मध्य प्रदेश के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ : मध्य प्रदेश प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा है, जो अपनी समृद्ध साहित्य के लिये जाना जाता है। मध्य प्रदेश महत्वपूर्ण व्यक्तित्व एवं उनके साहित्य की जन्म स्थली प्राचीन काल से ही रहा है, जहाँ समय-समय पर महान रचनाकार द्वारा कई साहित्यिक रचनाएँ की गयी हैं जो इतिहास का एक महान हिस्सा हैं।
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मध्य प्रदेश के प्रमुख साहित्यकार
मध्य प्रदेश के प्रमुख साहित्यकारों को मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया गया है:-
- प्राचीन काल के साहित्यकार
- कालिदास
- भवभूति
- बाणभट्ट
- भर्तृहरि
- मध्य काल के साहित्यकार
- केशवदास
- भूषण
- बिहारीलाल चौबे
- पद्माकर
- संत सिंगाजी
- जगनिक नायक
- घाघ दुबे
- ईसुरी
- आधुनिक काल के साहित्यकार
- सुभद्रा कुमारी चौहान
- पंडित माखनलाल चतुर्वेदी
- बालकृष्ण शर्मा नवीन
- शरद जोशी
- गजानन माधव मुक्तिबोध
- भवानी प्रसाद मिश्र
- हरिशंकर परसाई
- डॉ शिवमंगल सिंह सुमन
- मुल्ला रामोजी
मध्य प्रदेश के प्राचीन काल के प्रमुख साहित्यकार
कालिदास
कालिदास का जन्म का स्थान एक विवाद का विषय रहा है परंतु कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कालिदास का जन्म तीसरी या चौथी शताब्दी में मध्य प्रदेश के उज्जैन नामक स्थान में हुआ था। इन्होंने अपने जीवन काल में कई प्रसिद्ध रचनाएं की थी। कालिदास की प्रथम रचना ‘मालविकाग्निमित्रम्’ है जो वास्तव में राजा अग्निमित्र की एक कथा है। कालिदास को प्राचीन काल के सबसे प्रसिद्ध साहित्यकारों में से एक माना जाता है। इन्होंने ‘रघुवंश’ नामक महाकाव्य की रचना की थी जिसमें लगभग 19 सर्ग हैं एवं यह रघुवंश के महाराज रघु के पूरे वंश की संपूर्ण कथा संग्रह है। इसके अलावा कालिदास को सभी कवियों में सर्वश्रेष्ठ भी माना जाता है जिसके कारण उन्हें कविकुलगुरू के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
कालिदास की प्रमुख रचनाएं
कालिदास की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- विक्रमोर्वशीयम् (नाटक)
- मालविकाग्निमित्रम् (नाटक)
- अभिज्ञान शाकुन्तलम् (नाटक)
- कुमारसंभवम् (महाकाव्य)
- रघुवंशम् (महाकाव्य)
- ऋतुसंहार (खण्डकाव्य)
- मेघदूतम् (खण्डकाव्य)
भवभूति
भवभूति संस्कृत के महान कवियों एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककारों में से एक थे। भवभूति का जन्म मध्य प्रदेश के पद्मपुर (पद्म पुरा या पद्मावती नगरी) नामक स्थान में हुआ था। उनके द्वारा लिखे गए नाटकों को कालिदास के नाटक के समान माना जाता है। कहा जाता है कि वे कन्नौज के महाराजा यशोवर्मन के दरबार के प्रमुख कवि थे। भवभूति को तीन प्रकार के नाटकों के लिए विशेष रूप से महत्व दिया गया था जिनमें से पहला महावीर चरित्र, दूसरा महावीर चरित एवं तीसरा मालती माधव नामक नाटक है। माना जाता है कि इन तीनों नाटकों में से सबसे अधिक ‘मालती माधव’ नाटक प्रचलित है।
भवभूति की प्रमुख रचनाएं
भवभूति की तीन रचनाओं को उनकी प्रमुख रचनाओं के रूप में जाना जाता है जो कुछ इस प्रकार हैं:-
- महावीरचरितम् (महान नायक के कारनामे)
- मालतीमाधव (मालती एवं माधव की प्रेम कथा)
