उत्तराखंड का पामीर ‘दूधातोली’ : दूधातोली, उत्तराखंड का पामीर कहा जाने वाला ‘दूधातोली’ कहाँ स्थित है या उत्तराखंड का पामीर ‘दूधातोली’ क्या है उत्तराखण्ड का पामीर ‘दूधातोली’ ?
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उत्तराखंड का पामीर ‘दूधातोली’
उत्तराखण्ड का ‘पामीर’ कहे जाने वाली तथा चमोली, गढ़वाल एवं अल्मोड़ा जिलों में फैली दूधातोली श्रृंखला बुग्यालों, चारागाहों और सघन वनों (बाँज, खर्सू व उतीश वृक्षों) से आच्छादित 2000-2400 मीटर की ऊंचाई का वन क्षेत्र है।

दूधातोली से निकलने वाली नदियाँ
दूधातोली से पांच नदियों पश्चिमी रामगंगा, आटागाड़, पश्चिमी व पूर्वी नयार तथा विनो नदी का उद्गम होता है। आटागाड़ लगभग 30 किमी० बहने के बाद सिमली (चमोली) में पिंडर नदी से मिलती है। विनो नदी भी यही दूरी तयकर केदार (अल्मोड़ा) में रामगंगा नदी की सहायक नदी बनती है तो पूर्वी-पश्चिमी नयार नदियां भी गंगा में समाहित हो जाती हैं। दूधातोली से निकलने वाली सबसे बड़ी पश्चिमी रामगंगा चमोली, अल्मोड़ा एवं गढ़वाल को सींचते कर, कालागढ़ बांध में विद्युत उत्पादन करते हुए उत्तर प्रदेश के कन्नौज में गंगा से आत्मसात होती है।
दूधातोली का पर्यावरणीय महत्व
दूधातोली का पर्यावरणीय महत्व पाँच नदियों के उद्गम से तो है ही उसकी औषधीय वनस्पतियों और विविध प्रजाति वनों से भी है। बाँज, खर्सू, देवदार और कैल की दुर्लभ प्रजातियों के साथ भावर (घना जंगल) कहे जाने वाले दूधातोली में बाघ, गुलदार, चीते से लेकर भालू, सुअर, खरगोश, शाही व अनेकानेक पक्षियों का निवास है। लगभग मार्च अंतिम सप्ताह तक बर्फ से ढकी रहने वाले दूधातोली के चारागाह व चोटियां उद्गमित नदियों को सदानीरा तो बनाती ही हैं, साथ ही क्षेत्र के चारों ओर हरियाली भी बनाये रखती हैं।
विस्तृत चरागाह के क्षेत्र दूधातोली अपने नाम के अनुरूप दूध की तौली (दूध का बड़ा बर्तन) है। उसके चारागाह उससे जुड़े ग्रामीणों के लिए अत्यन्त लाभदायी थे।
पर्यावरणीय समस्या
दूधातोली की पर्यावरणीय समस्याओं में उसके ऊपरी भाग से लगातार वन सिमटते जा रहे है। हिमपात से काफी वृक्ष टूटते जा रहे है तथा साथ ही 70 के दशक के अंत में स्थानीय जनता के द्वारा अपने जरूरतों के लिए वृक्षो का अंधाधुंध दोहन की नीतियों द्वारा इस क्षेत्र की खाली सपाट बनती श्रृंखला के लिए जिम्मेदार है। खरकों के निर्माण में प्रतिवर्ष लगभग सौ घन मीटर लकड़ी का उपयोग होता है। दूधातोली में वनों के सिमटने का एक कारण यह भी है, की यहाँ पर प्राकृतिक रूप से बीज पहाड़ो के निचले हिस्से में तो आसानी से आ जाते है, लेकिन ऊंचाई की ओर नहीं जा सकते हैं। यदि वनों के घटने का यही क्रम रहा तो हिम जमने की क्षमता और नदियों के सदानीरा रूप को प्रभावित करेगा। जिससे देवभूमि में जल की समस्या का सामना करना पड़ेगा।
प्रशासनिक व्यवस्था
ब्रिटिश शासनकाल में चांदपुर परगना दूधातोली के चारों ओर फैली चांदपुर सेली, चांदपुर तैली, लोहबा, रानीगढ़, ढाईज्यूली, चोपडाकोट, चौथान व श्रीगुर पट्टियों को मिलाकर बनाया गया था। 1960 में चमोली जिले के गठन के साथ भौगोलिक रूप से दूधातोली का विभाजन हो गया और दूधातोली के काश्तकार दो प्रशासनिक इकाइयों में बंट गये। हालांकि दूधातोली में हक-हक्तूक धारक चौकोट पट्टी पहले ही अल्मोड़ा जिले का हिस्सा थी।
1912 में जंगलात विभाग द्वारा जारी सूची में चांदपुर, लोहबा, चौथान, चौकोर ढाईज्यूली व चोपड़ाकोट के निवासियों को दूधातोली जंगल का हक दिया गया है। वहां पशुपालकों को खरक बनाने हेतु भूमि आवटित है और पशुपालन का अधिकार भी, न केवल उक्त गांवों को बल्कि हिमाचल के गद्दी व गूजरों के पशु भी नियमित रूप से दूधातोली में देखे जा सकते हैं। 6 पट्टियों के 50 गांवों के 800 पशुपालकों के 99 खरक भी दूधातोली में विद्यमान हैं।
दूधातोली की अद्वितीय सौन्दर्यता
वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली दूधातोली के अद्वितीय सौन्दर्य के उपासक थे। उन्होंने 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु से दूधातोली को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की मांग की थी। उन्हीं की मांग पर इस हेतु अध्ययन भी कराया गया। उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण की माँग भी उसी कड़ी का अगला हिस्सा है। गढ़वाल व कुमाऊँ विश्वविद्यालयों की स्थापना से पहले दूधातोली में उत्तराखंड विश्वविद्यालय खुलवाने की बात कह चुके थे। वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की मृत्यु के बाद उनकी इच्छा के अनुसार उनकी समाधि दूधातोली के कोदियाबगड़ में बनाई गयी। उनकी याद में प्रतिवर्ष 12 जून को वहाँ मेला लगता है।
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Write your comment…very nice I like it very much
Waaw so important and impressive information
Nice
very nice jisne v ye prepare kiya
उत्कृष्ट अद्वितीय अद्भुत लेख हैं.
शानदार जबर्दस्त जिंदाबाद.
बहुत शानदार
bhut sandaar
जितनी प्रशंसा की जाय कम हैं, बहुत शानदार लेख है, इसी तरह के और लेखो पर भी प्रकाश डालने की कृपा करे, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
100% needful thanks for this.. Studyfry
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Bhut sundar or abhiprerit drishy
Bahut hi achhi knowledge. More information please share.
Sh. Chander singh garhwali, want to be capital at kotibagda.
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