मध्य प्रदेश के वन, पर्वत तथा नदियाँ 

मध्य प्रदेश के वन, पर्वत तथा नदियाँ 

मध्य प्रदेश के वन, पर्वत तथा नदियाँ MPPSC notes : मध्य प्रदेश भारत का वह राज्य है जिसमें वन संपदा, पर्वत एवं नदियां अच्छी मात्रा में पायी जाती हैं। इस प्रदेश को प्राकृतिक संसाधनों एवं वन्य जीवों के लिए भी जाना जाता है। मध्य प्रदेश में वन विभाग की स्थापना वर्ष 1860 को की गई थी जिसका प्रमुख दायित्व वनों एवं प्रकृति को संरक्षित करना था। इसके अलावा मध्य प्रदेश को नदियों का मायका के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां लगभग 200 से अधिक छोटी-बड़ी नदियां बहती रहती हैं। मध्य प्रदेश के अधिकतर भू-भाग दक्कन पठार के अंतर्गत आते हैं जिसके कारण इस क्षेत्र के आधे से अधिक भाग पठारी हैं।

मध्य प्रदेश के वन (Forests of Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश में ढेरों वन पाए जाते हैं जैसे:-

  • उष्णकटिबंधीय आद्र पतझड़ वन
  • उष्ण कटिबंधीय कटीले वन
  • उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन
  • उपोष्ण पतझड़ वन
  • संरक्षित वन
  • अवर्गीकृत वन

उष्णकटिबंधीय आद्र पतझड़ वन

उष्णकटिबंधीय आद्र पतझड़ वन को पर्णपाती वन के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार के वनों में पहले 6 माह भारी मात्रा में वर्षा होती है एवं दूसरे 6 माह शुष्क जलवायु के होते हैं। मध्य प्रदेश में इस प्रकार के वनों का विस्तार जबलपुर, मंडला, शहडोल, बालाघाट, दक्षिण छिंदवाड़ा एवं सिवनी जैसे क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता है। उष्णकटिबंधीय आद्र पतझड़ वन में प्रतिवर्ष लगभग 120 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है एवं इस वन में मौजूद वृक्ष बेहद कम समय के लिए अपनी पत्तियां गिराते हैं। इसके अलावा इस प्रकार के वनों में काली मिट्टी मौजूद होती है जिसमें सागौन के वृक्ष अधिक संख्या में पाए जाते हैं।

उष्ण कटिबंधीय कटीले वन

मध्य प्रदेश में उष्ण कटिबंधीय कटीले वन मुख्यतः उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां प्रतिवर्ष 25 से 75 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है। इस प्रकार के वन मध्य प्रदेश के कुल वन क्षेत्रफल के लगभग 2.38 प्रतिशत भाग में फैले हुए हैं। इस प्रदेश में उष्ण कटिबंधीय कटीले वनों का विस्तार शिवपुरी, मुरैना, रतलाम, श्योपुर, टीकमगढ़, मंदसौर आदि क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इसके अलावा इस प्रकार के वनों में मुख्य रूप से शीशम, बबूल, पलाश, हर्रा आदि के वृक्ष भी पाए जाते हैं।

उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन

उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन को शुष्क पर्णपाती वन के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश के उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां प्रतिवर्ष लगभग 50 से 100 सेंटीमीटर के मध्य वर्षा होती है। माना जाता है कि यह वन मध्य प्रदेश के कुल वन क्षेत्र के लगभग 88.65 प्रतिशत भाग में फैले हुए हैं। मध्य प्रदेश में उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वनों का विस्तार जबलपुर, उज्जैन, सागर, खरगोन, खंडवा आदि क्षेत्रों में अत्यधिक मात्रा में हुआ है। इसके अलावा इस प्रकार के वनों में मुख्य रूप से शीशम, पीपल, सागौन, नीम आदि के वृक्ष देखे जा सकते हैं।

