नारीवाद क्या है - नारी अधिकारवाद, नारीवाद के प्रकार, सिद्धांत

नारीवाद क्या है – नारी अधिकारवाद, नारीवाद के प्रकार, सिद्धांत

नारीवाद क्या है UPSC notes (नारी अधिकारवाद या नारीवाद किसे कहते हैं), नारीवाद दृष्टिकोण, नारीवाद के प्रकार, नारीवाद के सिद्धांत, नारीवाद का विकास, नारीवाद की विशेषताएं, नारीवाद की आलोचना, भारत में नारीवादी आंदोलन, नारीवाद का क्या अभिप्राय है आधुनिक युग में इसके महत्व पर प्रकाश डालिए आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

Table of Contents

नारीवाद (Feminism) क्या है (नारी अधिकारवाद या नारीवाद किसे कहते हैं)

समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाने के लिए जिन सामाजिक आंदोलनों को संचालित किया जाता है उसे नारीवाद कहा जाता है। नारीवाद एक ऐसी विचारधारा है जो महिला एवं पुरुष के बीच असमानता को स्वीकार करके महिलाओं को बौद्धिक एवं व्यावहारिक रूप से सशक्त करने पर बल देने का कार्य करता है। नारीवाद के अंतर्गत राजनीतिक एवं सामाजिक आंदोलनों को लैंगिक समानता प्रदान करने का अधिकतम प्रयास किया जाता है। इसके द्वारा महिलाओं को पुरुषों के समान ही शिक्षा एवं रोजगार देने का भी प्रयास किया जाता है। नारीवाद को समाज में महिला सशक्तिकरण को स्थापित करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।

नारीवाद दृष्टिकोण

नारीवाद के अनुसार समाज में पुरुषों एवं महिलाओं को समान अधिकार एवं अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। यह आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक समानता के अधिकार के सिद्धांतों पर कार्य करने वाली नीति है। नारीवाद समाज में लिंग के आधार पर असमानता को स्थापित करने का एक सफल प्रयास है जिसके अंतर्गत महिलाओं को पुरुषों के समान ही शिक्षा एवं रोजगार देने का अवसर प्रदान करता है। इसके अंतर्गत महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार एवं उत्पीड़न की रोकथाम हेतु हर संभव प्रयास किए जाते हैं। नारीवाद वह दृष्टिकोण है जो समाज में लिंग संबंधी समस्याओं को विस्तारित रूप से समझने एवं संबोधित करने में सहायता प्रदान करता है।

नारीवाद के प्रकार

नारीवादी व्यवस्था को कई श्रेणियों में बांटा गया है जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism)
  • समाजवादी व मार्क्सवादी नारीवाद (Social/Marxist Feminism)
  • उग्रवादी नारीवाद (Radical Feminism)
  • उत्तर आधुनिक नारीवाद (Post Modemist)
  • पर्यावरणीय नारीवाद (Eco Feminism)
  • अश्वेत नारीवाद (Black Feminism)
  • सांस्कृतिक नारीवाद (Cultural Feminism)

उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism)

उदारवादी नारीवाद वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत समाज में महिलाओं को अपना प्रतिनिधित्व करने के कई अवसर प्रदान किए जाते हैं। उदारवादी नारीवाद में नारी के साथ उदारतापूर्वक व्यवहार करने की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाता है जिससे समाज में महिलाओं को समानता प्रदान की जा सके। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सभी सामाजिक संस्थाओं में महिलाओं की पहचान को स्थापित करने के सफल प्रयास किए जाते हैं।

समाजवादी व मार्क्सवादी नारीवाद (Social/Marxist Feminism)

समाजवादी या मार्क्सवादी नारीवाद के अंतर्गत महिलाओं के साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव को रोकने के हर संभव प्रयास किये जाते हैं। इसके द्वारा सामाजिक स्थिति में बदलाव करके नारी का सम्मान किया जाता है। यह एक ऐसी आंदोलनकारी व्यवस्था है जिसकी मदद से महिलाओं को सामाजिक रूप से समानता के अधिकार प्रदान किए जाते हैं।

उग्रवादी नारीवाद (Radical Feminism)

उग्रवादी नारीवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें महिलाओं की समस्याओं को देश की सरकार एवं समाज के समक्ष रखा जाता है। उग्रवादी नारीवाद मनोवैज्ञानिक रूप से महिलाओं को प्रोत्साहन देने का कार्य करता है जिसमें महिलाएं ना केवल घर में बल्कि घर के बाहर भी अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें। यह नारीवाद की एक परिवर्तित धारणा है जो सन 1960 के दशक में प्रचलन में आयी।

उत्तर आधुनिक नारीवाद (Post Modemist)

