मध्य प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ एवं बोलियाँ

मध्य प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ एवं बोलियाँ

मध्य प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ एवं बोलियाँ (Major Tribes and Dialects of Madhya Pradesh in hindi) : मध्य प्रदेश कई प्रमुख जनजातियों और बोलियों के साथ भारत के सबसे विविध राज्यों में से एक है। इनमें भील, गोंड, भिलाला, सहरिया, कोरकू, कोल आदि शामिल हैं। प्रत्येक जनजाति की अपनी अनूठी भाषा और संस्कृति होती है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है। मध्य प्रदेश की विभिन्न बोलियाँ इसके सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध करती हैं क्योंकि वे देश के विभिन्न हिस्सों को एक साथ लाती हैं।

मध्य प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ एवं बोलियाँ (Major Tribes and Dialects of Madhya Pradesh) :

वर्ष 2011 में हुए जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 113,42,320 बताई गई है। यह जनसंख्या मध्यप्रदेश की कुल जनसंख्या के लगभग 15.6 प्रतिशत है एवं इसके साथ ही मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की संख्या 1,53,16,784 बताई गई है जो संपूर्ण राज्य के कुल जनसंख्या के 21.1 प्रतिशत है। मध्यप्रदेश में मौजूद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं सामान्य वर्ग के लोगों द्वारा अनेकों बोलियाँ बोली जाती हैं। आज के इस आर्टिकल में हम आपको मध्य प्रदेश में निवास करने वाली संपूर्ण जनजातियों एवं उनके द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न बोलियों की जानकारी देने जा रहे हैं।

मध्य प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ

मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियां (Major Tribes of Madhya Pradesh in hindi) कुछ इस प्रकार हैं:-

  • गोंड जनजाति (Gond Tribe)
  • भील जनजाति (Bhil Tribe)
  • कोरकू जनजाति (Korku Tribe)
  • बैगा जनजाति (Baiga Tribe)
  • कोल जनजाति (Kol Tribe)
  • अगरिया जनजाति (Agaria Tribe)
  • भारिया जनजाति (Bharia Tribe)
  • पारधी जनजाति (Pardhi Tribe)
  • पनका जनजाति (Panka Tribe)
  • बंजारा जनजाति (Banjara Tribe)
  • माड़िया जनजाति (Madiya Tribe)

गोंड जनजाति (Gond Tribe)

गोंड जनजाति को भारत का सबसे बड़ा जनजाति समूह माना जाता है जिसके अधिकांश सदस्य मध्य प्रदेश के कई जिलों में निवास करते हैं। माना जाता है कि गोंड जनजाति की उत्पत्ति प्राक-द्रविड़ प्रजाति से हुई है। गोंड जनजाति मध्य प्रदेश के साथ-साथ छत्तीसगढ़, गुजरात, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में भी निवास करते हैं। इनकी त्वचा का रंग गेहुआं, बाल काले, नाक बड़ी एवं होंठ मोटे होते हैं। गोंड जनजाति का मुख्य कार्य कृषि करना है परंतु इसके साथ-साथ में सार्वजनिक रूप से खाना बनाने का भी कार्य करते हैं। इनका मुख्य भोजन बाजरा है। अधिकांश गोंड जनजाति के सदस्य हिंदू धर्म को मानते हैं एवं वह मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा एवं उपासना करते हैं। गोंड जनजाति को चार वर्गों में विभाजित किया गया है; माड़िया गोंड, खातुलवार गोंड, राज गोंड एवं धुर्वे गोंड। इसके अलावा गोंड जनजाति के सदस्यों को भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है।

भील जनजाति (Bhil Tribe)

