गोलू देवता की कहानी (Story of Golu Devta) : गोलू देवता जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है, गोलू देवता अपने न्यायप्रिय स्वभाव एवं सभी की कामनाएं पूर्ण करने के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। ऐसी लोक कथा है की गोलू देवता, कत्यूरी राजवंश के राजा झालुराई की इकलौती संतान थे।
राजा झालुराई एक न्यायप्रिय, दयालु और तेजस्वी राजा थे। उनकी सात रानियां थी परंतु एक भी सन्तान न थी, उनको अपना वंश आगे न बढ़ पाने कर डर था, जिस कारण वह काफी चिंतित रहते थे। एक दिन राजा एक ज्योतिष से मिले जिसने राजा को भगवान भैरव की तपस्या करने को कहा। इसके बाद राजा ने घनघोर तपस्या कर भगवान भैरव को प्रसन्न किया, भगवान भैरव ने दर्शन देकर राजा के तपस्या का कारण पूछा। राजा ने कहा प्रभु आपको तो सब ज्ञात है मेरे पास सब कुछ है सात रानियां भी हैं पर एक से भी संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ है। यह बात सुन भगवान भैरव ने कहा राजा तुम उदारवादी और तेजस्वी राजा हो परंतु तुम्हारे जीवन में संतान सुख नहीं है पर क्योंकि तुमने मुझे प्रसन्न कर संतान सुख का वरदान माँगा है तो मैं तुम्हें निराश नहीं करूँगा। मैं स्वयं तुम्हारे घर पुत्र स्वरूप जन्म लूंगा परन्तु तुम्हें आठवाँ विवाह करना होगा।
यह सुन राजा बहुत प्रसन्न हुए और भगवान भैरव से पूछा की वह कौन सौभाग्यशाली स्त्री होगी जिसके गर्भ से आप जन्म लेंगे। इस प्रश्न पर भगवान भैरव ने कहा की उचित समय आने पर तुम्हें स्वयं यह ज्ञात हो जायेगा की तुम्हारी आठवीं पत्नी कौन होगी।
कई दिन बीत गए पर राजा को वह स्त्री नहीं मिली जिससे वह विवाह कर सकें। एक दिन राजा शिकार पर गए हुए थे। पुरे दिन शिकार के पश्चात उन्हें प्यास लगी तो सेवकों से पानी माँगा, पर पानी ख़त्म हो चूका था। इसलिए सेवक पानी की तलाश में निकल गए और काफी देर तक न लोटे, तो राजा उनकी तलाश में एक तालाब के किनारे पहुंचे, जहाँ उनके सिपाही मूर्छित पड़े थे। यह देख राजा चोंक गए और जैसे ही पानी पीने वाले थे, उनको एक स्त्री की आवाज सुनाई दी “रुक जाओ, इन सभी ने भी यही गलती की थी। यह तालाब मेरा है और मेरी आज्ञा के बिना तुम पानी नहीं ले सकते हो।”
वह स्त्री बहुत सुन्दर थी राजा उसे देख कर मंत्र मुग्ध हो गए। राजा ने बताया की वह इस राज्य के राजा झोलुराई हैं और पूछा कि “देवी आप कौन हैं ? और इस वन में क्या कर रही हैं?”