उपोष्ण पतझड़ वन

कुपोषण पतझड़ वन मध्य प्रदेश के सतना एवं विंध्यन की ऊंची चोटियों पर पाए जाते हैं। इस प्रकार के वनों में मौजूद वृक्ष अपनी पत्तियों को बेहद कम मात्रा में गिरते हैं जिसके कारण यह 12 मास हरे-भरे रहते हैं। मध्य प्रदेश में उपोषण पतझड़ वन मुख्य रूप से पचमढ़ी के आसपास के इलाकों में पाए जाते हैं।

संरक्षित वन

मध्य प्रदेश के संरक्षित वन का क्षेत्रफल लगभग 31098 वर्ग किलोमीटर है जहां किसी भी व्यक्ति को सामान्य रूप से प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाती है। इस प्रकार के वनों में जाने से पूर्व लोगों को वन विभाग की अनुमति लेना अनिवार्य होता है। संरक्षित वन में कई प्रजाति के वृक्ष एवं जीवों को संरक्षित किया जाता है। ऐसे वनों का प्रबंधन पूर्ण रूप से प्रशासन की देखरेख में किया जाता है जहां केवल किसी विशेष परिस्थिति में ही भ्रमण करने एवं वृक्ष काटने की सुविधा प्रदान की जाती है। संरक्षित वनों में मौजूद पेड़-पौधों की विभिन्न प्रजातियों की विशेष रूप से देखभाल भी की जाती है। माना जाता है कि मध्य प्रदेश में संरक्षित वनों की सर्वाधिक संख्या राजगढ़ में मौजूद है।

अवर्गीकृत वन

मध्य प्रदेश में अवर्गीकृत वन का कुल क्षेत्रफल लगभग 1705 वर्ग किलोमीटर है। इस प्रकार के वनों में कोई भी व्यक्ति बिना किसी अनुमति के भ्रमण कर सकता है एवं इसमें वृक्ष काटने की सुविधा भी रहती है। अवर्गीकृत वनों में कई प्रकार के पशु-पक्षी एवं वृक्ष मौजूद होते हैं। इसके अलावा ऐसे वनों में मौजूद वृक्ष पूरे वर्ष हरे भरे रहते हैं।

 

मध्य प्रदेश के पर्वत (Mountains of Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश के अधिकतर भू-भाग दक्कन पठार के अंतर्गत आते हैं जिसके कारण इस प्रदेश का अधिकांश भाग पठारी है। भारत में मौजूद इस प्रदेश के कई क्षेत्रों में विभिन्न पर्वत पाए जाते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • अरावली पर्वत
  • सतपुड़ा पर्वत
  • विंध्याचल पर्वत
  • महादेव पर्वत
  • मैकाल-अमरकंटक पर्वत
  • कैमूर-भांडेर पर्वत

अरावली पर्वत

अरावली पर्वत मध्य प्रदेश के उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। यह पर्वत पृथ्वी की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला में से एक माने जाते हैं जिसके सिरे कम समतल एवं ढाल काफी तीव्र होते हैं। कहा जाता है कि अरावली पर्वत लगभग 870 मिलीयन वर्ष पुराने हैं जिसका विस्तार भारत के राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, पाकिस्तान के सिंध एवं पाकिस्तान के पंजाब तक फैला हुआ है। यह पर्वत पृथ्वी के उत्तर दिशा से प्रारंभ होकर दक्षिण भाग तक विस्तृत हैं जिसकी लंबाई लगभग 692 किलोमीटर है। राजस्थान में अरावली पर्वत को आडावाला पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। यह विश्व की प्राचीनतम पर्वत शृंखला में से एक मानी जाती है।

