दिल्ली सल्तनत का परिचय

दिल्ली सल्तनत का परिचय

ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत में तुर्कों ने आक्रमण किया। तुर्की आक्रमण के प्रथम नेतृत्वकर्ता मुहम्मद गजनी और मुहम्मद गौरी थे। दिल्ली सलतनत की स्थापना में प्रथम तुर्की आक्रमण की सफलता की ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानना होगा। देखा जाए तो दिल्ली सल्तनत का काल 1206 ई. से प्रारम्भ होता है, लेकिन उससे पहले महमूद गजनी और मुहम्मद गौरी के बारे में पढ़ना जरूरीः है।

महमूद गजनी

महमूद गजनवी यमनी वंश का तुर्क सरदार गजनी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था। महमूद ने सिंहासन पर बैठते ही हिन्दूशाहियों के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया।

महमूद गजनवी के आक्रमण

  • महमूद ने पहला आक्रमण हिन्दू शाही राजा ‘जयपाल’ के विरुद्ध सन् 1001 में किया। इस युद्ध में जयपाल की हार हो गई।
  • ‘वैहिंद’ (पेशावर के निकट) में महमूद और आनंदपाल के बीच 1008-1009 ई. में युद्ध हुआ। इन लड़ाइयों में पंजाब पर अब गजनवियों का पूर्ण अधिकार हो गया।
  • इसके बाद महमूद ने मुल्तान में आक्रमण किया। इसके बाद के आक्रमणों में उसने लाहौर, नगरकोट और थानेश्वर तक के विशाल भू-भाग में खूब मार-काट की तथा बौद्ध और हिन्दुओं को जबर्दस्ती इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया।
  • महमूद गजनी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया।
  • मथुरा पर उसका 9वां आक्रमण था।
  • उसका सबसे बड़ा आक्रमण 1026 ई. में काठियावाड़ के सोमनाथ मंदिर पर था। देश की पश्चिमी सीमा पर प्राचीन कुशस्थली और वर्तमान सौराष्ट्र (गुजरात) के काठियावाड़ में सागर तट पर सोमनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर है।
  • महमूद ने सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग तोड़ डाला। मंदिर को ध्वस्त किया। अकेले सोमनाथ से उसे अब तक की सभी लूटों से अधिक धन मिला था।
  • उसका अंतिम आक्रमण 1027 ई. में हुआ। उसने पंजाब को अपने राज्य में मिला लिया था और लाहौर का नाम बदलकर महमूदपुर कर दिया था। महमूद के इन आक्रमणों से भारत के राजवंश दुर्बल हो गए और बाद के वर्षों में विदेशी मुस्लिम आक्रमणों के लिए यहां का द्वार खुल गया।

मुहम्मद गौरी

मुहम्मद गौरी अफगान योद्धा था, जो गजनी साम्राज्य के अधीन गौर नामक राज्य का शासक था। मुहम्मद गौरी 1173 ई. में गौर का शासक बना। जिस समय मथुरा मंडल के उत्तर-पश्चिम में पृथ्वीराज और दक्षिण-पूर्व में जयचंद्र जैसे महान नरेशों के शक्तिशाली राज्य थे, उस समय भारत के पश्चिम-उत्तर के सीमांत पर शाहबुद्दीन मुहम्मद गौरी (1173 ई.-1206 ई.) नामक एक मुसलमान सरदार ने महमूद गजनवी के वंशजों से राज्याधिकार छीनकर एक नए इस्लामी राज्य की स्थापना की थी।

मुहम्मद गौरी के आक्रमण

  • गौरी ने भारत पर पहला आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर किया।
  • दूसरा आक्रमण 1178 ई. में गुजरात पर किया।
  • इसके बाद उसने 1179 ई. में पेशावर  तथा 1185 ई. में स्यालकोट अपने कब्जे में ले लिया।
  • 1191 ई. में उसका युद्ध पृथ्वीराज चौहान से हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में गौरी को बंधक बना लिया गया, लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने उसे छोड़ दिया। इसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता था।
  • इसके बाद मुहम्मद गौरी ने अधिक ताकत के साथ पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। तराइन का यह द्वितीय युद्ध 1192 ई. में हुआ।  इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की  हार हो गई और उनको बंधक बना लिया गया।
  • इसके बाद गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद को हराया जिसे चंदावर का युद्ध कहा जाता है।

इन युद्धों में विजय के बाद गौरी वापस अफगान आ गया, लेकिन अपने दासों (गुलामों) को वहां का शासक नियुक्त कर दिया। कुतुबुद्दीन ऐबक उसके सबसे काबिल गुलामों में से एक था जिसने एक साम्राज्य की स्थापना की जिसकी नींव पर दिल्ली सल्तनत तथा खिलजी, तुगलक, सैय्यद, लोदी, मुगल आदि राजवंशों की आधारशिला रखी गई थी। हालांकि गुलाम वंश के शासकों ने तो 1206 से 1290 तक ही शासन किया, लेकिन उनके शासन की नींव पर ही दिल्ली के तख्‍त पर अन्य विदेशी मुस्लिमों ने शासन किया, जो लगभग ईस्वी सन् 1707 को ओरंगजेब की मृत्यु तक चला।

अगले अध्याय में दिल्ली सल्तनत के बारे में पढेंगे

मामलुक या गुलाम वंश – 1206 ई. – 1290 ई.
खिलजी राजवंश – 1290 ई. – 1320 ई.
तुगलक वंश – 1321 ई. – 1413 ई.
सैयद वंश – 1414 ई. – 1450 ई.
लोदी वंश – 1451 ई. – 1526 ई.

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