उस स्त्री ने बताया की वह पञ्च देवताओं की बहन कलिंगा हैं। और झालुराई को यह साबित करने को कहा कि वह राजा हैं। इस पर झोलुराई ने कहा की आप ही बताएं देवी में आपको अपने राजा होने का क्या प्रमाण दूँ। स्त्री ने पास में ही आपस में लड़ते हुए दो भैंसों को देखा और कहा की आप इनको अलग कर सकें तो मैं मान जाऊंगी की आप ही राजा झोलुराई हैं। राजा ने काफी प्रयास किये पर सफल न हो सके। यह देख कलिंगा ने स्वयं उन दो भैंसों को अलग कर उनकी लड़ाई समाप्त करवा दी। राजा यह देख काफी प्रभावित हुए और देवी कलिंगा को अपनी आठवीं पत्नी बनाने का ठान लिया। और विवाह का प्रस्ताव पञ्च देवताओं के सम्मुख रखा। पञ्च देवता भी राजा झालुराई की महानता से प्रभावित थे इसलिए दोनों का विवाह कर दिया गया।
कुछ ही वक्त बाद रानी कलिंगा गर्भवती हो गयीं यह देख सातों रानियां, रानी कलिंगा से जलने लगीं। सातों रानियों ने मिलकर यह योजना बनायीं की कैसे भी रानी कलिंगा की संतान को ख़त्म करना है। सातों रानियों ने रानी कलिंगा से कहा की एक ज्योतिषी ने उन्हें बताया है की जन्म के वक्त अगर तुम अपनी संतान को देखोगी तो वह मर जाएगी। जल्द ही प्रसव का दिन आया, रानी कलिंगा की आँखों पर पट्टी बांध दी गयी। रानी ने पुत्र को जन्म दिया, सातों रानियों ने बच्चे को गोशाला में फेंक दिया ताकि बच्चा पशुओं के पैरों तले आकर मर जाये। और रानी कलिंगा को बताया कि उसने सिलवट्टे (पत्थर) को जन्म दिया है और खून से लथपथ पत्थर कलिंगा की गोद में दे दिया।
वहीं दूसरी तरफ गोशाला में पड़े बच्चे को खरोंच तक नहीं आयी गाय का दूध पीकर बच्चा सकुशल था। यह देख सातों रानियों ने बच्चे को नमक के ढेर में दबा दिया, पर वह नमक का ढेर चीनी के ढेर में बदल गया। इसके बाद बिच्छूओं के बीच फेंक दिया पर बच्चे का बाल भी बांका न हुआ। जब रानियों को कुछ न समझ आया तो बच्चे को संदूक में बंद करके काली नदीं में बहा दिया। सात दिन, सात रात के बाद एक मछुआरे के जाल में वह संदूक जा फसा। जब मछुआरे ने संदूक खोला तो उसमें से बच्चा निकला यह देख मछुआरा और उसकी पत्नी काफी प्रश्न हुए क्योंकि उन दोनों की भी कोई सन्तान न थी।
दिन बीतते गए लड़का बड़ा हो चूका था, वहीं दूसरी तरफ राजा झालुराई अपनी किस्मत से काफी निराश थे। एक दिन लड़के को अपने सपने में ज्ञात हुआ की वह राजा झालुराई के पुत्र हैं और उनकी सौतेली माँओं (सातों रानियाँ) ने धोके से उन्हें अपने माता पिता से दूर कर दिया है। साथ ही अपने जीवन का उद्देश्य, जन्म से जुडी घटनाएं, सब कुछ याद आ गया।
सब कुछ ज्ञात होने के पश्चात लड़का अपने पिता (मछुआरे) के पास गया और घोड़े की मांग की, मछुआरा गरीब था घोडा खरीद पाने में सक्षम न था तो वह लकड़ी का घोडा ले आया। लड़का अपने भगवान भैरव के अवतार को जान चूका था जिस कारण उसमें दैवीय व चमत्कारी शक्तियां आ चुकी थी, तो लड़के ने अपने चमत्कार से लकड़ी के घोड़े को जीवित कर दिया। और घोड़े को लेकर राजा झोलुराई की राजधानी की तरफ चल पड़े। राजधानी के समीप ही एक तालाब के किनारे सातों रानियां बैठी हुई थी, यह देख लड़के ने अपने घोड़े को फिर से लकड़ी का घोडा बना दिया और रानियों के पास जाकर बोला की “हटो यहाँ से, मेरे घोड़े को पानी पीना है।” रानियां ये देखकर हैरान थी कि लड़का काठ के घोड़े को पानी पिलाने लाया है। उनमें से एक रानी बोली कि “बालक तुम पागल हो क्या लकड़ी का घोडा कैसे पानी पी सकता है।”
