मौलिक अधिकार किसे कहते हैं

मौलिक अधिकार किसे कहते हैं

मौलिक अधिकार : मौलिक अधिकार किसे कहते हैं, मौलिक अधिकार का महत्व, मौलिक अधिकार किस देश से लिया गया है, मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं आदि महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।

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मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ( what are fundamental rights in hindi)

मौलिक अधिकार वह मूल अधिकार होते हैं जो किसी भी देश के संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं। यह अधिकार देश के नागरिकों के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास हेतु बेहद आवश्यक माने जाते हैं। मौलिक अधिकारों को देश के संविधान में एक विशेष दर्जा प्राप्त है जिसमें संशोधन की प्रक्रिया के अलावा अन्य कोई भी बदलाव नहीं किया जा सकता। यह अधिकार एक व्यक्ति को हर क्षेत्र में विकास करने का अवसर प्रदान करते हैं। मौलिक अधिकार का संबंध न्याय पद्धति से होता है जिसके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से अधिकार प्राप्त होते हैं। मौलिक अधिकार देश के संविधान सभा द्वारा लागू किया जाता है एवं इसे संविधान सभा द्वारा ही सुरक्षित भी किया जाता है।

मौलिक अधिकार का महत्व ( importance of fundamental rights in hindi )

मौलिक अधिकार देश के नागरिकों के जीवन यापन हेतु बेहद अनिवार्य होते हैं। यह व्यक्ति को मुख्य रूप से सुरक्षा प्रदान करते हैं। मौलिक अधिकार देश के नागरिकों के मानसिक एवं नैतिक विकास के लिए भी बेहद आवश्यक माने जाते हैं। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार को विशेष महत्व दिया गया है। इसे देश में लोकतंत्र की स्थापना करने के उद्देश्य से संविधान में शामिल किया गया था। देश के नागरिकों के विकास हेतु संविधान में मौलिक अधिकारों की एक विशेष भूमिका होती है। भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जहां मुख्य रूप से शासन प्रणाली को अपनाया गया है। मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था का एक विशेष अंग माना जाता है जिसके द्वारा देश के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होती है।

मौलिक अधिकारों के महत्व को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है:-

  • लोकतंत्र की सफलता के आधार पर
  • अल्पसंख्यकों के कल्याण हेतु
  • लोकहित में मौलिक अधिकारों का प्रतिबंध
  • शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाकर
  • सभी नागरिकों को समान अधिकार
  • मौलिक अधिकार न्यायसंगत हैं
  • सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों का अभाव
  • भारतीय नागरिकों एवं विदेशी नागरिकों में अंतर

लोकतंत्र की सफलता के आधार पर

स्वतंत्रता एवं समानता लोकतंत्र के दो आधारभूत स्तंभ माने जाते हैं। मौलिक अधिकारों में स्वतंत्रता और समानता को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश के नागरिक अपने प्रतिनिधित्व का चुनाव कर सकते हैं जो लोकतांत्रिक परंपराओं का निर्वाहन करते हुए उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हैं।

अल्पसंख्यकों के कल्याण हेतु

मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संरक्षण को विशेष महत्व प्रदान किया गया है। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में अल्पसंख्यकों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता है। समाज में कुछ जातियों को निम्न माना जाता है जिसके कारण उनका कई प्रकार से शोषण भी होता है। इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने एवं समाज में समानता के स्तर को स्थापित करने हेतु मौलिक अधिकार विभूषित किया गया है।

लोकहित में मौलिक अधिकारों का प्रतिबंध

लोकहित में मौलिक अधिकारों की सीमाओं को स्थापित करने से मौलिक अधिकारों का उपयोग संभव हो सकता है। माना जाता है कि अधिकारों की सीमाओं को तय करने से मौलिक अधिकारों के महत्व में वृद्धि की जा सकती है। यदि अधिकारों की कोई सीमाएं ना हों तो उस स्थिति में नागरिक स्वतंत्रता को निर्वाध रूप से उपभोग कर सकता है इसीलिए लोकहित में मौलिक अधिकारों का प्रतिबंध अति आवश्यक माना जाता है।

शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाकर

भारतीय संविधान सभा में संविधान में कुछ ऐसे मौलिक अधिकारों को स्थान दिए जाने की मांग की गई है जिसका अतिक्रमण स्वयं शासक भी ना कर सके। माना जाता है कि भारत की स्वतंत्रता से पूर्व प्रशासन की स्वेच्छाचारिता का एक कटु अनुभव रहा था। इसी कारण संविधान निर्माताओं ने इस मांग को स्वीकृति प्रदान करते हुए मौलिक अधिकारों को अलंघनीय घोषित किया है।