सतपुड़ा पर्वत

मध्य प्रदेश में सतपुड़ा पर्वत का विस्तार 27 डिग्री से 23 डिग्री उत्तरी अक्षांश एवं 74 डिग्री से 81 डिग्री पूर्वी देशांतर के मध्य में है। यह पर्वत नर्मदा नदी एवं ताप्ती नदियों से घिरी हुई एक त्रिभुजीय आकार के रूप में विस्तृत है। सतपुड़ा पर्वत मुख्य रूप से नर्मदा एवं ताप्ती नदी को विभाजित करता है एवं यह पर्वत चपटी पहाड़ियों से युक्त है। सतपुड़ा पर्वत की ऊंचाई लगभग 400 से 600 मीटर है। माना जाता है कि इस पर्वत का निर्माण बेसाल्ट एवं ग्रेफाइट चट्टानों से हुआ है। यह पर्वत पूर्व दिशा में राजपीपला नामक पहाड़ी से शुरू होकर पश्चिमी घाट तक फैला हुआ है।

विंध्याचल पर्वत

विंध्याचल पर्वत मध्य भारत की अनेकों पर्वतमालाओं का एक ऐतिहासिक समूह है जिसके अंतर्गत सतपुड़ा पर्वतमाला भी आता है। यह नर्मदा नदी के उत्तर में पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर फैला हुआ है। कहा जाता है कि विंध्याचल पर्वत का निर्माण हिमालय पर्वत से भी पहले हुआ था। विंध्याचल पर्वत की ऊंचाई लगभग 450 मीटर से 610 मीटर तक है। मध्य प्रदेश में स्थित इस पर्वत का निर्माण बालू पत्थरों के माध्यम से हुआ है।कहा जाता है कि इस पर्वत से नर्मदा नदी, बेतवा नदी, सोन नदी एवं केन नदी का उद्गम हुआ है।

महादेव पर्वत

महादेव पर्वत श्रेणी सतपुड़ा पर्वत के पूर्वी क्षेत्र को कहा जाता है। यह मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा एवं सिवनी जिले में स्थित है। माना जाता है कि महादेव पर्वत का निर्माण बलुई पत्थर एवं क्वार्ट्ज चट्टानों के माध्यम से हुआ है। महादेव पर्वत में मुख्य रूप से उष्ण कटिबंधीय वन का विस्तृत रूप देखने को मिलता है। यह पर्वत मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल धूपगढ़ एवं पचमढ़ी श्रेणी पर मौजूद है।

मैकाल-अमरकंटक पर्वत

मैकाल-अमरकंटक पर्वत मध्य प्रदेश के अनूपपुर नामक जिले का लोकप्रिय हिंदू तीर्थ स्थल माना जाता है। यह पर्वत जोहिला नदी, नर्मदा नदी एवं सोन नदी का उद्गम स्थल कहलाता है। मैकाल-अमरकंटक पर्वत का निर्माण बलुई पत्थरों, क्वार्ट्ज चट्टानों एवं अवसादी चट्टानों के माध्यम से हुआ है। यह पर्वत मध्य प्रदेश के शहडोल, डिंडोरी एवं मंडला जैसे जिलों में फैला हुआ है।

कैमूर-भांडेर पर्वत

कैमूर-भाण्डेर पर्वत मध्य प्रदेश के सतना, छतरपुर, रीवा, जबलपुर, पन्ना आदि जिलों में स्थित है। इस पर्वत की अधिकतम चौड़ाई लगभग 50 मील तक है। इस पर्वत की ऊंचाई लगभग 450 मीटर से 600 मीटर तक देखी गई है। कैमूर-भाण्डेर पर्वत मुख्य रूप से यमुना नदी एवं सोन नदी को विभाजित करती है। इस पर्वत का निर्माण क्वार्ट्ज चट्टानों एवं बलुई पत्थर के माध्यम से हुआ है।

 

मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियां (Major rivers of Madhya Pradesh)

मध्य प्रदेश में स्थित प्रमुख नदियां कुछ इस प्रकार हैं:-

  • नर्मदा नदी
  • सोन नदी
  • शिप्रा नदी
  • चंबल नदी
  • बेतवा नदी
  • ताप्ती नदी
  • सिंध नदी
  • पार्वती नदी
  • जोहिला नदी
  • माही नदी