उत्तर आधुनिक नारीवाद के अंतर्गत वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति को दर्शाया जाता है। इस व्यवस्था में महिलाओं को प्रदान किए जाने वाले अधिकारों को सुनिश्चित किया जाता है। उत्तर आधुनिक नारीवाद महिलाओं के जीवन में पुरुषों के हस्तक्षेप करने पर रोक लगाई जाती है जिससे महिलाएं अपने जीवन संबंधी सभी निर्णय स्वयं ले सकें। इसके अलावा उत्तर आधुनिक नारीवाद में महिलाओं के जीवन में रुकावट पैदा करने वाली प्राचीन परंपराओं तथा रूढ़िवाद मान्यता को एक नई आधुनिक संज्ञा प्रदान की जाती है जिससे महिलाओं का जीवन सफल हो सके।

पर्यावरणीय नारीवाद (Eco Feminism)

पर्यावरणीय नारीवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत प्राकृतिक रूप से महिलाओं को समानता का अधिकार दिया जाता है। यह महिलाओं के प्रति एक ऐसा माहौल है जिसका प्रभाव महिलाओं के जीवन पर पड़ता है। इसके अंतर्गत अनेकों प्राकृतिक संस्थानों द्वारा समाज में नारी की स्थिति को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य किया जाता है।

अश्वेत नारीवाद (Black Feminism)

अश्वेत नारीवाद के अंतर्गत काले-गोरे के भेद को सामाजिक रूप से समाप्त करने पर कार्य किया जाता है। विश्व भर में तरह-तरह से महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है जिसके कारण महिलाओं का जीवन सामाजिक व आर्थिक रूप से प्रभावित होता है जिससे नारियों को समानता का अधिकार प्राप्त नहीं हो पाता। अश्वेत नारीवाद, रंगभेद को सामाजिक रूप से दर्शाने का कार्य करता है।

सांस्कृतिक नारीवाद (Cultural Feminism)

सांस्कृतिक नारीवाद वह सिद्धांत है जिसमें महिलाओं को सामान्य वर्ग के रूप में व्यवस्थित किया जाता है। इसके अंतर्गत सांस्कृतिक सापेक्षवाद की सहायता से विभिन्न वर्ग की महिलाओं की समस्याओं का विश्लेषण कर उनको दूर करने के प्रयास किए जाते हैं। सांस्कृतिक नारीवाद उन सभी समस्याओं को दर्शाने का कार्य करता है जिसमें महिलाओं का जीवन प्राचीन संस्कृति के कारण प्रभावित होता है।

नारीवाद के सिद्धांत

नारीवाद एक ऐसे समाज की परिकल्पना करता है जिसमें महिलाओं के जीवन में पुरुषों का कोई हस्तक्षेप ना हो। नारीवाद वह सिद्धांत है जिसके अंतर्गत समाज में लैंगिक असमानता एवं भेदभाव की समस्या को दूर करने के प्रयास किए जाते हैं। साधारण भाषा में कहा जाए तो नारीवाद स्त्री एवं पुरुष की समानता के सिद्धांत पर आधारित है। यह जनतांत्रिक मूल्यों एवं महिलाओं की अधीनता के मध्य अंतर्विरोध को रेखांकित करता है। नारीवाद का सिद्धांत समाज में महिलाओं की स्थिति को दर्शाने एवं उसमें सुधार करने का कार्य करता है। इसके अलावा नारीवाद के तीन अन्य सिद्धांत भी है जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • महिला सशक्तिकरण
  • स्वायत्तता
  • सार्थक जुड़ाव

महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment)

महिला सशक्तिकरण वह व्यवस्था प्रणाली है जिसके अंतर्गत महिलाओं को सामाजिक रूप से शक्तिशाली बनाने की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाता है। इससे महिलाओं को अपने जीवन संबंधी सभी निर्णय स्वयं लेने का अधिकार होता है जिससे उनके जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आते हैं। महिला सशक्तिकरण, महिलाओं के वास्तविक अधिकारों को सामाजिक रुप से प्राप्त करने की प्रेरणा देता है जिससे महिलाएं सक्षम हो सकें। इसे नारीवाद के एक प्रमुख सिद्धांत के रूप में भी देखा जा सकता है।

स्वायत्तता

स्वायत्तता वह प्रणाली है जिसके अंतर्गत महिलाओं की शासन करने की योग्यता को बढ़ावा दिया जाता है। यह सामाजिक रूप से महिलाओं की नैतिक स्वतंत्रता की धारणा का निर्माण करता है। केवल इतना ही नहीं यह महिलाओं को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से प्रबल बनाने का कार्य भी करता है जिससे महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष समानता का अधिकार मिलता है।