- उत्तररामचरितम् (भगवान श्री राम का चरित्र चित्रण)
बाणभट्ट
बाणभट्ट मध्य प्रदेश के प्राचीनतम महान कवियों में से एक थे जिन्होंने अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण रचनाएं की थी। माना जाता है कि बाणभट्ट का जन्म प्रीतिकूट नामक क्षेत्र में हुआ था। उन्हें संस्कृत साहित्य के महान संरक्षकों में से एक माना जाता था। कहा जाता है कि बाणभट्ट सातवीं शताब्दी के महान संस्कृत गद्य काल के कवि थे जो राजा हर्षवर्धन के दरबार के प्रमुख कवि के रूप में जाने जाते थे। इनके द्वारा रचित कविताएं मधुर एवं कोमल पदों से युक्त होती थी। बाणभट्ट अपनी कविताओं में विषय के अनुरूप समास का बड़ी कुशलता से उपयोग करते थे।
बाणभट्ट की प्रमुख रचनाएं
बाणभट्ट की तीन कृतियों को उनके जीवन की प्रसिद्ध रचनाएँ माना जाता है जो कुछ इस प्रकार हैं:-
- कादंबरी
- हर्षचरित
- चण्डीशतक
भर्तृहरि
भर्तृहरि मध्य प्रदेश के साथ-साथ भारतीय इतिहास के भी महान संस्कृत कवियों में से एक थे। इनका जन्म 550 ई में उज्जैन नामक स्थान में हुआ था। भर्तृहरि को संस्कृत भाषा के संत कवि के रूप में भी जाना जाता था। इसके अलावा इन्हें संस्कृत साहित्य के नीतिकार के रूप में भी काफी प्रसिद्धि हासिल हुई थी। उन्होंने अपने जीवन काल में रसपूर्ण भाषा में नीति, वैराग्य एवं शृंगार जैसे विषयों पर कई काव्य की रचना की थी। कहा जाता है कि भर्तृहरि मुक्तक एवं शतक काव्य के अग्रदूत थे।
भर्तृहरि की प्रमुख रचनाएं
भर्तृहरि ने संस्कृत साहित्य के इतिहास में कई महत्वपूर्ण रचनाएं की थी जैसे:-
- शृंगारशतक
- वैराग्यशतक
- शतकत्रय
- महाभाष्यदीपिका
- वाक्यपदीय टीका
- मीमांसाभाष्य
- शब्दधातुसमीक्षा
- वेदान्तसूत्रवृत्ति
मध्य प्रदेश के मध्य काल के प्रमुख साहित्यकार
केशवदास
आचार्य केशवदास का जन्म सन 1555 ई में ओरछा नामक स्थान में हुआ था। इन्हें रीतिवादी काव्यधारा का प्रमुख प्रवर्तक एवं प्रचारक माना जाता है। इन्हें संस्कृत साहित्य के कठिन काव्य की रचना करने के लिए जाना जाता था जिन्होंने संस्कृत एवं हिंदी भाषा में कई रचनाएं की थी। केशवदास की रचनाओं में मुहावरों की जटिलता, अपभ्रंश के शब्द, संस्कृत के शब्दों आदि की अधिकता होती थी। यह महाराजा इंद्रजीत सिंह के दरबार के प्रमुख कवि, मंत्री एवं गुरु थे। इनकी काव्य रचनाओं में भाव पक्ष की तुलना में कला पक्ष की अधिक प्रधानता होती थी।
केशवदास की प्रमुख रचनाएं
केशवदास की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- रामचंद्रिका
- कविप्रिया
- रसिकप्रिया
- विज्ञानगीता
- रतनबावनी
- छंदमाला
- वीरसिंहदेव चरित
- जहाँगीर
- जसचंद्रिका
- नखशिख
भूषण
भूषण रीतिकाल के प्रमुख हिंदी कवियों में से एक थे जिन्हें मुख्य रूप से बिहारी तथा शृंगार रस में रचना करने के लिए जाना जाता था। इनकी रचनाओं में वीर रस की अधिक प्रधानता होती थी। भूषण को मध्यकाल के प्रमुख महाकवियों में से एक माना जाता है जिन्होंने ब्रजभाषा में कई काव्य रचनाएं की थी। उनकी रचनाओं में अरबी, प्राकृत, बुंदेलखंडी, फारसी एवं खड़ी बोली के शब्दों की अधिक प्रधानता होती थी। इसके अलावा भूषण की अधिकांश रचनाओं में मिश्रित भाषा में भाव व्यंजना शैली का प्रयोग देखने को मिलता है।
भूषण की प्रमुख रचनाएं