नर्मदा नदी

मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी का उद्गम अनूपपुर नामक जिले के अमरकंटक पठार से हुआ है। नर्मदा नदी की कुल लंबाई लगभग 1312 किलोमीटर है एवं केवल मध्य प्रदेश में यह नदी लगभग 1077 किलोमीटर तक फैली हुई है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी एवं प्राचीन नदियों में से एक मानी जाती है। यह नदी भारत के उत्तरी एवं दक्षिणी क्षेत्र को विभाजित करती है। मध्य प्रदेश में यह नदी होशंगाबाद, जबलपुर, अमरकंटक, धार, झाबुआ, महेश्वर, मंडला आदि क्षेत्रों से होकर गुजरती है।

सोन नदी

मध्य प्रदेश में सोन नदी को गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदियों में से एक माना जाता है। इस नदी का उद्गम मध्य प्रदेश में स्थित अमरकंटक पहाड़ी से हुआ है एवं इसकी लंबाई लगभग 780 किलोमीटर है। यह नदी मध्य प्रदेश के साथ-साथ बिहार एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी बहती है। सोन नदी में पायी जाने वाली रेत भवन निर्माण के कार्यों के लिए बेहद उपयोगी मानी जाती है। प्राचीन काल में सोन नदी का उल्लेख रामायण आदि पुराणों में भी किया गया है जिसमें इस नदी को ‘सुभागधी’ नाम से संबोधित किया गया है। जोहिला नदी, रिहंद नदी, गोपद नदी आदि सोन नदी की सहायक नदियों में से एक मानी जाती हैं। सोन नदी में विभिन्न प्रजाति के कछुए निवास करते हैं जिसके कारण इसे स्वर्ण नदी के नाम से भी जाना जाता है। भारत सरकार ने इस नदी पर बाणसागर परियोजना का निर्माण किया है जो मध्य प्रदेश के शहडोल नामक जिले में स्थित है।

शिप्रा नदी

शिप्रा नदी या क्षिप्रा नदी को मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक नदियों में से एक माना जाता है। यह भारत की एक पवित्र नदी है जिसके तट पर प्रत्येक 12 वर्ष में उज्जैन में कुंभ का मेला आयोजित किया जाता है। माना जाता है कि शिप्रा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के इंदौर नामक क्षेत्र के समीप स्थित वानेश्वर कुंड से हुआ है। शिप्रा नदी को मालवा की गंगा नदी के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश में उज्जैन, रतलाम, मंदसौर आदि जिलों से होकर गुजरती है। मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी की कुल लंबाई लगभग 195 किलोमीटर है। इसके अलावा उज्जैन में प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर भी शिप्रा नदी के तट पर मौजूद है।

चंबल नदी

चंबल नदी मध्य प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी नदियों में से एक है जिसका उद्गम इंदौर में स्थित जानापाव पहाड़ी के बांगचु नामक क्षेत्र से हुआ है। इस नदी की कुल लंबाई लगभग 965 किलोमीटर है एवं यह मध्य प्रदेश में लगभग 325 किलोमीटर तक फैली हुई है। चंबल नदी को यमुना नदी की सहायक नदियों में से एक माना जाता है। भारत में चंबल नदी को धर्मावती, कामधेनु एवं चंपावती के नामों से भी जाना जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान की भी प्रमुख नदियों में से एक है। चंबल नदी मध्य प्रदेश के श्योपुर, उज्जैन, मुरैना, भिंड आदि जिलों से होकर गुजरती है।

बेतवा नदी

बेतवा नदी का प्राचीनतम नाम वेत्रावती नदी था। यह नदी मध्य प्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की भी प्रमुख नदियों में से एक मानी जाती है। बेतवा नदी को यमुना नदी की उपनदी माना जाता है। इस नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के रायसेन नामक जिले के कुम्हारागांव से हुआ है। बेतवा नदी उत्तरी पूर्वी दिशा से बहते हुए भोपाल, झांसी, विदिशा, ललितपुर आदि जिलों से होकर गुजरती है। बेतवा नदी की कुल लंबाई लगभग 480 किलोमीटर है। इस नदी को ‘भगवान शिव की बेटी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश की गंगा नदी कहलाती है जिसे बुंदेलखंड की जीवन रेखा भी कहा जाता है।

