न्याय और कानून में क्या अंतर है (What is the Difference Between Justice and Law in hindi)

न्याय और कानून में क्या अंतर है (What is the Difference Between Justice and Law)

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न्याय और कानून (Justice and Law)

न्याय किसे कहते हैं (What is Justice in hindi)

न्याय वह अवधारणा है जिसके द्वारा समाज में एकता एवं समानता के स्तर को स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। यह व्यक्ति की गरिमा का भी मूल्यांकन करता है जिसके कारण एक सभ्य समाज का निर्माण होता है। सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से यह सभी व्यक्तियों के लिए समान रूप से अधिकार एवं सुरक्षा उपलब्ध कराता है जिसके कारण देश का प्रत्येक नागरिक सुरक्षित महसूस करता है। न्याय का संबंध मानव कल्याण की अवधारणा से होता है जो जीवन के पथ दर्शन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह मुख्य रूप से देश के नागरिकों को जोड़ने का कार्य करता है। किसी भी देश की न्यायिक व्यवस्था व्यक्तियों के अधिकारों एवं कर्तव्यों को अधिक प्रभावशील बनाती है। इसमें देश के नागरिकों के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएं, अधिकार, कर्तव्य, नैतिकता, उचित व्यवहार, न्याय की भावना आदि जैसे तत्व समाहित होते हैं।

न्याय के प्रकार (Types of Justice in hindi)

किसी भी देश की न्याय प्रणाली निम्नलिखित आधार पर कार्य करती है जैसे:-

  • कानूनी न्याय
  • राजनीतिक न्याय
  • नैतिक न्याय
  • आर्थिक न्याय
  • सामाजिक न्याय
कानूनी न्याय (Legal Justice)

किसी भी देश या राज्य में न्याय व्यवस्था को स्थापित करने हेतु कानूनी न्याय को अधिक महत्व दिया गया है। यह वह साधन है जिसमें देश के सभी नागरिकों को समान रूप से न्याय दिलाने का प्रावधान किया गया है। कानूनी न्याय के अंतर्गत सभी नियम एवं कानूनी व्यवहार निहित होते हैं जिसका अनुसरण देश के सभी नागरिकों के द्वारा समान रूप से किया जाता है। इसके अलावा कानूनी न्याय में कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को उचित दंड देने का भी प्रावधान होता है।

राजनीतिक न्याय (Political Justice)

राजनीतिक न्याय वह व्यवस्था होती है जिसके अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को समान रूप से राज्य व्यवस्था को प्रभावित करने एवं राजनीतिक शक्तियों का उचित उपयोग करने का अवसर प्रदान किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से नागरिकों को धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव किए बिना अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार प्रदान किया जाता है। समाज पर राजनीतिक न्याय का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। माना जाता है कि राजनीतिक न्याय देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा राजनीतिक न्याय में निम्न वर्गीय लोगों के अधिकारों के लिए भी उचित प्रावधान किए जाते हैं।

नैतिक न्याय (Moral Justice)

नैतिक न्याय की अवधारणा प्राकृतिक अधिकारों एवं प्राकृतिक नियमों पर आधारित होती है जिसके अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को निष्पक्ष रूप से आपसी संबंधों को स्थापित करने का अवसर प्रदान किया जाता है। इसके अलावा नैतिक न्याय उन प्राकृतिक सिद्धांतों को भी प्रदर्शित करता है जिसके अंतर्गत सत्यता, दया की भावना, वचन पूर्ति एवं उदार व्यवहार करने जैसे गुण निहित होते हैं। यह देश की सभी अन्य न्याय प्रणालियों के अलावा एक अतिरिक्त न्याय पद्धति कहलाती है जो नागरिकों के अच्छे आचरण को संदर्भित करती है।

आर्थिक न्याय (Economic Justice)

आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय का वह महत्वपूर्ण अंग होता है जिसके अंतर्गत नागरिकों के बीच जाति, लिंग, आयु आदि के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने का प्रावधान किया जाता है। आर्थिक न्याय को नैतिक एवं नैतिक सिद्धांतों के एक समूह के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। इसके अलावा आर्थिक न्याय में धन, संपत्ति एवं आय में स्पष्ट असमानताओं को समाप्त करना भी शामिल होता है। माना जाता है कि आर्थिक न्याय को पूर्ण रूप से स्थापित करने हेतु व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार को सीमित किया जाना बेहद अनिवार्य होता है। इसके अलावा आर्थिक न्याय के माध्यम से देश के सभी नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति का भी प्रावधान किया जाता है।