भील जनजाति को ‘भारत के बहादुर धनुष पुरुष’ की उपाधि दी गई है। यह मध्यप्रदेश के साथ-साथ भारत के अन्य राज्यों जैसे राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा आदि जैसे क्षेत्रों में भी निवास करते हैं। भारतीय संविधान के अंतर्गत भील जनजाति को भी अनुसूचित जनजाति में अधिसूचित किया गया है। भील जनजाति के सदस्य स्वभाव से वीर एवं साहसी होते हैं। यह जनजाति भारत की जनसंख्या के दृष्टिकोण से तीसरी एवं मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति मानी जाती है। यह मध्य प्रदेश के विभिन्न पश्चिमी क्षेत्रों के साथ-साथ झाबुआ क्षेत्र में भी निवास करते हैं। माना जाता है कि भील शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द भिल्ल से हुई है। प्राचीन काल से ही भील जनजाति के सदस्य धनुर्विद्या में निपुण थे जिसके कारण इन्हें भील के नाम से संबोधित किया जाता है।

कोरकू जनजाति (Korku Tribe)

कोरकू जनजाति मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के बैतूल, छिंदवाड़ा, मवासी एवं होशंगाबाद जिले में निवास करते हैं। इस जनजाति का प्रमुख नृत्य खंब स्वांग है। कोरकू जनजाति के अधिकांश सदस्य केवल कृषि पर ही निर्भर रहते हैं। यह मध्यप्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र में भी निवास करते हैं। इस जनजाति से संबंधित लोगों की त्वचा का रंग आमतौर पर काला होता है एवं इनका चेहरा गोरा होता है। इसके अलावा कोरकू जनजाति के सदस्यों का पहनावा भी बेहद साधारण होता है। यह लोग मुख्य रूप से हिंदू धर्म से संबंधित होते हैं। यह समाज में अपने साधारण पहनावे के कारण जाने जाते हैं।

बैगा जनजाति (Baiga Tribe)

बैगा जनजाति मुख्य रूप से मध्यप्रदेश में निवास करती है। इस जनजाति से संबंधित लोगों की बोली गोंड जनजाति से संबंधित होती है। यह मध्यप्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड आदि प्रदेशों में भी निवास करते हैं। बैगा जनजाति के सदस्य प्राचीन काल से ही कृषि पर निर्भर रहे हैं परंतु वर्तमान समय में यह मुख्य रूप से लघु वनोत्पादों पर निर्भर हैं। यह बांस के द्वारा विभिन्न प्रकार के उत्पादों का निर्माण करते हैं। इसके अलावा बैगा जनजाति की महिलाएं अपने पूरे शरीर पर विभिन्न प्रकार के टैटू बनवाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। भारत में बैगा जनजाति के सदस्यों को पिछड़ी जनजाति या दलित वर्ग के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि बैगा जनजाति के द्वारा किसी विशेष अवसरों पर सूअरों की बलि दी जाती है। बैगा जनजाति की उत्पत्ति द्रविड़ प्रजाति के माध्यम से हुई है।

कोल जनजाति (Kol Tribe)

कोल जनजाति अधिकांश मात्रा में भारत के मध्य प्रदेश में निवास करते हैं। माना जाता है कि कोल जनजाति के लोग पांचवी शताब्दी में मध्य भारत आए थे जहां शुरुआती दौर में उन्होंने जंगलों में अपना जीवन यापन किया था। यह जनजाति मध्यप्रदेश के सतना, रीवा एवं शहडोल नामक जिलों में पायी जाती हैं। कोल जनजाति मध्य प्रदेश की तीसरी सर्वाधिक पाए जाने वाली जनजाति है। यह लोग अधिकतर खुले स्थानों पर निवास करना पसंद करते हैं। कोल जनजाति को मुंडारी एवं कोलेरियन के नाम से भी जाना जाता है। इनकी उप जातियां रोहिया एवं रौठैल है। यह मुख्य रूप से हिंदू धर्म को मानते हैं तथा इनके प्रमुख देवी देवता बड़े देव, दूल्हा देव एवं बैरम हैं। कहा जाता है कि कोल जनजाति पूर्व में रीवा के बद्रीराजा क्षेत्र में निवास करते थे।

अगरिया जनजाति (Agaria Tribe)

