भारत में आये प्रमुख विदेशी यात्री

भारत में आये प्रमुख विदेशी यात्री

भारत में आये प्रमुख विदेशी यात्री एवं दूत : भारत के इतिहास में समय-समय पर कई प्रख्यात विदेशी यात्री एवं दूतों ने भ्रमण किया। कुछ  विदेशी यात्री भारत में अध्ययन-यात्रा के लिए आये, तो कुछ शासन-प्रशासन समझने के लिए भारत आये तो कई यात्री भारत में व्यापार की संभावनाएं तलाशने के उद्देश्य से भारत आये।
इन्हीं विदेशी यात्रियों में से कुछ प्रमुख यात्रियों एवं दूतों की जानकारी निम्नवत है —

प्रमुख विदेशी यात्री / दूत

1. मेगस्थनीज

मेगस्थनीज सेल्यूकस द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में (305 ई0पू0) भेजा था। मेगस्थनीज यूनानी शासक सेल्यूकस का एक राजदूत था जो चन्द्रगुप्त के दरबार में आया था। मेगस्थनीज कई वर्षो तक चंद्रगुप्त के दरबार में रहा। उसने भारत में जो कुछ भी देखा, उसका वर्णन उसने अपनी “इंडिका” नामक पुस्तक में किया। मेगस्थनीज ने पाटलिपुत्र का बहुत सुंदर वर्णन किया है उसका कहना है की भारत का सबसे बड़ा नगर पाटलिपुत्र है नगर चारों ओर से दीवारों से घिरा है इस नगर में अनेक फाटक और दुर्ग बने हैं। नगर में अधिकांश मकान लकड़ीयों के बने है।

2. फ़ाह्यान

चीनी यीत्री फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में भारत आया। फ़ाह्यान (399-414 ई0) तक भारत में रहा। फ़ाह्यान बौद्ध धर्म का अनुयायी था। फ़ाह्यान का उद्देश्य बौद्ध स्मृतियों एवं बौद्ध हस्तलिपियों की खोज करना था। इस प्रकार फ़ाह्यान ने उन स्थानों का ही भ्रमण किया जो बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थे।

3. ह्वेनसांग

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने हर्षवर्द्धन के शासन काल में भारत की यात्रा की। ह्वेगसांग (629-643) तक भारत में रहे। उसने अपनी पुस्तक सी-यू-की में अपनी यात्रा तथा भारत का विवरण दिया। इनके वर्णनों से ही हर्षवर्द्धन कालीन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सास्कृतिक स्थिति के बारे में परिचय मिला है। ह्वेनसांग के प्रमाणों के कारण ही ज्ञात होता है कि हर्षवर्द्धन एक परिश्रमी तथा परोपकारी शासक था। ह्वेगसांग ने हर्षवर्द्धन की कलात्मक भावनाओं पर भी प्रकाश डाला है। हर्षवर्द्धन ने हमेशा ज्ञानार्जन को प्रोत्साहन दिया।

4. इत्सिंग

इत्सिंग एक चीनी यात्री एवं बौद्ध भिक्षु था, वह नालंदा विश्वविद्यालय में 10 वर्षों तक रहा था, उसने वहाँ के प्रसिद्ध आचार्यों से संस्कृत तथा बौद्ध धर्म के ग्रन्थों को पढ़ा। इत्सिंग 675 ई. के समय सुमात्रा होकर समुद्र के मार्ग से भारत आया था। इन्होने ‘नालन्दा’ एवं ‘विक्रमशिला विश्वविद्यालय’ तथा उस समय के भारत पर प्रकाश डाला है। इत्सिंग ने 691 ई. में अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘भारत तथा मलय द्विपपुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण’ लिखा। यह ग्रथं बौद्ध धर्म और ‘संस्कृत साहित्य’ के इतिहास का स्रोत माना जाता है।

5. अलबरूनी

अलबरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख्व़ारिज्म में सन् 973 में हुआ था। वह फारसी का एक प्रसिद्ध विद्वान था। उसने महमूद गजनवी की सेना के साथ भारत की यात्रा की थी। इसने ‘तहकीक-ए-हिन्द’ नामक पुस्तक की रचना की। अलबरूनी द्वारा रचित कुल 14 पुस्तकों में ‘किताब उल हिन्द’ सबसे अधिक लोकप्रिय पुस्तक है। उसकी इस पुस्तक को दक्षिण एशिया के इतिहास का प्रमुख स्रोत माना जाता है। अलबरूनी का असली नाम ‘अबू रैहान मुहम्मद’ था, लेकिन वह ‘अलबरूनी’ के नाम से ही अधिक प्रसिद्ध हुआ, जिसका अर्थ होता है, ‘उस्ताद’।

6. मार्कोपोलो

मार्कोपोलो वेनिस यात्री था। यह एक इतालवी (इटैलियन) व्यापारी, खोजकर्ता और राजदूत था। इसका जन्म वेनिस गणराज्य में मध्य युग के अंत में हुआ था। मार्कोपोलो ने अपने पिता निकोलस पोलो और अपने चाचा, मातेयो के साथ सामुद्रिक यात्रा की थी। वह रेशम मार्ग की यात्रा करने वाला सर्वप्रथम यूरोपियनों में से एक था। उसने अपनी यात्रा 1271 में लाइआसुस बंदरगाह (आर्मेनिया) से प्रारंभ की थी। वेनिस से शूरू हुई अपनी यात्रा में वह कुस्तुनतुनिया से वोल्गा तट, वहाँ से सीरिया, फ़ारस, कराकोरम, और फिर कराकोरम से उत्तर की ओर बुखारा से होते हुए मध्य एशिया में स्टेपी के मैदानों से गुज़रकर पीकिंग पहुँचा। इस पुरी यात्रा में मोर्कोपोलो को साढ़े तीन वर्ष का समय लगा।

7. इब्नबतूता

इब्नबतूता मोरक्को का यात्री था। इसका जन्म 24 फरवरी 1304 को हुआ था। इसका पूरा नाम अबू अब्दुल्ला मुहम्मद था। इब्नबतूता इनके कुल का नाम था। आगे चलकर अबू अब्दुल्ला मुहम्मद को इब्नबतूता के नाम से जाना गया। इन्होने ‘रहला’ नामक पुस्तक लिखी। इब्नबतूता मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में भारत आया था। भारत के उत्तर पश्चिम द्वार से प्रवेश करके वह सीधा दिल्ली पहुँचा, जहाँ तुगलक सुल्तान मुहम्मद ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया और उसे राजधानी का काजी नियुक्त किया।

8. निकोलो कोंटी

निकोलो कोंटी इटली का यात्री था। निकोलो कोंटी विजयनगर आने वाला पहला विदेशी यात्री था। वह विजयनगर साम्राज्य के राजा देवराय के शासनकाल में 1420-21 ई. में भारत आया था। जो मध्य युग में मुस्लिम व्यापारी के वेष में इटली से भारत आया, इसने दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन तक की यात्रा की। उसने अपनी यात्रा के विवरणों को लौटिन भाषा में लिखा, इसने यहाँ के शहर, राजदरबार, प्रथाओं, त्योहारों का वर्णन किया है।

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