1929 के आर्थिक संकट के कारण और परिणामों को स्पष्ट करें – आर्थिक संकट क्या है, 1929 के आर्थिक संकट के कारण, 1929 के आर्थिक संकट के परिणाम आदि महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।
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1929 के आर्थिक संकट
वर्ष 1929 में विश्व भर के सभी विकसित देशों में महामंदी के दौर की शुरुआत हुई जो वर्ष 1933 तक बनी रही। इस दौरान विश्व के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था बेहद बुरी तरह से प्रभावित हुई जिसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट हुई। महामंदी के दौर में उत्पादों की बिक्री से पर्याप्त धन अर्जित करना असंभव हो गया था जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र अमेरिका एवं यूरोपीय देशों के कुल उत्पादन के मुनाफे के स्तर में भारी गिरावट आई। इसके अलावा सन 1929-33 के दौरान बेरोजगारी की समस्या में भी वृद्धि हुई। माना जाता है कि वर्ष 1929 में हुए आर्थिक संकट का प्रभाव विश्व के लगभग सभी देशों पर समान रूप से पड़ा। 1929 के आर्थिक संकट को विश्वव्यापी आर्थिक महामंदी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दौरान विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में व्यापार, आय, उत्पादन एवं रोजगार में भारी कमी हुई थी जिसके कारण भारी संख्या में लोग गरीबी, बेरोजगारी एवं भुखमरी के शिकार हुए थे। इसके अलावा देश विदेश के बड़े-बड़े उद्योगपति उद्योग धंधे बंद हो जाने के कारण कर्ज में डूब गए थे। इस आर्थिक संकट के कारण अन्य देशों की तरह ही भारत भी बेहद प्रभावित हुआ था।
आर्थिक संकट क्या है
आर्थिक संकट या आर्थिक मंदी वह स्थिति है जिसमें देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होती है। आर्थिक संकट के दौरान देश की आर्थिक वृद्धि में रुकावट आती है जिसके कारण उस देश के विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न हो जाती है। जब एक देश आर्थिक संकट की स्थिति से गुजर रहा होता है तो उस देश में उत्पादों की मांग बेहद कम हो जाती है जिससे देश की अर्थव्यवस्था असंतुलित हो जाती है।
1929 के आर्थिक संकट के कारण
वर्ष 1929-30 के दौरान पूरे विश्व को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा था जिसके कई कारण थे:-
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई थी जिसके कारण विश्व के सभी देशों को आर्थिक संकट के दौर से गुजारना पड़ा था। आर्थिक संकट की शुरुआत सर्वप्रथम संयुक्त राज्य अमेरिका से हुई थी। विश्व में आर्थिक संकट का प्रभाव 3 वर्षों तक सबसे अधिक था जिसके कारण इसे ‘पूंजीवाद में संकट’ के नाम से भी जाना जाता है।
- सन 1929 की शुरुआत में अति उत्पादन की समस्या उजागर हुई जिसके फलस्वरूप देश विदेश के बाजारों में उत्पादों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। दरअसल, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका एवं जापान जैसे बड़े-बड़े देशों में कई कारखानों की शुरुआत की गई जिसके कारण उत्पादन की मात्रा में भारी वृद्धि हुई थी। इसके अलावा कारखानों में उत्पादों का निर्माण कार्य युद्ध के दौरान एवं युद्ध के पश्चात भी जारी रहा जिसके कारण कारखानों से उत्सर्जित उत्पादों की खरीदारी में भारी गिरावट हुई और आर्थिक संकट ने एक विकराल रूप धारण किया।
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कृषि संबंधित क्षेत्रों की समस्या में वृद्धि हुई जिसके कारण आर्थिक संकट और अधिक बढ़ गया। दरअसल, विश्व युद्ध के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनाज का अति उत्पादन किया जाने लगा था जिसके कारण अनाज की कीमतों में भारी गिरावट हुई। अनाज की कीमतों में कमी हो जाने के कारण किसानों की आय बेहद कम हो गई थी जिसके फलस्वरूप किसानों ने अधिक से अधिक उत्पादन करना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे कृषि की उपज में इजाफा हुआ एवं उत्पादों की कीमतें कम हो गई। परंतु अनाज के खरीदार ना मिलने के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और अनाज गोदाम में पड़े-पड़े खराब होने लगे जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक संकट का प्रभाव और अधिक बढ़ गया।
- प्रथम युद्ध के दौरान लिए गए कर्ज को आर्थिक संकट का मुख्य कारण माना जाता है। दरअसल यूरोपीय राष्ट्रों ने अमेरिका से एक बड़ी धनराशि कर्ज के रूप में प्राप्त की थी जिसके कारण यूरोपीय राष्ट्र के कई देश इससे प्रभावित हुए थे। प्रथम विश्वयुद्ध के शुरुआती दौर में अमेरिका ने यूरोपीय राष्ट्रों को भारी धनराशि कर्ज के रूप में प्रदान की थी जिसके कारण अमेरिका के मित्रराष्ट्रों में आर्थिक संकट की शुरुआत हुई।