सामाजिक न्याय (Social Justice)

सामाजिक न्याय वह होता है जिसके अंतर्गत समाज की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करके एक आदर्श समाज की स्थापना करने का प्रयास किया जाता है। यह मुख्य रूप से देश के नागरिकों की सभी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य पर आधारित होता है। सामाजिक न्याय में धार्मिक, सांस्कृतिक, जातिवाद आदि के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव नहीं किया जा सकता है। इसमें उत्तम जीवन की संकल्पना करके एक बेहतर समाज का निर्माण करने पर अधिक बल दिया जाता है। इसके अलावा सामाजिक न्याय में नागरिकों के मध्य सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव करने की परिस्थितियों पर भी पाबंदी लगाई जाती है।

 

कानून किसे कहते हैं (What is the Law in hindi)

कानून या विधि वह नियमसंहिता होती है जिसमें लिखित रूप से समाज को बेहतर ढंग से चलाने के लिए कुछ दिशा एवं निर्देशों को विस्तारित किया जाता है। कानून व्यवस्था किसी भी देश कि सभी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए अत्यंत आवश्यक मानी जाती है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के नियमों को प्रशासनिक तौर पर लागू किया जाता है जिसका पालन करना देश के सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य होता है। कानून व्यवस्था एक बेहतर समाज की स्थापना करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह देश के लगभग सभी राज्यों, शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में शांति व्यवस्था को बनाए रखने, आपराधिक गतिविधियों को नियंत्रित करने एवं नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु बेहद महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि एक बेहतर कानून व्यवस्था वह होती है जिसमें देश के प्रत्येक राज्यों के लिए कुछ सामान नियमों का निर्माण किया जाता है एवं इन नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को उचित दंड का प्रावधान किया जाता है। कानून व्यवस्था की विशेषता यह है कि यह हर विपरीत परिस्थिति में स्थिर एवं समान रूप से देश के सभी नागरिकों पर लागू होता है।

कानून के प्रकार (Types of Law in hindi)

कानून के कई प्रकार होते हैं जैसे:-

  • सार्वजनिक कानून
  • संवैधानिक कानून
  • व्यक्तिगत कानून
  • सामान्य कानून
  • प्रथागत कानून
  • अध्यादेश
  • प्रशासकीय कानून
  • अंतरराष्ट्रीय कानून
सार्वजनिक कानून (Public Law)

सार्वजनिक कानून वह व्यवस्था होती है जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार, विधिक व्यक्तियों एवं राज्य सरकार के मध्य संबंध को व्यापक रूप से स्थापित किया जाता है। यह कानून पद्धति का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है जिसमें देश की विभिन्न संस्थाओं के लिए सभी प्रकार के प्रतिक्रियात्मक कानून शामिल होते हैं। सार्वजनिक कानून में कर लगाने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए उचित दंड देने का प्रावधान भी किया जाता है।

संवैधानिक कानून (Constitutional Law)

संवैधानिक कानून वह कानून होता है जिसकी संरचना देश के संविधान के माध्यम से की जाती है। किसी भी देश का संविधान मौलिक कानूनों का वह समूह होता है जो देश में शासन करने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है। यह केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं अन्य सरकारी संस्थानों के माध्यम से समाज में समान रूप से लागू किए जाते हैं। संवैधानिक कानून के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के नियमों को संदर्भित किया जाता है जिसका पालन करना देश के प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य होता है।

व्यक्तिगत कानून (Personal Law)

व्यक्तिगत कानून वह पद्धति होती है जिसके माध्यम से देश के नागरिकों के पारस्परिक संबंधों को निश्चित किया जाता है। यह कानून मुख्य रूप से नागरिकों के लिए विवाह, उत्तराधिकार, तलाक, रखरखाव, विरासत आदि को विनियमित करते हैं। इसके अलावा व्यक्तिगत कानून विभिन्न प्रकार के समुदाय के धार्मिक रीति-रिवाजों से भी प्रभावित होते हैं। इसके अलावा व्यक्तिगत कानून के अंतर्गत ऋण संबंधी कानून, जमीन खरीदने एवं बेचने की प्रक्रिया को भी शामिल किया गया है क्योंकि इसका सीधा संबंध देश के नागरिक से होता है।

सामान्य कानून (Common Law)

