मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर

मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर

मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर : मौलिक अधिकार क्या होते हैं, मौलिक अधिकार कौन से हैं , मौलिक कर्तव्य क्या होते हैं, मौलिक कर्तव्य कौन से हैं, मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

मौलिक अधिकार क्या होते हैं

मौलिक अधिकार वह अधिकार होते हैं जो देश के संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए गए हैं। यह व्यक्तियों के भौतिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। भारतीय संविधान के तृतीय भाग में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान निर्माताओं का मानना है कि जिस प्रकार जीवन जीने के लिए जल की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास हेतु मौलिक अधिकारों की भी आवश्यकता होती है। इसीलिए भारतीय संविधान में व्यापक रूप से मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। भारत के संविधान के तृतीय भाग को अधिकार-पत्र कहा जाता है।

मौलिक अधिकार कौन से हैं

भारतीय संविधान में सर्वप्रथम 7 मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया था परंतु 44 वें संविधान संशोधन के बाद वर्ष 1978 में इन अधिकारों की संख्या घटाकर 6 कर दी गई थी। संविधान संशोधन में 7 वें मौलिक अधिकार “संपत्ति के अधिकार” को समाप्त कर दिया गया था। मौलिक अधिकारों को मुख्य रूप से 6 भागों में विभाजित किया गया है जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  1. समानता का अधिकार
  2. संवैधानिक उपचार का अधिकार
  3. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
  4. स्वतंत्रता का अधिकार
  5. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  6. शोषण के विरुद्ध अधिकार

मौलिक कर्तव्य क्या होते हैं

भारतीय संविधान में विभिन्न प्रकार के मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया गया है। यह वे कार्य होते हैं जो देश के नागरिकों के लिए अनिवार्य होते हैं। भारतीय संविधान में राष्ट्र के निर्माण हेतु नागरिक के कुछ मौलिक कर्तव्य को आवश्यक बताया गया है। मौलिक कर्तव्य के माध्यम से देश प्रेम एवं राष्ट्रीय विचारों में वृद्धि होती है।

मौलिक कर्तव्य कौन से हैं

भारत के संविधान में मुख्य रूप से 11 प्रकार के मौलिक कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।

  1. देश के सभी नागरिकों को यह निर्देश दिया जाता है कि वह संविधान का पालन करें तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान का आदर करें।
  2. भारत के सभी नागरिक देश की एकता, प्रभुता एवं अखंडता की सदैव रक्षा करें।
  3. भारत के सभी नागरिकों में समरसता सम्मान भ्रातृत्व की भावना अनिवार्य रूप से होनी चाहिए जिससे देश में धर्म, जाति, भाषा एवं प्रदेश के आधार पर भेदभाव को दूर किया जा सके। इसके अलावा पुरुष समाज महिलाओं के सम्मान में रुकावट पैदा करने वाली सभी प्रथाओं का भी त्याग करें।
  4. देश के नागरिक सदैव देश की रक्षा करने के लिए तत्पर रहें एवं अंतर भाव से राष्ट्र की सेवा करें।
  5. देश की स्वतंत्रता के लिए जिन राष्ट्रीय आंदोलनों की मुख्य भूमिका रही उनके प्रति देश के सभी नागरिक सम्मान की भावना रखें एवं उसके नियमों का पालन भी करें।
  6. देश की सभी सांस्कृतिक संस्थाओं की परंपराओं के महत्व का आदर करें।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें तथा नदी, झील एवं वन में रहने वाले सभी प्राणियों की रक्षा भी करें।
  8. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें एवं अहिंसा के मार्ग को धारण करें।
  9. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, ज्ञानार्जन, मानववाद एवं सामाजिक सुधार की भावना का विकास करें।
  10. माता-पिता अपने 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा का अवसर प्रदान करें।
  11. देश के सभी नागरिकों को यह निर्देश दिया जाता है कि वह व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के हर क्षेत्र में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का निरंतर प्रयास करते रहे जिससे देश प्रगति की राह की ओर बढ़ सके।

मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर

मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में निम्नलिखित अंतर होते हैं।

  • भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) से लिया गया है जबकि मौलिक कर्तव्य पूर्व सोवियत संघ (रूस) से लिया गया है।
  • मौलिक अधिकार का उल्लेख भारतीय संविधान में भाग 3 अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक किया गया है जबकि मौलिक कर्तव्य का उल्लेख भारत के संविधान भाग 4 (क) अनुच्छेद 51 (क) में किया गया है।
  • भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार वादयोग्य (Justiciable) होता है परंतु मौलिक कर्तव्य गैर न्यायोचित (Non- Justiciable) होता है।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने पर भारतीय संविधान में सजा का प्रावधान किया गया है परंतु मौलिक कर्तव्यों का पालन नहीं करने पर किसी भी प्रकार की सजा का प्रावधान नहीं किया गया है।
  • राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान देश का राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 एवं अनुच्छेद 21 को छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित कर सकते हैं जिसके कारण मौलिक अधिकारों को निलंबनीय भी कहा जाता है जबकि मौलिक कर्तव्य को किसी भी परिस्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता है जिसके कारण मौलिक कर्तव्यों को अनिलम्बनीय भी कहा जाता है।
  • कुछ मौलिक अधिकार देश के नागरिकों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों पर भी लागू होते हैं परंतु मौलिक कर्तव्य विदेशी नागरिकों पर किसी भी रुप से लागू नहीं होता।
  • भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार का विषयवस्तु अत्यंत विस्तृत किया गया है परंतु मौलिक कर्तव्य संक्षिप्त या छोटा होता है।
  • भारत के मूल संविधान में मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया था परंतु मूल संविधान में मौलिक कर्तव्य को शामिल नहीं किया गया था।
  • मौलिक अधिकारों का पालन करने हेतु मुख्य रूप से कानूनी बल कार्य करता है जबकि मौलिक कर्तव्य का पालन करने के लिए नैतिक बल कार्य करता है।

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