भारत के संविधान के अंतर्गत लोकतंत्र की परिभाषा

भारत के संविधान के अंतर्गत लोकतंत्र की परिभाषा

भारत के संविधान के अंतर्गत लोकतंत्र की परिभाषा : भारत के संविधान के अंतर्गत लोकतंत्र को परिभाषित करो, लोकतांत्रिक शासन क्यों लोकप्रिय माना जाता है, लोकतंत्र ही केवल शासन व्यवस्था होनी चाहिए इसके पक्ष में अपने विचार लिखिए, वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था की तीन चुनौतियों का उल्लेख कीजिए, भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों का विस्तार से वर्णन कीजिए आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

भारत के संविधान के अंतर्गत लोकतंत्र को परिभाषित करो

भारतीय संविधान के अंतर्गत लोकतंत्र को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। सन 1947 में भारत के आजादी के बाद भारतीय संविधान में लोकतंत्र को एक विशेष भूमिका प्रदान की गई थी। माना जाता है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहां देश का राष्ट्रपति प्रमुख रूप से हर राज्य में कार्यों को नियंत्रित कर सकता है। भारत का संविधान मुख्य रूप से समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, संप्रभु एवं लोकतंत्र के सिद्धांतों पर कार्य करता है जिसके कारण भारत को एक लोकतांत्रिक देश के नाम से भी जाना जाता है। भारत का संविधान हर नागरिक को मौलिक अधिकार प्रदान करता है जिससे लोकतंत्र को बढ़ावा मिलता है। भारत एक ऐसा देश है जिसमें हर नागरिक को यह अधिकार होता है कि वह अपनी इच्छा अनुसार विधायिका का चुनाव कर सके। भारतीय संविधान के अंतर्गत लोकतंत्र को व्यवस्थित किया गया है जिसमें सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। यह व्यवस्था सामाजिक दृष्टिकोण से नागरिकों के प्रति न्याय एवं स्वतंत्रता के अधिकार को दर्शाने का कार्य भी करता है।

लोकतांत्रिक शासन क्यों लोकप्रिय माना जाता है

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी शासन प्रणाली है जो देश में समानता के स्तर को स्थापित करके हर नागरिक की सामाजिक एवं आर्थिक समानता को सुनिश्चित करने का कार्य करती है जिसके कारण लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को बेहद लोकप्रिय माना जाता है। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था नागरिकों के अधिकारों को बढ़ावा देने के साथ-साथ आम नागरिकों की जरूरतों का भी विशेष ध्यान रखती है जिसके कारण इस शासन व्यवस्था की लोकप्रियता में वृद्धि होती है। माना जाता है कि लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था अन्य सभी शासन प्रणालियों से बेहतर होती है क्योंकि इस व्यवस्था में आम नागरिकों की समस्याओं का तत्काल प्रभाव से समाधान करने का हर संभव प्रयास किया जाता है। केवल इतना ही नहीं भारतीय लोकतांत्रिक शासन के अंतर्गत सभी नागरिकों को सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता भी प्रदान की जाती है।

लोकतंत्र ही केवल शासन व्यवस्था होनी चाहिए इसके पक्ष में अपने विचार लिखिए

लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जो संपूर्ण विश्व में सबसे बेहतर मानी जाती है क्योंकि लोकतंत्र का देश के संविधान के निर्माण में एक महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसके अलावा लोकतांत्रिक व्यवस्था का सार्वजनिक क्षेत्र में भी एक बड़ा योगदान होता है जिसके कारण यह शासन व्यवस्था को बेहद अनिवार्य किया गया है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अन्य सभी शासन प्रणालियों से बेहतर मानी जाती है क्योंकि लोकतंत्र की नीतियों का पालन करने से सभी सार्वजनिक हित के कार्य संभव हो सकते हैं। इसके अलावा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के अंतर्गत जनता की भागीदारी को भी सुनिश्चित करने का कार्य किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि उनकी मांगों की पूर्ति करते हैं जिसे शासन व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग भी माना जाता है। लोकतंत्र के माध्यम से समाज में नागरिकों के प्रति परस्पर सद्भावना एवं सम्मान को विस्तारित किया जाता है जिसके कारण व्यक्तियों के विचारों एवं भावनाओं का सम्मान होता है। लोकतंत्र किसी एक व्यक्ति विशेष के पक्ष में नहीं होता बल्कि यह सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करता है। यह देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने का कार्य करता है जिससे हर नागरिकों में देश प्रेम की भावना का जन्म होता है।

वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था की तीन चुनौतियों का उल्लेख कीजिए

वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने गंभीर चुनौतियां हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती
  • विस्तार की चुनौती
  • बुनियादी आधार के निर्माण की चुनौती

लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती

वर्तमान समय में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करना एक बड़ी चुनौती माना जाता है। किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रबल बनाने हेतु कई सार्थक प्रयास किए जाते हैं परंतु किसी ना किसी कारण से लोकतंत्र को स्थापित करने में समस्या होती है। लोकतंत्र का उद्देश्य उन सभी संस्थानों को मजबूती प्रदान करना होता है जो नागरिकों की भागीदारी में मददगार होते हैं। विश्व में विभिन्न देशों के लोकतंत्र को पुनः स्थापित करने हेतु कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसके लिए केंद्रीय सरकार को शक्तिशाली लोगों पर आश्रित रहना पड़ता है।

विस्तार की चुनौती

विस्तार की चुनौती अनेक देश की सरकारों के लिए एक चुनौती का विषय है। इसके अंतर्गत देश के सभी क्षेत्रों में लोकतांत्रिक सरकार के मूल सिद्धांत, विभिन्न संस्थान एवं कई प्रकार के सामाजिक समूह को लागू करने की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाता है। कुछ देशों में अधिकतर लोकतांत्रिक सरकार स्थानीय सरकारों को अधिक शक्ति प्रदान करते हैं जिसके कारण लोकतंत्र को पूरे देश में स्थापित करने में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में राज्य सरकार केंद्र सरकार के नियमों का उल्लंघन करते हैं जिससे लोकतंत्र की नीतियों का खंडन होता है।

बुनियादी आधार के निर्माण की चुनौती

वर्तमान समय में विश्व के लगभग एक चौथाई क्षेत्र में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को लागू नहीं किया जा सका है। कई देशों के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण करना आज भी एक बड़ी चुनौती है। ऐसे क्षेत्रों में गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को हटाने एवं सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करने की एक बड़ी चुनौती होती है। उदाहरण के लिए नेपाल में लोकतंत्र के बुनियादी आधार का निर्माण करना बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि वहां राजशाही शासन व्यवस्था को ही लोकतंत्र का अहम् हिस्सा माना जाता है।

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भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों का विस्तार से वर्णन कीजिए

माना जाता है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है परंतु भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख विभिन्न प्रकार की चुनौतियां हैं जैसे:-

  • जातिवाद
  • निरक्षरता
  • सामाजिक एवं आर्थिक विषमता
  • जनसंख्या वृद्धि
  • क्षेत्रवाद
  • गरीबी / निर्धनता
  • संप्रदायवाद
  • हिंसा

इन सभी कारणों से भारत में लोकतंत्र का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है जिसके कारण भारत में लोकतंत्र की स्थापना करने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद भारत का संविधान पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक है जिसके अंतर्गत समाज में नागरिकों को समानता का महत्व दिया जाता है। परंतु वर्तमान समय में भारत आज भी सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर है जिसके कारण लोकतंत्र को स्थापित करने में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारतीय संविधान में लोकतंत्र की स्थापना पांच मुख्य सिद्धांतों के द्वारा की गई है जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • समाजवाद
  • लोकतांत्रिक व्यवस्था
  • संप्रभु
  • गणतंत्र
  • धर्मनिरपेक्षता

समाजवाद

समाजवाद वह आर्थिक एवं सामाजिक दर्शन है जिसके आधार पर भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था को स्थापित किया गया है। समाजवादी व्यवस्था के अंतर्गत धन संपत्ति का स्वामित्व एवं वितरण समाज के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। समाजवाद निजी संपत्ति पर अधिकारों का पूर्णता विरोध करता है।

लोकतांत्रिक व्यवस्था

लोकतांत्रिक व्यवस्था वह शासन प्रणाली है जिसके अंतर्गत सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। यह भारतीय लोकतंत्र का एक प्रमुख अंग है जिसमें सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय की उचित व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा लोकतांत्रिक व्यवस्था देश के सभी नागरिकों को लगभग हर क्षेत्र में स्वतंत्रता भी प्रदान करता है।

संप्रभु

संप्रभु राज्य सरकार की सर्वोच्च शक्ति को दर्शाता है एक देश को निर्णय लेने हेतु पूर्ण रूप से स्वतंत्र करने का कार्य करता है। यह भारतीय लोकतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है जिसमें केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों का स्वतंत्र रूप से निर्वहन किया जाता है।

गणतंत्र

गणतंत्र या गणराज्य देश की सरकार का वह स्वरूप है जिसके अंतर्गत एक राष्ट्र की शक्तियां पूर्ण रूप से जनसाधारण में समाहित होती है। भारत को एक गणतंत्र देश माना जाता है क्योंकि भारतीय लोकतंत्र की स्थापना का मूल सिद्धांत जनता के लिए, जनता का एवं जनता द्वारा शासन करना होता है। इसके अलावा गणतंत्र के माध्यम से देश प्रेम की भावना को भी बढ़ावा मिलता है जिसके कारण इसे भारतीय लोकतंत्र का एक प्रमुख अंग भी कहा जाता है।

धर्मनिरपेक्षता

धर्मनिरपेक्षता वह प्रमुख सिद्धांत है जो एक राज्य में नास्तिकों के जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा करता है। इसके अंतर्गत नास्तिक व्यक्तियों को जीवन व्यतीत करने के लिए कई प्रकार के मौलिक अधिकार भी प्रदान किए जाते हैं जिससे उनका जीवन में स्थिरता आती है।

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