- वर्ष 1929 के शुरुआती दौर में अमेरिकी सरकार ने आर्थिक संकट से बचाव करने हेतु आयातित उत्पादों पर सीमा शुल्क को बढ़ाकर लगभग दोगुना कर दिया था जिसके कारण वैश्विक व्यापार मंडल बेहद बुरी तरह से प्रभावित हुआ था। अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था को दृढ़ करने हेतु सीमा शुल्क में वृद्धि की थी परंतु अमेरिकी सरकार के इस निर्णय के कारण विश्व के कई देशों में आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हुई थी।
- कई इतिहासकारों का मानना है कि संकुचित आर्थिक राष्ट्रीयता के कारण आर्थिक संकट की समस्या को बढ़ावा मिला था। विश्व युद्ध के पश्चात लगभग सभी देशों ने आर्थिक उन्नति करने हेतु आर्थिक राष्ट्रीयता एवं आत्मनिर्भरता की नीतियों का पालन किया। परंतु इन नीतियों का पालन करने हेतु बनाए गए नियम काफी स्वार्थपूर्ण थे जिसके कारण विश्व के लगभग सभी देशों ने विदेशों से आयात वस्तुओं पर सेवा शुल्क में वृद्धि करके अर्थव्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया। इसके अलावा अधिकांश देशों ने विदेशों से आयात किए जाने वस्तुओं की मात्रा को भी निश्चित कर दिया था जिससे उन सभी देशों की राष्ट्रीय आय पर एक नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
पढ़ें – आर्थिक मंदी क्या है – भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी के कारण एवं निवारण।
1929 के आर्थिक संकट के परिणाम
1929 के आर्थिक संकट के कारण कई भयावह परिणाम हुए जो कुछ इस प्रकार हैं:-
- आर्थिक संकट के दौरान विश्व भर के लगभग सभी देशों में बेरोजगारी की समस्या में तेजी से वृद्धि हुई। कई अर्थशास्त्रियों के अनुसार प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुए आर्थिक संकट के कारण कई लोग बेरोजगार हो गए जिसके कारण गरीबी एवं भुखमरी की समस्या उत्पन्न हुई।
- आर्थिक मंदी के कारण कई देशों की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई क्योंकि इसके कारण राष्ट्रीय मुद्रा के मूल्य में तेजी से गिरावट हुई। आर्थिक संकट का सर्वाधिक प्रभाव यूरोपीय राष्ट्रों पर पड़ा था। इसके अलावा आर्थिक मंदी के कारण अंतरराष्ट्रीय बैंक यूरोपीय राष्ट्रों को कर्ज देने में असमर्थ हो गए थे।
- आर्थिक संकट के कारण निर्यात, आयात, जीवन स्तर, उत्पादन आदि में तेजी से गिरावट आई जिसके कारण कई देशों को आर्थिक रूप से नुकसान हुआ। इसके अलावा वर्ष 1929 में कई बड़े कारखाने भी बंद हो गए जिससे अमेरिका, ब्रिटेन एवं जापान जैसे औद्योगिक देशों में कारोबार ठप पड़ गया था।
- अर्थशास्त्रियों की माने तो आर्थिक संकट का सर्वाधिक प्रभाव जर्मनी एवं ब्रिटेन जैसे देशों में पड़ा था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी एवं ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी थी जिसके कारण उनके आर्थिक रूप से विकास में बाधा उत्पन्न हुई।
- अन्य देशों की तरह ही भारत में भी आर्थिक संकट का प्रभाव पड़ा था। आर्थिक मंदी के कारण भारतीय व्यापार मंडल बेहद प्रभावित हुई थी जिसके कारण भारतीय उत्पादों के आयात एवं निर्यात की संख्या में भारी गिरावट हुई थी। इसके अलावा भारत में कृषि उत्पादों की कीमतों में भी लगभग 50 प्रतिशत तक की गिरावट आई जिसके कारण भारतीय किसान सर्वाधिक प्रभावित हुए थे।
- आर्थिक मंदी के कारण विश्व के अधिकतर देश महामंदी की समस्या से जूझ रहे थे। आर्थिक संकट के कारण अमेरिका जैसे औद्योगिक देश को सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ा था क्योंकि महामंदी के कारण अमेरिकी बैंकों ने घरेलू कर्ज देने से साफ इंकार कर दिया था। इसके अलावा अमेरिकी बैंकों द्वारा कर्ज चुकाने के लिए दबाव डाला जाने लगा था। इस स्थिति में सैकड़ों निजी बैंक एवं नागरिक कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गए थे जिसके कारण उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। अमेरिका के द्वारा लिए जाने वाले इस निर्णय के कारण अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली पूर्णतः ध्वस्त हो गई थी जिसके कारण चार हज़ार से अधिक बैंक एवं एक लाख से अधिक कारखाने नष्ट हो गए।
- आर्थिक संकट के कारण भारतीय किसानों एवं काश्तकारों की आर्थिक स्थिति बेहद नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई। दरअसल महामंदी के दौरान भारतीय किसानों एवं काश्तकारों ने अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने हेतु सोने की धातुओं को बाजार में बेचना आरंभ कर दिया था। इसके परिणाम स्वरूप भारतीय बाजार में भारी मात्रा में सोने की संख्या में वृद्धि हुई एवं सोने के निर्यात में भी बढ़ोतरी हुई। इस स्थिति में भारत ने सोने जैसी कीमती धातुओं का निर्यात आरंभ कर दिया जिसका लाभ अन्य देशों को मिला।