डूंगजी जवाहरजी चुरू, सीकर, झुंझुनू आदि शेखावाटी क्षेत्र के लोकदेवता हैं।
  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में डूंगजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • डूंगजी अंग्रेजों के धन को लूटकर गरीबों में बांटने के लिये प्रसिद्ध थे।
  • शेखावाटी क्षेत्र में गाया जाने वाला डूंगजी – जवाहरजी के गीत छावली कहलाते हैं।
  • 1847 में डूंगजी – जवाहर जी ने नसीराबाद छावनी को लूटा था।

देवबाबा

  • देवबाबा को पशु चिकित्सा व आयुर्वेद का अच्छा ज्ञान था इसलिए इन्हें ‘गुर्जरों का पालनहार’, ‘ग्वालों का देवता’, तथा ‘ग्वालों का पालनहार’ कहा जाता है।
  • नगला जहाज गाँव (भरतपुर) में इनका मंदिर स्थित है जहाँ हर वर्ष में दो बार भाद्रपद शुक्ल पंचमी व चैत्र शुक्ल पंचमी को मेला लगता है।

इलोजी

  • इलोजी की पूजा धूलंडी के दिन की जाती है।
  • इलोजी ‘कुआरों के देवता’ व ‘देड़छाड़ का देवता’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।

हीरामनजी

  • हीरामनजी के थान बूँदी, कोटा, भीलवाड़ा, तथा अजमेर में बने हुये हैं और हीरमनजी गुर्जरों के लोक देवता हैं।

झूंझार जी

  • झूंझार जी का जन्म इमलोहा, नीमाकाथाना (सीकर) में हुआ था।
  • चैत्र शुक्ल नवमी (रामनवमी) को झुंझार जी का मेला लगता है।
  • खेजड़ी के वृक्ष के नीचे झूंझार जी का पूजा स्थल होता है।
  • मुस्लिम लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए झुंझार जी की मृत्यु हुई थी।

केसरिया कुंवर जी

  • केसरिया कुंवर जी गोगा जी के पुत्र थे।
  • इनकी प्रसिद्धि अपने पिता की तुलना में बहुत कम थी।

मामादेव

  • मामादेव को बरसात का लोकदेवता माना जाता है।
  • मामा देव को प्रसन्न करने के लिए भैसों की बलि दी जाती है।
  • सीकर जिले के स्यालोदडा गाँव में मामादेव का मंदिर स्थित है।
  • मामादेव राज्य के एकमात्र ऐसे लोकदेवता हैं जिनकी मूर्ति नहीं होती है।
  • मामादेव का प्रतीक चिह्न ‘लकड़ी का तोरण’ होता है, जिसकी पूजा की जाती है।
  • यह तोरण गाँव के बाहर मुख्य सड़क पर लगाया जाता है।

पनराज जी

  • पनराज जी का जन्म जैसलमेर जिले के नगा गाँव में हुआ था।
  • भाद्रपद शुक्ल दशमी व माघ शुक्ल दशमी को जनराजसर (जैसलमेर) में पनराज जी का मेला लगता है।

रूपनाथ जी

  • रूपनाथ जी ने अपने चाचा पाबूजी की मृत्यु का बदला जींदराव खींची (पाबूजी का बहनोई) को मारकर लिया था ।
  • रूपनाथ जी को हिमाचल प्रदेश में ‘बालकनाथ’ के रूप में पूजा जाता है।
  • सिंभूदड़ा (बीकानेर), कोलमूण्ड (जोधपुर) में रूपनाथ जी का मंदिर स्थित है।

तल्लीनाथ जी

  • तल्लीनाथ जी का जन्म जालौर जिले के पांचोटा गाँव में हुआ था।
  • तल्लीनाथ जी का असली नाम गांगदेव राठौड़ था और तल्लीनाथ जी के गुरू का नाम जालन्धर नाथ था।
  • तल्लीनाथ जी ने पेड़-पौधों की रक्षा के लिये कई प्रयास किये इसलिये तल्लीनाथ जी को प्रकृति प्रेमी देवता माना जाता है।
  • इनके गांव के आसपास के क्षेत्र को ओरण ( देव वन ) अर्थात देवता का वन माना जाता है इसलिए यहाँ कोई पेड़-पौधे नहीं काटता है। इसी गांव में इनकी अश्वारोही प्रतिमा स्थित है।
  • तल्लीनाथ जी का प्रमुख मंदिर पांचोटा में पंचमुखी पहाड़ी पर स्थति है और मान्यता है कि किसी व्यक्ति या पशु को जहरीले जीव द्वारा काट लेने पर तल्लीनाथ जी के नाम की तांती बांधी जाती है ताकि जहर का असर न हो।

वीर फत्ता जी

  • वीर फत्ता जी का जन्म सांथू गाँव (जालौर) में हुआ था, यही पर वीर फत्ता जी का मंदिर स्थित है।
  • सांथू गांव में ही प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को मेला लगता है।