भूषण उन विद्वानों में से एक थे जिनकी छह रचनाओं को प्रमुख माना जाता था जो कुछ इस प्रकार हैं:-
- भूषण उल्लास
- दूषनोल्लासा
- शिवराजभूषण
- छत्रसालदशक
- शिवाबावनी
- भूषण हजारा
बिहारीलाल चौबे
बिहारीलाल का जन्म वर्ष 1603 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर नामक क्षेत्र में हुआ था। इन्हें प्रसिद्ध रससिद्ध कवि के नाम से भी जाना जाता है। बिहारीलाल की काव्य रचनाओं में शृंगार रस के अधिक प्रधानता होती थी। इसके अलावा उन्होंने अपनी रचनाओं में शब्दालंकार के अंतर्गत अनुप्रास का सर्वाधिक प्रयोग किया है। बिहारीलाल चौबे ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जयपुर-नरेश मिर्जा राजा जय सिंह को काफी प्रभावित किया था जिसके परिणाम स्वरूप राजा ने उन्हें अपने दरबार का प्रमुख साहित्यकार घोषित किया था।
बिहारीलाल चौबे की प्रमुख रचना
बिहारीलाल चौधरी की प्रमुख रचना ‘सतसई’ को माना जाता है जिसमें उन्होंने लगभग 719 दोहे संकलित किए हैं। यह एक मुक्तक काव्य है जिसे शृंगार रस की अत्यंत प्रसिद्ध एवं अनूठी कृति माना जाता है। ‘सतसई’ में उपयोग किए जाने वाले दोहे हिंदी साहित्य के अनमोल रतन माने जाते हैं। उन्होंने बड़ी कुशलता से इस काव्य में शृंगार के संयोग एवं योग पक्षों का वर्णन किया है। यह बिहारीलाल चौबे के जीवन की सबसे बड़ी रचना मानी जाती है।
पद्माकर
पद्माकर रीतिकाल के प्रमुख कवियों में से एक थे जिनका जन्म वर्ष 1753 में हुआ था। वह हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक थे जिन्हें हिंदी के साथ-साथ संस्कृत साहित्य में भी काफी प्रसिद्धि हासिल हुई थी। पद्माकर ने अपने जीवन काल में कई ग्रंथों की रचना की थी। इसके अलावा इन्हें रीतिकाल के अंतिम सर्वश्रेष्ठ एवं प्रतिनिधि कवि के रूप में भी जाना जाता है। इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से शृंगार रस के सहयोग एवं वियोग पक्षों का बेहद सरल रूप से चित्रण किया था। पद्माकर की अधिकांश रचनाओं में ब्रजभाषा का शुद्ध साहित्यिक रूप देखने को मिलता है। इनकी रचनात्मक शैली स्वभाविक एवं सशक्त मानी जाती है एवं इनकी रचनाओं में प्रयोग की जाने वाली भाषा मधुर एवं प्रभावपूर्ण होती थी। पद्माकर की रचनाओं से प्रभावित होकर जयपुर के राजा प्रताप सिंह ने उन्हें कविराज शिरोमणि की उपाधि दी थी।
पद्माकर की प्रमुख रचनाएं
पद्माकर ने अपने जीवन काल में कई प्रसिद्ध रचनाएं की थी जो कुछ इस प्रकार हैं:-
- पद्माभरण
- हिम्मतबहादुर विरुदावली
- जगद्विनोद
- भग्वत्पंचाशिका
- गंगालहरी
- रामरसायन
- प्रतापसिंह-सफरनामा
- यमुनालहरी
- ईश्वर-पचीसी
- प्रबोध पचासा
- कलि-पचीसी
- अश्वमेध
- रायसा
- आलीजाप्रकाश आदि।
संत सिंगाजी
संत सिंगाजी को मध्य प्रदेश के निमाड़ नामक क्षेत्र के प्रसिद्ध संत के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म सोलहवीं शताब्दी में मध्य प्रदेश के बड़वानी नामक जिले में हुआ था। संत सिंगाजी को संत कबीर के समकालीन माना जाता है। इन्होंने अपने जीवन काल में कई प्रसिद्ध रचनाएं की थी जिनके कारण उन्हें पूरे भारतवर्ष में काफी प्रसिद्धि हासिल हुई। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को जागृत करने का प्रयास किया था। मध्य प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में संत सिंगाजी को पशु रक्षक देव के रूप में भी पूजा जाता है। इन्होंने अपने आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर जमींदारों से कई लड़ाइयां लड़ी थी जिसमें उन्हें कथित रूप से विजय भी प्राप्त हुई थी।