सार्थक जुड़ाव

सार्थक जुड़ाव एक ऐसी गतिविधि है जिसके अंतर्गत हर सामाजिक घटनाओं में महिलाओं की बराबर भागीदारी को दर्शाया जाता है। यह महिलाओं को सामाजिक रुप से उन्नति प्रदान करता है जिससे महिलाएं हर क्षेत्र में विकास करती हैं। इसके द्वारा महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान किया जाता है जिससे समाज में महिलाओं की स्थिति बेहतर होती है।

नारीवाद का विकास

नारीवाद एक आंदोलन है जिसकी उत्पत्ति पितृसत्तात्मक के विरोध के कारण हुई थी। नारीवाद का विकास तीन प्रमुख चरणों में हुआ था जिसका पहला चरण सन 1742-1963, दूसरा चरण 1963-1980 एवं तीसरा चरण 1980 से लेकर वर्तमान समय तक है। नारीवाद की शुरुआत सर्वप्रथम इंग्लैंड में हुई थी। माना जाता है कि नारीवाद वह क्रांतिकारी आंदोलन है जिसमें महिलाओं को सामाजिक रुप से सशक्त बनाने के लिए कई सार्थक प्रयास किए जाते हैं। नारीवाद में महिलाओं के मताधिकार के संदर्भ में एक राजनीतिक स्वरूप तैयार किया जाता है जिससे द्वारा समाज में महिलाओं की स्थिति बेहतर होती है। सन 1861 में जॉन स्टूअर्ट ने सुधार एक्ट की सहायता से महिलाओं को सरकार चुनने का अधिकार दिलाया जिसके कारण नारीवाद तेजी से विकसित होने लगा।

नारीवाद की विशेषताएं

नारीवाद की विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं:-

  • लैंगिक असमानता की प्रकृति
  • प्रजनन संबंधी अधिकार
  • लैंगिक भेदभाव
  • घरेलू हिंसा पर रोक

लैंगिक असमानता की प्रकृति

नारीवाद के अंतर्गत लैंगिक असमानताओं की रोकथाम के लिए अनेकों प्रयास किए गए जिसके आधार पर महिलाओं के प्रति भेदभाव की भावना को समाप्त किया जा सके। विश्व भर में पारंपरिक रूप से महिलाओं को एक कमजोर वर्ग के रूप में देखा जाता है जिसके कारण अक्सर महिलाएं सामाजिक व घरेलू रूप से शोषण एवं अपमानजनक जीवन व्यतीत करती हैं। नारीवाद में महिलाओं के साथ हो रहे इस दुर्व्यवहार पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया जाता है जिससे महिलाएं समाज में एक बेहतर जीवन यापन कर सकें।

प्रजनन संबंधी अधिकार

नारीवाद में विशेष रूप से प्रजनन संबंधी अधिकार को दर्शाया जाता है। प्रजनन अधिकार सभी वर्ग के लोगों के मूल अधिकार की मान्यताओं पर निर्भर करता है ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपने बच्चों की संख्या तय कर सकें। इसके द्वारा महिलाओं को प्रजनन संबंधी सभी जानकारी से भी अवगत कराया जाता है जिससे समाज में जागरूकता फैल सके।

लैंगिक भेदभाव

नारीवाद के अंतर्गत लिंग के आधार पर भेदभाव करने की प्रक्रिया पर रोक लगाने का प्रयास किया जाता है। लैंगिक भेदभाव समाज में असमानता की स्थिति को दर्शाता है जो अधिकतर पुरुष समाज वर्ग के लोगों द्वारा की जाती है। नारीवाद में महिलाओं के साथ हो रहे इस अन्याय पर विशेष रूप से प्रतिबंध लगाया जाता है।

घरेलू हिंसा पर रोक

नारीवाद में विशेष रूप से घरेलू हिंसा पर रोक लगाने का प्रयास किया जाता है। घरेलू हिंसा वह दुर्व्यवहार है जो किसी परिवार के सदस्य द्वारा किया जाता है। इसमें महिलाओं को शारीरिक, यौन एवं मनोवैज्ञानिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है जिससे महिलाओं की स्थिति बदतर हो जाती है।

नारीवाद की आलोचना

नारीवाद की आलोचना पूर्णतः लिंग की भूमिका पर केंद्रित है। यह पितृसत्ता एवं पुरुष केंद्रीय संरचना के मापदंडों को निर्धारित करती है जिसके कारण नारीवाद की सामाजिक रूप से कई बार आलोचना हुई। कई नारीवादी विचारकों ने नारीवाद को आंतरिक रुप से पुरुष का शत्रु बताया है। इसके अनुसार महिलाओं को अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए पुरुष वर्ग के लोगों के समर्थन एवं सहयोग की आवश्यकता होती है। नारीवाद महिलाओं को प्रजाति एवं सजातीय के संदर्भ में विभाजित करता है जिसका केंद्र अधिकतर अफ्रीकी महिलाएं एवं अश्वेत महिलाएं होती हैं।

