13. पट्टाडक्कल के स्मारक
स्थल – बादामी तालुक, बीजापुर
राज्य – कर्नाटक
धरोहर घोषित वर्ष – 1987
धरोहर घोषित किये जाने का कारण – कर्नाटक में पट्टडकल, एक उदार कला के उच्च बिंदु का प्रतिनिधित्व करता है, जो सातवीं और आठवीं शताब्दी में चालुक्य वंश के तहत बनाये गए थे, जोकि उत्तरी और दक्षिणी भारत के वास्तुशिल्प रूपों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण है। नौ हिंदू मंदिरों के साथ-साथ जैन अभयारण्य की एक प्रभावशाली श्रृंखला भी यहाँ देखी जा सकती है। यहाँ द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं। चालुक्य शैली का उद्भव 450 ई. में एहोल में हुआ था। यहाँ वास्तुकारों ने नागर एवं द्रविड़ समेत विभिन्न शैलियों के प्रयोग किए थे। इन शैलियों के संगम से एक अभिन्न शैली का उद्भव हुआ। सातवीं शताब्दी के मध्य में यहां चालुक्य राजाओं के राजतिलक होते थे। कालांतर में मंदिर निर्माण का स्थल बादामी से पत्तदकल आ गया।
source: whc unesco
14. राजस्थान के पहाड़ी किले (दुर्ग) – चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़, सवाई माधोपुर, झालावाड़, जयपुर और जैसलमेर के किले।
स्थल – चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़, सवई महाधुर, झुलवाड़, जयपुर और जसलमेर
राज्य -राजस्थान
धरोहर घोषित वर्ष – 2013
धरोहर घोषित किये जाने का कारण – राजस्थान राज्य में स्थित छह राजसी किले, चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़, सवाई माधोपुर, झालावाड़, जयपुर और जैसलमेर के किले विश्व धरोहरों में शामिल हैं। किले की परिशोधन वास्तुकला राजपूत रियासतों की शक्ति का प्रमाण है जो इस क्षेत्र में 8 वीं से लेकर 18 वीं शताब्दी तक विकसित हुई थी। राजस्थान के पहाड़ी फोर्ट राजस्थान के विभिन्न भौगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में प्रारंभिक मध्ययुगीन काल से अंतिम मध्ययुगीन काल तक किले की योजना, कला और स्थापत्य कला में शाही राजपूत विचारधाराओं को दर्शाते हैं।
source: whc unesco