संत सिंगाजी की प्रमुख रचनाएं
संत सिंगाजी की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- शरद
- पन्द्रह तिथि
- साखी भजन बारहमासी
- दोषबोध
- देश की वाणी
- नरद
- उपदेश
- सातवार आदि।
जगनिक नायक
जगनिक नायक मध्य प्रदेश के इतिहास के प्रमुख कवियों में से एक माने जाते हैं। इन्होंने परमाल के सामंत एवं सहायक महोबा के आल्हा-उदल को नायक की उपाधि देकर ‘आल्हाखंड’ नामक एक प्रमुख ग्रंथ की रचना की थी जिसे पूरे भारतवर्ष में ‘आल्हा’ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा जगनिक नायक ने महोबा के दो प्रसिद्ध वीरों आल्हा एवं उदल की वीर गाथा का विस्तृत रूप से वर्णन करने हेतु वीरगाथात्मक काव्य की रचना भी की थी। उन्होंने आल्हाखंड की रचना बनाफारी बोली में की थी जो बुंदेली की एक उप भाषा मानी जाती है। इसके अलावा इन्होंने आल्हा खंड में लगभग 52 युद्धों का काफी बड़ी कुशलता से वर्णन किया है।
जगनिक नायक की प्रमुख रचना
जगनिक नायक ने आल्हाखण्ड नामक ग्रंथ की रचना की थी जिसके कारण उन्हें काफी प्रसिद्धि हासिल हुई थी। यह एक वीर रस प्रधान काव्य है जिसमें आल्हा एवं उदल की लगभग 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी रूप से वर्णन किया गया है।
घाघ दुबे
घाघ दुबे का जन्म वर्ष 1753 में कन्नौज नामक क्षेत्र में हुआ था। यह पूरे भारतवर्ष में प्रमुख लोक कवि के रूप में जाने जाते हैं। घाघ दुबे ने अपनी रचनाओं के माध्यम से कृषिकों के लिए मार्गदर्शन करने का कार्य किया था जिसके कारण इन्हें कृषि वैज्ञानिक के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इन्होंने अपनी कहावतों के माध्यम से कृषि एवं मौसम की सटीक जानकारी प्रदान की थी। घाघ दुबे एक महान कृषि पंडित थे जिन्हें मुगल बादशाह अकबर ने ‘चौधरी’ की उपाधि दी थी। इसके अलावा आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने घाघ दुबे को एक कवि ना मानकर एक सूक्तिकार माना था।
घाघ दुबे की प्रमुख कहावतें एवं दोहे
घाट दुबे की प्रमुख कहावतें एवं दोहे कुछ इस प्रकार हैं:-
- दिन में गर्मी रात में ओस, कहे घाघ बरसा सौ कोस।
- खाद पड़े तो खेद, नहीं तो कूड़ा रेत।
- सन के डंठल खेत छिटावै, तिनके लाभ चौगुनो पावै।
- खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै।
- गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।
ईसुरी
ईसुरी का जन्म वर्ष 1831 में उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के मऊरानीपुर के गांव मेंढ़की नामक क्षेत्र में हुआ था। इन्हें बुंदेलखंड के लोकप्रिय कवियों में से एक माना जाता है। इन्होंने अपने जीवन काल में कई प्रमुख रचनाएं की थी जिसके कारण इन्हें ‘बुंदेलखंड का जयदेव’ भी कहा जाता है। इनकी अधिकांश रचनाओं में प्राचीन ग्रामीण संस्कृति एवं सौंदर्य का विस्तृत चित्रण देखने को मिलता है। इनकी रचनाएं विशेष रूप से युवाओं में अधिक लोकप्रिय हुई थी जो फाग के रूप में लिखी गई थी।
ईसुरी की प्रमुख रचनाएं