यह सुन लड़का बोला “अगर इस राज्य की रानी एक सिलवट्टे को जन्म दे सकती है तो क्या मेरा लकड़ी का घोडा पानी नहीं पी सकता है?” रानियां लड़के का दुस्साहस देख काफी क्रोधित हुईं और लड़के की शिकायत राजा से की। लड़के को पकड़कर राजा के सम्मुख, महल में लाया गया। राजा ने लड़के से पूछा कि “क्या तुम्हें इतना भी ज्ञात नहीं है की काठ का घोडा पानी नहीं पीता है।” इस पर लड़के ने कहा “राजन जब इस राज्य की महारानी एक पत्थर को जन्म दे सकती है तो क्या मेरा लकड़ी का घोडा पानी नहीं पी सकता।” साथ ही लड़के ने बताया कि वही राजा की इकलौती संतान है जिसे सातों रानियों ने मिलकर मारने की कोशिश की थी। साथ ही भगवान भैरव और राजा के बीच हुई बातों के बारे में बताया जिसे सिर्फ राजा झोलुराई ही जानते थे।
सब बात सुन राजा को लड़के की बातों पर यकीन आ चूका था की वही लड़का उनकी संतान है। साथ ही क्रोधित होकर सातों रानियों को कारावास में डाल दिया। सातों रानियां चीखने – पुकारने लगीं व रानी कलिंगा और राजा से क्षमा-याचना मांगने लगीं। बालक के कहने पर राजा ने सातों रानियों को माफ़ कर दिया। कुछ वक्त पश्चात बालक, युवा हो चूका था राजा झोलुराई के पश्चात उन्होंने राज्य का भार सम्भाला और अपने तुरंत व सही न्याय के कारण ही उन्हें न्याय का देवता कहा गया।
“यही बालक आगे चलकर गोलू देवता, ग्वाल महाराज, गोलजू, बाला गोरिया, गोल्ज्यू देव और गौर भैरव (शिव), गोलू इत्यादि नामों से प्रसिद्ध हुए।”
गोलू देवता का प्रसिद्ध मंदिर (Famous Temple of Golu Devta)
पूरे कुमाऊँ क्षेत्र में गोलू देवता काफी प्रसिद्ध हैं। प्रदेश में इनके कई सारे मंदिर हैं।
गोलू देवता का प्रसिद्ध मंदिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा (Almora) जिले के चितई (Chitai) नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर अल्मोड़ा शहर से 10 किलो-मीटर की दूरी पर स्थित है।
मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी व्यक्ति कोई मुराद लेकर आता है वह जरूर पूरी होती है। साथ ही कोई अगर न्याय की आस में यहाँ आता है तो गोलू देवता के दर्शन करके, उसको जल्द ही न्याय की प्राप्ति होती है।
अल्मोड़ा के चितई मंदिर से जुडी पौराणिक मान्यता :-
एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि चंद राजवंश के राजा बाज बहादुर के सेनापति का नाम गोलू देव था जो कि अपनी वीरता के कारण प्रसिद्ध थे। किसी युद्ध में वीरगति पाने के बाद उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा के चितई मंदिर की स्थापना की गयी।
चम्पावत (Champawat) जिले में कई जगह गोलू देवता को अपना इष्टदेव माना जाता है तथा नौ दिन तक उनकी पूजा की जाती है।
Uttarakhand GK Notes पढ़ने के लिए — यहाँ क्लिक करें |
उत्तराखण्ड के सभी वीरो वीरागंनाऔ की कथा प्रेऱणा स्रोत एंव ग्यान वर्धक है
ज्ञान से परिपूर्ण लेखों के लिए धन्यवाद !
Golju devta ढोटी nepal ke the or golju ki aadhi baar to btayi nhi golju devta apni bhn भाना bulane par chitai main gye kuki waha unki bhn ke sasrual walo ne unki bhn ki sari jamin kabja kar liya tha or phir paideal waha nepal gyi phir golju ne kha jab main aaunga to tum logo ko bulaunga ye h aadhi baat btate ladai ka to khi hai hi nhi
Lekin golu dev ne to sanyas le liya tha
Jai Golju Maharaj
Jai ho golu devta ki
Jai Golu devta ki bhagwaan sabhi ke sath nyaay ho
jay ho Golu dwvta
Jai Golu Devta ki