अगरिया जनजाति मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियों में से एक है जो मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के शहडोल नामक जिले में निवास करते हैं। माना जाता है कि अगरिया जनजाति गोंड की उप जनजाति है। यह लोग मध्य प्रदेश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में भी निवास करते हैं। अगरिया जनजाति के सदस्य हिंदी एवं छत्तीसगढ़ी भाषा का अनुसरण करते हैं। अंग्रेजों के समय में अगरिया जनजाति के सदस्य लोहे के खनन एवं लोहे को पिघलाकर धातु बनाने का कार्य किया करते थे। इनके प्रमुख देवता का नाम लोहासुर है जिनका निवास स्थान आग की भट्टियों में है। यह लोग दशहरा एवं फाल्गुन माह में लोहा गलाकर उसके यंत्रों की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि अगरिया जनजाति के सदस्यों में टैटू खुदवाने का एक पुराना रिवाज है। इसके अलावा यह लोग उड़द की दाल को सबसे पवित्र मानते हैं जिसका उपयोग वह विवाह एवं अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर करते हैं।

भारिया जनजाति (Bharia Tribe)

भारिया जनजाति के सदस्य अधिकतर मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट नामक स्थान में निवास करते हैं। इस जनजाति का प्रमुख नृत्य भंगम है। माना जाता है कि भारिया जनजाति के सदस्य विवाह जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर मुख्य रूप से भंगम नृत्य करने के साथ-साथ ढोलक वादन भी करते हैं। पातालकोट में निवास करने वाले लगभग 90 प्रतिशत तक लोग भरिया जनजाति से संबंधित हैं। पातालकोट मध्य प्रदेश का एक ऐसा स्थान है जहां की संस्कृति एवं मान्यताएं अन्य क्षेत्रों से भिन्न है। इस क्षेत्र में बाहरी लोगों का आना जाना बेहद कम होता है क्योंकि यह स्थान पर्वतों के तलहटी पर स्थित है। भारिया जनजाति के सदस्यों के प्रमुख देवता बूढ़ादेव, दूल्हादेव एवं नाग देवता हैं।

पारधी जनजाति (Pardhi Tribe)

पारधी जनजाति मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के सीहोर एवं रायसेन नामक क्षेत्र में निवास करती हैं। इस जनजाति का प्रमुख व्यवसाय पशु पक्षियों एवं अन्य जानवरों को जाल में फंसा कर उनका शिकार करना होता है। इन्हें बहेलियों (मवेशियों को पालने वाले) के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय संविधान में पारधी जनजाति के सदस्यों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। कहा जाता है कि पारधी जनजाति के लोग अधिकतर काले रंग के पक्षियों का शिकार करते हैं। यह हिंदू धर्म को मानते हैं एवं इनके प्रमुख देवता महादेव हैं।

पनका जनजाति (Panka Tribe)

पनका जनजाति मध्य प्रदेश के शहडोल नामक क्षेत्र में अधिकांश मात्रा में पायी जाती है। इनका प्रमुख व्यवसाय कपड़ा बुनना एवं आखेट करना होता है। मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में पनका जनजाति को ‘पाने जनजाति’ के नाम से भी जाना जाता है। यह जनजाति मध्य प्रदेश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ एवं विंध्य क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं। इस जनजाति से संबंधित लोग मुख्य रूप से मांस एवं मदिरा का परहेज करते हैं। कहा जाता है कि पनका जनजाति की उत्पत्ति संत कबीरदास के जन्म के समय में हुई थी जब ‘पनका’ नामक महिला ने संत कबीर का पालन पोषण किया था। इसी कारण पनका जनजाति के सदस्यों को कबीर पंथी भी कहा जाता है। भारतीय संविधान में पनका जनजाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है।

बंजारा जनजाति (Banjara Tribe)

बंजारा जनजाति मध्य प्रदेश के साथ-साथ भारत की भी एक प्रमुख जनजाति मानी जाती है। यह जनजाति भारत के मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, दक्षिण भारत एवं उत्तरी भारत में निवास करती है। बंजारा जनजाति को घुमंतू जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। शुरुआती दिनों में इस जनजाति से संबंधित लोगों का प्रमुख कार्य बैलों पर सामान लादकर उसे बेचना होता था। कहा जाता है कि बंजारा जनजाति का उद्गम राजस्थान से हुआ था जिसके वंशज स्वयं को राजपूत का वंशज मानते थे। समय के साथ-साथ बंजारा जनजाति के रहन-सहन, खानपान एवं वेशभूषा में काफी परिवर्तन आए। बंजारा जनजाति की विशेषता यह है कि वह अधिकतर कबीले में निवास करते थे जहां प्रत्येक कबीले का एक मुखिया अवश्य होता था और जिसे वह अपना नायक मानते थे। इन कबीलों में रहने वाले लोग धोबी, चर्मकार, नाई, बढ़ई आदि का कार्य करते थे। कहा जाता है कि बंजारा जनजाति के लोग सिख धर्म से अत्यधिक प्रभावित थे जिसके कारण वह अपनी पूर्ण आस्था गुरु नानक देव एवं गुरु ग्रंथ साहिब पर रखते हैं।

