जिम कॉर्बेट या एडवर्ड जिम कॉर्बेट के नाम से विख्यात शिकारी एडवर्ड जिम कॉर्बेट की जीवनी यहाँ दी गयी है। जेम्स एडवर्ड जिम कॉर्बेट को गोरा ब्राह्मण नाम से भी जाना जाता है।
जन्म | 25 जुलाई, 1875 |
मृत्यु | 19 अप्रैल, 1955 |
जन्म स्थान | नैनीताल |
एडवर्ड जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई, 1875 को नैनीताल में हुआ था। तब नैनीताल सयुंक्त प्रान्त का एक पहाड़ी जिला था, जो ब्रिटिश शासन के अधिन था। उनके पिता का नाम क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट तथा माता का नाम मैरी जेन कॉर्बेट था। मैरी जेन विलियम की दूसरी पत्नी थी और जिम भी मैरी के दुसरे पति थे, दोनों के पहले पति-पत्नीयों को मृत्यु हो गई थी। मैरी के पहले पति से 3 बच्चें थे।
जिम कॉर्बेट के पिता विलियम कॉर्बेट की बहन और बहनोई की एक दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के कारण उनके 3 बच्चों के पालन-पोषण का जिम्मा भी उन्होंने लिया। जिम अपने पिता के नौ संतानों में आठवी संतान थे। इस तरह जिम कॉर्बेट कुल बारह भाई-बहन थे।
जिम की प्रारम्भिक शिक्षा नैनीताल के ओपनिंग स्कूल से की बाद में सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के कारण पढाई बीच में छोड़कर 18 वर्ष की उम्र में मोकामा घाट (बिहार) जाकर वहाँ रेलवे में नौकरी करने लगे।
21 अप्रैल 1881 में 58 वर्ष की आयु में जिम के पिता की मृत्यु हो गई, जिसे से घर की आमदनी कम हो गई ओर मैरी जेन घर की आमदनी को बढ़ने के लिए व्यापार करने का निश्चय किया। नैनीताल में रह कर एक रेंटल एजेंसी की स्थापना की और सफलतापूर्वक चलाया। सन 1927 में 90 वर्ष की उम्र में मैरी जेन का भी निधन हो गया। जिम के माँ-बाप दोनों को नैनीताल के पास सूखाताल स्थित सेंट जान्स चर्च के कब्रिस्तान में दफनाया गया।
माँ के निधन के बाद जिन कॉर्बेट ने नैनीताल में कुछ दिन रेंटल एजेंसी के काम को ही आगे बढ़ाया। जिम कॉर्बेट ने अविवाहित रहकर बड़ी बहन कॉर्बेट मैगी के साथ अपना अधिकांश जीवन कालाढूंगी एवं नैनीताल के स्थानी ग्रामीण लोगो के बीच में रहकर बिताया। इस प्रकार उन्हें यहाँ के जंगलों और जानवरों से काफी लगाव हो गया। इसके साथ-साथ इनकी बहन मैगी को भी पक्षियों के प्रति काफी लगाव हो गया।
जिम कॉर्बेट एक अच्छे शिकारी, पर्यावरणविद, महान लेखक के साथ एक असाधारण व दयावान व्यक्ति भी थे। नैनीताल व कालाढूंगी के जंगलों में उनदिनों काफी संख्या में बाघ थे, और कई तो आदमखोर भी थे। जब कभी जिन नैनीताल एवं कालाढूंगी से दूर रहते तो गाँववालों की याद सताती रहती थी। जब भी गांववालों पर कोई विपत्ति अथवा नरभक्षी बाघ का आतंक उन्हें सताने लगता, वे अपने प्रिय जिम कार्बेट को तार द्वारा सूचित करते। वह तुरंत छुट्टी लेकर पहुँच जाते थे। इस बीच उन्होंने तीन आदमखोरों का शिकार भी किया। इस सन्दर्भ में जिम कार्बेट ने अपनी पुस्तक ‘मेरा भारत (My India)’ में लिखा है। इस प्रकार जिम नरभक्षी आदमखोरों को मारने के लिए लोकप्रिय हो गये।
1907 से 1938 के बीच जिम कॉर्बेट ने 33 नरभक्षियों का शिकार कर उन्हें मार गिराया। इनमें 19 बाघ और 14 तेंदुए थे। सरकारी रिकार्ड के अनुसार इन बड़ी बिल्लियों ने गाँवों में 1200 लोगों को मौत के घाट उतारा था।
मारे गए ज्यादातर बाघों और तेंदुए की खोपड़ी और शरीर के अन्य हिस्सों की जाँच के बाद जिम को पता चला की ये तमाम् आदमखोर किसी-न-किसी बीमारी से या घायल थे। अधिकांश घाव किसी गोली के लगने से बने थे। जिम के अनुसार घायल होने के बाद अधिकांश जानवर प्राकृतिक शिकार करने में असमर्थ होने के चलते आदमखोर बने थे। अपने इन आकलन का उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक “मैन ईटर्स ऑफ़ कुमाऊँ” में किया है।
जिम को हमेशा अकेले शिकार करना पसंद था। वे हमेशा जंगल में पैदल घूमते और शिकार करते थे। जिम ने अपनी जान जोखिम में डालकर कई लोगो की जान बचाई, इसी लिए लोग इन्हें ‘गोरा ब्राह्मण’ के नाम से भी जानते है।
शिकार-कथाओं के कुशल लेखकों में जिम कॉर्बेट का नाम विश्व में अग्रणीय है। आज कुमाऊँ-गढ़वाल की धरती पर इनके नाम से स्थापित जिम कॉर्बेट पार्क है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इस महान लेखक, शिकारी, पर्यावरणविद ने भारत का नाम बढ़ाया है। आज विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध शिकारी के रुप में आदर से लिया जाता है।
जिम कॉर्बेट द्वारा रचित प्रमुख पुस्तकें :
- The Man-eating Leopard of Rudraprayag
- Man-Eaters of Kumaon
- My India
- Jungle Stories
- The Temple Tiger and More Man-eaters of Kumaon
- Jungle Lore
- My Kumaon: Uncollected Writings
- Tree Tops
Source : wikipedia.org
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