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नैनीताल के प्रसिद्ध मन्दिर (Famous temple in Nainital district)
उत्तराखंड को वैदिक काल से ही देवभूमि के नाम से जाना जाता है, इस लिए यहाँ अनेको मंदिर स्थित है, जिनमें से कुछ मंदिर तो हजारो सालों से प्रसिद्ध तो कुछ का इतिहास मध्य काल है, कुछ मंदिरों के बारे में लोगो के अनेकों मत है, तो कुछ मंदिरों को लोगो ने अपने आराध्यदेव या पूर्वजों के लिए स्थापित किये तथा कुछ मंदिरों का तो कुछ इतिहास ही नही है फिर भी लोगो के द्वारा उन मंदिरों में एक आस्था से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पूजा-अर्चना होती आ रही है। इन्ही संदर्भो के आधार पर कुछ नैनीताल जनपद के प्रमुख मंदिर इस प्रकार है –
नेनादेवी मन्दिर (Naina Devi Temple)
नैना देवी मंदिर इसे नयना देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, यह मंदिर नैनीताल में नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर स्थित है। सन 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। फिर इस मंदिर का निर्माण मोती रामशाह ने कराया था। यहाँ पर नैना देवी की प्रतिमा के साथ भगवान श्री गणेश और काली माता की मूर्तियाँ भी इस मंदिर में प्रतिष्ठापित हैं।
पौराणिक मान्यता (Mythology)
कहा जाता है,कि जब शिव, सती के मृत शरीर को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहाँ-जहाँ उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। कहा जाता है कि नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे । इसी से इस मंदिर का नाम नयना देवा (नैना देवी) पड़ा।
गर्जीया देवी मन्दिर (Garjiya Devi Temple)
रामनगर से 10 कि०मी० की दूरी पर गर्जिया नामक स्थान पर देवी गिरिजा माता का मंदिर कोसी (कौशिकी) नदी के मध्य एक टीले पर यह मंदिर स्थित है। इस मन्दिर का व्यवस्थित तरीके से निर्माण 1970 में किया गया।
पौराणिक मान्यता (Mythology)
कालान्तर में इस देवी को उपटा देवी (उपरद्यौं) के नाम से जाना जाता था। तत्कालीन जनमानस कीदधारणा थी कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में स्थित है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आ रहा था। मंदिर को टीले के साथ बहते हुये आता देख भैरव देव द्वारा उसे रोकने के प्रयास से कहा गया- “थि रौ, बैणा थि रौ। (ठहरो, बहन ठहरो), यहां पर मेरे साथ निवास करो, तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही है।
हैड़ाखान बाबा मंदिर (Haidakhan Babaji Temple)
नैनीताल जनपद में हल्द्वानी शहर से महेज 40 किलोमीटर दूर गोला नदी के तट पर स्थित है , बाबा हैड़ाखान ने ही सबसे पहले गोला नदी को गौतमी गंगा नाम दिया। हैड़ाखान नाम, आयुर्वेद में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले हरड फल के नाम पर पड़ा, इस गाँव में 16 जुलाई 1970 को एक गुमनाम बाबा ने पदार्पण किया और हैड़ाखान स्थान में घोर तपस्या की थी। कुछ लोगो का कहना है, की हैड़ाखान बाबा नेपाल से आये थे तो कुछ लोगो का मन्ना है, की वे शिव का अवतार थे। हैड़ाखान बाबा ने अपने प्रवचन से सभी को “सत्य, सरलता और प्रेम” से जीने की शिक्षा दी। हर साल यहाँ देश-विदेश से कई लोग शान्ति की तलाश में आते है। हैड़ाखान बाबा ने 14 फ़रवरी 1984 को इसी स्थान पर अपने शरीर त्याग दिया।
नीम करौली कैंचीधाम (Neem Karoli Kainchi Dham)
कैंची धाम, उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भवाली-अल्मोड़ा/रानीखेत राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे पर स्थित है।24 मई 1962 को बाबा यहाँ आये, जहां वर्तमान में कैंची मंदिर स्थित है। 15 जून 1964 को मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई और तभी से 15 जून को प्रतिष्ठा दिवस के रूप में मनाया जाता है। मंदिर चारों ओर से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से घिरा हुआ है और मंदिर में हनुमान जी के अलावा भगवान राम एवं सीता माता तथा देवी दुर्गा जी के भी छोटे-छोटे मंदिर बने हुए है। किन्तु कैंची धाम मुख्य रूप से बाबा नीम करौली और हनुमान जी की महिमा के लिए प्रसिद्ध है।
हनुमानगढ़ी मंदिर (Hanumangarhi Temple)
श्री हनुमान जी समर्पित यह नैनीताल का सबसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो नैनीताल के तल्लीताल से होते हुए वेधशाला वाले मार्ग पर करीब 3 किलोमीटर दुरी पर स्थित हैं। यह मंदिर यहाँ के प्रसिद्ध संत बाबा नीम करोली जी के द्वारा बनवाया गया था।
पढ़ें उत्तराखंड के चार धाम या हिमालय के चार धाम (छोटा चार धाम)।
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