सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय

सरोजिनी नायडू

सरोजिनी नायडू पर निबंध ( sarojini naidu essay in hindi ) : सरोजिनी नायडू एक मशहूर कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी थी। सरोजिनी नायडू कोकिला एवं बुलबुल के नाम से भी जाना जाता है वह अपने समय की महान वक्ता भी थी।

सरोजिनी नायडू का जीवन परिचय ( sarojini naidu ka jivan parichay )

सरोजिनी नायडू एक क्रांतिकारी महिला थी जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में देश को आजादी दिलाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सरोजिनी नायडू का जन्म व आरंभिक जीवन –

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 हैदराबाद में हुआ था। सरोजिनी जी का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था जो एक वैज्ञानिक एवं डॉक्टर थे वे हैदराबाद कॉलेज में एडमिन के रूप में पदस्थ थे साथ ही वे इंडियन नेशनल कांग्रेस हैदराबाद के पहले सदस्य भी बने। सरोजिनी जी के पिता ने अपनी नौकरी छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। माता का नाम वरद सुंदरी देवी था वे एक लेखिका थी और बंगाली भाषा में कवितायें लिखती थी।

सरोजिनी नायडू 8 भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। उनके एक भाई वीरेंद्रनाथ एक क्रांतिकारी थे और एक भाई हरींद्रनाथ कवि और कथाकार थे। सरोजिनी नायडू का विवाह वर्ष 1897 में गोविन्द राजुलू नायडू के साथ हुआ था। उनकी पांच संतानें थी जिनका नाम पद्मजा, रणधीर, लीलमानी, निलवर, जयसूर्या नायडू था।

 सरोजिनी नायडू की शिक्षा –

सरोजिनी नायडू बहुत बुद्धिमान विद्यार्थी थी। उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी से 10 वीं की कक्षा 12 वर्ष में ही पूरी कर ली थी। उन्हें बचपन से ही कविताएं लिखने में अधिक रूचि थी। बचपन से ही सरोजिनी नायडू ने लिखना शुरू किया और अपने साहित्यिक ज्ञान का उपयोग करते हुए अंग्रेजी में 1300 पंक्तियों की ‘दी लेडी ऑफ़ दा लेक’ नामक कविता लिखी।

सरोजिनी जी के पिता उनकी इस कविता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सरोजिनी जी का सहयोग किया उन्होंने अपने पिता जी की सहायता से पर्शियन भाषा में एक प्ले लिखा जिसका नाम ‘माहेर मुनीर’ था। सरोजिनी नायडू ने कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और वे अपनी कविताओं और भाषणों में हिंदी, बंगाली, गुजरती और अंग्रेजी भाषाओं का प्रयोग करती थी।

 सरोजिनी नायडू का राजनीतिक जीवन एवं राष्ट्रीय आंदोलनों में योगदान –

सरोजिनी नायडू जी का राजनीतिक जीवन अत्यंत प्रभावशाली था और वे उस समय देश की सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत रही एक क्रांतिकारी महिला होने के कारण उन्होंने देश की महिलाओं को आजादी और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महिलाओं के शिक्षा व महिलाओं के समस्त अधिकारों की मांग भी की थी।

वर्ष 1913 में उन्होंने राजनीति में आकर हिन्दू-मुस्लिम एकता की वकालत की और उसमे प्रभावशील भाषण दिए। सरोजिनी श्रीमती ने ऐनी बेसेंट जो एक लेखिका, वक्ता, भारत प्रेमी महिला थी उनके साथ मिलकर कांग्रेस अधिवेशन में भारतीय स्वतंत्रता की मांग की।

सरोजीनि नायडू ने वर्ष 1918 के बॉम्बे प्रेसीडेंसी वूमन ऐसोसियेशन तथा कर्वे द्वारा स्थापित महिला यूनिवर्सिटी द्वारा स्त्री जागृति पर भी काम किया।

सरोजिनी जी ने लोगों तक साहित्य की आवाज पहुचायीं व अपने ओजस्वी पूर्ण भाषण और कोकिला जैसी वाणी से लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया। वह महान विचारों वाली महिला थी उन्होंने अपने विचारों के माध्यम से देशवासियों और क्रांतिकारियों को आजादी की ओर चलने के लिए एक नयी दिशा प्रदान की।

सरोजिनी जी ने महात्मा गाँधी के साथ मिलकर अनेक सत्याग्रहों में भाग लिया और उन्हें ”भारत छोड़ो आंदोलन” के दौरान जेल भी हुई। सरोजिनी नायडू वर्ष 1924 में दक्षिण अफ़्रीका भारतीयों की जानकारी प्राप्त करने गई, वहां पर उन्होंने ईस्ट अफ्रीकन कांग्रेस की अध्यक्षता करते हुए भारतीयों के लिए अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।

सरोजिनी नायडू भारत वापस आने के बाद वर्ष 1925 व 1926 में कानपुर के 48 वें  अधिवेशन में दो बार अध्यक्ष निर्वाचित हुई। उन्होंने इस अधिवेशन में भी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।

वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह के दौरान ‘नमक कानून’ को तोड़ने के कारण उन्हें जेल हो गयी। एक वर्ष बाद शारीरिक अस्वस्थता के कारण उन्हें रिहाई दे दी गयी। उन्होंने नमक सत्याग्रह को ख़त्म किया और रॉलेट एक्ट का भी प्रभावशाली ढंग से विरोध किया।

सरोजिनी नायडू की उपलब्धियां-

सरोजिनी नायडू देश में पहली ऐसी महिला थी जो राज्यपाल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष’ बनी। वह देश की आजादी के बाद पहली बार वर्ष 1947 में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य की ”राज्यपाल ” बनी। यह राज्य देश में क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि में सबसे बड़ा राज्य है। सरोजिनी नायडू एक अच्छी कवयित्री एवं वक्ता के रूप में मशहूर हुई। भारत सरकार ने सरोजिनी नायडू के मरणोपरांत उनके सम्मान पर 13 फरवरी, 1964 को नए 15 पैसे का डाक टिकट की शुरुआत की।

सरोजिनी नायडू की मृत्यु –

सरोजिनी नायडू जी का स्वभाव व जीवन बहुत ही सरल और साधारण था। वह हृदय की बीमारी से ग्रसित थी। दिल का दौरा (हार्ट अटैक) पड़ने के कारण, 2 मार्च, 1949 में उनकी मृत्यु हो गयी और हमारे देश ने एक महान स्त्री को खो दिया परन्तु उनकी कविताएं और उनका जीवन आज भी देशवासियों के दिल में जीवित और प्रेरणास्रोत रहेगा।

Image credit : commons.wikimedia.org

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