ताप्ती नदी

ताप्ती नदी मध्य प्रदेश के साथ-साथ भारत की भी एक प्रमुख नदी मानी जाती है जो सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण नदी है। ताप्ती नदी की कुल लंबाई लगभग 724 किलोमीटर है जो मध्य प्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र एवं गुजरात जैसे राज्यों से होकर गुजरती है एवं सूरत में आकर अरब सागर में मिल जाती है। मध्य प्रदेश में ताप्ती नदी की लंबाई लगभग 279 किलोमीटर है। इस नदी को सूर्यपुत्री, तापी, पयोष्नी आदि नामों से भी जाना जाता है। उतावली नदी, कालीभीत नदी, पूर्णा नदी, गोपद नदी आदि ताप्ती नदी की सहायक नदियों में से एक हैं।

सिंध नदी

सिंध नदी मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में बहने वाली एक प्रमुख नदी है जिसे यमुना नदी की उपनदी के नाम से भी जाना जाता है। सिंध नदी की कुल लंबाई लगभग 470 किलोमीटर है। यह नदी मध्य प्रदेश के विदिशा, शिवपुरी, दतिया आदि जिलों से होकर गुजरती है। माना जाता है कि सिंधु नदी में पूरे वर्ष जल भरा रहता है जिसके कारण वर्षा ऋतु में इस नदी का स्तर और अधिक बढ़ जाता है। सिंध नदी को ‘इंडस’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सिंध नदी का यह नाम भारत में आए कुछ विदेशियों ने रखा था।

पार्वती नदी

पार्वती नदी मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक है जिसको ‘पारा नदी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह चंबल नदी की उपनदी कहलाती है जिसकी कुल लंबाई लगभग 471 किलोमीटर है। कहा जाता है कि पार्वती नदी की उत्पत्ति सीहोर जिले में स्थित विंध्याचल पहाड़ियों से हुई है जिसकी ऊंचाई लगभग 610 मीटर है। पार्वती नदी आगे चलकर चंबल नदी में मिल जाती है। इस नदी का उल्लेख भीष्मपर्व एवं महाभारत जैसे महापुराणों में भी किया गया है। पार्वती नदी की सहायक नदियों में विलास, बरनी, ल्हासी आदि नदियां प्रमुख हैं।

जोहिला नदी

जोहिला नदी मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक मानी जाती है जिसका उद्गम अमरकंटक से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ज्वालेश्वर से होता है। यह नदी मध्य प्रदेश के शहडोल एवं उमरिया नामक जिलों से होकर गुजरती है। जोहिला नदी सोन नदी की सहायक नदियों में से एक है जो अमरकंटक के दक्षिणी पश्चिमी छोर से निकलती है। यह नदी ज्वालेश्वर के पर्वतों से निकलकर मध्य प्रदेश में स्थित उमरिया जिले में बहने वाली सोन नदी में मिल जाती है। इसके अलावा जोहिला नदी को सोन नदी की उपनदी के नाम से भी जाना जाता है जो स्वयं गंगा नदी की एक उपनदी है।

माही नदी

माही नदी मध्य प्रदेश के साथ-साथ पश्चिमी भारत की भी एक प्रमुख नदी मानी जाती है जिसका उद्गम मध्य प्रदेश के धार नामक जिले में स्थित विंध्याचल पर्वत श्रेणी से हुआ है। माही नदी मध्य प्रदेश के झाबुआ, रतलाम एवं धार जिलों से होकर गुजरात एवं राजस्थान राज्य से होती हुई खंभात की खाड़ी के माध्यम से अरब सागर में जाकर मिल जाती है। माही नदी की कुल लंबाई लगभग 576 किलोमीटर है। माही नदी को ‘पृथ्वी की पुत्री’ एवं ‘महति’ के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी भारत की एकमात्र ऐसी नदी है जो कर्क रेखा को दो बार विभाजित करती है।

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