नारीवाद का सिद्धांत वास्तव में एक आंदोलन का सिद्धांत है जो समाज में सकारात्मक प्रभाव के साथ-साथ कई नकारात्मक प्रभाव भी डालता है। नारीवादी विचारकों का मानना है कि नारीवाद ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं एवं निम्न वर्ग की महिलाओं से कोई विशेष संबंध नहीं रखता। इसके अलावा नारीवाद परिवार एवं विवाह जैसे संबंधों को भी नकारता है जो सामाजिक दृष्टि से उचित नहीं है।

भारत में नारीवादी आंदोलन

भारत में नारीवाद आंदोलन महिलाओं को एक समान राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों के अवसरों को प्रदान करने के उद्देश्य से आरंभ किया गया था। भारत में हुए इस आंदोलन की मदद से महिलाओं को कई प्रकार के अधिकार दिलाए गए। यह एक ऐसी संकल्पना है जो भारतीय समाज में महिलाओं की स्तिथि को बेहतर करने का प्रयास करता है। इसमें पुरुषों के समान ही महिलाओं को भी शिक्षा के बराबर अधिकार दिए जाते हैं।

भारत में नारीवादी आंदोलन को महिला आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसा आंदोलन है जिसके कारण महिला सशक्तिकरण की विचारधारा को वैश्विक रूप से बढ़ावा मिलता है। भारत में हुए इस नारीवादी आंदोलन के कारण घरेलू रूप से महिलाओं की स्थिति को मजबूती देने के बल पर कार्य गया था। इसके साथ ही सामाजिक रुप से महिलाओं को अधिक सुविधा देने का भी प्रयास किया गया। नारीवाद के कारण भारत में महिला आरक्षण की मांग में तेजी से वृद्धि हुई जिससे प्रभावित होकर भारत की अधिकांश महिलाएं आरक्षण का समर्थन करती हैं। नारीवाद आंदोलन ने भारत में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए कई संभव प्रयास किए जिससे महिलाओं की स्थिति सामाजिक रुप से बेहतर हो सके।

इसके अलावा नारीवाद आंदोलन से प्रभावित होकर महिलाओं ने कई आंदोलनों में भी भाग लिया जो कुछ इस प्रकार है:-

  • चिपको आंदोलन
  • नक्सलवादी आंदोलन
  • ताड़ी विरोध
  • दहेज विरोध

चिपको आंदोलन

भारत में सन 1970 में महिलाओं ने चिपको आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसका उद्देश्य बड़े स्तर पर पेड़ों की कटाई को रोकना था। इस आंदोलन में महिलाओं ने सरकार के विरुद्ध आंदोलन किए जिसके फलस्वरूप सरकार को पेड़ों को काटने के आदेश पर रोक लगानी पड़ी। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – चिपको आंदोलन

नक्सलवादी आंदोलन

नक्सलवादी आंदोलन पश्चिम बंगाल के भूमिहीन किसानों द्वारा संचालित किया गया जिसमें महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

ताड़ी विरोध

ताड़ी विरोध की शुरुआत दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में हुई थी। यह महिलाओं द्वारा संचालित किया जाने वाला एक आंदोलन था जो सन 1980-1990 के मध्य चला। भारत में हुए इस आंदोलन के कारण महिलाओं को एक नई पहचान मिली।

दहेज विरोधी

सन 1980 में महिलाओं ने घरेलू हिंसा एवं यौन उत्पीड़न के खिलाफ कई क्रांतिकारी आंदोलन किए जिसके परिणामस्वरूप समाज में महिलाओं की स्थिति बेहतर हो सकी। इसके अलावा दहेज प्रथा के विरोध में कई महिला संगठनों ने भी अपनी आवाज बुलंद की जिसके कारण सरकार को 1986 में IPC की धारा दहेज विरोधी अधिनियम 498-A को पारित करना पड़ा।

नारीवाद का क्या अभिप्राय है आधुनिक युग में इसके महत्व पर प्रकाश डालिए

नारीवाद के कारण आधुनिक युग में महिलाएं न केवल अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं बल्कि समाज में एक नई पहचान भी स्थापित कर रही है। वर्तमान समय में महिलाओं के लिए समान अधिकार पाना वास्तव में चुनौतीपूर्ण है। कई नारीवादी विचारकों का मानना है कि आज भी समाज में शिक्षित वर्ग एवं अशिक्षित वर्ग की महिलाएं सिमटी हुई हैं। आधुनिक युग में नारीवाद का महत्व कई देशों वह राज्यों में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पढ़ें –