ईसुरी की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- पर गए इन सालन में ओरे
- जो तुम छैल छला हो जाते
- मोहन भर पिचकारी खींचे
- ऐसी पिचकारी की घालन
- बीते जात मायके मइयां
मध्यप्रदेश के आधुनिक काल के प्रमुख साहित्यकार
सुभद्रा कुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त वर्ष 1904 में इलाहाबाद के पास स्थित निहालपुर गांव में हुआ था। वह भारतीय इतिहास की प्रमुख कवियत्री एवं लेखिका थीं जिन्होंने अपने जीवन काल में अपनी रचनाओं के माध्यम से काफी प्रसिद्धि हासिल की थी। वह अपनी रचनाओं में हिंदी भाषा की सरल पद्धति का प्रयोग करती थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रमुख रचना ‘झांसी की रानी’ को माना जाता है जिसमें उन्होंने मुख्य रूप से रानी लक्ष्मीबाई के द्वारा किए जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम एवं उनके गृहस्थ जीवन के अनुभव के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान की थी।
सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रमुख रचनाएं
सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- त्रिधारा
- मुकुल
- झांसी की रानी
- रानी की चुनौती
- बिदा
- बिखरे मोती
- खिलौने वाला
- वीरों का कैसा हो वसंत
- भग्नावशेष
- पापी पेट
- एकादशी
- थाती
- अनुरोध
- किस्मत
- कदंब के फूल
- परिवर्तन
- दृष्टिकोण
- होली आदि।
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल वर्ष 1889 में हुआ था। यह मध्य प्रदेश के साथ-साथ भारत के प्रमुख कवि, लेखक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। माखनलाल चतुर्वेदी एक प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हैं जिनकी रचनाओं में सरल भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है। इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी जिसके कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी एक सच्चे देशभक्त थे जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से देश की युवा पीढ़ी को जागृत करने का प्रयास किया था। कहा जाता है कि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के जीवन पर लोकमान्य तिलक एवं महात्मा गांधी का अत्यधिक प्रभाव पड़ा था। इन्होंने वर्ष 1913 में स्वतंत्रता आंदोलन में खुल कर भाग लिया था जिसमें उन्होंने पत्रकारिता, साहित्य लेखन एवं समाचार पत्र संपादन का कार्य करके देश को स्वतंत्र कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाएं
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख कृतियां कुछ इस प्रकार हैं:-
- साहित्य के देवता
- अमीर इरादे; गरीब इरादे
- समय के भाव
- हिमकिरीटिनी
- हिम तरंगिणी
- मरण ज्वार
- बीजुरी काजल आँज रही
- समर्पण
- युग चारण
- वेणु लो गूंजे धरा
- माता आदि।
बालकृष्ण शर्मा नवीन
बालकृष्ण शर्मा नवीन का जन्म वर्ष 1897 में मध्य प्रदेश के शाजापुर नामक क्षेत्र में हुआ था। इन्हें मध्य प्रदेश के साथ-साथ भारत के प्रमुख कवि के रूप में भी जाना जाता है। इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना को जागृत करने का प्रयास किया था। बालकृष्ण शर्मा नवीन ने अपने जीवन काल में पत्रकारिता एवं राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे। इन्हें आधुनिक हिंदी कवि के जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ‘सन्तु’ नामक कथा को बालकृष्ण शर्मा नवीन के साहित्यिक जीवन की प्रथम रचना माना जाता है जिसके बाद उन्होंने हिंदी कविता के क्षेत्र में भी कई रचनाएं की थी।