माड़िया जनजाति (Madiya Tribe)

माड़िया जनजाति के अधिकतर लोग मध्य प्रदेश के जबलपुर एवं छिंदवाड़ा जिले में निवास करते हैं। इसके अलावा यह जनजाति भारत के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ में भी पायी जाती है। इस जनजाति से संबंधित सदस्य गोंडी भाषा का अनुसरण करते हैं एवं यह अधिकतर जंगलों में ही अपना जीवन व्यापन करते हैं। माड़िया जनजाति को मुख्य रूप से दो उप जातियों में विभाजित किया गया है पहला अबुझ माड़िया एवं दूसरा बाईसन होर्न माड़िया। अबुझ माड़िया अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते हैं एवं बाईसन होर्न माड़िया का निवास स्थान इंद्रावती नदी के पास स्थित मैदानी जंगलों में हैं। माड़िया जनजाति की यह दोनों उप जातियां एक दूसरे से मिलती-जुलती उप जातियां हैं। कहा जाता है कि इस जाति से संबंधित लोग बाहरी लोगों से अधिक मिलने-जुलने या बातचीत करने से परहेज करते हैं। इसके अलावा माड़िया जनजाति के लोग अधिक आक्रामक माने जाते हैं।

मध्य प्रदेश की प्रमुख बोलियाँ

मध्य प्रदेश की प्रमुख बोलियाँ (Major Dialects of Madhya Pradesh in hindi) मध्य प्रदेश को बोलियों का गढ़ भी कहा जाता है क्योंकि यहां अनेकों बोलियों एवं उप-बोलियों का संग्रहित रूप देखने को मिलता है। मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक एवं कलात्मक विरासत अन्य प्रदेशों की तुलना में बेहद समृद्ध मानी जाती है। मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से चार प्रकार की बोलियां बोली जाती है जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • बघेली (Bagheli dialect)
  • बुंदेली (Bundeli dialect)
  • निमाड़ी (Nimari dialect)
  • मालवी (Malvi dialect)

बघेली बोली (Bagheli Dialect)

बघेली बोली मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के रीवा, शहडोल, सतना, पन्ना आदि क्षेत्रों में बोली जाती है। बघेली या बाघेली बोली हिन्दी भाषा की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। बघेले राजपूतों के आधार पर रीवा एवं आस पास के क्षेत्र को बघेलखंड कहा जाता है और वहाँ की बोली को बघेलखंडी या बघेली कहलाती है।

बुंदेली बोली (Bundeli Dialect)

बुंदेली बोली मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, ग्वालियर, दतिया, नरसिंहपुर, छतरपुर, होशंगाबाद, डबरा, बीना आदि क्षेत्रों में बोली जाती है।

निमाड़ी बोली (Nimari Dialect)

निमाड़ी बोली का केंद्र मध्य प्रदेश के निमाड़ एवं खंडवा नामक क्षेत्र में है। इसके अलावा यह बोली महेश्वर, नेपानगर, ओंकारेश्वर, खरगोन, हरदा आदि क्षेत्रों में भी बोली जाती है। निमाड़ी भाषा गुजराती, मराठी, राजस्थानी, और हिंदी के मिश्रण से बनी है!

मालवी बोली (Malvi Dialect)

मालवी बोली मध्यप्रदेश के इंदौर, रतलाम, बड़नगर, राजगढ़, अशोकनगर, नीमच, सुजालपुर, देवास आदि क्षेत्रों में बोली जाती है।

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