सहायक संधि

सहायक संधि

सहायक संधि का जन्मदाता या सहायक संधि का जनक लॉर्ड वेलेजली को कहा जाता है। अपितु लॉर्ड वेलेजली सहायक संधि का सर्वप्रथम प्रयोग करने वाला व्यक्ति नहीं था। सहायक संधि का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी “डूप्ले” द्वारा किया गया था। लेकिन इस संधि का व्यापक प्रयोग लॉर्ड वेलेजली द्वारा किया गया इसलिए लॉर्ड वेलेजली को सहायक संधि का जनक कहा जाता है।

  • जिस समय लॉर्ड वेलेजली 1798 में भारत का गवर्नर बना उस समय अंग्रेजी कम्पनी की भारत में स्थिति कुछ खास मजबूत नहीं थी ।
  • लॉर्ड वेलेजली ने भारतीय प्रांतों पर नियंत्रण रखने, फ्रांसीसी प्रभाव को कम करने तथा एक शक्तिशाली सेना बनाने हेतु एक योजना तैयार की जिसे आज इतिहास में सहायक संधि के नाम से जाना जाता है।
  • यह एक प्रकार की मैत्री संधि थी, जिसका प्रयोग 1798-1805 तक भारत के गवर्नर-जनरल रहे लॉर्ड वेलेजली ने भारत के देशी राज्यों से संबंध स्थापित करने के लिए किया था।
  • सहायक संधि अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति पर आधारित थी। इस संधि के प्रयोग से भारत में अंग्रेजी सत्ता की श्रेष्ठता स्थापित हो गयी।
  • लॉर्ड वेलेजली इस संधि का आविष्कारक नहीं था। इसका प्रथम प्रयोग फ्रांसीसी “डूप्ले” द्वारा किया गया था। यद्यपि इसका व्यापक प्रयोग लॉर्ड वेलेजली द्वारा किया गया।

सहायक संधि स्वीकार करने वाले राज्य, सबसे पहले निम्न राज्यों ने सहायक संधि अपनायी –

    • हैदराबाद- 1798 – भारत में सहायक संधि को स्वीकार करने वाला पहला शासक हैदराबाद का निज़ाम था।
    • मैसूर- 1799
    • तंजौर- अक्तूबर, 1799
    • अवध- नवम्बर, 1801
    • पेशवा– दिसम्बर, 1802
    • बराड के भोसले- दिसम्बर 1803
    • सिंधिया- फरवरी, 1804

इस संधि को दो चरणों में भारतीय राज्यों पर लागू किया गया –

    • प्रथम चरण- अंग्रेजों ने आर्थिक लाभ तथा अन्य शर्तों के साथ मित्र शासकों को अपनी सेनाएं उधार दी।
    • दूसरा चरण- जब देशी राज्य धन देने में असमर्थ होने लगे तब सेना के व्यय के बदले में प्रदेश लेना प्रारम्भ कर दिया।

सहायक संधि की विशेषताएं

  • भारतीय राजाओं के विदेशी संबंध कंपनी के अधीन होंगे। वे कोई युद्ध नहीं करेंगे तथा अन्य राज्यों से विचार विमर्श कम्पनी करेगी।
  • बड़े राज्य अपने राज्य में अंग्रेजी सेना रखेंगे जिसकी कमान अंग्रेज अधिकारियों के हाथों में होगी। जबकि सेना का खर्चा राज्य को उठाना होगा।
  • राज्यों को अपने राज्य की राजधानी में एक अंग्रेजी रेजीडेंट रखना अनिवार्य होगा।
  • राज्य, कंपनी की अनुमति के बिना किसी युरोपीय को अपनी सेवा में नहीं रखेंगे ।
  • कंपनी राज्य की अन्य शत्रुओं से रक्षा करेगी।
  • कंपनी राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।

सहायक संधि के प्रभाव / परिणाम

इस संधि द्वारा अंग्रेजों को अत्यधिक लाभ मिला किंतु भारतीय रियासतों को अत्याधिक हानि उठानी पड़ी, तथा उन पर इस व्यवस्था के दूरगामी परिणाम हुये।

  • उनकी स्वतंत्रता समाप्त हो गयी तथा वे अंग्रेजों की दया पर आश्रित हो गये।
  • अधिक आर्थिक बोझ वहन करना पड़ा।

सहायक संधि से अंग्रेजों को हुए लाभ

  • कम्पनी का विस्तार- अंग्रेजों को इस संधि से सेना के बदले विशाल धनराशि और प्रदेश प्राप्त हुए। जिसके परिणामस्वरूप कम्पनी का अभूतपूर्व विस्तार हुआ और उसकी शक्ति में भी असाधारण वृद्धि हुई।
  • विशाल सेना की प्राप्ति- इस संधि से अंग्रेजों ने एक विशाल सेना बना ली, जिसका आर्थिक बोझ तो भारतीय राज्यों पर था परन्तु नियंत्रण अंग्रेजों के पास।
  • भारतीय शासकों पर नियंत्रण- इस संधि से सहमति भरते ही देशी राज्य पूरी तरह से अंग्रेजी नियंत्रण में आ गए। वे न तो किसी प्रकार का संगठन बना सकते थे और न ही किसी निर्णय को स्वयं स्वतंत्र होकर ले सकते थे।
  • फ्रांसीसी प्रभाव का अंत- सहायक संधि को अपनाने वाले राज्य किसी अन्य विदेशी व्यक्ति या कम्पनी से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं रख सकते थे। इस कारण धीरे-धीरे भारत में फ्रांसीसियों का प्रभाव कम होता चला गया।
  • अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार- इस संधि के अन्तर्गत एक अंग्रेजी रेजीडेेण्ट को देशी राज्य की राजधानी में रखना अनिवार्य था। इस अंग्रेजी रेजीडेंट की उपस्थिति से अंग्रेजों की पहुँच अब राज्यों के आंतरिक तथा घरेलू मामलों तक हो गयी। इसका फायदा उठाकर अंग्रेजों ने कई राज्यों को कुप्रबन्धन, उत्तराधिकार के झगड़ों आदि के आधार पर अपने साम्राज्य में विलय करना शुरू कर दिया।

सहायक संधि से भारतीय राज्यों को हुई हानियाँ

  • आर्थिक बोझ- सहायक संधि के बदले दिया जाने वाला धन काफी अधिक था। जिस कारण राज्यों को इस अतिरिक्त आर्थिक बोझ को वहन करना पड़ रहा था। परिणामस्वरूप राज्यों के पास अपने विकास के लिए कुछ भी शेष नहीं बचता था।
  • शासकों पर कुप्रभाव- इस संधि के बाद से देशी शासकों का काम लगभग नगण्य हो गया था। साथ ही विद्रोह और बाह्य आक्रमणों से भी उनको मुक्ति मिल चुकी थी, परिणामस्वरूप शासक अब अधिक आलसी और विलासी हो गए, और उन्होंने राज्य-प्रबंधन में रुचि लेना बन्द कर दिया। जिसका फायदा अंग्रेजों ने उठाया।
  • जनता पर कुप्रभाव- इस संधि के उपरान्त शासक ने अपने सम्मान तथा अधिकार खो दिया था। जनता का विश्वास भी अपने शासक से उठ गया, तथा वो करों के नीचे दबते चली गयी। परिणामस्वरूप जब अंग्रेजों ने राज्य को हड़पना शुरू किया तब जनता ने शासक का कोई सहयोग नहीं किया।
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