बालकृष्ण शर्मा नवीन की प्रमुख रचनाएं
बालकृष्ण शर्मा नवीन के द्वारा रचित महत्वपूर्ण काव्यग्रंथ कुछ इस प्रकार हैं:-
- रश्मिरेखा
- कुमकुम
- विनोबा स्तवन
- प्राणार्पण
- हम विषपायी जन्म के
- क्वासि
- अपलक आदि।
शरद जोशी
शरद जोशी का जन्म 21 मई वर्ष 1931 को मध्य प्रदेश के उज्जैन नामक क्षेत्र में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन काल में कई साहित्यिक रचनाएं की थी जिसके कारण उन्हें पूरे भारत में काफी प्रसिद्धि हासिल हुई थी। इनकी अधिकांश रचनाओं की शैली व्यंगात्मक है। भारत सरकार ने शरद जोशी की रचनाओं की प्रसिद्धि को ध्यान में रखते हुए उन्हें वर्ष 1990 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था जिसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 1992-93 में शरद जोशी राष्ट्रीय सम्मान की स्थापना की थी।
शरद जोशी की प्रमुख रचनाएं
शरद जोशी की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- रहा किनारे बैठ
- फिर किसी बहाने
- जीप पर सवार इल्लियाँ
- मुद्रिका रहस्य
- झरता नीम शाश्वत थीम
- नावक के तीर
- यत्र-तत्र-सर्वत्र
- नदी में खड़ा कवि
- जादू की सरकार
- पिछले दिनों
- हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
- प्रतिदिन (3 खण्ड)
- अंधों का हाथी
- मैं-मैं और केवल में
- एकता गधा तिलिस्म आदि।
गजानन माधव मुक्तिबोध
गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर वर्ष 1917 में मध्य प्रदेश के श्योपुर नामक क्षेत्र में हुआ था। वह हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, निबंधकार, कहानीकार एवं उपन्यासकार थे। आरंभिक काल से ही गजानन माधव मुक्तिबोध की रुचि कहानी लेखन में थी जिसके फलस्वरूप उन्होंने विभिन्न प्रकार के उपन्यासों की रचना की थी।
गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रमुख रचनाएं
गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- एक साहित्यिक की डायरी (निबंध संग्रह वर्ष 1964)
- चाँद का मुँह टेढ़ा है – (कविता संग्रह वर्ष 1964)
- काठ का सपना (कहानी संग्रह वर्ष 1967)
- विपात्र (उपन्यास वर्ष 1970)
- भूरी भूरी खाक धूल (कविता संग्रह)
- सतह से उठता आदमी (कहानी संग्रह)
- समीक्षा की समस्याएँ
- साहित्यिक की डायरी (आलोचनात्मक कृतियाँ)
- कामायनी : एक पुनर्विचार आदि।
भवानी प्रसाद मिश्र
भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च वर्ष 1914 को होशंगाबाद नामक क्षेत्र में हुआ था। वह हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं गांधीवादी विचारक थे। भवानी प्रसाद मिश्र की रचनाओं में संवेदनशीलता का विशेष गुण देखने को मिलता है। इसके अलावा उनकी काव्य रचना में अनुभूति की भी अधिक प्रधानता देखी जा सकती है। इन्हें आधुनिक हिंदी कविता के प्रसिद्ध कवि के रूप में भी जाना जाता है। भवानी प्रसाद मिश्र ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज, व्यक्ति, जीवन एवं विश्व को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है। इसके अलावा उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से आधुनिक हिंदी कविता को एक नई गति भी प्रदान की है।