सभी नागरिकों को समान अधिकार

भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को एक समान अधिकार देने का प्रावधान किया गया है जिससे समाज में समानता का स्तर स्थापित होता है। यह बहुसंख्यकों एवं अल्पसंख्यकों में कोई भी भेदभाव नहीं करता। मौलिक अधिकार सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है एवं कानून के दृष्टिकोण से भी सभी नागरिक एक समान माने जाते हैं।

मौलिक अधिकार न्यायसंगत हैं

भारतीय संविधान में सभी मौलिक अधिकार न्यायसंगत होते हैं क्योंकि यह अधिकार न्यायालय द्वारा लागू किए जाते हैं। सभी मौलिक अधिकारों को लागू करने हेतु भारतीय संविधान में विशेष प्रकार की व्यवस्थाएं की गई हैं।

सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों का अभाव

भारतीय अधिकार-पत्र में किसी भी प्रकार के सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों को व्यवस्थित नहीं किया गया है। इसमें मुख्य रूप से सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, आराम का अधिकार, उदाहरणतः काम करने का अधिकार आदि जैसे अधिकारों को शामिल नहीं किया गया है। परंतु इन अधिकारों की स्थापना निर्देशक सिद्धांतों के अधीन की गई है।

भारतीय नागरिकों एवं विदेशी नागरिकों में अंतर

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार प्रदान करने का प्रावधान केवल भारतीय मूल के नागरिकों को दिया गया है। इसमें मुख्य रूप से भारतीय नागरिकों एवं विदेशी नागरिकों में भेद किया गया है। अधिकांश मौलिक अधिकार केवल भारत के निवासियों को ही प्राप्त हैं।

मौलिक अधिकार किस देश से लिया गया है

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) के संविधान से लिया गया है।

मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं ( what are the fundamental rights in hindi )

भारतीय संविधान मुख्य रूप से छह मौलिक अधिकारों को प्रदान करता है जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • समानता का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार
  • संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार

समानता का अधिकार (Right To Equality)

भारतीय संविधान के 14 वें अनुच्छेद से 18 वें अनुच्छेद में समानता का अधिकार निहित है। इसके अनुसार राज्य के किसी भी नागरिक के साथ जाति, नस्ल, लिंग, जन्म स्थान, वर्ण आदि के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता। भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।

स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)

स्वतंत्रता के अधिकार को भारतीय संविधान के 19 वें अनुच्छेद से 22 वें अनुच्छेद में वर्णित किया गया है। इसमें देश के नागरिकों को कई प्रकार की मौलिक स्वतंत्रता प्रदान की गई है। जैसे विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, भ्रमण करने की स्वतंत्रता, व्यापार एवं व्यवसाय करने की स्वतंत्रता, अहिंसा पूर्वक सम्मेलन की स्वतंत्रता, समुदाय एवं संघ निर्माण की स्वतंत्रता आदि।

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को स्थापित किया गया है। भारतीय संविधान निर्माताओं के अनुसार धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार होता है। इसमें प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का शांतिपूर्वक प्रचार एवं प्रसार करने का अधिकार प्रदान किया गया है। धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का चुनाव कर सकता है तथा कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का पालन करने या ना करने हेतु बाध्य नहीं है। भारत देश में कोई भी राज्य धार्मिक नहीं है परंतु यह सभी धर्मों का समान रूप से आदर करता है। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी श्रद्धानुसार किसी भी धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)

शोषण के विरुद्ध अधिकार को भारतीय संविधान के 23 वे अनुच्छेद से 24 वें अनुच्छेद तक वर्णित किया गया है। इसमें मुख्य रूप से समाज के कमजोर वर्गों की रक्षा हेतु कई प्रावधान किए गए हैं। शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार देश में निम्न वर्ग के नागरिकों की रक्षा करते हैं एवं उसे सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। यह मौलिक अधिकार बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)

भारतीय संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार की व्याख्या अनुच्छेद 32 में की गई है। इसमें देश के नागरिक अपने अधिकारों की मांगों की पूर्ति करने एवं उसे लागू करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं। भारतीय संविधान में न्यायालयों को यह अधिकार प्राप्त है कि वह कार्यपालिकाओं द्वारा किये जाने वाले सभी अवैधानिक कार्यों को अधिकारों के विरुद्ध घोषित कर सकते हैं।

संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and Educational Rights)

भारतीय संविधान में संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकारों को अनुच्छेद 29 से 30 तक व्यवस्थित किया गया है। इसमें मुख्य रूप से देश के सभी नागरिकों को एक समान संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है। संस्कृति एवं शिक्षा के अधिकार में प्रत्येक नागरिकों को अपनी भाषा लिपि एवं संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया गया है। इसके अलावा संस्कृति एवं शिक्षा के अधिकार में राज्य द्वारा संचालित मान्यता प्राप्त एवं सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाएँ बिना किसी भेदभाव के सभी वर्गों को समान रूप से शिक्षा का अवसर प्रदान कर सकते हैं।

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