सामान्य कानून के अंतर्गत देश के विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों के लिए नियमों एवं कानूनों को संदर्भित किया गया है। इस प्रकार के कानून का निर्माण देश के नागरिकों को न्याय प्रदान कराने हेतु किया गया है। माना जाता है कि सामान्य कानून एवं संवैधानिक कानून का निर्माण एक ही प्रक्रिया के माध्यम से हुआ है। यह मुख्य रूप से देश के विभिन्न स्थानों के रीति-रिवाजों, संस्कृति एवं परंपराओं पर आधारित होता है।

प्रथागत कानून (Customary Law)

प्रथागत कानून का निर्माण देश में प्रचलित विभिन्न प्रकार के रीति-रिवाजों, परंपराओं एवं संस्कृति को विकसित करने के उद्देश्य से किया गया है। प्रथागत कानून को न्यायालय से कानून का दर्जा प्राप्त है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में आने वाले प्रदेशों में प्रथागत कानून को सिविल कानून के समकक्ष महत्व दिया गया है। प्रथागत कानून समय के साथ-साथ परिवर्तित होते रहता है। इस कानून को वर्तमान रीति-रिवाजों को संशोधित करने एवं नए प्रथागत कानून का निर्माण करने का भी अधिकार प्राप्त है।

अध्यादेश (Ordinance)

अध्यादेश वह आदेश होता है जिसे न्यायालय या कार्यपालिका एक निश्चित अवधि के लिए जारी करता है। भारत में केवल राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्राप्त है। अध्यादेश में विधानसभा या संसद द्वारा पारित कानून जैसी शक्तियां निहित होती है। परंतु इस अध्यादेश को 6 माह के भीतर संसद या राज्य विधानसभा के अगले सत्र में सदन में पेश करना बेहद अनिवार्य माना जाता है। यदि किसी कारण से संसद इसे अस्वीकार करती है तो इस स्थिति में 6 सप्ताह के भीतर वह अध्यादेश प्रभावहीन हो जाता है।

प्रशासकीय कानून (Administrative Law)

प्रशासकीय कानून को शासन का निर्धारण करने वाला कानून कहा जाता है। इस कानून का उद्देश्य सामाजिक हितों की समय पर पूर्ति करना होता है। यह कानून मुख्य रूप से जनहित के नियमों पर आधारित होता है। प्रशासकीय कानून किसी भी प्रशासनिक अधिकारी को अनुचित कार्य करने से रोकने की प्रेरणा देता है। इस प्रकार के कानून में देश के सभी नागरिकों एवं सरकारी कर्मचारियों के लिए अलग-अलग कानून का निर्माण किया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय कानून (International Law)

अंतरराष्ट्रीय कानून नियमों का वह समूह होता है जो विभिन्न देशों के मध्य पारस्परिक संबंधों को बेहतर बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करते हैं। इसका सीधा संबंध देश के विभिन्न राज्यों के समाज से होता है। यह विश्व भर में मौजूद स्वतंत्र देशों के बीच के संबंध को बेहतर बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय कानून देश के सभी सभ्य राज्यों के मध्य एक प्रकार का कानूनी संबंध स्थापित करता है।

 

न्याय और कानून में अंतर (Difference Between Justice and Law in hindi)

न्याय और कानून में निम्नलिखित अंतर होते हैं:-

  • न्याय मुख्य रूप से निष्पक्षता की गुणवत्ता को संदर्भित करता है जबकि कानून नियमों के समूह को संदर्भित करता है।
  • न्याय का संबंध व्यक्ति की नैतिकता से होता है जबकि कानून का संबंध देश के संविधान से होता है।
  • न्याय देश की सरकार के व्यवहार के क्रम को प्रभावित नहीं करता है जबकि कानून देश की केंद्र या राज्य सरकार के व्यवहार के क्रम को विकसित करता है।
  • न्याय प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का संशोधन करने की आवश्यकता नहीं होती है जबकि कानून व्यवस्था में समय-समय पर संशोधन किया जाता है।
  • न्याय किसी भी परिस्थिति में निरस्त नहीं किया जा सकता है जबकि कानून को विपरीत परिस्थितियों में निरस्त भी किया जा सकता है।
  • न्याय का समर्थन नैतिक समर्थन कहलाता है जबकि कानून का समर्थन कानूनी समर्थन किया जाता है।
  • न्याय अमूर्त होता है जबकि कानून ठोस होता है।
  • न्याय को ईश्वर के रूप में भी देखा जा सकता है परंतु कानून सर्वदा नियमों एवं विनियमों पर ही आधारित होता है।