भवानी प्रसाद मिश्र की प्रमुख रचनाएं
भवानी प्रसाद मिश्र की प्रमुख कृतियां कुछ इस प्रकार हैं:-
- चकित है दुख
- अनाम तुम आते हो
- गीत फरोश
- बुनी हुई रस्सी
- शरीर कविता
- फसलें और फूल
- अँधेरी कविताएँ
- मानसरोवर दिन
- त्रिकाल सन्ध्या
- खुशबू के शिलालेख
- इदम् न मम
- अनाम तुम आते हो
- परिवर्तन जिए
- सम्प्रति
- व्यक्तिगत
- तूस की आग
- सन्नाटा
- नीली रेखा
- कालजयी आदि।
हरिशंकर परसाई
हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त वर्ष 1924 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद नामक क्षेत्र में हुआ था। वह भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध लेखक एवं व्यंगकार थे। कहा जाता है कि हरिशंकर परसाई हिंदी साहित्य के प्रथम रचनाकार थे जिन्होंने व्यंग को विधा का दर्जा दिलाया था। भारत सरकार ने हरिशंकर परसाई को उनकी रचनाओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।
हरिशंकर परसाई की प्रमुख रचनाएं
हरिशंकर परसाई की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- हँसते हैं रोते हैं (कहानी–संग्रह)
- भोलाराम का जीव (कहानी–संग्रह)
- जैसे उनके दिन फिरे (कहानी-संग्रह)
- तट की खोज (उपन्यास)
- ज्वाला और जल (उपन्यास)
- रानी नागफनी की कहानी (उपन्यास)
- तिरछी रेखाएँ (संस्मरण)
डॉ शिवमंगल सिंह सुमन
डॉ शिवमंगल सिंह सुमन का जन्म 5 अगस्त वर्ष 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव नामक जिले में हुआ था। वह हिंदी के प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण रचनाएं की थी। डॉ शिवमंगल सिंह सुमन ने कविता संग्रह, नाटक एवं गद्य रचनाएं की थी जिसके लिए उन्हें पूरे भारत में जाना जाता था। केवल इतना ही नहीं उनकी रचनाओं के लिए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।
डॉ शिवमंगल सिंह सुमन की प्रमुख रचनाएं
डॉ शिवमंगल सिंह सुमन की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- वाणी की व्यथा
- युग का मोल
- जीवन के गान
- हिल्लोल
- प्रलय सृजन
- विश्वास बढ़ता ही गया
- मिट्टी की बारात
- कटे अँगूठों की वंदनवारें
- पतवार
- सांसो का हिसाब
- असमंजस
- सूनी सांझ
- आभार आदि।
मुल्ला रामोजी
मुल्ला रामोजी का जन्म वर्ष 21 मई वर्ष 1896 को भोपाल में हुआ था। कहा जाता है कि उन्होंने केवल 12 वर्ष की आयु में ही कुरान कंठस्थ कर लिया था जिसके बाद उन्होंने उर्दू साहित्य के जगत में कई महत्वपूर्ण रचनाएं की थी। मुल्ला रामोजी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यंगात्मक साहित्य की रचना करते थे जिसके कारण उन्हें पूरे भारत में जाना जाता था। माना जाता है कि मुल्ला रामोजी ने गुलाबी उर्दू शैली की खोज की थी जिसमें उन्होंने कुरान शरीफ का उर्दू अनुवाद भी किया था।
मुल्ला रामोजी की प्रमुख रचनाएं
मुल्ला रामोजी की प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:-
- गुलाबी उर्दू
- मिकलात गुलाबी उर्दू
- इतिखाब-ए-गुलाबी उर्दू
- लाठी और भैंस
- औरत जात
- शिफाखाना
- गुलाबी शादी
- अंगूरा
- जिंदगी
- शिफा खाना